suvidha gupta

Abstract Inspirational

4.0  

suvidha gupta

Abstract Inspirational

एम्पटी नेस्ट सिंड्रोम

एम्पटी नेस्ट सिंड्रोम

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व्यक्ति जब अकेला होता है तो दो होना चाहता है। और जब दो होता है तो वह तीन होता है। यह तीसरा व्यक्ति फिर अकेला होता है अपने जीवन-साथी की तलाश करता है। जीवन-साथी की तलाश, मां-बाप करें या बच्चे स्वयं करें, ज्यादातर समय आने पर पूरी हो ही जाती है। और हर माता-पिता खूब धूमधाम से अपने बच्चे की शादी करवाते हैं। बड़े-बुजुर्ग कहते हैं, हमारी मेहनत ऐसे ही नहीं रंग लाती, शादियां ऐसी ही नहीं पूर चढ़तीं, आसमान से देवी-देवता जमीन पर उतरते हैं और अपने संरक्षण में विवाह के सारे कारज राजी-खुशी संपन्न करवाते हैं। सभी परिवार-जन, नाते-रिश्तेदार, अड़ोस-पड़ोस, मित्र-दोस्त आदि धूमधाम से विवाह उत्सव में सम्मिलित होते हैं और सब मिलकर 'वर-वधू ग्रहण' के साक्षी बनते हैं। 

विवाह के बाद बच्चे मां-बाप का घर छोड़ कर एक नई उड़ान भरते हैं और अपनी नई गृहस्थी बसाने की कोशिशों में जुट जाते हैं। बिटिया की विदाई का नाज़ुक पल हो या शादी के बाद नौकरी के लिए दूर जाते बेटे-बहू से जुदाई का क्षण या उच्च शिक्षा के लिए बच्चों का घर से दूर जाना, हर माता-पिता के लिए यह समय बहुत कठिन होता है। कहां तो बच्चों के लालन पोषण में सुबह से शाम का ही ना पता चलना और फिर पढ़ाई या नौकरी के लिए बच्चों की चले जाने से अचानक से इतना खालीपन। फिर पलक झपकते ही उनके विवाह का शुभ समय भी आ ही जाता है। कहां तो घर में शादी की इतनी रौनक, सगे-संबंधियों, दोस्तों-रिश्तेदारों, अड़ोसियों-पड़ोसियों का जबरदस्त हुजूम और फिर कहां अचानक से इतना सूनापन।

अपने जिगर के टुकड़े को देखे बगैर कहां एक पल भी चैन नहीं मिलता था, अब उसी को अपने से दूर जाता देखना और उसके विछोह में रहना, हमें परेशान करता है। अपने बच्चे के साथ बिताई जीवन भर की खट्टी-मीठी यादें किसी चलचित्र के समान आंखों के सामने आ जाती हैं। समझ ही नहीं आता कि जिंदगी का यह कैसा मोड है, जहां बच्चे को उच्च शिक्षा प्राप्त करते या अच्छी नौकरी करते देखना या फिर उसके मनचाहे साथी के साथ जीवन में आगे बढ़ते देखना, हमें आनंद विभोर कर रहा होता है, वहीं उसके साथ-साथ, बरसों से संजोया अपना घोंसला, खाली-खाली लग रहा होता है। जिनको ऊंची उड़ान भरना हम स्वयं सिखाते हैं, जिनकी तरक्की में हम अपनी खुशी ढूंढते हैं, उन्हीं के दूर जाने पर अपनी आंखों को बरसने से रोक नहीं पाते हैं। बच्चों के जीवन की नई उंचाईयां, जहां मां-बाप को खुशी देती हैं वहीं उसके दूर चले जाने की टीस, मन को व्यथित करती है।

इसी मनःस्थिति को एम्पटी नेस्ट सिंड्रोम अर्थात खाली घोंसला सिंड्रोम कहा जाता है। हर मां-बाप के लिए यह वक्त बहुत मुश्किल होता है। बच्चों के दूर जाने से जीवन में अकेलापन सा आ जाता है। चाहे हम अपने रोजमर्रा के काम में कितने भी व्यस्त क्यों ना रहें, लेकिन बच्चों की याद हमें बरबस ही परेशान करती है। कहते हैं वक्त हर घाव का मरहम होता है। और साहिब दिल तो दिल है, समझाने से धीरे-धीरे समझ ही जाता है। वैसे भी जितनी जल्दी हम अपने आप को संभाल कर, नए परिवेश में ढाल लें, वही हमारे शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। परिवर्तन संसार का अटूट नियम है। बच्चों के दूर जाने से, जीवन में आए इस महत्वपूर्ण बदलाव को अपनाने में, मां-बाप को समय जरूर लगता है, पर धीरे-धीरे वे स्वयं को इस नयी परिस्थिति के अनुरूप ढालने में सक्षम हो ही जाते हैं और सकारात्मक सोच के साथ अपने आप को व्यस्त रखने का प्रयत्न करते हैं। इस तरह वे अपने जीवन में आगे बढ़ते हैं। यह सिलसिला पीढ़ी दर पीढ़ी यूं ही चलता रहता है। क्योंकि निरंतर चलते रहना ही प्रकृति का सिद्धांत है और उसके अनुरूप ढल कर स्वयं को मज़बूत बनाए रखने में ही हमारी जीत निहित है।


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