Ritu Verma

Children

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Ritu Verma

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मकड़जाल

मकड़जाल

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 ईशान स्कूल के कॉरिडोर में डरा सहमा से चल रहा था। तभी उसने देखा कि एक लड़के लड़कियों का ग्रुप अंग्रेजी में बात करते हुए उसके सामने से गुजर गया। वो ग्रुप उसकी ही क्लास का था पर ईशान दो महीने बाद भी उस क्लास का हिस्सा नहीं बन पाया था। वो रोज़ कोशिश करता और रोज़ ही फ़ेल हो जाता था।

ईशान शुरू से ऐसा नहीं था। अपने पहले वाले स्कूल में वो कक्षा के अच्छे विद्यार्थियों में गिना जाता था। ईशान का पहले वाला स्कूल थोड़ा छोटा जरूर था मगर ईशान को उस स्कूल में बहुत मज़ा आता था।  

ईशान के पापा मनुज का छोटा सा बिज़नेस था। मनुज को इस बात का सदैव मलाल रहता था कि वो अपने इकलौते बेटे ईशान को अच्छी शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं। जब वो अपने आसपास के परिवारों में देखता तो उन बच्चों की स्मार्टनेस देखकर मनुज को अपना बेटा एकदम भोंदू लगता था।

मनुज कितनी बार निराश होकर अपनी पत्नी अंशु से कहता" मैं ये कभी नहीं चाहता हूँ कि मेरे बच्चे भी मेरी तरह दब्बू और पीछे रहने वाले बने"

अंशु बोली "मगर मनुज उसके लिए, हमें ईशान को इंटेरनाशनल स्कूल में पढ़ाना होगा। अभी फिर भी समय हैं, अगर बोर्ड क्लासेज में आ जायेगा तो फिर मुश्किल होगी"

मनुज हर साल इंटेरनाशनल स्कूल की फीस पता करता और मन मसोस कर रह जाता था।

मगर जल्द ही एक चमत्कार हुआ, मनुज के शेयर मार्केट में लगाये गए पैसों में इतना उछाल आया कि मनुज रातोरात मालामाल हो गया था।

मनुज ने उन पैसों से सबसे पहले अपने बेटे का इंटेरनाशनल स्कूल में एडमिशन कराने की सोची। झिझकते हुए जब मनुज स्कूल के रिसेप्शन पर पहुंचा तो वहाँ पर टिपटॉप बैठी हुई रिसेप्शनिस्ट ने पहले तो मनुज को कुछ भाव नहीं दिया। जब मनुज ने कहा "मेम मुझे अपने बेटे का एडमिशन कराना हैं"

रिसेप्शनिस्ट ने कहा "सर आप पहले प्रॉस्पेक्टस ले लीजिए और फिर पूरा फी स्ट्रक्चर समझ लीजिए"

मनुज ने देखा एक साल की फ़ीस लगभग 5 लाख रुपये थी। एक बार तो मनुज का मन करा की किसी और अच्छे स्कूल में ईशान एडमिशन करा दे मगर तभी उसके सामने से चमचमाती यूनिफार्म और धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलते हुए कुछ छोटे बच्चे गुजरे तो मनुज ने जी कड़ा करके एडमिशन फॉर्म खरीद लिए थे।

घर आकर मनुज अंशु से बोला "अंशु 5 लाख का वार्षिक खर्च आएगा और बाकी का खर्च भी होगा "

"तुम्हें क्या लगता हैं?"

अंशु तमतमाते हुए बोली "पहले पैसों का रोना था और अब जब पैसे हैं तो तुम्हारा अब भी मन नहीं कर रहा हैं"

मनुज अंशु से कहना चाहता था कि शेयर मार्केट में आज उछाल हैं तो कल गिरावट भी आ सकती हैं। मगर अंशु का चेहरा देखकर मनुज ने आगे कुछ नहीं कहा।

ईशान नए स्कूल में जाने के नाम से बेहद उत्साहित था।

नियत समय पर ईशान का एडमिशन टेस्ट हो गया था। टेस्ट अधिक अच्छा नहीं हुआ था। मनुज को लग रहा था कि शायद एडमिशन नहीं हो पाएगा। मगर जब स्कूल से इंटरव्यू के लिए कॉल आया तो अंशु और मनुज खुशी से उछल पड़े।

इंटरव्यू एक तरह की फॉर्मेलिटी ही थी। स्कूल को बच्चो से ज्यादा पैसों में दिलचस्पी थी।

प्रिंसिपल ने बस मनुज से इतना कहा"सर ये एक इंटरनेशनल स्कूल हैं, यहाँ की पढ़ाई थोड़ी महंगी जरूर हैं पर ये आपके बच्चों को एक नये तरह का एक्सपोज़र देगी"

"आप फ़ीस समय से भरते रहिए, आपके बेटे को देश का स्टार बनने की ज़िम्मेदारी हमारी"

मनुज जब स्कूल से बाहर निकल रहा था तो वो खुश भी था और थोड़ा सा चिंतित भी था।

खुशी थी अपने बेटे के स्वर्णिम भविष्य की और चिंता थी क्या वो ये ज़िम्मेदारी ठीक से निभा पाएगा?

आज रात अंशु ने अपनी सहेलियों को ईशान के नए स्कूल में एडमिशन होने की खुशी में पार्टी दी थी।

ईशान के लिए नए सिरे से सभी कुछ लेना था। करीब 75 हज़ार इन सब में ही ख़र्च हो गए थे। मगर जब ईशान को मनुज उनकी चमचमाती स्कूल बस में छोड़ कर आया तो वो वाकई में अंदर से बेहद खुश था।

मनुज अंशु से बोला"अंशु और खर्चों में कुछ कटौती कर लेंगे मगर अपने बच्चों को उत्तम शिक्षा ही देंगे"

ईशान को अपने स्कूल में सब अच्छा लगा था मगर वहां के बच्चे कुछ अलग लगे थे। सारे बच्चे और टीचर अपनी ही धुन में रहते थे।

ईशान का पहले दिन उसकी क्लास टीचर मिस श्वेता ने क्लास से परिचित करवाया था। उसके बाद ईशान अकेला पड़ गया था। ईशान चाह कर भी उस क्लास का हिस्सा नहीं बन पा रहा था। यहाँ पर उसे ऐसा महसूस होता जैसे वो किसी अलग दुनिया से आया हो। इंटेरनाशनल स्कूल में रोज़ नई नई एक्टिविटीज होती थी मगर ईशान के अंदर इतना आत्मविश्वास नहीं था कि वो किसी भी प्रतियोगिता में भाग ले सके।

एक बार टीचर के मोटीवेट करने पर ईशान ने डिबेट में पार्ट ले लिया मगर वो फाइनल राउंड में बोल नहीं पाया।

उधर मनुज और अंशु ईशान की परफॉर्मेंस से खिन्न थे। मनुज को समझ नहीं आ रहा था कि ईशान क्यों इतने अच्छे स्कूल में आकर सिमट गया हैं। पहले वाले स्कूल में तो ईशान हमेशा खुश रहता था।

 घर आकर भी ईशान अपने कमरे में बंद रहता था। जब अंशु और मनुज ने इस बारे में स्कूल में बातचीत करी तो उन्हें कोई जवाब नहीं मिला।

हर रोज कोई ना कोई सर्कुलर आता था जिसकी पेमेंट करनी आवश्यक होती थी। कुल मिलाकर फ़ीस के अलावा भी ऐसे बहुत से ख़र्च होते थे जो लगभग मासिक फ़ीस के बराबर ही पड़ते थे।

मनुज को कभी कभी लगता था कि क्या उन्होंने ईशान का स्कूल बदलकर कोई गलत फ़ैसला तो नहीं ले लिया था। धीरे धीरे ईशान का स्कूल मनुज और अंशु के लिए सिरदर्द बन गया था।

हर रोज़ कोई इवेंट होता जिसमें पेरेंट्स का शामिल होना अनिवार्य होता था। अंशु और मनुज के पास एक ही कार थी जो मनुज अपने काम से ले जाता था। मजबूरीवश अंशु को कैब करके स्कूल जाना पड़ता था। बड़े बड़े घरों के बच्चे वहां पढ़ते थे। जब अंशु पहली बार स्कूल गई तो अंशु को ऐसा लगा कि मानो वो किसी फ़ैशन परेड में आई हो। अंशु को अपने कपड़े बेहद स्तरहीन लगे थे। उसे ईशान के बदले व्यवहार का कारण कुछ कुछ समझ आ रहा था।

उस दिन घर आकर अंशु बेहद खिन्न थी, जब मनुज ने कारण पूछा तो अंशु ने रुआंसे स्वर में कहा" वहां पर किसी ने भी मुझसे बात नहीं करी, ऐसा लग रहा था मैं वहां पर सबसे अलग लग रही थी"

"मुझे कुछ महंगे कपड़े खरीदने पड़ेंगे"

मनुज सोचते हुए बोला" अंशु हम जैसे हैं वैसे ही रहेंगे, हमें ईशान के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए "

अंशु बोली"तभी तो ये हो पायेगा जब मेरी वहां पर ईशान की किसी क्लासमेट की मम्मी से दोस्ती हो जाएगी"

ना चाहते हुए भी मनुज ने अंशु के लिए कपड़े खरीद लिए थे। अगली पैरेंट मीटिंग में अंशु ने जिशान की मम्मी वाणी से दोस्ती कर ली थी। अब ईशान की कुछ प्रोग्रेस हुई या नही, ये तो मनुज को पता नहीं चला मगर ईशान की फ़ीस के साथ साथ अंशु के ख़र्च भी बढ़ गए थे।

जब भी मनुज टोकता तो अंशु बोलती"अरे मनुज अब हमें भी थोड़ा स्टैण्डर्ड मेन्टेन करके रखना पड़ेगा"

"पैसों वालो की दुनिया मे दिखावा जरूरी हैं"

मनुज के सामने धीरे धीरे ये परिवर्तन हो रहा था ,ईशान अपने खोल में सिमटा जा रहा था और अंशु एक पंछी की तरह उड़ रही थी। अंशु का ध्यान अब ईशान से हटकर पूरी तरह खुद पर केंद्रित था।

ईशान का वार्षिक रिजल्ट बेहद निराशाजनक था। मनुज और अंशु जब रिजल्ट के साथ प्रिंसिपल के पास गए तो प्रिंसिपल ने उन्हें रिया से मिलवाया। रिया स्कूल में काउंसेलर थी। रिया ने ईशान के साथ दो काउंसलिंग सेशन करे और फिर मनुज और अंशु को कहा"सर आपके बेटा को डिप्रेशन हैं"

मनुज बोला"ये आप क्या बोल रही हो? इतने छोटे बच्चे को डिप्रेशन कैसे हो सकता हैं?

रिया ने बिना कुछ जवाब दिया, मनुज को एक पर्चा थमा दिया और कहा"आप ये टेस्ट करवा लीजिए फिर हमें कन्फर्म हो जाएगा"

मनुज को ऐसा लग रहा था कि वो एक चक्रव्यूह में फंस गया हैं। सारे टेस्ट बेहद महंगे थे और उन टेस्ट के परिणामो से कुछ डायग्नोज़ भी नहीं हो पाया था।

ईशान अब स्कूल जाने से डरने लगा था। ईशान अपनी क्लास में अलगथलग पड़ गया था। अंशु अपनी ही दुनिया में व्यस्त हो गयी थी। जब भी मनुज टोकता तो बोलती"अरे मैं तो ईशान के कारण इन लोगों में उठती बैठती हूँ पर एक ये मिट्टी का माधो हैं बिल्कुल चुप रहता हैं"

ईशान का 20 मार्च में रिटेस्ट होना था पर तभी कोरोना की आंधी आयी और सभी स्कूल अनिश्चित काल के लिए बंद हो गए थे।

सभी बच्चों के लिए लैपटॉप अनिवार्य बन गया था। अंशु ने अपने दोस्तों की देखादेखी 1 लाख का लैपटॉप ईशान के लिए खरीद दिया था।

ये समय बच्चों और टीचर्स दोनों के लिए ही बेहद सवेदनशील था। मनुज को लगा कि शायद ऑनलाइन क्लास में ईशान थोड़ा खुल जाए मगर वहां पर ईशान का हाल और भी बुरा हो गया था। ऐसा लगता था कि ईशान के अंदर कोई चिंगारी शेष नहीं बची थी।

रिटेस्ट में ईशान किसी तरह से पास हो गया था। मनुज और अंशु ने राहत की सांस ली थी। मगर कोरोना के कारण मनुज का बिज़नेस धीरे धीरे डूबने लगा था। मनुज निराश रहने लगा था और उसे लगने लगा था कि इस सबकी ज़िम्मेदार अंशु हैं। उधर अंशु को लगता था कि मनुज के पास वो दिमाग ही नहीं हैं कि वो हर हाल में बिज़नेस चला ले। ईशान जो घर पर रहने के कारण थोड़ा थोड़ा संभल रहा था अब मम्मी पापा के झगड़ो के कारण फिर से उदास रहने लगा था।

मार्च से जुलाई आ गया था और मनुज का बिज़नेस पूरी तरह डूब गया था। शेयर मार्केट भी नीचे गिरता जा रहा था।

 हालात ये हो गए थे कि मनुज ईशान की फीस भी नहीं भर पा रहा था। तीन महीने तक ईशान के स्कूल से फीस जमा करने के लिए फ़ोन आता रहा था। फिर अचानक से फ़ोन आने बंद हो गए थे। मनुज को लगा शायद स्कूल को उसके हालात समझ आ गए होंगे मगर जब एक दिन मनुज 8 बजे ईशान के कमरे में गया तो देखा ईशान अभी तक भी सो रहा था।

मनुज ने गुस्से में ईशान को झिंझोड़ा और कहा"अभी तक सो रहा हैं"

"मैं किस तरह से तुम्हारे स्कूल का खर्च उठा रहा हूँ"

ईशान आंखे मलते हुए बोला"पापा मैं पिछले दस दिनों से क्लास में जा नहीं पा रहा हूँ"

"आपने फीस जमा नहीं करी ना इसलिये"

मनुज बोला"और तुमने मुझे बताना भी जरूरी नहीं समझा"

तभी अंशु पीछे से बोली" मुझे बताया था ,पर मुझे पता था कि तुम कुछ नहीं कर सकते हो"

मनुज गुस्से में बोला"कम से कम स्कूल जाकर बात तो कर सकता हूँ"

मनुज जब स्कूल पहुंचा तो उसे बहुत देर तक प्रिंसिपल की प्रतीक्षा करनी पड़ी थी। करीब दो घँटे बाद जब मनुज प्रिंसिपल के ऑफिस में पहुंचा तो प्रिंसिपल ने रूखे स्वर में कहा "सर आपने पिछले चार माह से फीस जमा नहीं करी हैं"

"ये कोई सरकारी स्कूल तो हैं नहीं अगर आप लोग फीस नहीं दोगे तो हम स्कूल कैसे चलाएंगे?"

नवंबर आ गया था मगर ईशान की फीस जमा नहीं हो पाई थी। ऊपर से एक सूदखोर महाजन की तरह स्कूल ने इतनी पेनलिटी लगा दी थी कि अब मनुज ने निश्चय कर लिया था कि अपने बजट के हिसाब से वो अब ईशान का स्कूल बदलाव देगा। मगर स्कूल ने बिना पेंडिंग फ़ीस भरे ईशान को टी। सी भी नहीं दिया था।

मनुज शिक्षा के एक ऐसे दलदल में फंस गया था जहां से अब वो चाह कर भी नहीं निकल पा रहा था। उधर ईशान अब एकदम चुप हो गया था। वो बस बिस्तर पर लेटा रहता था। ना ईशान किसी से बात करता था और ना ही टी। वी या मोबाइल देखता था।

मनुज और अंशु अपने इकलौते बेटे की ये हालात देखकर बेहद परेशान थे। एक तरफ कोरोना का कहर था जिसके कारण मनुज चाह कर भी ईशान को किसी डॉक्टर को नहीं दिखा पा रहा था।

घर के अंदर की आबोहवा बेहद प्रदूषित हो गयी थी। चारो तरफ नकारत्मकता और उदासी छाई हुई थी। मनुज को लगने लगा था कि अपने बेटे की हालात का वो खुद जिम्मेदार हैं। उधर अंशु मनुज पर आक्षेप लगा रही थी।

"कैसे पिता हो ,एक बेटे की पढ़ाई का खर्च भी नहीं उठा पा रहे हो"

कौन जिम्मेदार था ईशान की इस हालत का? शिक्षा का व्यपारीकरण या उसके माता पिता की नासमझी या अपनी हदों में ना रहने का नतीज़ा। कारण कोई भी हो ईशान का भविष्य अंधकार में था और कहीं से भी कोई रोशनी की किरण नज़र नहीं आ रही थी।

जिस शिक्षा पर सरकार के अनुसार हर बच्चे का हक होता हैं आज वो ही शिक्षा धन की बेड़ियों में जकड़ी हुई हैं। माता पिता में होड़ लगी हुई हैं कि अपने बच्चे को बेहतर शिक्षा देनी हैं और इसके लिए वो किसी भी हद तक जा सकते हैं।

मगर क्या अपने चादर से बाहर पाँव निकालना सही हैं ? गलती किसकी हैं, क्या सरकारी स्कूलों में शिक्षा का गिरता हुआ स्तर या निजी स्कूलों की चकाचौंध जिसके मकड़जाल में फंस कर ना तो आम आदमी निकल पाता हैं और ना ही खुल कर जी पाता हैं।



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