गलती से सीख
गलती से सीख
कल एक अपील कार्यक्रम मे गया था, वहा मुझे कोरोना के दवा खाने को लेकर लोगो से अपील करना था। लेकिन सब गड़बड़ हो गया, ईश्वर न करे जैसा कल मै लुटा गया कोई और लूटा जाए।
जिस खुली मंच से मै बोल रहा था, वहा से कुछ दूरी पर पानी पूरी का ठेला लगा था। फिर मेरा ध्यान भटक गया और
“आइये मुफ्त कोरोना का दवा खाइये” की जगह मुह से ज़ोर जोर कई बार निकल गया,
“आइये मुफ्त दवा कर खाइये”
आधे घंटे से मेरे द्वारा अपील मे बोला जा रहा था, लेकिन कोई फोन पर तो कोई अपनी अपनी बाते किये जा रहा था। मुझसे छोटा सी भूल क्या हुई, राही भी सुन दौड़ कर पानी पूरी खाने चले आए। कुछ ही पलो मे पानी पूरी पूरा साफ हो चुका था। ये तो अच्छा हुआ उसके आधे से अधिक पानी पूरी बिक चुके थे, बाद मे मुझे 1200 रुपया देना पड़ा।
पैसा देते हुए मैने कहा “ भइया गलती तो मुझ से हो ही गयी, पैसा भी आपको दे रहा। कम से कम मेरे आत्मा के संतुष्टि के लिए एक सूखा ही खिला दो”
पर अफसोस सू खा पानी पूरी भी नही बचा था।
अतः आप कही बोलो तो शब्दों पर लगाम लगा कर बोलो!
