घर-गृहस्थी
घर-गृहस्थी
जब चोट लगती हैं तो अपने ही याद आते...वों ही मुँह मोड़ ले तो बहुत तकलीफ होती... नहीं मन करता हैं उनसे जुड़ने को ....याद भी करने को मन नहीं करता...कुछ इसी तरह के हालात आभा और अमन के थे...।जब अमन का हाथ टूटा तो अमन ने घर मे फोन किया ।घर वाले अस्तपताल में दिखा कर कन्नी काट लिये।वह घर मे रहके भी बेगाना बन गया..।घर मे क्या हो रहा क्या नहीं हो रहा सब दुनिया को पता चल जाता पर आभा और अमन को कुछ पता नहीं चलता... उन्हीं से छिपाया जाता..।आभा और अमन को भी बाहर की दुनिया से पता चलता कि घर मे क्या खिचड़ी पक रही हैं... ।आभा और अमन यह सब देखकर खुद को बेगाना समझते...।उन्हें लगता कोई अपना नहीं हैं।अब दोनों अपने मे ही सीमित दायरों मे रहके अपनी अलग दुनिया का निर्माण करने मे लग गये..।अब इन सबसे बेफिक्र वह अपनी अलग दुनिया बनाने की कोशिश मे लग गये..।कब तक आभा और अमन लानत भरी जिदंगी जीते..। जिदंगी घुटन भरी हो गई थी...।उन्होंने अपनी एक अलग छोटी -सी दुनिया बसाई। वहाँ जब पहली बार आये तो उनकी समझ मे नहीं आ रहा था किसे अपना माने किसे गैर किस पर भरोसा करें किस पर विश्वास?पर , जब रहते रहते कुछ समय हुआ कुछ जीवन सामान्य हुआ तो वहाँ के आसपास को लोगों से जान-पहचान हुई तो सबने आभा और अमन की घर- गृहस्थी बसाने मे बहुत ही मदद की...।