गोल गोल दुनिया
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भाग- 3
उन्होंने मुझे कहा था कि वे इस बात का जिक्र किसी से नहीं करेंगे। बच्चों वाली बात है ठीक नहीं लगता। मैं इस बारे में सोच ही रहा था कि मैडम हंसते हुए फिर बोलीं ” अरे किस सोच में पड़ गये आप? सर तो ऐसे ही हैं उनकी तो आदत ही है इधर की बात उधर करने की। अरे आपके भाई के बारे में भी मुझे उन्होंने ही तो बताया था। और मुझे क्या पूरे स्टाफ़ को खबर उन्होंने ही दी थी।”
ये मेरी अपरिपक़्वता को मिलने वाला पहला पाठ था। अगला पाठ भी मुझे जल्द ही मिलने वाला था।
इस साल स्कूल के पुरस्कार वितरण समारोह में जिला शिक्षा अधिकारी महोदय आने वाले थे। ये बात सुन कर शर्मा सर ने अति प्रसन्न होते हुए बताया कि वे उनके निकटतम रिश्तेदार हैं। अच्छी तरह परिचित हैं वे उनसे। ये जानकर मुझे बड़ी खुशी हुई। सोचा चलो इसी बहाने मेरी भी जान पहचान किसी अधिकारी से हो जायेगी।
समारोह वाले दिन अधिकारी महोदय आशा के विपरीत कुछ समय पहले आ पहुँचे। सरल स्वभाव के धनी होने के कारण जल्द ही सबसे हिलमिल गये। चाय की चुस्कियों के बीच में वे अपनी चाय पीने की बुरी आदत के बारे में बता रहे थे कि वार्तालाप में मैंने भी अपना योगदान देते हुए कहा कि सिगरेट पीने की लत तो हमारे शर्मा सर भी नहीं छोड़ पा रहे।
मेरी बात सुनकर बाकी सब तो हंस पड़े पर बगल में बैठे शर्मा सर कुछ चिढ़ते हुए मेरे कान में बोले “तुम भी मरवाओगे यार। अच्छी तरह से जानते हैं अगर घर पे कह दिया तो पिताजी जूते मार मार के चाँद गंजी कर देंगे।”
>तब मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ कि मैंने गलत समय पर गलत बात कह दी। और फिर मैं अपनी गलती सुधारने का मौका तलाश करने लगा।
किस्मत से मौका जल्द ही हाथ आ गया। एक एक कर के सभी लोग समारोह की तैयारी में व्यस्त हो गये। मैंने मौका पाकर अधिकारी महोदय से कहा ”सर आपसे एक रिक्वेस्ट थी।”
“जी कहिये।”
“सर आप इस बात की चर्चा किसी से करियेगा नहीं कि शर्मा सर सिगरेट पीते हैं। उन्हें ऐसी कोई आदत नहीं है। मैंने तो बस यूँ ही मज़ाक में कह दिया था। अगर उनके पिताजी को पता चला तो बेकार में नाराज़ होंगे।”
मेरी बात सुनकर उन्होंने प्रश्नवाचक दृष्टि से मेरी ओर देख कर कहा “अरे मैं क्यों कहूंगा? मैं तो उनको जानता तक नहीं।”
कहते हुए वे आगे बढ़ गये।
उस दिन के बाद से मेरा मानव जाति और उसके सद्गुणों से तो जैसे भरोसा ही उठ गया। आज जीवन में किसी नये इंसान से मिलता हूँ तो सबसे पहले मन में शर्मा सर की छवि घूम जाती है।
अब कोई कुछ भी कहता रहे मैं भरोसा नहीं कर पाता। और अपने मन की बात तो बिल्कुल अपने मन में ही रखता हूँ।
खैर इस साल मैंने दूसरा स्कूल जोइन कर लिया है। उस स्कूल से यहाँ पैसे कुछ ज्यादा मिल रहे हैं और काम भी उतना नहीं है।
यहाँ भी एक तिवारी सर हैं। लोग प्यार से उन्हें बंधुवर बुलाते हैं। बड़े ही भले आदमी हैं। इनके पास भी दो विशेष गुण हैं।
अरे नहीं, बिल्कुल नहीं...
मुझे किसी के बारे में कोई बात नहीं करनी। मैं तो चला मेरी क्लास का वक़्त हो गया।