गोलगप्पे
गोलगप्पे


जब से मुन्ना हुआ था वह मानो घर में कैद हो गई थी.
वह सकल घरेलू महिला थी.
अपनी जिम्मेदारियां निभाते हुए उसका मुन्ना कब बाप भी बन गया...यह कैलेंडर देख कर उसे अहसास हुआ था.
आज उसकी कोई स्पेशल वाली तो नहीं बस हर साल की तरह बीतती हुई सालगिरह थी...
खैर, पतिदेव आज उसे लेकर बाहर आ गए थे.
“गोलगप्पे खाओगी...?” – एक अज़ब सी चहक थी पतिदेव की आवाज़ में.
वह उसकी सहमति आँखों से ले चुके थे.
गोलगप्पे खाते हुए उसकी आँखों से जो आंसू निकल रहे थे वह ज़िन्दगी के न जाने कितने खट्टे-मीठे-तीखे तजुर्बों का मिला जुला भाव था.
गोलगप्पे वाला भी मन लगा कर उन्हें खिला रहा था.
उसे भी शायद वर्षों से इस दम्पत्ति के दुबारा आने का इंतजार था.
वह जिंदगी के आगे के सफ़र के लिए फ्रेश हो चुकी थी.