आजादी अपेक्षाओं से
आजादी अपेक्षाओं से
बारिश के सुहाने मौसम में अपनी बालकनी में खड़े होते ही अचानक सामने की ऊपर वाले फ्लोर की बालकनी पर नजर गयी तो दिल में अचानक चुभन सी होने लगी और आँखों में नमी सी उतर आयी।जैसे कल ही की बात हो अक्सर श्रेया अपनी बालकनी में चहकते हुए नजर आती कभी नृत्य का रियाज करते, तो कभी चित्रकारी और बागवानी करते तो कभी अपने पति और किशोरवय बेटी के साथ सेल्फी लेते। उस रौनक भरी बालकनी में आज कैसा भयावह सन्नाटा पसरा था। बस क्रूर काल ने अपना खेल दिखाया और एक रात अचानक से श्रेया के पति कुछ ही क्षण में ईश्वर के पास चले गए।श्रेया की जिंदगी में सब कुछ अचानक से बदल गया। रिया ने ये सब सोचते सोचते श्रेया के घर जाने का मन बना लिया।
उसके घर पहुँच कर वो डोरबेल बजाने ही वाली थी कि तब तक दरवाज़ा खुला और दो आदमी बाहर निकल गए।रिया ने अंदर पहुँच कर श्रेया को गले लगाया और बैठ कर बातें करने लगी|श्रेया चाय बनाने के लिए उठने लगी तो रिया ने श्रेया से उसकी बेटी के बारे में पूछा कि दीप्ति कहाँ हैं?
वो नाराज है श्रेया ने कहा।पर क्यों? रिया ने पूछा।उसकी शादी लगभग तय हो गई है इसलिए।क्या रिया ने चीखते हुए पूछा, तू पागल हो गयी है क्या श्रेया
अभी तो उसने तुरन्त 12 वीं पास की है फिर इतनी जल्दी और दीप्ति तो ऐसे भी पढ़ने में बहुत होशियार है और वो बहुत पढना भी चाहती थी फिर....
श्रेया ने बड़ी मुश्किल से अपने आँसूओं को रोकते हुए भरे गले से कहा क्या करूँ रिया अमित के जाने के बाद से अचानक सब कुछ बदल गया।
पहले बाते मेरे कपड़े पहनने, छोटी सी बिंदी लगा लेने तक बनती थी लोगों का मुँह बंद करने के लिए मैंने अपने हर शौक त्याग दिए|पर अब सब बेटी की जिम्मेदारी से डराने लगे हैं कि अकेली कैसे सम्भालोगी जवान होती बेटी को हर दिन कोई न कोई रिश्ता लेकर आ जाता है... इसके आगे श्रेया कुछ बोल ना सकी पर आँखों ने बरसात कर दी थी।
श्रेया की बातें सुन रिया का चेहरा तमतमा उठा श्रेया मुझे तुझसे ये उम्मीद नहीं थी तू पढ़ी लिखी है न उसके बाद भी तूने ऐसे घटिया और दकियानूसी बातों के आगे घुटने टेक दिए।दीप्ति के बारे में तो सोचा होता क्या सिर्फ एक उसके पापा का हाथ उसके सिर पर न होने से उसकी जिन्दगी जीने का हक हम छीन लेंगे।
लोगों का क्या है! उनकी अपेक्षाओं का तो कभी अंत नहीं होगा पहले तुझसे तेरे हर तरह के शौक त्यागने की अपेक्षा फिर तेरी बेटी से अपेक्षा फिर आगे तेरे बेटी के बच्चों से अपेक्षा इन अपेक्षाओं का कभी अंत नहीं होगा श्रेया इन अपेक्षाओं से आजाद होना सीख श्रेया अपने फैसले खुद लेना सीख और दीप्ति को भी अपने आत्मनिर्भर बना अपने फैसले खुद लेने सीखा। अभी दोनों बात कर ही रही थी कि श्रेया का मोबाइल बज उठा।
श्रेया फोन पर बात कर रही थी तब तक रिया दीप्ति से बात करने लगी थोड़ी ही देर में रिया के कानो में श्रेया की आवाज सुनायी पड़ी वो फोन पर बात करते हुए
हाँ मामा जी, अभी मैं दीप्ति की शादी नहीं करुँगी।
क्यों लड़का पसन्द नहीं आया क्या?
नहीं मामाजी ऐसी कोई बात नहीं पर अभी मैं उसे आगे पढ़ाना चाहती हूँ पहले वो अपने पैरों पर खड़ी हो जाए फिर देखती हूँ।
पर बेटा लड़की है वो भी बिन बाप की बच्ची है जिम्मेदारी निपट जाती तो तुम्हें भी चैन मिलता।
मामाजी बाप न सही पर उसकी माँ तो है न अभी फिर अमित उसे बहुत पढ़ाना चाहते थे तो सुकून तो मुझे तब मिलेगा जब मैं अमित के देखे हुए सपने को पूरा कर पाऊँगी।
बेटा पर समाज की भी तो कुछ......
बस मामाजी अब मैं खुद के लिए बनाये गये समाज की अपेक्षाओं से आजाद होना चाहती हूँ और अपनी बेटी और अपने लिए खुद की शर्तों पर जीना चाहती हूँ। क्योंकि हमें भी जीने का उतना ही हक है जितना दूसरों को।कहते हुए उसने फोन रख दिया।
और बहुत दिनों के बाद आज उस बालकनी के पौधे खुश थे और श्रेया, रिया, दीप्ति लोगों की अपेक्षाओं से आजाद होकर अपनी सेलफ़ी खींचने में मस्त।
