एक वेलेंटाइन ऐसा भी
एक वेलेंटाइन ऐसा भी
"लाजो जी पिक्चर चलेंगी मेरे साथ",
"क्या जी आप भी जैसे जैसे बूढ़े हो रहे हो सठियाते जा रहे हो क्या, बेटे बहु पोता पोती क्या कहेंगे ये समझ ना आ रहा आपको",
"क्यूँ इसमें किसी के कहने वाली क्या बात है, जवानी तो पूरी बच्चों को काबिल बनाने में गुजर गयी अब फुर्सत के दो पल मिले हैं खुद के लिए फिर हमारा समय भी तो कुछ और था, चलिए ना - - - प्लीज"
"ना जी ना मुझे अपना मजाक नहीं बनवाना परिवार में"
"अच्छा ठीक है, वो गजल ही गुनगुना दीजिए जो आप अक्सर गुनगुनाया करती थी उस समय"
"क्या जी आप निरे पागल हो गए क्या इस उम्र में ये सब शोभा देवे है क्या??"
"ठीक है आप परिवार में खुश रहिए मैं शाम की सैर कर के आता हूँ उदास मन से चल पड़े काकाजी"
अगली सुबह ओ पोता "जी इतना बन ठन के किधर चले,वैलेंटाइन वीक दादाजी समझिए ना ,आप दादी के लिए क्या गिफ्ट ला रहे हो,"
"अरे अब हमारी उम्र कहाँ रही ये सब करने की"
"14 Feb वो माँ जी आज आप अपनी लाल सिल्क की साड़ी पहनइए ना",
"क्यूँ बहु कोई खास बात है क्या",
"हाँ दादी पहले पहनइए तब बताएंगे" प्यार से गले में बाहें डाल पोती रुचिका ने मनुहार किया तो इंकार नहीं कर पायी लाजोजी,दादी ये बड़ी लाल नग वाली बिंदी भी लगा लीजिए आप बताती हैं ना कि दादाजी को बहुत पसंद है
"हाँ पर ये सब हो क्यूँ रहा है ये तो बताओ,"
"अभी बताता हूँ दादी कहते हुए रौनक केक ले के कमरे में घुसा, और दादाजी को आवाज लगाने लगा, दादाजी जल्दी आइए"
"दादा, दादी केक काटिये "
"अरे ये सब क्या है बच्चों इस उम्र में ये सब अच्छा थोड़ी लगता है" लाजोजी सकुचाते हुए बोली
"ओहो माँ पूरी जिन्दगी तो आप लोग बच्चों के सपने पूरे करने में बीता देते हो यही तो सही वक़्त और सही उम्र है अपने भूल चुके सपनों को फिर से जीने की, केक काटइए और ये रही मूवी की टिकिट आप के और बाबूजी के लिए, और वहीं पास के रेस्टोरेंट में आपके लिए डिनर टेबल भी बुक कर दिया है"
लाजोजी भिंगी हुई आँखों से अपने मन में दफन किए हुए सपनों को हकीकत में बदलता हुआ देख रही थी
तब तक रुचिका चिल्लायी, "अरे दादाजी पहले दादी माँ को प्रपोज तो किजिये, और लाजोजी आज तो आप वो दादाजी की फवरेट गजल गा ही दीजिये, रुचिका ने दादाजी की नकल करते हुए कहा तो सब खिलखिला पड़े और गुनगुना उठा घर उनका खुशियों से|