समाज में औरत
समाज में औरत
आज संगीता को लड़के वाले देखने आने वाले थे घर में सब लोग उनके स्वागत की तैयारियों में लगे थे, लेकिन संगीता बिल्कुल भी उत्साहित नहीं थीं क्योंकि ये पाचंवी बार हो रहा था, जब उसे लड़के वाले देखने आ रहें थे, पिछले हर बार उसे उसके सावले रंग की वजह से शादी के लिए मना कर दिया गया था, और इस बार सारे परिवार वाले उसकों दस दिन पहले से विभिन्न प्रकार के लेप लगा लगा कर उसे गोरा करने के प्रयासों में लगे हुए थे, इन सब से संगीता काफी परेशान हो चुकी थी, उसे ऐसा लग रहा था मानों कोई प्रदर्शन की वस्तु हो जिसका महत्व उसके गुणों की बजाय उसके बाहरी आवरण से लगाया जा रहा है,
लेकिन इस बार वो अपने महत्व को उसी तराजू से तुलवाना नहीं चाहतीं थी लेकिन करतीं भी क्या वो मजबूर थीं वो अपने माता पिता को भी नहीं कह सकती थी क्योंकि उसे पता था वो नहीं समझेंगे, इस बार लड़के वाले आए तो हर बार कि तरह इस बार इसे इसी तरह परखा गया लेकिन इस बार उसका रिश्ता तय हो गया, संगीता को लड़का पसंद नहीं था लेकिन उसकी राय का कोई महत्व नहीं था और तो और जब पता चला कि रिश्ता तय होने का कारण उसके पिताजी द्वारा दिया गई रकम है तो वो पूरी तरह टुट ग ई और अपने आप को कमरे में बंद कर लिया, आज उसे अहसास हो रहा था कि इस समाज में औरत एक वस्तु से अधिक कुछ नहीं है।
