एक दिन की मुमताज
एक दिन की मुमताज
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पायल बेहद ही खराब मूड में घर से बाहर निकली थी. क्या सोचा था और कैसी ज़िन्दगी जी रही हैं.मशीन की तरह सुबह से शाम बस काम ही काम, सुबह दफ़्तर की भागदौड़, शाम को घर वालो के नख़रे झेलो. पति ऐसा मिला हैं जैसे मिट्टी का लौंधा, एकदम गोबर गणेश, किसी भी बात का तो शौक नही हैं सुधीर को. पायल को ऐसा लगता हैं जैसे सुधीर को उससे कोई सरोकार ही नही हैं.
पायल को आज भी याद हैं सुहागरात पर भी सुधीर ने उसे ये ही कहा था"पायल और कुछ करो या ना करो पर मेरे मम्मी, पापा को शिकायत का मौका मत देना"
फिर पायल और सुधीर की मिलन बेला भी एक कर्तव्य बेला बन कर रह गयी थी.पायल को ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे सुधीर ने कोई पहल नही करी थी बस पायल ने ही खुद को पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया था.कितनी कोफ़्त हुई थी पायल को, ऐसा लगा था कि उसके सारे सपने टूट गए हो.
सुधीर जीवन के बहुत बंधे बंधे तरीके से जीता था , उसका जीवन समयसारिणी के अनुसार चलता था जबकि पायल थी एकदम बिंदास बाला .एक वर्ष के भीतर ही उनकी ज़िंदगी मे गर्व आ गया और पायल का जीवन और अधिक मशीनी हो गया था.
बरसो हो गए थे पायल के कानों को कोई भी मधुर ध्वनि सुने, सहवास पहले भी रुमानी नही था पर अब एक उबासी भरी क्रिया बन कर रह गयी थी.
कुढ़ कुढ़ कर पायल के चेहरे पर झाईयों का झुरमुट बन गया था, 30 वर्ष में ही वो 40 वर्ष की प्रौढ़ दिखने लगी थी. आज भी ऐसा ही एक बोरियत भरा दिन था.ऑफिस जाने के लिये निकली पायल ने ना जाने क्या सोचते हुये मॉल के लिये कैब बुक कर ली थी.
सुबह के करीब 9 बज रहे थे.मॉल अभी तक खुला नही था पर एक पार्लर खुला हुआ था, पायल वहीं चली गई. हेयर स्पा, वैक्सिंग और फेसिअल कराते हुये पायल को करीब तीन घंटे बीत गये थे.आईने में अपना दमकता हुआ चेहरा देखकर पायल को लगा जैसे वो आज दिन भर के लिये मुमताज़ हो, खूबसूरत और बिंदास.मन ने मनमानी करने की ठानी थी कि आज पायल एक हुस्न मलिका की तरह जीवन जीएगी.
जैसे ही पायल मॉल में घुसी तो सब दुकानें उसे अपनी तरफ आकर्षित करने लगी थी. थोड़ी देर तक वो अपने नए नए प्राप्त रूप रंग की फुहार में पुलकित बैठी रही फिर अपने को आईने में देखते हुये मलिका मुमताज़ ने सोचा कि इन ढीले ढाले सलवार कुर्ते में वो एकदम बहनजी लग रही थी.
पायल ने मन ही मन सोच रही थी कि शादी से पहले तो वो कितने आधुनिक ढंग के कपड़े पहनती थी.पर शादी के बाद तो जैसे वो एक सपना बन कर रह गया हो.मुमताज शॉपर्स स्टॉप में घुसी और एक जम्प सूट खरीद लिया और साथ के मैचिंग डैंगलर्स ,फ़िर डार्क मेहरून रंग की लिपस्टिक ,ऑय लाइनर और फाउंडेशन खरीद कर वो वाशरूम में चली गईं.
टिपटॉप हो कर पायल जब बाहर आई तो अपने आप को वो आईने में अनजानी लग रही थी. एकदम उम्र के दस वर्ष घट गये थे और चेहरा कितना फ्रेश लग रहा था.जब पायल वाशरूम से बाहर निकली तो उसकी चाल में अलग सा आत्मविश्वास आ गया था.
कुछ देर पायल इधर उधर विंडो शॉपिंग करती रही.तभी उसने देखा एक लंबा गोरा आकर्षक नौजवान उसे एकटक देख रहा हैं.पायल को पहले लगा उसकी नज़र का धोखा हैं पर नही वो उसे ही देख रहा था.
ये देखने के लिए कि कहीं ये पायल का वहम तो नही हैं, पायल तेज़ कदमो से दूसरी दुकान में चली गई.वो युवक भी वहीं खड़ा था.पायल को कुछ समझ नही आ रहा था तो बेमतलब ही कुर्ते देखने लगी.पायल आसमानी रंग की कुर्ती को देखने लगी तो उस नौजवान ने ठेंगा दिखाया फिर पायल ने लाल रंग की कुर्ती देखना आरंभ किया तो उसने इशारों इशारों में सहमति जताई.लाल रंग की कुर्ती पैक कराते हुये पायल सोच रही थी वो क्या पागलपन कर रही हैं पर पायल को इस पागलपन में एक अलग सा रोमांच आ रहा था.
जब दोपहर के दो बजे पायल फूड कोर्ट। पहुँची तो पायल ने देखा , फ़ूडकोर्ट में अच्छी खासी भीड़ थी .तंदूरी चिकन की सुगंध से पायल के मुँह में पानी आ गया.सुधीर तो अंडा भी नही छूता था इसलिये पायल भी पिछले पाँच वर्षों से तरस कर रह गई थी.जैसे ही पायल
मटन बिरयानी और चिकन लेकर बैठी ,वो ही आकर्षक नौजवान आकर सामने बैठ गया और बोला" हाई , ई आम वरुण"
पायल हंस कर बोली"मैं पायल"
वरुण फ़्लर्ट करते हुये बोला"पायल जैसी ही रुनझुन हंसी हैं तुम्हारी।"
फिर अगले पल ही वरुण बोला"दोस्ती करोगी मुझसे?"
पायल फिर से मुस्कुराते हुये बोली"दोस्ती पर मैं तो शादीशुदा हूँ और मेरा दो साल का एक बेटा हैं"
वरुण बोला"मज़ाक मत करो ,तुम तो अभी भी बच्ची लगती हो, ये भगवान की गलत बात है ,सारी खूबसूरत और सेक्सी लड़कियों को पहले ही पराई कर देता हैं!"
पायल की खनक में वरुण का दिल डूब रहा था उधर पायल को भी बहुत मज़ा आ रहा था.
वरुण बोला"पायल चलो आज के लिये तुम मुझे अपना शाहजहाँ बना लो, वादा करता हूँ फिर कभी तंग नही करूँगा, प्लीज ब्यूटीफुल लेडी"
पायल को समझ नही आ रहा था कि क्या करे ,पर वो तो आज भर के लिये मुमताज हैं तो फिर क्यों ना इस शाहजहाँ के साथ मिल कर आज एक नई कहानी बनाये.
उसने घड़ी में देखा शाम के चार बज रहे थे. घर पर फोन करके पायल ने बता दिया कि उसे आज रात को आने में देर हो जाएगी.उससे पहले पायल की सास उससे अगला प्रश्न पूछती ,उसने फोन काट दिया.
फिर उसने वरुण की तरफ देखा, वरुण ने कहा "पायल आज रात डिस्को चलोगी मेरे साथ"
पायल का कितना मन करता था डिस्को या पब जाने का पर सुधीर को ये सब पसंद नही था.आज मौका मिला हैं तो क्यों नही पूरा फायदा उठाया जाए.
वरुण फिर शरारत से बोला"तुम एक वन पीस ले लो,एक दम बोम्ब लगोगी"
पायल का भी मन था, दोनो देखने लगे पर दाम देखकर पायल झिझक रही थी. वरुण ने कहा "ये उपहार मेरी तरफ से है पायल , तुमने मुझे अपना कीमती समय दिया, मुझे इस लायक समझा कि मैं तुम्हारे साथ एक प्यारी और मस्ती भरी रात गुजार सकता हूँ"
पायल वरुण की बात सुनकर थोड़ी असहज हो गयी थी तो वरुण बोला"पायल तुम्हारी मर्ज़ी के बिना कुछ नही होगा ,विश्वास करो और तुम इतनी खूबसूरत हो की जुबान फिसल गई मेरी"
पायल एक विचित्र मनोस्थिति से गुजर रही थी , एक तरफ एक आकर्षक नौजवान का साथ जो उसे रोमांचित कर रहा था वही एक अनजान शख्स के साथ ऐसे पूरी शाम बिताना उसे डरा भी रहा था.
पर आज के लम्हे तो मुमताज़ और शाहजहाँ के ही थे, पायल ने डर को पीछे ठेल दिया था
वरुण भी पायल की तरह ही ज़िन्दगी को भरपूर जीने में यकीन करता था. जैसे ही पब में पायल और वरुण ने एंट्री करी, तीन और जोड़े उनके पास आ गए.
वरुण ने बहुत अदा से कहा"मीट माय गर्ल फ्रेंड पायल"
पायल मुस्कुरा रही थी, बहुत दिनों बाद ऐसा लग रहा था जैसे वो ज़िंदा हो.
ना, ना करते हुये भी वरुण ने पायल को एक के बाद द पेग पिला रहा था ताकि वो बिना किसी घबराहट के नाच सके.वरुण और पायल जलती बुझती लाइट्स में एक दूसरे के साथ खुल कर नाचने लगे.
अचानक से पायल की आँख खुली, सिर बहुत तेज घूम रहा था.पायल इधर उधर देख रही थी कि वरुण कहाँ चला गया ?
अचानक से पायल का ध्यान अपने हाथों पर गया, उसके सोने के कड़े और हाथो की अंगूठियां गायब थी, एक दम से पायल का हाथ गले पर गया, पूरे चार तोले की सोने की चैन भी गायब थी.घड़ी में देखा, सुबह के चार बज रहे थे.
आज की मुमताज़ के लिये भी शाहजहाँ ने ताजमहल तो बनाया था पर उस ताजमहल की भारी कीमत चुकाई थी मुमताज ने.क्या बस गहने ही ले कर गए था ये शाहजहाँ या फिर , ये सोचते ही पायल का सिर चकराने लगा.मुमताज़ तो पायल बस कल भर की ही तो थी, सूरज की पहली किरणें पायल को ज़िन्दगी से रूबरू करा रही थी और कहीं दूर कोई आशिक़ इन पंक्तियों को गुनगुना रहा था.
"इश्क़ की एक गुहार पर घबरा गए सब आशिक़ ,वो तो आये थे महफ़िल में बस अपनी हाज़िरी लगाने
उस दरिया को वो क्या पार कर पायेंगे, वो तो जिस्मानी जरूरत को ही इश्क़ मानकर अपना दीवानापन दिखाएंगे,बहुत हुआ तो दोस्ती का नक़ाब पहनकर इस महफ़िल में, शरीफों की जमात में आला कहलायेंगे!"