प्रेम का सावन
प्रेम का सावन
पिछले दो घंटे से हर्षी का तनाव चरम पर था। शाम से चली छुटपुट बूंदाबांदी ने अब तेज तूफानी बारिश का रूप ले लिया था। बाहर बादल तेज घड़घड़ा रहा था या उसका दिल हर्षी को अंदाजा लगाना मुश्किल था। बाहर आवाज हुई हर्षी तेजी से खिड़की की ओर लपकी। कोई नहीं था बस हवाओं ने एक बार फिर मेन गेट को आकर सहला दिया था। हर्षी वापस आकर सोफे पर मायूस होकर बैठ गई। रात के 11:00 बजने को आए थे और 9:00 बजे ऑफिस से वापस लौटने वाला उसका पति आशीष अभी तक नहीं लौटा था।
"हुंह!! मुझे क्या आ जाएंगे", मन की व्याकुलता को परे धकेल हर्षी सामने मेज पर रखी मैगजीन उठाकर पढ़ने का उपक्रम करने लगी लेकिन बार-बार मन कभी लॉबी में लगी दीवार घड़ी की और भाग रहा था तो कभी सोफे पर बराबर पड़े मोबाइल की ओर।
उसके हाथ बार-बार मोबाइल की ओर जाते और फिर वापस उसकी ओर सिमट जाते। मात्र दो माह तो हुए थे उसके विवाह में और जब आज तक उसने कभी अपने से आशीष को फोन नहीं लगाया था तो आज आशीष का नंबर डायल करते हुए उसके मन में संकोच ने पैर पसार लिए थे। सच बात तो यह थी कि उसे पिछले दो माह में एक बार भी आशीष के प्रति अपने किसी आकर्षण का अनुभव नहीं हुआ था। अपने मित्र के पुत्र आशीष के रूप में सुयोग्य वर पाते ही जब उसके पिता ने आनन-फानन में उसका विवाह आशीष के साथ कर दिया था तो हमेशा सिर्फ फिल्मों सी रोमांटिक लाइफ सोचने वाली हर्षि मन रूठ सा गया था।
ऐसा नहीं था कि आशीष स्मार्ट नहीं था। इकहरे बदन का सांवला,होठों पर मुस्कान रखने वाला आशीष पहली नजर में ही किसी को भी प्रभावित करने की विशेषता रखता था परंतु जन्म से ही संघर्षशील और विनम्र पिता की प्रतिमूर्ति वह आधुनिक लड़कों की तरह स्टाइलबाज ना होकर सीधे सरल व्यवहार वाला मेहनती लड़का था।
दोनों लोग ज्यादा से ज्यादा एक दूसरे के साथ रहकर एक दूसरे को समझे, एक दूसरे को जाने यह सोचकर आशीष के परिजनों ने विवाह के तुरंत बाद ही हर्षी को आशीष के साथ इस महानगर में भेज दिया था जहां पर आशीष की पोस्टिंग थी।
आशीष की सादगी और सरलता देखकर हर्षि का मन बुझ जाता। किशोरावस्था से रोमांटिक फिल्मों की शौकीन रही हर्षी को आशीष एक नीरस व्यक्ति लगता और आज सवेरे भी जब आशीष ऑफिस जाने को तैयार हुआ था तो उसे बाहर जाता देख कर हर्षी अपने मन की भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाई थी और गुस्से में उससे बोली थी, "आपको शायद पता नहीं है...आज क्या दिन है??"
आशीष ने आश्चर्य करते हुए सोचते हुए कहा था," क्या है आज ना तुम्हारा बर्थडे है ना मेरा कोई खास बात है क्या??"
आशीष के कहते ही हर्षी तन बदन में आग लग गई थी। वेलेंटाइन वीक चल रहा था और इन महाशय को कुछ पता ही नहीं था उसकी सारी फ्रेंड के बॉयफ्रेंड या पति लगे पड़े थे उन्हें एक से बढ़कर एक गिफ्ट देने में और यह बुद्धुराम कुछ जानते ही नहीं यह सोचकर उसका मन बुरी तरह से बुझ गया था उसने अपने गुस्से पर एक बार फिर काबू रखते हुए कहा आज वैलेंटाइन डे है कम से कम आप को मुझे विश तो करना चाहिए सुनकर आशीष जोर से हंस पड़ा था और बस इतना बोला पागल लड़की कह कर एक बार फिर हंसता हुआ कार की चाबी उठाकर घर से बाहर निकल गया था तब से जो हर्षी का मूड खराब हुआ था तो अभी तक सही होने का नाम नहीं लिया था उसने सोच लिया था कि वह अपने शहर वापस लौट जाएगी ठीक है शादी हो गई थी लेकिन ऐसे लड़के के साथ रहने से क्या फायदा जो उसकी भावनाओं को ही नहीं समझता हो इससे बढ़िया तो वह अपनी सास ससुर के साथ रह लेगी जो आए दिन उसे फोन करके खुश करते रहते थे वास्तविकता में आशीष के माता पिता हर्षिका बचकाना स्वभाव पहचान गई थी इसलिए वह हर्षी को स्नेह देते हुए यथासंभव खुश रखने की कोशिश करते थे। आशीष की मां द्वारा हमेशा लाल किए जाने पर हर्षी इन 2 माह में उनसे खुल चुकी थी और आज उसने आशीष के ऑफिस जाते कि अपनी सास मधुलिका से रोकर आशीष की शिकायत कर दी थी कि वह वैलेंटाइन डे ही भूल गया था सुनकर हंस पड़ी थी मधुलिका और उन्हें मासूम हर्षी पर एक बार फिर प्यार आ गया था उन्होंने उसे प्यार से समझाते हुए कहा था कि वह आशीष को डांटेंगी।
स्वयं हर्षी भी आखिर रूठ गई थी वह सो चुकी थी कि वह कई दिनों तक आशीष से बात नहीं करेगी परंतु जैसे-जैसे घड़ी की सुई आगे बढ़ रही थी उसके रूठने को धक्का मार के भय उसके मन में घर बना रहा था।
आखिरकार उसने आशीष का नंबर डायल कर ही दिया परंतु उसकी घबराहट तब तेजी से और बढ़ गई जब आशीष का मोबाइल स्विच्ड ऑफ आ रहा था। एक तो इतनी तेज बारिश रात के 12:00 बजने वाले थे ऊपर से मोबाइल भी स्विच्ड ऑफ रोने को हो आई थी हर्षी।
थोड़ी देर में बेचैन कदमों से इधर-उधर टहलने लगी फिर सोफे पर आंखें बंद करके भगवान से प्रार्थना करने लगी कि आशीष सही सलामत घर आ जाए। यह पहली बार था जब उसे आशीष की इतनी याद आ रही थी। क्या हुआ होगा आशीष क्यों नहीं आया अनिष्ट की आशंका से उसका दिल घबराए जा रहा था।
वह बार-बार आशीष का फोन मिलाने लगी लेकिन फिर वही फोन बंद आ रहा था घबराहट में वह सिटी न्यूज़ देखने लगी कि कहीं किसी एक्सीडेंट की खबर तो नहीं सोचते सोचते उसने अपने विचारों को तेजी से झटक दिया था कि मैं यह क्या सोचने लगी आशीष आने ही वाला होगा बारिश में ही कहीं फंस गया होगा"
न जाने क्या क्या विचार उसके मन में आ जा रही थी आशीष के साथ बिताए पिछले दो माह तेजी से उसकी आंखों के सामने घूम रहे थे। यह बात सही थी कि उसका विवाह जल्दी बाजी में हुआ था परंतु आशीष ने उसकी सुख सुविधाओं में कोई कमी नहीं रखी थी वहा सोचने का प्रयास कर रही थी तो उसे ध्यान आ रहा था कि आशीष ही तो था जो बराबर पिछले 2 माह दोनों के बीच सामंजस्य बैठाने की कोशिश कर रहा था उसकी रूठे हुए और तुनक भरे व्यवहार को परे हटा वह उससे हमेशा हंसकर और मीठी आवाज में ही बात करता था। बेशक रोमांटिक लाइफ नहीं चल रही थी पर यह भी तो कोई सामान्य उबाऊ लाइफ नहीं थी.... सुबह की पहली चाय आशीष के द्वारा बनाना उसके द्वारा नौसिखिया रूप में खाने में नमक तेज हो जाने पर भी कभी नाराज ना होना और हर सप्ताह उसे बाहर घुमाने ले जाना क्या यह लव लाइफ नहीं थी... हर्षी का दिमाग घूम रहा था वास्तविकता में वह एक लव लाइफ ही तो जी रही थी।
अब हर्षी का तनाव चरम पर पहुंच गया था।वह आशीष की राह देखती हुई बालकनी में आ गयी जहां तेज बारिश तिरछी पड़ रही थी। बारिश में पूरी तरह भीग जाने के बाद भी वह वहीं खड़ी रही।सारी बातों का स्मरण कर उसकी आंखों से आंसू बहने लगी थी अब बारिश के पानी में उसके आंसुओ का रंग मिल गया था।
हर्षी की निगाह लगातार मेन गेट की ओर थी कि तभी उसे सामने से आशीष की कार आती दिखाई दी। हर्षी भागकर गेट तक पहुंची।
आशीष के हाथ में ताजे गुलाब का एक बुके था पर हर्षी को तो जैसे वह दिखाई ही नहीं दे रहा था। वह तेजी से आशीष के सीने से लग कर रोने लगी, "कहां थे आप इतनी देर और फोन क्यों स्विचड ऑफ है?"
अचानक से हर्षी को अपने गले लगे देख आशीष मुस्कुराया और उसने अपनी बाहों का घेरा उसके चारों ओर कस दिया।
फ्रेश होने के बाद चाय आज फिर आशीष ने ही बनाई थी। हर्षी अभी भी रोए जा रही थी और आशीष उसे समझाने का प्रयास कर रहा था कि वह दुकान जहां बुके तैयार होते हैं उसके ऑफिस के ऑपोजिट साइड में था और जब वह ऑफिस से उसके लिए वैलेंटाइन गिफ्ट के रूप में बुके लेने निकला तो बारिश शुरू हो गई थी और सड़क पर जाम की स्थिति हो गई थी।
वह जब बुके बनवा कर दुकान से बाहर निकला तो फिर जाम में फंसा ही रह गया। तब का लगा जाम अभी आधे घंटे पहले ही खुला था और वह घर आ पाया था।
जब हर्षी ने उससे फोन के बंद होने की बात पूछी तो उसने कहा कि सुबह से काम की व्यस्तता में वह उसे चार्ज करना ही भूल गया था।
बारिश अभी भी तेज हो रही थी आशीष तौलिए से हर्षी के गीले बालों को पौंछ रहा था और आज विवाह के पूरे दो माह बाद हर्षी पटर पटर उसे ना जाने कहां-कहां की बातें बताई जा रही थी। लव पार्टनर ढूंढने का इंतजार समाप्त हो गया था। दोनों वैलेंटाइन डे ही तो मना मना रहे थे और गुलाब के फूल... वे तो बाहर मेज पर पड़े अपने ऊपर पड़ती बारिश की बूंदों के साथ अपना अलग ही वैलेंटाइन डे मना रहे थे।