4. रीना और मोती
4. रीना और मोती
एक दिन छोटा सा कुत्ते का बच्चा रास्ते में मिला जो बहुत ही सहमा डरा सा एक कोने में दुबका था। सफेद रंग और शरीर पर काले रंग के छींटे, इतना सुंदर प्यारा लग रहा था। रीना उसे अपने साथ घर ले आई। वह स्वयं भी कक्षा सातवीं की छात्रा है। उसे घर लाकर नहला धुलाकर तौलिए से पोछकर धूप में बिठा दिया। थोड़ी देर में दौड़कर रीना के गोद में जा बैठा। रीना ने उसे पुचकारा और प्यार से मोती कहने लगी। धीरे धीरे वह समझ गया मेरा ही नाम मोती है। जब भी कोई मोती आवाज देता तो झट दौड़ कर पास आकर पूछ हिलाने लगता। रीना और मोती की दोस्ती पक्की हो गई। एक बार रीना अपनी मां के साथ दो दिन के लिए मामा के घर चली गई वहां उसे मोती की बहुत याद आ रही थी इधर मोती ने तो खाने को देखा भी नहीं, उदास अनमना सा इधर-उधर बैठता।
कभी दरवाजे पर जा कर देखता फिर आकर सो जाता। जब रीना वापस आई तो वह अपने लगा और उसके गोद में जाकर बैठ गया रीना ने उसे पुचकारते हुए कहा। अब मैं तुमसे कभी दूर नहीं जाऊंगी। धीरे-धीरे मोती बड़ा होने लगा अब वह तीन वर्ष का हो चुका था और रीना कक्षा दसवीं में पहुंच गई थी उन दोनों की आत्मीयता कभी कम न हुई। एक दिन मोती बाहर गया और किसी ने उसे मारा था।। चोटिल अवस्था में घर पहुंचा पशु चिकित्सक उसे असहनीय पीड़ा हो रही थी।
रीना के पिताजी पशु चिकित्सक को फोन कर बुलाए और चिकित्सक ने इंजेक्शन दिया। दवाई लगाई पर हो ठीक नहीं हो पा रहा था दो दिन बाद उसकी हालत और खराब हो गई जब विद्यालय से लौटी तो अचेत अवस्था में मोती जैसे उसकी ही राह तक रहा हो। रीना ने जैसे ही उसको सहलाया। अश्रुपूरित नेत्रों से उसे देखा और अपनी आंखें सदा के लिए बंद कर लिया।रीना रो रही थी दो दिन तक परिवार में किसी ने कुछ भी नहीं खाया पिया। बहुत सालों के बाद उसे याद कर आज भी रीना मोती की तस्वीरों के साथ बातें करती हैं मोती से उसका रिश्ता मानवीय संवेदनाओं का था।
