तड़कन
तड़कन
यूँ तो उसके मायके में रीति रिवाजों को जरूरत से ज्यादा मानने का ढकोसला न था। भाभी की अपनी मर्जी थी पीरियडस के समय दो दिन काम करने की या ना करने की।
पर निधि अक्सर इस समय बेहाल हो जाया करती थी। आज भी पेट दर्द और कमर दर्द से बेहाल निधि की हिम्मत नहीं हो रही थी बिस्तर से उठने की, थोड़ा आराम चाह रही थी। तभी कानों में आवाज सुनायी पड़ी "अरे! हम मॉडर्न सोच वाले हैं ये छुआछूत भेदभाव नहीं मानते, दवा खा ले दर्द की और रसोईघर के काम निपटा ले।"
और अब गर्म तेल में राई, जीरा की छनछनाहट के साथ दाल छौंकते हुए दर्द से बेहाल भरी हुई आँखों से निधि के दिमाग में छुआछूत, भेदभाव, स्त्री विमर्श, स्त्री सशक्तिकरण जैसे शब्द तड़कते हुए, दाल की छौंक की तरह ठंडे पड़ने लगे थे।