घर से दूर
घर से दूर
आज हिमांशी होस्टल जाने वाली थी, यह उसकी जिंदगी में पहली बार हो रहा था जब वह अपने माता पिता से इतनी दूर जा रहीं थी,सब लोग बोल रहे थे,ये चुंबक अपनी मम्मी से कैसे दूर रहेगी और ये ही बात हिमांशी खुद भी सोच रही थी, उसे ऐसी दुनिया में जाना था जो उसके लिए पूरी तरह अनजान थीं, लेकिन जाना तो था हि इसलिए उसने अपने मन के इस तूफान को रोकने की भरसक कोशिश की,और परिवार वालों से आखें मिलाए बिना गाड़ी में जा बैठीं, लेकिन जैसे ही गाड़ी चलीं वो दबा हुआ ज्वार बाहर निकल ही आया, लेकिन उसने किसी को पता नहीं चलने दिया कि वो कैसा महसुस कर रहीं हैं।
लेकिन घर से होस्टल तक की जो यात्रा थी वो उसके लिए आसान नहीं थी खयालों का जो ज्वार दिल और दिमाग में मचा हुआ वो उसकों रोक पाने में असमर्थ थी, वो भगवान से दुआ कर रहीं थी कि ज्वालामुखी या भूकंप आ जाए या कुछ भी हो जाए, बस किसी भी तरह जाना स्थगित हो जाए, आखिर थीं तो बच्ची ही ना, लेकिन होना तो वैसे भी क्या था, वो होस्टल पहुँच गई,उसको ऐसा लग रहा था कि कोई अपना उसे अकेला जगंल में छोड़ कर जा रहा है और वो कुछ नहीं कर सकतीं, उसके माता पिता उसका सामान रखकर निकलने लगे और उनकों जातें देख कर वो उनकी ओर भागी, और उनसे लिपटकर रोने लगी,तभी होस्टल की लड़कियों ने आकर हिमांशी को उनसे अलग किया, उनसे जाने के लिए कहा, वो उनकों जातें हुए देखती रही जब तक उनकी गाड़ी आखों से ओझल नहीं हो गई और वह भाव शून्य होकर उधर ही बैठ गई और एक अलग दुनिया के द्वार पर।