गर्भपात
गर्भपात
“चाचा ओ चाचा... अभी तक सो रहे हैं ? ” सभी बच्चे एकसाथ चिल्लाये।”
“हाँ.. झपकी लग गई। घर का मुखिया हूँ ना, रात को ठीक से सो नहीं पाता !”
‘सो तो है, आप हमें सर्दी-गर्मी, आंधी-तूफ़ान सभी से बचाते हैं। लेकिन , चाचा बात ही कुछ ऐसी है, बहुत घबराहट सी हो रही है।”
“अरे..क्या बात है ? बताओ भी।”
“चाचा, कल हमने मकान मालिक को कहते सुना था, अगले हफ्ते दीपावली है ...घर के कोने-कोने की सफाई होगी, और रंग-रोगन भी। अब हमलोगों का क्या होगा ?! यहाँ हम सीढ़ी -घर के रोशनदान में बेफिक्र से... महफूज रहते आये हैं।
लेकिन ,आज बहुत भयभीत हैं ! दीपावली की सफाई में हमारी भी सफाई तय ही समझो !”
“अरे...शुभ-शुभ बोल। चिंता किस बात की ? मैं हूँ..ना !” बच्चों को ढाढ़स बांधते हुए चाचा ने मधुरता से कहा।
“धपर...धपर...! यह आवाज कहाँ से ?! लगता है कोई सीढ़ी से ऊपर आ रहा है। चाचा वो...सामने देखिये...आ गई महिला सफाईकर्मी ! हमें नहीं बख्शेंगी। बहुत निर्दयी होकर झाड़ू चलाती है। सोचेगी भी नहीं कि इसमें किसी जोड़े का सपना सजा है।”
सफाईकर्मी को देखते ही बच्चों में हडकंप मच गया।
” बच्चों, जब तुम्हें पता था, तो अपनी माँ को क्यों नहीं बताया ? आज वो दाना चुगने नहीं जाती !” मौत को सामने देख, चाचा खुद को असहाय महसूस करने लगे।
“ चाचा, हमें माँ की चिंता सताए जा रही है। जब वो यहाँ लौटेगी तो हमलोगों को ढूंढेगी। हमारा कोई ठिकाना उसे नहीं मिलेगा ! शायद , हमारी लाश भी नहीं दिखे ! फिर क्या बीतेगी उस पर ! ओह! बेचारी के सभी संजोये सपने...दीपावली के चकाचौंध में भस्म हो जायेंगे।”
इसी बीच सफाईकर्मी तेज कदमों से हमारे करीब आ पहुँची। उसकी हाथ में कसी झाड़ू की मूठ पर नजर पड़ते ही बलि के बकरे की तरह हम लोग थरथराने लगे।
और अधिक पास आकर वो फुसफुसाई , “ बहुत तेज दर्द हुआ था मुझे, जब मेरे घरवालों ने भ्रूण-परीक्षण के बहाने मेरा गर्भपात करवाया था ! बच्चों, मैं स्त्री हूँ... तुम्हारी माँ की पीड़ा भली भाँती समझ सकती हूँ। “
कहते हुए सफाईकर्मी ने अपनी दिशा बदल ली। ----
चाचा (घोंसला) बच्चे (अंडे )