संस्कार या विचार
संस्कार या विचार
चार घंटे से घर पर थी, क्या कर रही थी, एक भी सामान अपनी जगह पर नहीं दिखता?
आये दिन ऐसे तानों से उसका मन छलनी होता रहता है । आज फिर वही ••••
सब्जी ज्यादा पक गई, सब्जी कच्ची है । रोटियाँ ठीक नहीं बनी ? बच्चे का ध्यान नहीं रख सकती । ज्यादा पढ़े लिखे का भी ताना मिल जाता । ये सब तो रोज का क्रम था । साहित्यिक रूचियों का ताना जले पर नमक छिड़कने जैसा ! रोज ऐसे उलाहना शोभना के मन को तार तार करते रहते हैं । शोभना को आज अपना अतीत बहुत याद आ रहा है, बचपन की अठखेलियाँ, बचपन के दोस्त, मायका, सब कुछ, सबकी कितनी दुलारी थी वह ।
शोभना सोचती है कहाँ कमी रह गयी । इतनी पढ़ाई के बाबजूद घर के काम सब तो सीखा था उसने । एक अच्छी नौकरी के साथ जितना कर सकती थी करती है घर परिवार के लिए । फिर ये ताने उलाहना क्यों ?
आज भी समझ नहीं पा रही, कमी कहाँ है उसके संस्कार में या रमेश के विचार में ।
अनिता मंदिलवार "सपना"
