सुरभि शर्मा

Comedy

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सुरभि शर्मा

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नाम में क्या रखा है

नाम में क्या रखा है

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जी बात तो सही है, आखिर नाम में क्या रखा है ? सब कुछ तो उसके काम पर धरा है अब चाहे पुष्प कहिये या फ़ूल, चाहे पेड़ कहिये या वृक्ष नाम अलग होते हुए भी ये तो हैं एक ही, पर कभी कभी इ नाम के कारण बहुत बड़े बड़े टेंशन हो जाते हैं, कुछ किस्से बताते है हम आपको।

हम ठहरे उत्तर भारतीय और किस्मत ले आयी महाराष्ट्र में तो हमें मराठी का क, ख, भी नहीं आता था और दो दिन बाद पति ने फरमान सुना दिया मेरा तो पूरा दिन ऑफिस में चला जाएगा तुम जाकर दूध - भाजी ले आना, हमें तो ये सुन कर 440 वोल्ट का करंट लग गया हमने अपनी बड़ी बड़ी आँखों से इन्हें टुकुर- टुकुर देखते हुए कहा, क्या दूध और सब्जी मैं लाऊँगी काहे कि हमरे मायके में तो हर चीज की व्यवस्था ऑनलाइन शॉपिंग जैसी थी, दूध वाले, सब्जी वाले, किराने वाले सब खुद ही आकर लिस्ट ले जाते और सामान पहुँचा देते, इन्होंने कह दिया कि हाँ लाना तो आपको ही पड़ेगा।

तो हम पहुंचे दुकान पर और आलू, प्याज, बटाटा - कांदा इस नाम के चक्कर में जो उलझे की क्या कहें।

एक दिन क्या हुआ कि पति ने फरमाइश कर दी कि कांदा भजिया बना दो अब हम फिर फ़ेर में कांदा तो समझ आ गया था पर भजिया नहीं समझ पा रहे थे, तो डरते डरते कहा कि वो तो बनाने नहीं आता प्याज के पकौड़े बना देते हैं, ये ठहाके लगा कर हँस पड़े, और कहा प्याज पकौड़े ही कांदा भजिये होते हैं, तो इस नाम की एक और समस्या हल हुई।

और एक बार क्या हुआ कि हम रूठ गए तो हमें मनाने का बस एक ही तरीका है, चूँकि हम उत्तर भारतीय हैं, वो भी बनारसी इलाके के तो हमरी जीभ बड़ी चटोरी है और चाट, कचोरी, समोसा में हमरी जान बसती है, तो बस ये चल दिए मनाने हमें खानी थी आलू टिकी इस दुकान से उस दुकान भटक रहे थे, फिर एक दुकान पर सामने ही गरम गरम आलू टिकी सिंक रही थी, हमरी जीभ अब हमरे बस में नहीं थी, पर जैसे ही कहा आलू टिकी चाहिए तो जवाब आया नहीं है, हमने पूछा ये सामने क्या है, तो कहा रगड़ा पेटिस है, फिर तो हमने रगड़ कर रगडाॅ पेटिस खायी फिर ये बोले चलो मिसल

पाव भी खिला देता हूँ, हमने भी सोचा कि चलो देखते हैं ये क्या है, सामने आया हरे मूंग का तड़का नमकीन डालकर और पाव, बस तब से थोड़ा समझ आ रहा है कि नाम में भी बहुत कुछ रखा है।

पर एक बात कहें ये हमारी अलग भाषा, अलग संस्कृति ही एक होकर हमारे देश और परिवेश को इतना खूबसूरत बनाती है, वो गीत तो आपने सुना ही होगा - 

"हिंद देश के निवासी सभी ज़न एक हैं, रंग रूप वेश भाषा चाहे अनेक हैं।"


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