गोवर्द्धन लीला रहस्य
गोवर्द्धन लीला रहस्य
नंदराय के भवन में किसी विशेष आयोजन की तैयारियां हो रही थी । यज्ञ, पूजन,साज-सजावट आदि की सामग्रियां इकठ्ठी हो रही थी । नंदरानी शुद्ध पवित्र वस्त्र धारण कर नाना प्रकार के पकवान बना रही थीं । समस्त ब्रजवासी भी किसी विशेष आयोजन की तैयारी कर रहे थे । घरों में मिठाईयाँ तथा पकवान बन रहे थे ।
यह देख बाल कृष्ण ने नंदराय जी से पूछा :-बाबा ! ब्रजवासी कौन से विशेष आयोजन की तैयारी कर रहे हैं ।
नंदराय जी बोले – हे कृष्ण ! ब्रजवासी इंद्र पूजन की तैयारी कर रहे हैं, जिनकी कृपा से वर्षा होती है,वर्षा से तृण आदि वनस्पतियों की उत्पत्ति होती है, जिन्हें खाकर हमारी गायें तृप्त होती हैं और हमें भरपूर दूध देती हैं ।
कृष्ण ने कहा– बाबा ! हमारे देवता तो गोवर्धन पर्वत हैं, जहाँ हमारी गायें चरती और तृप्त होती हैं । गोवर्धन जी की कृपा से ही वर्षा होती है । आप लोग गोवर्धन जी की पूजा क्यों नहीं करते ?
नंदराय जी बोले – लाला ! बात तो तुम्हारी ठीक है किंतु हम इधर गिरिराज की पूजा करें और उधर इंद्र देव नाराज हो गये तब ?
आप इसकी चिंता न करें । गिरिराज हम सब की रक्षा करने में समर्थ हैं । आप लोग समृद्धि दाता गिरिराज गोवर्धन की पूजा करें जिनके आश्रय में हमारी गायें पुष्ट होती है, जिससे हमें समृद्धि मिलती है ।
नंदराय जी को बाल कृष्ण की बातें जंच गयी । उन्होंने इस संबंध में ग्वाल-बालों से सलाह किया । ग्वाल-बालों ने कहा- नंदरायजी ! कृष्ण का कथन सत्य है,किन्तु, यदि देवराज इंद्र कुपित हुए तब हमारी रक्षा कौन करेगा ?
कृष्ण वहीं मौजूद थे उन्होंने ब्रजवासियों को आश्वस्त करते हुए कहा – यह तुम लोग मेरे ऊपर छोड़ दो !
ब्रजवासियों ने कृष्ण की बातों पर विश्वास किया तथा इंद्र पूजा की सदियों पुरानी परंपरा को त्याग दिया । निश्चित तिथि को गिरिराज की पूजा आरंभ हुई !
बाल कृष्ण ने ब्रजवासियों से पूछा – हे ब्रजवासियों ! क्या इंद्रदेव आप लोगों द्वारा समर्पित भोग नैवेद्य को खाते थे ?
नहीं लल्ला ! बिल्कुल नहीं ! नैवेद्य तथा भोग प्रसाद जस का तस रखा रहता है -ग्वाल-बालों ने कहा ।
अच्छा ! अब आप लोग गिरिराज को भोग लगाकर देखें कि वे खाते हैं या नहीं – कृष्ण ने कहा और स्वयं गिरिराज का रुप लेकर मुँह खोलकर खड़े हो गये ।
एक ब्रजवासी आगे बढ़ा और खुले मुख में एक मालपुआ रखा, । लोगों की आश्चर्य की सीमा न रही जब उन्होंने देखा कि गिरिराज मालपुए को चबा-चबाकर खाने लगे । इसके बाद गिरिराज के देवता होने में किसी को भी संदेह न रहा । फिर तो गिरिराज को भोग लगाने की होड़ सी लग गयी ।
कृष्ण एक रुप में बाहर ब्रजवासियों के साथ गिरिराज का पूजन कर रहे थे, वही गिरिराज का रुप लेकर वे ब्रजवासियों द्वारा भेंट किया हुआ भोग-प्रसाद ग्रहण कर रहे थे । इसमें आश्चर्य कैसा ? ब्रम्हाण्ड (सृष्टि) में कृष्ण के सिवाय और है भी क्या ? ब्रजवासियों का दिया हुआ भोग प्रसाद गोवर्धन रुपी श्रीकृष्ण ने प्रेमपूर्वक ग्रहण किया ।ब्रजवासियों ने स्वयं को धन्य समझा ।
उधर इंद्र देव के क्रोध का ठिकाना न रहा । ब्रजवासियों ने एक छोटे से बालक के बहकावे में आकर उसकी पूजा-प्रतिष्ठा छोड़ दी । अतः देवराज ने उन्हें इसका फल चखाने का निश्चय किया । उन्होंने ने मेघों को आदेश दिया कि वे इतनी वर्षा करें कि सारा ब्रजमण्डल जलमग्न हो जाये ।
मेघों ने देवराज के आदेशों का पालन किया । ब्रज में एकाएक काले-काले मेघ घिर आये । बिजलियाँ कड़कने और चमकने लगी तथा घनघोर वर्षा होने लगी । ऐसी वर्षा इससे पहले कभी नहीं हुई थी ।
वर्षा रुकने-थमने-कम होने के बजाए और भी उग्र होती गयी । ब्रजवासी घबराये । उन्हें धीरे-धीरे यह विश्वास हो गया कि यह घनघोर वर्षा इंद्र देव के क्रोध का परिणाम है । इंद्र कुपित हैं क्योंकि हमने उनकी सदियों पुरानी पूजा बंद कर दी ।
वे कृष्ण के पास आये और कहने लगे-- हे कृष्ण हमने आपका कहना माना और गिरिराज की पूजा की । अब इंद्र के कोप से हमारी रक्षा कौन करेगा ?
कृष्ण बोले- हमने जिन गोवर्धन महाराज की पूजा की है वही हमारी रक्षा करेंगे । आप लोग अपने-अपने परिवार तथा गो धन को लेकर तुरंत आयें । ब्रजवासियों ने ऐसा ही किया ।
‘’ वर्षा के इस भीषण वेग से हमें गिरिराज ही बचा सकते हैं’’, ऐसा कहते हुए उन्होंने गिरिराज को ऊपर उठा लिया- ‘’आओ ! ब्रजवासियों ! सब गिरिराज के नीचे आ जाओ ! शीघ्रता करो !!’’
अपने पशु धन सहित ब्रजवासी गोवर्धन के नीचे आ गये । भगवान ने सुदर्शन चक्र को सक्रिय कर दिया । सुदर्शन चक्र के प्रभाव से गोवर्धन के आपपास न तो जलस्तर में वृद्धि हुई और न ही वर्षा की एक बूँद भीतर आ पाईं ।
सात दिनों तक अनवरत घनघोर वर्षा होती रही । इंद्र भरपूर कोशिश करने के बाद भी ब्रजमंडल के एक तिनके को भी हानि नहीं पहुंचा पाया ।
कृष्ण ने सात दिनों तक गोवर्धन उठाये रखा । इंद्र का गर्व चूर-चूर हो गया । वह भयभीत होकर श्रीकृष्ण की शरण में गया तथा उनसे अपने भूल की क्षमा याचना की । भगवान ने उसे क्षमा कर दिया ।
ब्रजवासी हँसी-खुशी अपने-अपने घरों को लौटे । इसके बाद प्रतिवर्ष गिरिराज गोवर्धन की पूजा प्रसन्नता पूर्वक किया जाने लगा । इस अवसर गिरिराज को नाना प्रकार के पकवानों तथा व्यंजनों का भोग लगाया जाना शुरु हुआ ।
यह तो भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की कथा है । इस कथा में गूढ़ संदेश छिपा हुआ है ।
जिन्हें श्रीकृष्ण के वचनों पर विश्वास था तथा जिन्होंने उनका कहना माना और गिरिराज की पूजा की । उन ब्रजवासियों के लिए भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था ।
पहाड़ उठाना एक मुहावरा है,जिसका अर्थ है, बड़ी जिम्मेदारी लेना । यहाँ श्रीकृष्ण द्वारा पहाड़ उठाने का तात्पर्य है, प्रभु द्वारा ब्रजवासियों की संपूर्ण जिम्मेदारी लेना है ।
‘जो व्यक्ति भगवान के वचनों पर विश्वास करके बिना किसी किंतु-परंतु तथा तर्क-वितर्क के उसका अक्षरशः पालन करता है, भगवान उसकी रक्षा तथा पालन-पोषण की संपूर्ण जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेते हैं ।‘
इस जिम्मेदारी की अवधि भी तय है । सात दिन । श्रीकृष्ण ने सात दिनों तक ब्रजवासियों की सुरक्षा का संपूर्ण भार स्वयं उठाये रखा था । दिनों की संख्या (रविवार, सोमवार, मंगलवार….. शनिवार) सात निश्चित है । इसमें घट-बढ़ नहीं होती । यही क्रम अनंत काल से चला आ रहा है और अनंत काल तक चलता भी रहेगा । इसीलिए भागवत जी की कथा भी सात दिनों में ही पूरी होती है ।
आगे चलकर भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध से पहले अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा भी है, जो भी मनुष्य मेरी शरण मे आ जाता है मैं उसकी सारी जिम्मेदारी ले लेता हूँ, फिर उसके सुख- दुख, हानि-लाभ की चिंता मेरी अपनी चिंता हो जाती है ।
भगवान श्रीकृष्ण भार उठाने को सदा तत्पर हैं बशर्ते कि मनुष्य उन्हें अपना भार सौंपना चाहे ।
यही गोवर्द्धन पूजा का शुभ संदेश है ।।
