एक शाम सुहानी पति के साथ
एक शाम सुहानी पति के साथ


एक शाम सुहानी थी जो याद है अभी तक जेहन में,वैसी ही।पांच-छह वर्ष पूर्व हम हिमाचल में बगुलामुखी देवी के दर्शन करके धर्मशाला से आगे मैक्लोडगंज पहुंचे।थोड़ा ऊंचाई पर बसा हुआ प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर मैकलोडगंज में बौद्ध मंदिर, शिवमंदिर पिकनिक वालों के लिए बहुत खूबसूरत दृश्य, जगह-जगह व्यू प्वाइंट, झरने, चारों तरफ छाये हुये बादल,पतली सी नदी आदि दर्शनीय स्थल हैं।
क्योंकि हम करनाल से अपनी गाड़ी से ही गए थे तो रास्ते में रुकते, लंच ब्रेक करते,चाय पीते आराम से शाम को पहुंचे थे कोई चार-पांच बजे।अगस्त का महीना था, बारिशों का मौसम। होटल में एक-दो घंटे रेस्ट करने के बाद शाम को घूमने निकले।पतली मोड़ वाली पगडंडियों पर पैदल निकल लिए।बहुत ही सुहाना मौसम था।हल्की-हल्की बूंदे, बादल जैसे पास ही आ जाएंगे।एक तरफ पहाड़ दूसरी ओर घाटियां। दोनों बच्चे आगे-आगे मस्ती में और हम दोनों पति-पत्नी पीछे बाहों में बाहें डाले मौसम का मजा लेते हुए इस खूबसूरत जगह और दृश्यों को निहार रहे थे।
किसी ने सच ही कहा है कि मन में कोमल भावनाओं और प्रेम को प्रष्फुटित करने व आकांक्षाओं को जगाने के लिए माहौल व वातावरण एक बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं।हमने कितनी ही कहानियां पढ़ी हैं व पिक्चरें देखी हैं,जिनमें प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर जगह ही प्रेम के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं।तभी तो बसंतऋतु को कामदेव का बेटा कहा गया है जो प्रेम को मन में जगा देता है।प्रेम के एहसास को जो कहीं सोया होता है फिर से आवाज देकर उठा देता है।
हमने ऋषि विश्वामित्र की कहानी पढी है जिसमें देवताओं ने उनकी तपस्या भंग करने के लिए मौसम को सुहाना कर दिया और मेनका को भेजा ताकि उनके मन में काम जाग जाये। हमने भगवान शिव की भी कहानी पढी है,जहां देवताओं के कहने पर कामदेव ने भगवान शिव की समाधि भंग करने की चेष्टा की थी।
हमने भी ऐसा ही कुछ महसूस किया जैसे हम दोनों अभी-अभी मिले दो प्रेमी हों जो वादियों की सैर करने निकला है।सुंदर प्राकृतिक सौंदर्य ने हमारे मन को भी प्रेम से परिपूर्ण कर दिया था।इक ब
हुत ही प्यारा सा खूबसूरत अहसा़स दिल में आकार ले रहा था।नहीं याद कभी शायद..... हमने पहले ऐसा एहसास महसूस किया हो जो उस पल हमने महसूस किया और जो आज तक हमारे जेहन में अंकित है।
पतली सी रेलिंग लगी पगडंडी और पतली ऊंची-नीची चढ़ाई।बहुत आगे पहाड़ों से एक बहुत सुंदर पतली सी पानी की धारा झरने का रूप ले नीचे नदी में गिर रही थी मानो वही उसकी मंजिल हो और नीचे नदी यहां वहां ऊंचे नीचे पत्थरों में बैठकर मानो कोई श्वेत पंछी अपने पंख पसार कर बैठा हो।कितना खूबसूरत दृश्य था वो जो मन को भी वैसा ही सुंदर और पवित्र बना रहा था।अस्त होते सूरजकी सुन्दर किरणें पानी को चमकीला बना रही थीं।
कितनी बार हमने देखा है,जब भी हम प्रकृति के बीच जाते हैं और उसके और पास जाते हैं तब आध्यात्मिकता की तरफ, प्रेम की तरफ ,शांति की तरफ हमारा हमारा ध्यान अनायास ही खिंच जाता है। दुनिया की भीड़-भाड़ से, संसारी स्वार्थ से परे बिल्कुल अलग एक हवा में उड़ता सा हल्का मन जैसे कोमलता को अपने में भर लेता है।परसुकून, निश्चिंतता एक अलग ही दुनिया।
हम बहुत से पहाड़ी स्थान नैनीताल,रानीखेत पहलगांव आदि लेकिन मैक्लोडगंज की वह शाम हल्की हल्की बारिश में भीगते हुए हाथों में हाथ लेकर चलते हुए जैसे कि हम अभी-अभी मिले थे।कुछ सकुचाते हुए,एक दूसरे को निहारते हुए यूं ही चले जा रहे थे प्रकृति का आनंद लेते हुए। दिल में कुछ कुछ होता है वाली फीलिंग्स लेते हुए।सच में रोमांस क्या होता है,ये उसी पल जीया।बादल बिल्कुल पास कि हाथ बढाकर पकड़ लो,प्रिय की भांति।जीवन में प्यार, रोमांस,शांति सभी जैसे एकसाथ हासिल हो रही थी।
मानव मन बहुत लालची है बार-बार वही पाना चाहता है जो अच्छा लगता है।बाद में मार्च महीने में एक बार फिर गये लेकिन ना वैसा माहौल था ना वैसी फुहारें और हम वापिस मायूस होकर लौटे।मतलब कि वह अनुभव वह अनुभूति दुबारा नहीं मिल पाई।
यानि कि वह" एक सुहानी शाम" एक ही थी जो शायद अब कभी वापस ना आए और हमारे जहन में हमेशा के लिए यादों में मील का पत्थर जैसे बन के रह गई।