Piyush Goel

Classics

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गणेश जन्म की कथा

गणेश जन्म की कथा

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एक बार देवी पार्वती की दो सखी जिनका नाम जया व विजया था वह देवी पार्वती से कहने लगी -" हे सखी ! सारे गण तो शिव के ही हैं तुम्हारा तो कोई भी गण नहीं है , नंदी भी शिव की ही ज्यादा आराधना करता है इसलिए तुम्हारा भी कोई ना कोई गण होना चाहिए " । 

 जया व विजया ने तो देवी पार्वती को यह बात कह दी थी कि एक बार जब देवी पार्वती स्नान कर रही थी तब भगवान शिव देवी पार्वती के स्नान गृह में आ गए जिसे देखकर देवी पार्वती अति आश्चर्य में पड़ गई क्योंकि देवी ने नंदी को अपना द्वारपाल नियुक्त करा था परंतु नंदी भी अपने स्वामी को ना रोक सका तब देवी पार्वती के मन में आया कि मुझे कोई ऐसा गण बनाना होगा जो भगवान शिव को रोक सके और वह भी मेरी बिना अनुमति के मेरे स्नान ग्रह में ना आ सके ।


ऐसा विचार कर देवी आदि शक्ति ने अपने नाखून के मेल से एक सुंदर बालक बनाया वह बालक शरीर से भारी था वह बालक वह बालक अत्यंत ही सुंदर था, उस बालक का नाम देवी पार्वती ने विनायक रखा विनायक का जब जन्म हुआ तब वह सीधा युवा हुए अर्थात वह एक नव शिशु की अवस्था में नहीं थे ।


विनायक ने देवी से कहा - " मां आपने मेरी रचना करें हैं अब आप मुझे आज्ञा दें कि मैं आपके लिए क्या करूं आप जो भी कहेंगे मैं वह अवश्य करूंगा आप मेरी जननी है अब आप कृपा मुझे मेरा कार्य बताएं "। देवी बोली - " विनायक! तुम मेरे पुत्र हो और मैंने ही तुम्हारी रचना करी है तुम अब से मेरे द्वारपाल हो जाओ मैं स्नान करने जा रही हूं मेरी आज्ञा के बिना कोई भी हट पूर्वक भीतर न आने पाए "। देवी पार्वती की आज्ञा पाकर गिरजानंदन द्वार पर नियुक्त हो गए । 

उसी समय भगवान शिव देवी पार्वती के स्नान ग्रह के समीप आ पहुंचे उन्हें देखकर श्री गणेश ने अपना दंड धारण करा और श्री गणेश भगवान शिव से कहने लगे - " रुकिए देव मैं आपको अंदर जाने की अनुमति नहीं दे सकता हूं मेरी माता ना कर रही है और उनकी आज्ञा है कि कोई भी अंदर ना जाने पाए इसलिए मैं आपको अंदर नहीं जाने दूंगा "। भगवान शिव ने जब श्री गणेश के ये वचन सुने तब वह मुस्कुराए और बोले - " तुम्हारा जो तुम्हारी माता के प्रति स्नेह हैं उसका मैं आदर करता हूं परंतु तुम जानते नहीं हो की यह आदेश मेरे लिए नहीं है बल्कि अन्य औरों के लिए है इसलिए तुम मुझे ना रोको " । गणेश बोले - " आप चाहे कोई भी हो परंतु मैं अपनी माता की आज्ञा कि अवहेलना नही कर सकता हूं इसलिए आप भीतर प्रवेश नहीं कर सकते " ।


  गणेश के यह वचन सुनकर शिव लौट गए और उन्होंने अपने गणों से कहा - " गणों ! तुम उस बालक के पास जाओ जिसने मुझे पार्वती के समीप जाने से रोका है और पता करो कि यह बालक कौन है जिसने मुझे जाने से रोका है कदाचित इसे मेरी शक्ति का भान नहीं है परंतु तुम जाओ और उस बालक को समझाओ मुझे विश्वास है कि तुम अवश्य ही इस कार्य में सफल होंगे क्योंकि तुम मेरे प्रिय हो " । भगवान शिव की आज्ञा पाकर समस्त गण श्री गणेश के पास गए उन्हें समझाने परंतु श्री गणेश ने किसी की एक न सुनी तब भीषण युद्ध हुआ जिसके अंदर गणेश ने बड़े ही आसानी से समस्त शिव गणों को परास्त कर दिया था भगवान शिव ने अन्य देवताओं को भी बुला लिया जिसके अंदर इंद्र आदि देवता भी सम्मिलित यहां तक की हरिनारायण व ब्रह्मदेव को भी भगवान ने बुला लिया परंतु कोई भी गणेश को को परास्त नहीं कर सका । तब स्वयं त्रिशूलधारी भगवान शिव गणेश जी से युद्ध करने आ गए भगवान शिव जानते थे कि द्वार पर खड़े गणेश मेरे ही पुत्र है परंतु उन्हें विवशता में ऐसा करना ही पड़ा और अंत में भगवान शिव ने श्री गणेश का मस्तक धड़ से अलग कर दिया मस्तक श्री गणेश के धड़ से बिल्कुल अलग जाकर गिर पड़ा "।


जब यह समाचार देवी पार्वती को मिला तब उन्होंने अपने समस्त शक्तियां उत्पन्न करें और सृष्टि में प्रलय मचाने लगी मैं समस्त शक्तियां सृष्टि में हाहाकार मचाने लगी सब देवता में आ गए यहां तक कि स्वयं ब्रह्मा विष्णु व महेश पर चिंतित हो उठे तब समस्त देवो से देवी पार्वती ने कहा - " हे देवी पार्वती ! हे माँ आदिशक्ति ! हे शेरोवाली ! तुम जगतजननी हो , तुमसे ही यह संसार है , हे माता ! हम सब आपही की सन्तान है , आप ने ही यह सृष्टि रची है , ओर अब आप ही इस सृष्टि का विनाश कर रही है । यह समस्त संसार आपके कोप का भागी बन रहा है । हे देवी जगदम्बा ! जब महिषासुर ने इस सृष्टि पर आतंक मचाया था तब आपही ने हमारी रक्षा करी


ओर अगर अब आप ही क्रोधित हो जाएंगी तो हमें कोन बचाएगा ? हे माता कृपा कर शांत हो जाए । अपने पुत्रों के लिए ही शांत हो जाइए" । देवो की यह पुकार सुनकर दएवी पार्वती का क्रोध शांत हो गया और उन्होंने अपने पुत्र को पुनः जीवित करने के लिए कहा ।


यह सुनकर् भगवान शिव ने अपने गणों व देवो से कहा - " हे देवो ! तुम सब उत्तर दिशा की ओर जाओ और जो भी तुम्हें पहले दिखे उसका ही शेष काट के ले आना उसका ही शीश हम इस बालक के धड़ पर लगा देंगे " । भगवान शिव की आज्ञा पाकर समस्त देवगढ़ उत्तर दिशा की ओर गए वहां पर उन्हें एक हाथी मिला जिसका धड़ काटकर भगवान को दे दिया गया तब भगवान ने श्री गणेश के कटे हुए शीश पर वह हाथी का शीश लगा दिया और श्रीगणेश पुनः जीवित हो उठे । श्री गणेश को पुनर्जीवित देखकर हर कोई आनंद मंगल में खो गया, हर कोई खुश हो गया । ओर सभी ने श्री गणेश को अनेको वरदान दिए ओर श्री गणेश को सर्वाध्यक्ष नियुक्त कर दिया ।


            



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