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Devaram Bishnoi

Abstract

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Devaram Bishnoi

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" गांव का ठर्कीआदमी "

" गांव का ठर्कीआदमी "

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हमारे गांव में एक पैसे वाला ठर्की किसान

आदमी रहता हैं।


उसेअपने धनवान होने का बहुत घमंड है।


उसके पास खेती बाड़ी के लिए काफी जमीन है।


गांव के गरीब मजदूर उसके खेती-बाड़ी कार्य में 

मजदूरी करने जाते हैं।

वह गरीब मजदूरों का बहुत शौषण करता है।

उन्हें कभी समय पर मजदूरी का पुरा भुगतान नहीं 

किया करता हैं।

काफ़ीअनुन्य विनय विणती निवेदन प्रार्थना करने पर 

थौड़ा-सा पैैैसा जरूर दे दिया करता हैं।


गांव के सभी गरीब मजदूर उसके इस व्यवहार से बड़े 

दुःखी हैं।


परन्तु गांव में रोज़गार ही मिल रहा हैं।


इसलिए उसके पास ही मज़दूरी करना मजबूरी थी।


एक दिन एक बाइक सवार राहगीर उसके फार्म पर 

आकर रात्रि विश्राम करने के लिए उससे निवेदन 

किया।

उस ठर्की आदमी ने मजदूरों की भांति लाचार समझ 

उसे भी फार्म पर रूकने से मना कर दिया।

तब उस हिस्ट्रीशीटर बदमाशआदमी ने उसे धनवान 

समझ कर एक लाख रुपए देने की ‌मांग की।


यदि रूपए नहीं देता हैं तो देशी कट्टा पिस्तौल 

दिखाकर जान से मारने‌ की धमकी दी।


उस ठर्कीआदमी कि जान सामंत मेंआने पर डर के 

मारे तुरन्त ही एक लाख रुपए तिजोरी से निकाल 

करके उस हिस्ट्रीशीटर बदमाश को दे दिये।


तब से उसने सबक सीखा कि‌ मैंअपनी जिन्दगी में 

कभी गरीब मजदूरों का शौषण नहीं करूंगा।


क्योंकि एक हिस्ट्रीशीटर बदमाशआदमी मुझे डराकर 

धमका कर एक लाख रुपए लें लिये।


यदि मुझे मेरे गांव के गरीब मजदूरों का समर्थन प्राप्त 


होता तोशायद मुझे इससे डरने कि जरूरत नहीं थी।


वहअकेला पड़ गया उसे लोगों का समर्थन नहीं रहा।


इसलिए हमें सबको साथ लेकर चलना चाहिए।


ताकि कोई हमारे साथ बेईमानी नहीं कर सकें।


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