Chandra Prabha

Abstract

4.5  

Chandra Prabha

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घोड़ा

घोड़ा

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कुछ दिन पहले मेरी बेटी को आलमारी सफ़ाई करते हुए एक खिलौना घोड़ा कपड़े का मिला जो मैं अमेरिका से लायी थी मॉं के लिये। उसने वह मेरे पास ड्राईवर के द्वारा भिजवा दिया यह सोचकर कि अब ये एक स्मृति है, क्योंकि इसको मंगाने वाला तो अब रहा नहीं। ड्राईवर आकर उसे रख गया और कुछ सामान के साथ, पर कुछ बोला नहीं। इन्होंने सामान रखा हुआ देखा पर कुछ कहा नहीं ।इन्हें ये भी नहीं पता था कि वह घोड़ा बेटी ने भेजा था या क्यूँ भेजा था। 

मैनें घोड़ा पड़ा देखा तो उठा लिया ।नौकर से पूछा कहाँ से आया है पर वह बता नहीं पाया ।मैंने सोचा कि ड्राइवर कल आया था ,उस के हाथ बेटी ने भेजा होगा ,वही रख गया ।उसे देखकर मुझे याद आ गया यह वही सफ़ेद घोड़ा है जो मैं अमेरिका से मॉं के लिये लायी थी।माँ इसे इन्द्र का उच्चैश्रवा घोड़ा कहती थीं। 

इन्हें कुछ मालूम नहीं था पर फिर भी ये बोले कि “लगता है कि ऊपर के फ़्लैट से किसी बच्चे ने इसे गिरा दिया है ,इसे हटा दो बेकार का इंफेक्शन फैलेगा। “”मैंने कहा कि “यह ऊपर से नहीं गिरा है। हो सकता है कि ड्राइवर बिना बताए रख गया है ,थैले से निकालकर, जब सामान लाया था। उस घोड़े को देखकर मुझे पुरानी समृति आ गई। यह मैं माँ के लिए लायी थी अमेरिका से।” सुन कर ये आश्चर्य चकित थे विस्फारित नेत्र थे। 

मैं अमेरिका गयी थी कुछ समय के लिए अपनी छोटी बेटी के पास। जाते समय माँ से मिलने गयी और उनसे पूछा था कि आप के लिए वहाँ से क्या लाऊँ। वे बिस्तरे पर पड़ी थीं,बीमार थीं, सहारे से चल फिर सकती थीं। बोलना बातचीत करना कम हो गया था। उन्होंने जो जवाब दिया उससे मैं ताज्जुब में आ गयी थी। उन्होंने कहा,” घोड़ा”।

मैंने आश्चर्य चकित होते हुए पूछा था ,”एक घोड़े का आप क्या करेंगी”।

वे बोली,” चढ़ूँगी ,घोड़े पर बैठूँगी”। 

मुझे लगा कि मज़ाक में कह रही हैं। पर सच में उन्होंने और कुछ लाने को नहीं कहा, मेरी बार बार पूछने पर भी। मैने सोचा ठीक है खिलौना घोड़ा ले आऊँगी। 

मैं अमेरिका चली गई। और जब मैंने अमेरिका की एक दुकान पर कपड़े का नन्हा सा सुंदर घोड़ा देखा ,मुझे अच्छा लगा ।मैने मॉं का ध्यान करके उसको ले लिया। इसके अलावा एक और सुंदर सी प्लास्टिक की घोड़ी एक छोटे बच्चे घोड़े के साथ मिल गयी ,जो बार्बी डॉल वाली कंपनी की बनी थी ,वह भी ले ली। 

मुझे स्मरण आया कि हमारे बचपन में घर में तॉंगा व फिटन रहती थी। उनके लिए दो घोड़ी थी। एक अलग से छोटी घोड़ी चढ़ने के लिए थी जिस पर बाऊजी चढ़ते थे और मेरी बड़ी बहन भी चढ़ती थीं ।वह पुराना ज़माना था। घर में तीन तीन घोड़ी खड़ी थीं और उनकी देखभाल के लिए दो साईस थे। 

माँ बिस्तरे पर लेटी लेटी लगता है कि पुरानी यादों में खोई रहती थीं। न कोई पास बैठने वाला था न कोई बोलने वाला था। एक नौकरानी रखी हुई थी उनकी देखभाल के लिए। बस घर में और कौन था जो उनके पास बैठता। बेटा बहू थे तो वे अपने काम में व्यस्त थे। बेटा एक दो चक्कर लगाकर मॉं का हालचाल पूछ आते थे। 

लगता है कि जब मैंने उनसे कुछ लाने को पूछा तो वे पुरानी स्मृतियों में खोई हुई थीं। जब वे घोड़ी जुतवा कर तॉंगे में बैठकर बाग़ में घूमने या कहीं मिलने जाया करती थीं। अब वो अतीत की बात हो गई थी ,न घोड़े थे न फिटन थी ,न साईस था, न छोटी घोड़ी थी। ज़माना पलट गया था। कार आ गई थी, उसका ड्राइवर था। पर वे कार में नहीं के बराबर बैठी थीं अपनी बीमारी के चलते। कभी डॉक्टर को दिखाना हुआ तो थोड़ी देरी के लिए जाना आना होता था और फिर वहीं पलंग। 

मेरे लाए सफ़ेद घोड़े को देखकर वे बहुत देर तक उस पर हाथ फेरती रहीं और बच्चे की तरह ख़ुश हो गईं। लगा जैसे उन्हें अकेलेपन का साथी मिल गया और मन बहलाने को पुरानी स्मृतियों का साथ। प्लास्टिक की घोड़ी व बच्चे पर उन्होंने ख़ास ध्यान नहीं दिया। श्वेत घोड़े में वे पौराणिक उच्चैश्रवा की कल्पना कर रही थीं।


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