कहानी - रेडियो वाली
कहानी - रेडियो वाली
"आप नीता जी हैं न रेडियो वाली"
अचानक ये पंक्तियाँ सुनकर नीता ख़्यालों से बाहर आयी । वहाँ ट्रेन के इंतजार में वेटिंग रूम में बैठी थी ।
जी, पर आप मुझे कैसे जानती हैं, मुझे नहीं लग रहा हम कहीं मिले हो पहले !
मैं रमा हूँ, जी आप सही कह रही हैं हम पहले नहीं मिले हैं वो क्या हैं न ! आपने कुली को जब आवाज दी थी तब आपको आवाज़ से पहचाना मैंने ।
ओह! आवाज़ से ?
जी, मैं रेडियो के हर कार्यक्रम बिना नागा सुनती हूँ । आपकी आवाज मुझे बहुत पसंद हैं ।
धन्यवाद! बहुत अच्छा लग रहा है ये जानकर कि आवाज भी पहचान बन सकती है ।
रमा तो वहाँ से चली गयी पर पुरानी यादों ने नीता के मन मस्तिष्क पर कब्जा कर लिया ।
बचपन से ही रेडियो सुनने की शौकीन थी । हर वक्त रेडियो बजता रहता था जब तक स्टेशन बंद होने की घोषणा नहीं हो जाती ।
पढ़ते समय भी रेडियो साथी के रूप में मौजूद रहता । सब कहते कि रेडियो बजाकर कोई कैसे पढ़ाई कर सकता है ? पर कुछ तो अलग होना ही था । सामान्य ढर्रे पर जीवन जीना सीखा ही नहीं था कुछ अलग, कुछ अलग । बस यही मन में चलता रहता ।
नीता का जवाब होता कि रेडियो मुझे एकाग्र करता है दोस्तों, बाहर के शोरगुल हम तक नहीं पहुँच पाते और मैं तन्मयता के साथ पढ़ पाती हूँ ।
ऐऐऐ•••••सब आँख फाड़कर उसे देखते, जैसे कुछ अजूबा सा कह दिया हो उसने ।
अचानक बगल में बैठी उसकी बहन रूपा ने उसे हिलाया ।
ओए, दिन में भी कहाँ के सपने देख रही हो मैडम !
नीता मुस्कुराई , वो रेडियो •••••••••जाने दे------'कोई नहीं'
ओहो नीता, यहाँ भी तेरा रेडियो!
वो---एक अपरिचित महिला ने याद दिला दी बहन ।
चलो, ट्रेन भी आ गयी----!
ट्रेन में बैठते ही देखा कि बाहर कितने सुंदर नजारे हैं !
और रास्ते में अपना बचपन वाला गाँव भी आनेवाला था इस कारण नींद का तो अता-पता था ही नहीं ।
नीता, हमारा गाँव आनेवाला है
हाँ, बहना, उसी का इंतजार है । आ गया देखो, अपना गाँव!
बहुत कुछ बदल गया है पर, कच्ची सड़कें पक्की हो गयी है ।
हाँ नीता, पगडंडियाँ याद है, साथ ही तेरे रेडियो पर बजती फिल्मी गीतों और लोकगीतों पर मस्ती भी --!
------(और उन यादों में खो सी जाती है) जब गाँव के बड़े बुजुर्ग उसे रेडियो वाली लड़की कहते थे अरे बिटिया, आज रेडियो में क्या नया आने वाला है, कुछ तो बताओ---!
और नीता खुशी-खुशी उन सबको देश-विदेश में होनेवाली घटनाओं के बारे में बताती ।
सबकी प्रिय थी वो !
यादों में खोये खोये कब मंजिल करीब आई पता नहीं चला ।
घर पहुँची तो माँ आरती की थाल लेकर स्वागत के लिए द्वार पर खड़ी मिली ।
माँ को देखते ही दौड़ पड़ी और गले लग गयी ।
माँ तुम्हारी बहुत याद आती है आप अच्छे से तो हो न । इतने में भाई भाभी भी आ गए । सबने उसे पलकों पर बिठाया ।
रात के खाने के बाद माँ ने पूछा -"तेरा रेडियो किधर है बेटा"।
माँ अब तो सब मेरे मोबाइल पर है पर उस रेडियो की बात ही अलग थी माँ । पापा ने मेरे जन्मदिन पर उपहार में दिया था उसे आज भी मैंने बहुत सहेज कर रखा है ।
बेटा सही है, मुझे तो आज भी वह दिन याद है तेरा बचपन । जब रात को गाना सुनते हुए रेडियो को अपने पेट पर रखे ही सो जाती है बाद में मैं उसे उठाकर बंद करती थी ।
हाँ माँ, ये तो आपका रोज का काम ही था ।
काम नहीं बेटा, मुझे अच्छा लगता था ये सब ।
वो दिन भी याद है मुझे जब पहली बार तुम्हारी कहानी की रिकार्डिंग आकाशवाणी में थी, तुम्हारी खुशी का तो ठिकाना ही न था ।
हाँ माँ, मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि अभी तक रेडियो में दूसरों की आवाज सुनती थी आज मैं रेडियो में बोलूंगी ।
जिस दिन प्रसारण था, पूरे घर परिवार को बता दिया कि आज रेडियो पर मेरी कहानी आनेवाली है ।
नीता, और उस कहानी का शीर्षक था 'अपाहिज'
बड़े भैया ने कहा, भैया आपको याद है ,
अरे पगली, मैं भी तो गया था तेरे साथ रिकार्डिंग करवाने, तू नर्वस जो हो रही थी ।
हाँ भैया, कहकर बड़े भैया के गले से लग जाती है ।
अब तो मेरी गुड़िया बड़ी हो गयी है रेडियो में रोज ही बोलती है ।
भैया !
मेरी रेडियो वाली गुड़िया! तू हमेशा यूँ ही खुश रहे ।
अब तो कोई रेडियो वाला जल्द ही ढूँढना पड़ेगा ।
