गोलटाई
गोलटाई
मेरे घर में अब मां मुझे कुछ भी जन्तु पालने नहीं देती। मां को मैंने बहुत बार विनती की है, मगर मां कभी भी नहीं मानती, या फिर शायद मां वो दर्दनाक घटना भूल नहीं पाती। मैं जब भी वो घटना याद करती हूं, बेचैन हो उठती हूं।
एक बार मेरे पिताजी ऑफिस से घर लौट रहे थे, सड़क पर एक टांग में चोट लगे हुए, एक पिल्ले को उन्होंने देखा। पिताजी के मन में करुणा आई होगी शायद, उन्होंने उस कुत्ते को बगल के दवाई दुकान से लाकर मरहम-पट्टी की और उसे बिस्कुट खाने को दिया।
पिताजी ने ये बात घर में मुझे बताया, मैंने उनसे पूछा कि क्या हम उस पिल्ले को घर पर लाकर पाल सकते हैं। पिताजी से पहले मां ने उत्तर दिया कि तुम खुद दस साल की हो, तुम कुत्ते को कैसे पालोगी।
मां को तो मैंने और पिताजी ने किसी भी तरह मना लिया। अगली शाम पिताजी उस पिल्ले को घर लेकर आ गए। हमने उस कुत्ते का बहुत प्यार से स्वागत किया। मेरी मां जो उस कुत्ते के बारे में सुनकर नाराज थी, सबसे पहले वही आकर उस कुत्ते को अपनी गोद में ले लिया।
उस कुत्ते का नाम हमने 'गोल्टाई' रखा। गोल्टाई की हमने बहुत ही सेवा की। उसकी मरहम-पट्टी पिताजी करते थे, उसके लिए मांस और मछली मां बनाती थी और मैं उसके साथ खूब खेलती थी। गोल्टाई मेरी रजाई में घुसकर सोता, मां के साथ पूरे घर का चक्कर लगाता, मैं रोज उसके लिए ब्रेड लाया करती थी। पूरा साल बीत गया पता ही नहीं चला।
गोल्टाई अब बड़ा हो चुका था और उसे शायद किसी साथी की बेहद जरूरत थी। मुझे ये सब समझ नहीं आता था, लेकिन मैंने ये समझ लिया था कि उसे अब शायद किसी तरह की बेचैनी होती है ।
एक दिन गोल्टाई सारा दिन रो रहा था, न उसने खाना खाया न ही वो सारे दिन अपने घर से बाहर निकला। मैंने मां और पिताजी को बात करते सुना, मगर कुछ समझ नहीं पाई।
अगले दिन सुबह गोल्टाई अपने कमरे में नहीं था। उसका बेल्ट खुला हुआ था। ऐसी परिस्थिति देखकर मुझे बहुत रोना आया। मेरी मां ने कहा कि वो जल्दी ही लौट आएगा, लेकिन मुझे लगा कि मां झूठ बोल रही है।
कुछ दिनों तक गोल्टाई नहीं लौटा, करीब-करीब दस दिन हो चुके थे। मैं अपने स्कूल की ओर जा रही थी, अचानक मैंने कुछ लोगों की भीड़ देखी, जो किसी दुर्घटना के शिकार जानवर को देख रही थी। मैं थोड़ा रुक कर, उस भीड़ की ओर बढ़ी। जैसे ही मैं भीड़ की ओर बढ़ रही थी, मुझे गोल्टाई की याद आने लगी। जब मैंने उस लाश को देखा, तो मैं अवाक रह गई।
वो लाश मेरे प्यारे गोल्टाई की थी।
उस दिन से लगातार बीस दिनों तक मैं स्कूल नहीं गई। मुझे लगातार भयंकर बुखार आ रहा था और मैं बिस्तर पर से उठने लायक परिस्थिति में नहीं थी।
