chandraprabha kumar

Comedy

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chandraprabha kumar

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गिरा पानदान

गिरा पानदान

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समाज में परम्परागत शादी की रस्में होती हैं। कन्या को ससुराल भेजते समय माता, चाची व परिवार की अन्य महिलाओं द्वारा उचित शिक्षा दी जाती थी कि ससुराल में कैसे रहना है, कैसे सबसे व्यवहार करना है। साथ ही समझाया जाता था कि सुबह जल्दी उठना, रात को देर से सोने जाना, सब काम ख़त्म होने पर रात को सासुजी के पैर दबाना तब सोने जाना, खाना जो मिले खाना और कम खाना। कन्या सीधी सादी पहिले हुआ करती थीं और इन शिक्षाओं पर अमल करती थीं, ससुराल में बड़ाई पाती थीं। ऐसे ही जब मेरी सहेली की शादी हुई तो उसे भी यही सब शिक्षाएँ दी गईं कि रात को सोने से पहिले रोज सासुजी के पैर ज़रूर दबाना। 

विदा होकर वह ससुराल आई।शुरू के दो-तीन दिन तो रीति रिवाजों को पूरा करने में निकल गये। फिर आयोजन समाप्त हुए। सासु जी रात्रि का विश्राम करने सोने के लिये बरामदे में बिछी अपनी खटिया पर लेट गई्ं और नई बहू से भी कहा कि अब तुम सोने जाओ। सासुजी पान खाने की शौक़ीन थीं। पानदान हर समय उनके पास रहता था। जब इच्छा होती, पान का ज़रा सा टुकड़ा लेतीं उसमें हल्का सा कत्था चूना लगातीं, तम्बाकू की दो एक पत्ती रखतीं फिर पान मुँह में रख लेतीं। अत: पानदान उनका हरसमय का साथी था। रात को सोते समय भी पानदान पलंग के पास रखा रहता था। गर्मी के दिनों में ऑंगन के पास बरामदे में उनकी बान की खटिया बिछती थी, उस पर दरी चादर बिछाकर वे लेटती थीं। 

रात को जब सासुजी ने बहू को सोने की आज्ञा दी तो नई बहू ने पास जाकर पूछा-“ आपके पैर दबा दूँ? “

सासु जी को शायद इसका दूर तक भी अनुमान नहीं था कि इतनी सुघड़ बहू आयेगी ! वे हड़बड़ाकर बोलीं-“नहीं नहीं , पैर दबाने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम सोने जाओ। “

पर मेरी सहेली भी शिक्षा अधूरी नहीं छोड़ना चाहती थी। उसने सोचा कि” सासु जी तकल्लुफ़ कर रही हैं। जब घर में मॉं चाची पूछेंगी तो क्या जवाब दूँगी कि आपकी सिखाई बात नहीं मानी। “

 उसने आग्रह किया-“ लाइये थोड़ा पैर दबा देते हैं”।

जैसे ही उसने पैर छुआ तो सासु जी को बिजली जैसा करंट लगा और उन्होंने ज़ोर से पैर उठाकर हटाया। उनके इस तरह झटक कर हटाने से पैर जाकर पास रखे पानदान में लगा। पानदान दूर जाकर गिरा , उसका ढकना खुल गया। कत्था कहीं गिरा, चूना कहीं गिरा, कपड़े में लपेटे पान कहीं गिरे। पूरे फ़र्श पर कत्था चूना बिखर गया।नव वधू सकते में थी। यह क्या हुआ ! सिर मुँड़ाते ओले पड़े ! अच्छा करने जाकर बुरा हो गया। अब यह सब रात में कौन साफ़ करेगा। उसने पानदान उठाकर सीधा किया। 

पर सासु जी उठकर बिस्तरे पर बैठ गईं और बोलीं-“चिन्ता न करो, जाओ सोने जाओ। यह सब सुबह सफ़ाई हो जायेगी।”नववधू मेरी सहेली उनका कहना मान कर ऊपर अपने सोने के कमरे में चली गई। 

उसकी सुनायी यह घटना जब भी याद आती है, हँसी का फौव्वारा छूट जाता है। बाद में समझ में आया कि सासु जी अपने को प्रौढ़ा भी नहीं समझती थी और नव वधू उनको उम्रदराज़ मानकर पैर दबाने चली थी। सभी जगह शिक्षा काम नहीं आती, थोड़ी अपनी अक़्ल भी लगानी पड़ती है।


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