एक राखी ऐसी भी
एक राखी ऐसी भी
हर साल की तरह आज फिर तनु, मनु, अनु उदास सी बैठी अगल - बगल के घर में होने वाली चहल पहल देख रही थीं, हर रक्षाबंधन पर उनका मन यूँ ही उदास हो जाता क्योंकि घर में राखी बांधने वाले हाथ तो थे, पर राखी बंधवाने वाले हाथ नहीं थे। बचपन तो यूँ ही नासमझी में गुजर गया, पर उम्र के पांव जब किशोरावस्था की दहलीज पर पड़े तो इन तीनों बहनों को भाई की कमी का अहसास शिद्दत से होने लगा।
हर राखी पर नम आँखें लिए राखी मनाने के लिए अपनी माँ के आगे पीछे तीनों घूमती रहती, पर कहते हैं न माँ के पास अपने बच्चों की हर समस्या का समाधान रहता है और जब उस समस्या में बच्चों के आँख के आँसू घुले हों तो फिर माँ के दिल को चैन कहाँ, तो बस चल पड़ी बाजार हल ढूंढने अपनी लाडलीयों की चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए वापस लौटी तो हाथ में तीन राखियाँ थी, तीनों बेटियों को देते हुए बोली किसने कहा है कि भाई ही बहन की रक्षा कर सकता है, बहन भी बहन की रक्षा करती है तो तीनों एक दूसरे को राखी बांधो और वचन लो चाहे कुछ भी हो जाए हम तीनों एक दूसरे की जरूरत पर हमेशा साथ खड़े रहेंगे,और कभी एक दूसरे का हाथ नहीं छोड़ेंगे और हर रक्षा बंधन यूँ ही एक दूसरे को राखी बांध कर मनाएंगे। अब इस घर में रक्षा बंधन के दिन उदासी नहीं रहती बल्कि राखी की मिठास के कहकहे गूंजते हैं।
"सच ही तो आजकल तो भाई के साथ बहनें भी हर जगह एक दूसरे की सहायता और रक्षा के लिए खड़ी रहती हैं।"