Priyanka Gupta

Tragedy

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Priyanka Gupta

Tragedy

गोधूलि

गोधूलि

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तुम्हारी दोस्ती ,प्यार जो भी था ,वो मेरे लिए बहुत मायने रखता था; मेरे सबसे अच्छे दोस्त ;नहीं, अब तो मैं तुम्हे यह नहीं कह सकती। तुमने मुझसे यह अधिकार छिन लिया। अब तुम कहोगे तुमने तो मुझे ऐसा कभी कोई अधिकार दिया ही नहीं था।मैं अगर याद भी दिलाऊंगी तो "तुम अभी भी अतीत में जी रही हो या तुमने अपनी एक अलग दुनिया बना ली है। " कहकर मुझे चुप करा दोगे।


तुमने सही कहा मैं आज भी अतीत में ही जी रही हूँ ।तुम कितनी आसानी से आगे बढ़ गए। भावनाओं के संसार में जीने वाली मैं; कैसे , तुम जैसे एकदम प्रैक्टिकल ,प्यार को भी केमिस्ट्री की अभिक्रियाओं से समझाने वाले व्यक्ति को बेइंतेहा अपने आप से भी ज्यादा प्यार करने लग गयी।


मैं तो तुमसे आत्मा से जुड़ गयी ,ये जानते हुए भी कि तुम्हारा नाम कभी भी मेरे नाम के साथ जुड़ नहीं सकता। क्यूंकि मैं तो पहले ही अपने नाम को किसी और के साथ जोड़ चुकी थी । लेकिन उसके साथ अपनी आत्मा को नहीं जोड़ पायी। मैं भी राधा और मीरा के जैसे दुनियावी कायदो कानूनों से परे तुमसे प्यार करने लग गयी।


अब तुम मुझे कहते हो अपनी बनाई हुई दुनिया से बाहर निकलो। लेकिन ये नहीं बताते कैसे बाहर निकलूं। तुम भी तो इस दुनिया का हिस्सा थे कभी। तुमने एक बार बोला भी था कि "हमारी दुनिया में हम दोनों कितने खुश हैं ?"

लेकिन न जाने कब तुम हमारी दुनिया को छोड़कर वास्तविक दुनिया में लौट गए। अब मुझसे भी यही चाहते हो। मैं पागल सब जानते समझते भी बहती चली गयी। यह भूल गयी कि मैं एक स्वंतत्र नदी नहीं हूँ शादी के बाँध ने मुझमें ठहराव ला दिया है।

यह भी भूल गयी कि समाज ऐसी औरतों को क्या नाम देता है। प्यार क्या सही में इंसान के सोचने समझने की शक्ति छीन लेता है। या इंसान को एक बेहतरीन इंसान बना देता है। तुम्हारे प्यार में ,मैं भी तो कुंदन सी निखर गयी थी। मैं और भी खुशमिजाज हो गयी थी। लेकिन जब तुमने मुझे लौटने को कहा ,तब मैं दर्द से भर गयी। ये दर्द गाहे बेगाहे मेरे आँखों से बहता रहता है। ये दर्द प्यार ने नहीं तुम्हारी उपेक्षा ने दिया है।

तुम भी तो जानते थे कि हमारा साथ नींद और खवाब जैसा है। जो सुबह की पहली किरण के साथ ही टूट जाता है। तुम्हारी तरफ बढ़ते मेरे क़दमों को रोका नहीं ,जब तुमने मुझे रोका तब तक नदी में तूफ़ान आ चुका था ,जो बाँध को बहा ले जाना चाहता था।


तुमने एक दिन अचानक से आकर बड़ी आसानी से बोल दिया ," सुनो ,तुम जो अब तक मेरे लिए करती रही हो ,क्यों करती रही हो ?मैंने तो तुमसे कभी कुछ माँगा ही नहीं था। हम एक दुसरे के कुछ ज्यादा ही करीब आ गए हैँ। वास्तव में,किसी के भी इतना करीब नहीं होना चाहिए।" उस दिन तुमने मुझे अपनी सबसे अच्छी दोस्त से "किसी " बना दिया।

मैं तुम्हे बोल भी नहीं पायी कि ,"मैंने तो प्यार में किया था ,एक अच्छे दोस्त के लिए किया। तुमने कभी मना भी तो नहीं किया। तुम खुश थे ,इसलिए किया। तुम्हारी ख़ुशी में मेरी भी ख़ुशी थी। " लेकिन पहले घंटों मुझसे बातें करने वाले तुम ,अब मुझे कहते हो ," मैंने तो तुम्हे पहले भी बताया है कि मुझे किसी से भी ज्यादा बातें करना पसंद नहीं। "


तुमने मुझे कितनी ही बार यह अहसास करवाया कि मैं कुछ खास हूँ।लेकिन अब तुम मुझे यह अहसास दिलाने लगे हो ,कि मैं तुम्हारे लिए कोई मायने नहीं रखती। इससे ज्यादा तकलीफदेह किसी के लिए और क्या होगा ,"कल तक तुम किसी की पूरी दुनिया थे और आज उसकी दुनिया का एक छोटा हिस्सा भी नहीं " ।

कहाँ तो तुम हमेशा मेरा साथ चाहते थे ,लेकिन न जाने मैं कब तुम्हारे लिए ऐसी नागफनी बन गयी ,जिससे तुम अपने आपको बचाकर निकलना चाहते थे। मैं कब तुम्हारे लिए वांछनीय से अवांछनीय बन गयी ,मुझे भान तक नहीं हुआ। तुम सही कहते हो ," वास्तविकता में जिओ ,ख़्वाबों से बाहर आओ। "

तुम मुझे बार यही कहते रहे , “हम ऐसे समाज में रहते हैं ,जो राधा कृष्ण के प्रेम की पूजा तो कर सकता है ,लेकिन किसी विवाहित स्त्री का अन्य किसी पुरुष के प्रति निस्वार्थ प्रेम को स्वीकार नहीं कर सकता। इस खूबसूरत अहसास को हमेशा किसी रिश्ते का नाम देना चाहता है।“

मैंने तो तुमसे कभी इस रिश्ते को कोई नाम देने के लिए भी नहीं कहा। मैं तो इस खूबसूरत एहसास के साथ हमेशा जीना चाहती थी। एहसासों की गर्माहट रिश्ते में बदलते ही धीरे धीरे कम होते होते समाप्त हो जाती है।

मैंने तो कभी भी तुम्हे किसी रिश्ते में नहीं बांधना चाहा। मैं तो यही मानती रही हूँ कि प्यार मुक्त करता है ,प्यार हमें सदैव ही ऊँचा उठाता है। सुधा और चन्दर ने भी एक दूसरे से दूर होते वक़्त ही सही ; कम से कम अपने भावनात्मक रिश्ते को तो स्वीकार किया था। एक अनजानी सी डोर उन दोनों को बाँधे रही। तुम तो बिना कुछ कहे सुने चले गए।

तुमने अगर एक बार ये कहा होता कि ," इस जनम में तो हम हमेशा साथ हों,ऐसा संभव नहीं है। लेकिन मैं यह दुआ करूंगा कि कभी कहीं और ,किसी और समय में हम दोनों साथ होंगे। " तो मैं बाकी की ज़िन्दगी सुकून से इस खूबसूरत अहसास के साथ बिताती। लेकिन तुम तो बिना कुछ कहे ,बिना कुछ सुने मेरी नींदों में अपने ख्वाब देकर चले गए। मैं उस नदी की भांति तपते रेगिस्तान में भटकती रह गयी ,जिसके सागर ने उसे अपने में समाने से इंकार कर दिया।

मैं तो यह भी नहीं जान सकी , कि ,तुम दुनियावी रिवाजों को तोड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे या तुम मुझे अपमानित होते हुए नहीं देखना चाहते थे। लेकिन मैं ,मैं तो तुम्हारे नाम के साथ बदनाम भी होने के लिए आतुर थी।

तुम ज़िन्दगी की राह में बहुत आगे बढ़ गए , मैं अतीत में जीती आज भी जब भी अपने हाथ दुआ के लिए उठाती हूँ ,सिर्फ तुम्हे ही मांगती हूँ । मैं जब भी गोधूलि बेला में कुछ समय के लिए ही सही सूरज और चाँद को एक दूसरे के साथ देखती हूँ । तब यही सोचती हूँ कि मेरे जीवन में भी क्या कभी वह गोधूलि बेला आएगी ,जब तुम कुछ क्षण के लिए ही सही , मेरे साथ होंगे। जानती हूँ तुम अब कभी मेरे पास लौटकर नहीं आओगे ,फिर भी ताउम्र ज़िन्दगी में गोधूलि का इंतज़ार रहेगा।



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