एक कहानी तीन अंत
एक कहानी तीन अंत
" हाय, हलो, यहाॅ कैसे ।" रंजना को देखकर रोहित रुक गया । एयर फोर्स में बतौर पायलट नौकरी करते रोहित को पांच साल हो चुके थे। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसने साथ हाईस्कूल में पढने बाली रंजना से मुलाकात इस एयरफोर्स के ही कैंप में होगी।
"अरे... तुम तो रोहित हो ना। वही जो मेरा लंच निकाल कर खा जाता था। "
" इतना भी नहीं बदला हूं मोटी। जब मोटी को इतना पतला देख मैं पहचान गया तो फिर तू क्यों नखङे दिखा रही है।"
"लगता है कि मिस्टर रोहित को मेरे हाथों की ताकत याद नहीं रही। एनी वे... मैं एयरफोर्स में पायलट नियुक्त हुई हूं। इससे पहले सहारा में थी। पर एयरफोर्स की लाइफ, मन था मेरा । किसी ने बताया था कि तुम भी एयरफोर्स में हो। पर कहाॅ यह मुझे पता नहीं था। "
रोहित और रंजना पुरे दस साल बाद मिले थे। इतने समय में रंजना ने खुद को बङा फिट किया। हेयर कट से लेकर पहनावा सभी में बङा बदलाव था।वैसे तो रंजना पहले से पायलट थी पर एयरफोर्स की नौकरी का मतलब और भी बहुत है। कठोर ट्रैनिंग से अच्छे अच्छे को तबीयत खराब हो जाती है। न जाने कितनी बार रंजना को चोट लगीं।
" आज तुझे फिर से चोट लगी। तुझसे बोलता हूं कि यह एयरफोर्स की नौकरी तेरे वश में नहीं है।"
"ज्यादा न बकबास कर। देख एक दिन सचमुच ऐसा कर जाऊंगी कि लोगों को मुझपर गर्व होगा।"
इस बात को दो साल बीत गये। रोहित आतंकी शिविर पर हमला करने बाले पायलटों की टोली में था। हालांकि अभी भी एयरफोर्स महिला पायलटों को युद्ध में नहीं भेजती है फिर भी रंजना बैक सपोर्ट में तैनात थी। दुश्मन देश में भयानक गोलावारी हो रही थी। सीमा पर कई सुखोई विमान गश्त लगा रहे थे। उनमें से एक विमान को रंजना उङा रही थी। अचानक रोहित के जहाज पर दुश्मन का गोला लगा। रोहित ने तुरंत पैराशूट खोला और कूद गया। दुश्मन देश में रुकने की इजाजत किसी भी पायलट को नहीं थी। सभी रोहित को उसके भाग्य पर छोड़ वापस आ गये।
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आज नंदनी ने शारदा पब्लिक स्कूल में एक अलग प्रतियोगिता की। ऊपर दी हुई कहानी बच्चों को सुनाकर उसे पूरा करने को कहा। अब बच्चों की कल्पना शक्ति भी बहुत बङ चुकी थी। सभी ने एक से बढकर एक कहानी लिखीं। पर चुनना तो तीन को ही था। ससुर दातादीन व सास शारदा देवी से बहुत विचार कर फिर तीन कहानियों को चुना। जो इस तरह थीं।
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छात्र का नाम सुवोध कुमार
कक्षा -११
शारदा पब्लिक स्कूल
दुश्मन देश से सभी पायलट आ गये पर रोहित नदारद था। आज तक रंजना रोहित को अपना दोस्त ही मानती थी। पर आज उसे अलग सी अनुभूति हो रही थी। रोहित संकट में था और रंजना को भी नींद नहीं आ रही थी।
एयरफोर्स के कैंप में सुबह हल्ला मच गया। आखिर रंजना गायब थी ।रंजना कहाॅ थी और किस हालत में थी, किसी को नहीं पता।
रोहित पैराशूट से सुरक्षित उतर गया। वहीं झाङियों में छिप गया। चारों तरफ दुश्मन के जवान उसे तलाश रहे थे। पर अपनी फौजी शिक्षाओं का प्रयोग कर वह खुद को छिपाये रखने में सफल हुआ।
सुबह होने पर रोहित ने बाहर का नजारा देखा। अभी भी बहुत खतरा था। पर असल खतरा उसके पास के नक्शे थे। वैसे यह नक्शे उसे वापसी में मदद करते पर पकङे जाने पर दुश्मन के बङे काम के थे। रोहित उस स्थिति में था जिसे धर्म संकट कहते हैं। आखिर में उसने जेब से माचिस निकाल नक्शों को जला दिया। अगर वह रात में ऐसा करता तो आग को देख जरूर पकङा जाता।
निश्चित ही दुश्मन फौज दिन में इस जगह जरूर देखने आयेगी। रोहित उठकर भागने लगा। वह सही दिशा में जा रहा है या गलत, इसका उसे पता नहीं था। पर सूरज के हिसाब से वह ठीक ही तरफ बढ रहा था।
ऐसे जंगल में कितने किलोमीटर भागा होगा। वैसे लगातार भाग पाना किसी के वश की बात नहीं है। पर फोज की खास ट्रैनिंग उसके काम आयी। लगभग सौ कदम दोङकर चलना फिर थोङा आराम करना और फिर सौ कदम तेज चलना। सचमुच रोहित ने सुबह से शाम तक पचासों किलोमीटर का सफर तय कर लिया। इस दोरान वह बस्तियों से दूर रहा।
रोहित को एक बुरका पहने औरत आती दिखी। चुपचाप वह झाङियों के पीछे छिप गया। पर यह औरत तो अजीब तरह से चल रही है। कुछ दूर दोङकर फिर आराम कर फिर तेज चलना। संभव है कि दुश्मन फौजियों का भी यही तरीका हो। रोहित को छिपना ही सही लगा। पर वह औरत बिलकुल उसके पास रुक गयी।
" अरे हलो... कुछ तो मेरी हिम्मत की दाद दो। इतनी दूर तुम्हारे लिये आयी हूं। पता नहीं कुछ खाया भी है या नहीं।"
लङकी ने कुछ डबलरोटी रोहित की तरफ बढाईं। डबल रोटी के पैकेट पर वही नाम लिखा था जो उसके कैंप में मिलती थीं।
" क.. क.. कौन हों तुम ।" रोहित को अभी भी यकीन नहीं था कि कोई उसके लिये दुश्मन की सीमा में घुस आयेगा।
" अब यार इतना भी ठीक नहीं है। भले ही अब मोटी नहीं हूं फिर भी अपनी मोटी की आवाज न पहचान पाओ।"
"अरे.. रंजना ।तुम यहाँ कैसे।"
"बोला ना। तुम भूखे होंगें ।खाना लाई हूं। "
कुछ खाकर रोहित फिर चलने को तैयार हुआ।
"अरे.. बुद्धू । जरा सलाह मशवरा कर लिया करो। देखो अपनी वर्दी यहीं उतार दो और यह बुरका पहन लो। औरत बनने में कोई परेशानी तो नहीं है। "
इस समय भला क्या परेशानी हो सकती है।
" रोहित.. तुम्हें, उर्दू बोलना आता है।"
"नहीं तो।"
" फिर क्या फौज में अभी तक झक मारी है। " सचमुच दूसरे देश के दुश्मनों को धोखा देने के लिये उनकी भाषा और तरीके भी सिखाये गये थे उन्हें।" कोई बात नहीं। किसी से बात मत करना। मैं सम्हाल लूंगी।"
फिर सचमुच रंजना ने कई बार बात सम्हाली। आखिर सरहद पार कर दोनों हिंदुस्तान की सीमा में दाखिल हो गये। सामने आर्मी की चौकी दिख रही थी। वहाॅ खुद को सरेंडर कर दिया। विभिन्न जांच से उनके हिंदुस्तान के फौजी होने की पुष्टि के बाद ही उन्हें उनकी चौकी पर पहुंचाया गया।
" अच्छा मोटी... एक बात बता। तू मेरे लिये दुश्मन की सीमा में क्यों घुस गयी।"
" कितनी बार पूछेगा मुझे। तेरे लिये खाना लेकर गयी थी।"
" चल झूठी। अब तू कुछ भी बोल ले। एक बात बता। मेरे से शादी करेगी। अब फौजी लङकी के लिये फौजी ही लङका सही रहेगा। दोनों हवा में साथ बातें करेंगें। कोई दुश्मन के यहाॅ फस गया तो दूसरा खाना लेकर आ जायेगा। मजाक तो नहीं समझ रही। "
" चल तू भी ना। वैसे मेने अपने बापू को बोल दिया है। शायद दो चार दिन में वे तेरे बापू से मिलने जायेंगें। तू भी अपने बापू को बोल देना। "
" क्या बोल दूं अपने बापू से.. बता तो सही ।"
" तू तो कभी नहीं सुधरेगा। ऐसा कर अपनी अम्मा से मेरी बात करा देना। मैं खुद बता दूंगी ।"
इस बार रंजना सचमुच शरमा गयी।
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छात्रा का नाम : आरती सिन्हा
कक्षा - १०
शारदा पब्लिक स्कूल
सुखोई विमान में गश्त लगा रही रंजना ने वापस आते हुए विमानों को देखा। एक विमान कम लग रहा था। आखिर कौन वापस नहीं आया। कहीं रोहित तो नहीं। एक अज्ञात डर उसके मन में व्याप्त हो गया।
" हेलो। इस देयर कैप्टन रोहित।" रंजना के संदेश का कोई उत्तर नहीं मिला। दो बार फिर संदेश बोला।
" कैप्टन रंजना। नाउ गो बेक। ऐरोप्लेन ओफ कैप्टन रोहित इज क्रेश्ड।"
रंजना ने इतना सुना तो वापस करने के बजाय सुखोई को दुश्मन की सीमा में घुसा दिया।
" स्टोप कैप्टन रंजना। यू आर नोट परमिटड टू एंटर इन एनीमी प्लेस।"
पर रंजना शायद बहरी हो चुकी थी। दुश्मन के लङाकू विमान भी अब सतर्क हो गये। जब उन्होंने हिंदुस्तान की सीमा से सुखोई को आते देखा तो एक साथ कई विमानों ने रंजना के सुखोई को घेर लिया। पर रंजना भी दक्ष थी। ऊपर और नीचे करके घुमा फिराकर सुखोई को उङा रही थी। दुश्मन के कितने गोले उसने बचा लिये। उसके गोले से दुश्मन का एक जहाज भी धराशायी हुआ। आखिर में रंजना के सुखोई पर भी दुश्मन का गोला लग गया।
झाङियों में छिपे रोहित ने रंजना को गिरते देखा। बदहवास सा उसे बचाने दोङा। दुश्मन की गोलियों से उसका शरीर छलनी हो गया। थोङी देर में दोनों घायल होकर एक दूसरे के गले लगे हुए थे।
" रंजना... तुम इस तरह मुझे बचाने चली आयी। आखिर क्यों।"
"क्यों क्या होता है... मान लो कि मैं प्यार करती हूं तुम्हें। पर तुम क्यों झाङियों से निकल आये।"
"क्यों क्या। मान लो प्यार करता हूं तुम्हें ।"
दोनों बेहोश हो गये। जब होश आया तो दोनों दुश्मन की कैद में थे। उनके शरीर पर पट्टियां बंधीं थीं।
" तुम्हारे देश के प्रधानमंत्री और हमारे प्रधानमंत्री की बात हुई है। तुम्हें कल रिहा कर दिया जायेगा। पर यह सब क्या है। " दुश्मन का कैप्टन इतना दुष्ट नहीं था।
"क्या... मतलब ।" रोहित और रंजना दोनों ने बोला।
" मतलब यही कि लङके के लिये लङकी अपनी जान खतरे में डालती है। फिर लङका भी लङकी के लिये अपनी जान खतरे में डालता है। "
दोनों चुप रहे।
" अरे.. मतलब यही है कि लङका और लङकी एक दूजे से मोहब्बत करते हैं।" खुद उत्तर देकर दुश्मन का कैप्टन हसने लगा।
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छात्रा का नाम :अंजना राठी
कक्षा - ९
शारदा पब्लिक स्कूल
जब रंजना को पता चला कि रोहित वापस नहीं आया है तो वह बैचैन हो उठी। अगर मोर्चे के समय ही उसे मालूम पङ जाता तो शायद वह खुद अपना सुखोई दुश्मन की सीमा में घुसा देती। भले ही अभी भी फौज लङकियों को जंग के मोर्चे पर नहीं भेजतीं पर रंजना दिखा देती कि लङकियां भी रण में चंडी बन सकती हैं। या तो रोहित को वापस ले आती या वहीं खुद की जान दे देती।
रंजना को बार बार मन होता कि कैंप से भागकर दुश्मन की सीमा में घुस जाये। पर क्यों... इसका उत्तर उसके पास न था।
दुश्मन की सीमा में घुस जाने से भला रोहित वापस आयेगा। रोहित को वह कहाॅ ढूंढेगी। पर रंजना ने अपने अधिकारियों पर दवाव बनाया। एयरफोर्स के विशेष दवाव से सरकार भी हरकत में आयी। राजनैतिक स्तर पर वार्ता हुईं। दुश्मन देश का कहना था कि कोई भी भारतीय सैनिक उसकी कैद में नहीं है। आखिर भारत के प्रधानमंत्री ने दो टूक बोल दिया कि यदि कल शाम तक रोहित को वापस नहीं किया तो सेना तुम्हारे देश में घुस जायेगी। वैसे दुश्मन के प्रधानमंत्री ने भी किसी से न डरने की बात ही जाहिर की। पर नाटकीय तरीके से रोहित उन्हें मिल गया। दूसरे दिन की शाम तक रोहित भारत की सेना को सोंपा जा चुका था।
सेना ने विभिन्न जांच कीं। कहीं दवाव में आकर रोहित ने कोई गोपनीय बात दुश्मन को तो नहीं बता दी। ऐसी स्थिति में उसे एयरफोर्स से हटा दिया जाता। पर रोहित बेदाग निकला। रंजना ने उसका हर कदम पर साथ दिया।
रोहित और रंजना ने शादी कर ली। उनकी शादी में खुद देश के प्रधानमंत्री ने शिरकत की। यह बङी बात थी।
सुहाग रात पर रंजना रोहित का इंतजार कर रही थी। रोहित आया।
" वैसे मोटी... यह साङी भी तुझपर खूब जमती है।"
" अब मोटी मत बोला करो। मुझसे ज्यादा फिट लङकी तुम्हारे पूरे खानदान में नहीं है।"
" पर मोटी बोलने में कुछ अलग अपनापन लगता है। देख आज के लिये मेने क्या उपहार खरीदा है।"
रोहित ने रंजना को हीरों का हार भेंट किया। रंजना के मुख से एकदम वाह निकल पङा। आखिर हार था भी बहुत सुंदर।
" पर रोहित.. यह तो बहुत मंहगा होगा। "
" पर तुम्हारी मुस्कान से ज्यादा तो नहीं। "
रोहित ओर रंजना दोनों घूमने का विचार बना रहे थे। रोहित ने स्विट्जरलैंड की टिकट बुक करा रखी थीं। रंजना को भी स्विट्जरलैंड घूमने का मन था। पर इस तरह पैसे बर्बाद करने के वह खिलाफ थी। पर रोहित का मानना था कि हनीमून तो जीवन में एक ही बार मनाया जाता है। तो मन मारना ठीक नहीं है। स्विटजरलैंड में भी रोहित ने बहुत मंहगी खरीददारी की।
रंजना रोहित का खुद के प्रति प्रेम देख खुश थी। पर मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने बाली रंजना मितव्ययता का अर्थ भी समझती थी। यों तो अभी तक रोहित भी बहुत मितव्ययी था पर अब दिल खोलकर खर्च करने लगा। शायद उसकी बजह उसका रंजना के प्रति प्रेम ही था। पर प्रेम अक्सर आदमी को शंकालु भी बना देता है। अब रंजना अक्सर रोहित के एकांउट के डिटेल, काल डिटेल, ईमेल, व्हाटसअप भी चुपचाप देखने लगी। वैसे पत्नी होने के कारण उसका हक था। पर रंजना को चुपचाप जांचना ज्यादा सही लग रहा था।
" हेलो मेजर.... मैं कैप्टन रंजना बोल रही हूं।"
फौज के मेजर के लिये किसी कैप्टन का ओहदा ज्यादा महत्व का नहीं था। पर जिसकी शादी में खुद देश के प्रधानमंत्री आये हों, उसका ओहदा खुद व खुद ऊपर उठ जाता है।
" सर... आपको जानकारी देनी थी कि हमारी सेना में एक गद्दार है। वह हमारी खुफिया सूचनाएं दुश्मन को देकर खूब पैसे कमा रहा है। मेरे पास उसके काफी प्रमाण मोजूद हैं।"
थोङी ही देर में सभी न्यूज चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज थी कि एयरफोर्स पायलट पत्नी ने अपने पायलट पति को देश के प्रति गद्दारी करने के लिये गिरफ्तार कराया। पति के लैपटॉप, मोवाइल, ई मेल बैंक अकाउंट से काफी सबूत मिले।
एक दूसरी चर्चा यह भी थी कि एक पत्नी का यह आचरण कहाॅ तक उचित है। पत्नी तो पति की अर्धांगिनी होती है। फिर पति तो उससे बहुत प्रेम भी करता है।
इन सबसे अलग नंदनी सोच रही थी कि उसने यह कठोर निर्णय किस तरह ले लिया। एक फौजी के लिये सबसे ऊपर देश होता है। पर हकीकत में इस बात को अपना पाना कितना कठिन होता है, यह कोई रंजना के दिल से पूछे। पर रंजना केवल पत्नी ही नहीं है, बल्कि देश की फौजी भी है। फौजी को अलग हटकर करना होता है।
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दातादीन जी, शारदा जी और नंदनी तीनों को ये कहानियां पसंद आयीं। पर कोई विवाद न हो, यह हो ही नहीं सकता। अभी भी तीनों में सुबोध, अंजना और आरती की कहानी में किसे पहला स्थान देना है, किसे दूसरा और किसे तीसरा, इसपर विवाद हो रहा है। क्या आप उनका विवाद हल नहीं करेंगें। ।

