शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

Abstract Tragedy Inspirational

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शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

Abstract Tragedy Inspirational

एक रॉन्ग नम्बर... जिंदगी का!!

एक रॉन्ग नम्बर... जिंदगी का!!

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चटाक!! वह अपना गाल पकड़ कर रह गयी गुस्सा, क्षोभ

तिरस्कार से उसका तन और मन तिलमिला उठा l

ये आज की बात नहीं थी... ये हमेशा का हो गया था.. जब भी उसे गुस्सा आता तो... कोई गन्दी सी गाली निकालता या दाँत पीसते हुए हाथ उठा देता था l पहले तो लगता था कि समय के साथ सब ठीक हो जाएगा..लेकिन वह दिन कभी आया ही नहीं l

उसने अपनी जिंदगी को सँभालने के लिए हर तरह के प्रयत्न किए, सभी तरह से सामंजस्य बिठाने की कोशिश की..लेकिन सँभला कुछ भी नहीं बल्कि बिगड़ता ही गया l

वह नहीं चाहती थी कि बच्चों के सामने कोई नाटक हो.. इसलिए वह सहती गई और समस्या बढ़ती गई l दुनिया के सामने वह अच्छे से पेश आता और पीठ फ़ेरते ही उसका व्यवहार बदल जाता l

उसने भी सोचा चलो अच्छा है, दुनिया के सामने ही सही, खुश तो हैं l किसी के सामने ही सही, कोई जवाब तो नहीं देना पड़ता l

इन आठ-दस सालों में कितना कुछ बदल गया था, ऐसा लगता था कि उसका वजूद ही किसी ने बदल दिया हो l उसके हिसाब से उठना, उसके हिसाब से सोना, उसके हिसाब से खाना.. उसके हिसाब से साँस लेना, सबकुछ l

वो रोज परेशान करने के नए बहाने तलाश लेता, वह उसके हिसाब से ढल जाती, तो वह फ़िर खड़ा हो जाता, कुछ नई परेशानी, कुछ बहानों के साथ l

ऐसा लगने लगा था कि मुस्कराना ही भूल गई है शायद l क्योंकि हर कदम के साथ दिमाग में एक ही बात चलती अब वो क्या कहेगा, क्या करेगा l मुस्करा भी दिया उसके सामने तो, ऐसी शक भरी नजरों से देखता..कि वजह क्या है तुम्हारे हँसने की l किसी औरत से हँसकर बात करते हुए भी दिख जाऊ तो, उस पर भी उसकी चुभती हुई बातें शुरू हो जाती l

वह कभी नहीं चाहती थी कि उसके टूटते चटकते रिश्ते की धमक उसके बच्चों के कानों में भी पड़े l अभी तक तो सब कुछ कमरे के अंदर तक ही सीमित था,लेकिन जब से उसने हर तरह के नशे को अपनी आदत बनाली उस दिन से सब बदल गया l

अब बच्चों के सामने हर रोज नाटक होता और उसकी आँच मेरे बच्चों को झुलसा रही थी l ये सब होते हुए, वह कभी नहीं देख सकती थी l

वह अपने शरीर पर पड़े उन बेल्ट के निशानों को देख रही थी जो उसने अपने बेटे को बचाने में बीच में आकर खाए थे l इतना दर्द, इतनी तकलीफ .....जिसे लोग सिर्फ सुन सकते हैं .... आसानी से उन पर विशेष टिप्पणियाँ कर सकते हैं और अपने फ़ैसले सुना दिया करते हैं ... इतना आसान नहीं होता उस तकलीफ को सहना या समझना l 

ये जख्म तो भर जाते हैं, पर जो आत्मा पर निशान आये उनका क्या?? जो हमेशा सीलते रहते हैं l जिन बच्चों की यादों में खूबसूरत, खुशनुमाँ, हसींन पल होने चाहिए.... उनमें कड़वाहट और नफ़रत पलते हुए देखना आसान नहीं होता l

एक तरफ हँसते मुस्कराते हुये सबके सामने आत्मविश्वासी महिला बने रहना, तो दूसरी ओर कोई भी उम्मीद न नजर आने पर, टूटकर बिखरना....आसान नहीं होता दोहरी जिंदगी जीना l

आसान नहीं होता अपने बच्चों के सामने पूरे जोश से, ताकत से, बिना डरे, बिना झुके,एक अभेद्य दीवार बन कर किसी के सामने खड़े होना और उन्हें ये विश्वास देना कि उनके पिता ना सही, उनकी माँ है जो खड़ी रहेगी हमेशा उनके साथ, हर कदम पर l आसान नहीं होता अपने ऊपर सारी जिम्मेदारियाँ लादकर अपने बच्चों को ये अहसास देना कि वह आजाद है..अपने सपनों को जीने के लिए और स्वछंद,स्वतंत्र उड़ान भरने के लिए l

आसान नहीं होता... रोज उन लोगों का हँसते हुए सामना करना जो ताँकते झाँकते,कान लगाकर सुनते है , आपकी जिंदगी में कुछ ढूँढते, सूँघते रहते हैं.. उन्हें कुछ भी कह देने की... कोई वजह ना देना l

सबसे ज्यादा तो हँसी इस बात की आती हैं कि जो तकलीफ दे रहा है,उससे सुहानुभूति जतायी जाती है और जो सहन कर रहा है उसे कटघरे में खड़ा किया जाता है l

और तो और यदि ये सिद्ध भी कर दिया जाए कि आदमी गलत है...तो भी बड़ी आसानी से, वह औरत पर कोई भी घटिया सा इल्जाम थोपकर बरी हो जाता है l अब औरत उसके कमरे में क्या चल रहा है? उसके सबूत कहाँ से पेश करेगी l बस चुप होकर रह जाती हैं कि क्या जवाब दे??

उस आदमी को इस बात से भी फ़र्क नहीं पड़ता इस तरह की बातें करके,तमाशा बनाकर उसने कितनी गिद्ध नजरें उस औरत की ओर मोड़ दी,जो उसमें एक मौका तलाशनें लगे हैं l

आसान नहीं होता हँसते मुस्कराते, मरे हुए रिश्ते की लाश ढोना l उस रिश्ते को निभाना आसान नहीं होता जिसमें सब मर चुका हो, ..लेकिन माँ बाप का रिश्ता तो हमेशा जिन्दा रहता है l

जिसकी इज्जत आपकी नजरों में खतम हो चुकी हैं,उसकी इज्जत अपने बच्चों की नजरों में बनाए रखना आसान नहीं है l

जिसके हाथ में वह सुरक्षित नहीं, उसकी छत के नीचे खुद को सुरक्षित पाना...आसान नहीं है l ऐसा रिश्ता ,जहाँ मन तो मर चुका है पर तन का रिश्ता निभाना है .....आसान नहीं है l

ऐसे रिश्ते निभाते हुए, जब आप थक जाओ, हिम्मत जवाब देदे, उम्मीद की कोई किरण नजर ना आए, तो कभी कभी दिमाग के अंधेरे कोनों में झाँकते हुए कुछ ऐसे कमजोर क्षण आते हैं जो आपको बहाकर कही दूर ले जाते हैं और ऐसा लगने लगता है कि इस तरह जीने से क्या फ़ायदा??

आज वह बहुत हताश थी.. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे....रो रोकर थक गई थी, ये बेबस और बेचारगी से वह तिरक्त हो चुकी थी... आखिर कब तक?? उसका चोटिल स्वाभिमान बार बार उसे घृणा से देख रहा था l वह इन कभी ना खतम होने वाले समझौतों से हार गई थी....

उसका तन, मन एक ही गवाही दे रहा था कि.... बस अब और नहीं.... ठीक कर रही हूं मैं ...हाँ.. हां ठीक कर रही हूँ मैं... इ.. इस बेचारगी की जिंदगी से मौत भली.... वह एक चाकू लेकर काँपते हाथों से अपनी कलाई पर रखने ही जा रही थी कि.....कमरे की खामोशी को चीरते हुए टेबल पर रखा उसका मोबाइल फ़ोन ..ट्रिंन ट्रिंग....ट्रिंन ट्रिंग.. घनघना कर बज उठा.... आं.. हां...

जैसे वह गहरी नींद से जागी.. दौड़ कर गई और फ़ोन उठा लिया.. कान से लगाया.. धीरे से बोली...हैलो कौन.... दूसरी ओर से कोई बोला....सुनो नेहा.. देखो मैं अभी जरा जल्दी में हूँ तो मेरी बात सुनो पहले.. मैं नौकरी देख रहा हूँ तुम्हारे लिए.. जल्दी ही व्यवस्था हो जाएगी.. तुम अपने सभी पेपर और सर्टिफ़िकेट रेडी रखना...ओके हिम्मत मत हारना..और टेन्शन मत लेना... मैं जल्दी ही कॉल करता हूँ तुम्हें ओके बाय!! और फ़ोन कट गया l ये कौन था.. मैं तो जानती नहीं..... शायद रॉन्ग नम्बर !!

उसने फ़ोन नीचे रखा तो उसकी नजर चाकू पर गई... उसे ध्यान आया कि वह क्या करने जा रही थी.... उसके हाथ से फ़ोन गिरते गिरते बचा l उसको तो काटो खून नहीं था... यदि वो फ़ोन नहीं आता तो... तो वह... हे भगवान.... उसने बच्चों का भी नहीं सोचा.. वो इतनी बड़ी कायर कैसे हो सकती हैं l बच्चों के पिता ने कभी उनके बारे में नहीं सोचा और ... आज वो भी यही फ़ैसला करने वाली थीं l

वह फ़ूट फ़ूटकर रो पड़ी... l उसे आज समझ नहीं आ रहा था कि जो राँग नम्बर अभी अभी लगा था...वो उसकी जिंदगी बनकर आया था........ कि कोई रान्गनम्बर (व्यक्ति) उसकी जिंदगी बन गया था !!

उसके दिमाग में दो ही शब्द गूँज रहे थे.... हिम्मत मत हारना.... नौकरी...!!उसकी आँखो में अब एक चमक थी.. जैसे कह रही हो अपने आप से.... इतने जल्दी हार मानने वाली नहीं हूँ मैं l एक कायर व्यक्ति के लिए..... अपनी जिंदगी कैसे दाँव पर लगा सकती हूँ l

उसने फ़ोन की स्क्रीन पर वह राँग नम्बर देखा तो एक बार को उसका मन किया कि उसे फ़ोन लगाकर.. थैंक्स बोले.. पर फ़िर उसने उस नम्बर को "जिंदगी" के नाम से सेव कर लिया ...जब कभी भी उसका मन हार मानने लगेगा तो वह हमेशा इस रॉन्ग नम्बर को देख लेगी l जो उसकी जिंदगी में..जिंदगी के साथ साथ उम्मीद की किरण बनकर आया था l


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