Anita Mandilwar Sapna

Romance Tragedy Inspirational

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Anita Mandilwar Sapna

Romance Tragedy Inspirational

एक नई शुरुआत

एक नई शुरुआत

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रेखा आज बहुत ही अनमनी सी बैठी थी जबकि आज दिवाली है। बैठे-बैठे सोचने लगी कि किस तरह मोहन और रेखा बहुत ही खुशी से दिवाली की खरीदारी करते थे और पूजा पाठ के बाद मिल कर दिए जलाते थे सोचते-सोचते कब आंखों से अश्रु झिलमिला उठे। दुपट्टे से आंखों के कोरो को पोछा और सोचने लगी मोहन रेखा ने प्रेम विवाह किया था पर आपसी सामंजस्य ना होने के कारण दोनों अलग अलग रहने लगे। लोगों से ताने भी मिलते ही रहते थे मायके का सहयोग भी नहीं था क्योंकि उनके विरुद्ध जाकर विवाह किया था उधर मोहन को भी अकेलापन काट रहा था घरवालों के विरुद्ध जाकर रेखा से विवाह किया था क्योंकि घर वाले मोहन की शादी कहीं और कराना चाहते थे। 

  उसके दोस्त ने उसे समझाया सुन यार ! इस तरह अलग रह कर क्या तुम दोनों खुश हो। यह बताओ। नोकझोंक तो हर दंपति में होता है, पर इस तरह अलग होना ठीक नहीं है। आज बाजार में भाभी जी को देखा था बहुत ही उदास लग रही थी। कितनी खुश रहती थी जब तुम दोनों साथ साथ रहते थे। हां राकेश, तुम ठीक कहते हो गलती तो मेरी भी उतनी ही थी केवल रेखा कि नहीं थी बस। आज मुझे पछतावा भी है।

  तो देर क्यों ? मेरे दोस्त। दिवाली तो खुशियों का त्योहार है चलो तैयार हो जाओ और भाभी जी को सरप्राइज दो। उधर रेखा पूजा पाठ करने के बाद बालकनी में खड़ी होकर सब के द्वार पर बनी रंगोली देख कर खुश हो रही थी और अपना द्वार उदास देखकर उदास। सभी ने दिए जलाकर और लाइट लगाकर अपने घरों को सजाया तो वह मन मसोसकर अंदर जाने लगी तभी एक चिर परिचित आवाज ने उसे पुकारा उसके दिल की धड़कन तेज हो गई मुड़कर देखा तो मोहन मिठाई के साथ दरवाजे से अंदर की ओर आ रहे थे। रेखा के पैर अपने आप सीढ़ियों की तरह बढ़ गए। जल्दी-जल्दी सीढ़ियों से उतरने लगी बस दो सीढ़ियाँ बची थी और पैर फिसल जाने से नीचे की ओर जैसे ही गिरने वाली थी मोहन ने उसे थाम लिया कुछ देर तक दोनों ने एक दूसरे को देखा जैसे आंखों ने सब कुछ कह दिया हो मोहन ने शुभ दीपावली करते हुए रेखा को बाहों में भर लिया और कहा चलो मिलकर दिए जलाते हैं उधर रेखा के मन में हजारों दिए अपने आप जल उठे थे। एक नई शुरुआत जीवन में बाँहे फैलाए इंतजार कर रही थी।


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