ज़िंदगी आ रही हूँ मैं
ज़िंदगी आ रही हूँ मैं
कनिका को ऑफिस से बॉस का फ़ोन आया था। अगले हफ़्ते उसे कंपनी के चेयरमेन के सामने प्रेजेंटेशन देनी हैं। कनिका का मूड खराब हो गया था। शनिवार की शाम कनिका को बेहद प्रिय होती हैं। और वो अभी खाना खाकर बैठी ही थी कि इस फ़ोन ने उसका मूड खराब कर दिया था।
तभी बगल के कमरे से उसका 10 वर्ष का बेटा यश आया और उसके गले में झूलता हुआ बोला "मम्मी मुझे क्रिकेट सेट दिला दो "
"अब तो अमेज़न ने डिलीवरी स्टार्ट कर दी हैं।"
कनिका झुंझलाते हुये बोली "यश कितनी गर्मी हो रही हैं, दूर हटो "
"चौबीस घन्टे या तो भूख लगी रहती हैं या कोई फरमाइश लिए खड़े रहते हो "
यश का मुंह जरा सा हो गया और वो उल्टे पैर लौट गया। तभी कनिका की मम्मी आयी और बोली "क्यों अपना गुस्सा बच्चे पर उतारती रहती हैं "
"ऐसे कोई अपने बच्चे के खाने को टोकता हैं "
कनिका बोली "मम्मी क्या करूँ, जब से लॉक डाउन हुआ हैं, ऑफिस वालों ने नाक में दम कर रखा हैं "
"एक मिनट की फुर्सत नहीं हैं "
"अगर कोई साथ में होता तो इतनी टेंशन नहीं होती मुझे "
मम्मी प्यार से सिर पर हाथ फेरकर बोली "क्यों बेटा मैं और यश नहीं हैं तेरे साथ "
कनिका फीकी सी मुस्कान के साथ लेपटॉप हाथ में उठाये, दूसरे कमरे में चली गई।
सामने दुर्गा माँ की फ़ोटो थी। वहाँ जाकर बोली "आपको बस मुझ पर ही तरस नहीं आता ना "
"कितनी ज़िम्मेदारी संभालूँ घर और बाहर की।"
कनिका फिर वहीं बैठ गयी। ना जाने किस बात का तनाव रहता था उसे?
अपने घर परिवार और सहेलियों को देख कर एक ठंडी आह भरती थी। कनिका को लगता था कि बस एक वो ही हैं जिसके जीवन मे कोई उत्साह या उमंग नहीं हैं। काम और ज़िम्मेदारी के अलावा उसके जीवन में और कुछ नहीं था। कनिका का बचपन से सपना था कि विवाह के बाद वो घर का ख्याल रखे और पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर चले। परन्तु उसका पति लापरवाह और आलसी किस्म का इंसान था। उसका खर्चा कमाई से अधिक था। जब तक कनिका उसके साथ थी, दरवाजे पर लेनदारों की भीड़ ही लगी रहती थी। कुछ वर्षों तक कनिका ने यश के खातिर और कुछ वर्षों तक समाज के खातिर रिश्ता चलाया। जब पानी सिर से ऊपर गुजर गया तो कनिका के परिवार ने ही उसका डाइवोर्स करा दिया।
कनिका की नौकरी के कारण, उसे आर्थिक अभाव तो नहीं था पर अब ये नौकरी कनिका के लिए जरूरी हो गयी थी। कनिका डाइवोर्स के बाद से एक विक्टिम मोड में रह रही थी। घर परिवार से उसने खुद को काट लिया था।
कनिका को लगता था कि भगवान ने उसके साथ नाइंसाफी करी है। ना ढंग से खाना, ना पहनना हर समय कनिका को लगता था कि लोग उससे सहानुभूति कर रहे हैं या उसका फ़ायदा उठाना चाह रहे हैं।
अब लॉक डाउन के कारण पिछले तीन माह से कनिका घर पर ही बंद हैं। ना जाने क्यों डाइवोर्स के बाद कनिका इतना डरने लगी थी। ऐसा लग रहा था जैसे इस डर ने उसे और उसकी जिंदगी को बांध कर रखा हुआ हैं।
तभी एक दिन उसकी बेस्ट फ्रेंड श्वेता का फ़ोन आया। कनिका पहले तो उसके फोन को देखकर झुंझला गई। मन ही मन सोचने लगी "मैडम के घर तो परमानेंट मेड हैं। शौकिया टाइम पास नौकरी हैं "
"गप्पे लगाने के लिये मेरी याद आ गयी हैं "
जब फिर से फ़ोन बजने लगा तो हार कर कनिका ने फ़ोन ले लिया और कुछ तल्ख़ी के साथ बोली "बोलो क्या बात हैं "
श्वेता थोड़ी भराई आवाज में बोली "लगता हैं बिजी हो, बाद में कर लूँगी "
कनिका को अपने आप पर ही गुस्सा आया। इसलिये बोली "नहीं नही, ऐसा कुछ नहीं "
"बोलो क्या बात हैं "
श्वेता बोली "कनिका तू बहुत किस्मत वाली हैं "
"तुम्हें दुबारा ज़िन्दगी जीने का मौका मिला हैं "
कनिका व्यंग्य से बोली "भगवान तुम्हें भी मेरे जैसी किस्मत दे "
श्वेता बोली "मैं समझती हूँ, तुम्हारे ऊपर यश की ज़िम्मेदारी हैं पर तुम अकेली कहां हो? "
"आंटी हैं ना तुम्हारे साथ ,तुम्हारे लिए "
कनिका बोली "श्वेता क्या ये बताने के लिये फ़ोन किया था "
श्वेता बोली "कनिका पिछले तीन महीनों से मैं घुट रही हूँ "
"जब से लॉक डाउन हुआ हैं रोहित हर समय सिर पर सवार रहता हैं "
"हर काम में मीन मेख, ताना "
"हर बार ये जताना कि ये सारे ऐशो आराम उसके कारण हैं "
कनिका बेजारी से बोली "फिर गलत क्या हैं इसमे "
श्वेता बोली "गलत कुछ नहीं हैं पर क्या मुझे खुद से सांस लेने का भी अधिकार। नहीं हैं "
"मुझे रोज सुबह पांच बजे उठना पड़ता हैं,मैं चाहूं या नहीं "
"इन तीन महीनों के समय मे ,मैंने ये जाना हैं कि मैं कितनी गंवार और आलसी हूँ "
"मेरे साथ विवाह में रहकर रोहित मुझ पर परोपकार कर रहा हैं "
"तुम सच मे किस्मत वाली हो, कम से कम तुम्हे ऐसे अनचाहे रिश्ते से निजात तो मिल गयी हैं "
"मेरे बढ़ते वजन, बेरौनक होती हुई त्वचा और ढीले पड़ते बदन, हर चीज़ पर व्यंग्य कसता हैं "
"कनिका मेरा दर्द ऐसा हैं जो कोई महसूस भी नहीं कर सकता हैं "
"कुछ ज़ख्म कभी सतही नहीं होते हैं बस आपके आत्मविश्वास को लहूलुहान कर देते हैं "
कनिका ये सब बातें सुनकर सोच रही थी "नमक का रूखा सूखा खा कर भी , कम से कम किसी की धौंस तो नहीं हैं "
तभी यश फिर से कमरे में आया तो कनिका को एहसास हुआ कि सुबह से वो बिना बात दो बार यश पर झुंझला चुकी हैं। यश डरते डरते बोला "मम्मी, नानी सो रही हैं, मुझे भूख लग रही हैं "
कनिका प्यार से बोली "बेटे दो मिनट रुक ,रोटी बना देती हूँ "
यश का चेहरा देखकर ,उसे श्वेता की बात याद आ गई थी। वो भी तो बिना बात ही यश के खाने पर उसे टोकती रहती हैं।
आज कनिका बार बार भगवान का शुक्रिया कर रही थी कि कम से कम मानसिक तनाव तो नहीं हैं अब उसकी जिंदगी में। श्वेता ठीक ही तो कहती हैं कि वो अकेली कहां हैं?
हर समय उसकी मम्मी उसकी ढाल बने खड़ी रहती हैं। यश भी तो कितना समझदार हो गया हैं। जो बच्चा पहले एक चॉकलेट के लिये आसमान सिर पर उठा लेता था अब हर बात को ,हर फटकार को चुपचाप सह लेता हैं। तभी कनिका ने देखा कि उसकी मम्मी लंगड़ाते लंगड़ाते रसोई की तरफ जा रही हैं।
कनिका ने तो ध्यान ही नहीं दिया था । उसने पूछा "मम्मी क्या हुआ? "
मम्मी बोली "बेटा जोड़ो का दर्द हैं , ये तो अब मरने पर ही जायेगा "
कनिका बोली ",इतना ज्यादा, आपने पहले क्यों नहीं बताया "
मम्मी बोली "अरे बेटा, तू दफ़्तर के काम मे इतनी परेशान रहती हैं "
कनिका बोली "अच्छा आप बैठो, मैं रोटी बनाती हूँ "
यश बोला "मम्मी नानी डोसा बना रही हैं "
कनिका को आज लग रहा था कि वो अपने दुख में ही इतनी दुखी थी कि उसे ये भी नहीं पता कि उसके आसपास क्या चल रहा हैं।
खाने के बाद थोड़ा सा लेट ही रही थी कि फिर से बॉस का फोन आ गया। कनिका को बहुत गुस्सा आ रहा था । मन ही मन कनिका सोच रही थी " दफ़्तर में सबको पता हैं ना कि अकेली मैं ही कमाने वाली हूँ । इसलिये दफ़्तर के सारे काम मेरी तरफ ही डेलीगेट हो जाते हैं "।
तभी कनिका की मम्मी चाय का कप लेकर आई तो कनिका बोली "मम्मी मेरे कारण आपको आराम नहीं मिल पाता हैं "
"बॉस को मैं ही दिखाई देती हूँ ना हर काम के लिए "
मम्मी चाय का कप कनिका के हाथ मे पकड़कर वही बैठ गयी और फिर बोली "बेटा तू ऐसा क्यों सोचती हैं? "
"ऐसा भी तो हो सकता हैं कि तेरा काम औरो से अधिक अच्छा हो "
"तेरे बॉस तुझ पर अधिक विश्वास करते हो, इसलिये वो मह्त्वपूर्ण कामो में तेरी सहायता लेते हो "
कनिका बोली "मम्मी लेकिन ये अभी कुछ वर्षो से ही आरंभ हुआ हैं, जब से मेरा डाइवोर्स हुआ हैं "
मम्मी बोली "कनिका पहले तुम हर समय तनाव में रहती थी। काम पर अधिक ध्यान नहीं दे पाती थी "
"अब तुम पूरी तन्मयता से काम करती हो ना "
फिर जाते जाते मम्मी ठिठक कर बोली " कनिका
जो हो रहा हैं जैसा हो रहा हैं उसे खुले दिल से स्वीकारो और देखो कमाल "
कनिका सोच रही थी "मम्मी ठीक तो कह रही थी, ना जाने क्यों मैं क्यों मुझे हर समय नकारत्मक सोचने की आदत क्यों पड़ गई हैं? "
कनिका आज रात बिस्तर पर लेटे लेटे आने वाली ज़िन्दगी का प्रारूप तय कर रही थी। कल से वो ज़िन्दगी का नया अध्याय शुरू करेगी।
सुबह उठकर कनिका ने अपनी सारी पुरानी अलबमो। को स्टोर में रख दिया। फिर दरवाज़ा लगाकर घूमने निकल गई। पूरा मन तन तरोताज़ा हो गया। वापिस आकर कनिका ने चाय बनाई और फिर मम्मी और यश को उठाया।
सब काम ख़त्म करने के बाद वो लेपटॉप लेकर बैठी आज कनिका हवा की तरह उड़ रही थी। बॉस का तीन चार बार आया पर आज कनिका ने बिना झुंझलाहट के सारी बातों और घटनाओं को स्वीकार कर रही थी।
आज ऑफिस का काम भी समय से ख़त्म हो गया था।
शाम को कनिका तैयार हो कर मम्मी को डॉक्टर के पास ले कर गई थी। मम्मी कितनी खुश लग रही थी। शाम को मम्मी फोन पर मौसी से बोल रही थी "मेरी कनु तो मेरा बेटा हैं। इतना ध्यान रखती हैं क्या बताऊँ "
कनिका की आंखे छलछलाई। कितना प्यार करते हैं लोग उसे और वो बेवकूफ इतने समय से बस एक रिश्ते के नाकाम होने का शोक मना रही हैं।
पर अब उसे समझ आ गया हैं। जीवन का मतलब ही पानी की तरह कलकल बहना हैं अन्यथा रुके हुई पानी की तरह रुकी हुई ज़िन्दगी में भी सड़ांध आ जाती हैं।