Ritu Verma

Tragedy Inspirational

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Ritu Verma

Tragedy Inspirational

क्या मैं गलत हूँ?

क्या मैं गलत हूँ?

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नंदिनी रसोई में बर्तनों को बेवजह पटक रही थी.शिवा के लिए नंदिनी का ये व्यवहार कोई नया नही था.जब भी ज़िन्दगी में कोई मुश्किल आती थी. नंदिनी अपना गुस्सा ऐसे ही रसोई में निकालती थी.

दोनो बच्चे कर्ण और सिया अभी स्कूल से नही लौटे थे. शिवा बहुत देर तक बाहर ड्राइंग रूम में बैठ कर सिगरेट सुलगाता रहा था.उसे लग रहा था कि नंदिनी शायद बाहर आकर एक बार तो उससे बात करेगी. मगर जब नंदिनी बाहर नही आई तो शिवा अपनी कार उठा कर बेवजह सड़को पर घूमने लगा था.

शिवा को नंदिनी का व्यवहार समझ नही आ रहा था. शिवा की जितनी भी ऊपर की कमाई थी ,सब बातों का नंदिनी को पता था. तब तो नंदिनी शिवा से कभी कुछ नही कहती थी.

हर करवाचौथ पर नंदिनी को शिवा कोई ना कोई गहना गढ़वा कर देता था. हर गर्मियों की छुट्टियों में शिवा और उसका परिवार घूमने जाता था.दोनो बच्चे महंगे स्कूलों में पढ़ते थे.नंदिनी कोई अनपढ़ ,गंवार महिला नही थी. उसे अच्छे से पता था कि ये गहने और महंगे शौक़ शिवा के वेतन में पूरे नही हो सकते हैं.मगर नंदिनी ये ही बोलती"अरे शिवा तुम क्या कोई अनोखा काम कर रहे हो"

"सब करते हैं और ये तो सरकारी नौकरी के साथ मिलने वाला एक इंसेंटिव हैं"

मगर आज जब शिवा ऑफिस पहुँचा तो पता चला कि उसके ऊपर इन्क्वारी बैठ गयी हैं. शिवा जब अपने बॉस विनोद कपूर के पास गया तो वो बोले"तुम्हे देख समझ कर रिश्वत लेनी चाहिए थी"

"इसमें मैं कुछ नही कर सकता हूँ क्योंकि मेरे साइन तो तुम्हारे अप्रूवल के बाद ही होते हैं"

शिवा को समझ आ गया था कि इस चक्रव्यूह में वो अकेला हैं. उसने आवाज़ को भरसक नरम बनाते हुए कहा"सर मगर आप तो सब जानते हैं कि जो भी हर फाइल को पास कराने पर मिलता था ,उसमें सबका हिस्सा होता था"

विनोद रूखे स्वर में बोले"मगर तुम्हारी नौकरी बचाने के चक्कर मे, मैं खुद को तो मुसीबत में नही डाल सकता हूँ"

शिवा थके कदमो से बाहर निकला .दफ़्तर के सब लोग उसे घूर घूर कर देख रहे थें जैसे उसने किसी का खून कर दिया हो.शिवा चिल्ला चिल्ला कर कहना चाहता था कि इस हमाम में सब ही नंगे हैं मगर तुम लोग अब तक पर्दे से ढके हुए हो.

बाहर रामदीन और सुखपाल आराम से बैठ कर गुटका खा रहे थे. शिवा को देखकर ना वो दोनो चपरासी खड़े हुए और ना ही उन्होंने सलाम ठोका. शिवा को समझ आ गया कि इन्हें भी पता चल गया हैं .

शिवा को घर जल्दी देखकर उसकी पत्नी नंदिनी त्योरियां चढ़ाते हुए बोली"क्या किसी टूर पर जाना हैं"

"इतने थके हुए क्यों लग रहे हो?"

शिवा ने नंदिनी को बुझे स्वर में बोला"मेरे खिलाफ इन्क्वायरी बैठ गयी हैं."

"मुझ पर मुकदमा चलेगा तब तक के लिए मुझे सस्पेंड कर दिया गया हैं"

नंदिनी बोली"है भगवान क्या होगा हमारा अब?"

"सारी दुनिया रिश्वत लेती हैं मगर तुमने ऐसा क्या किया कि पकड़े गए।"

"खर्चे कैसे चलेंगे?"

"और शिवा जब तुम्हे पता था कि ऐसा भी हो सकता हैं तो क्या जरूरत थी, हम तो कम में भी काम चला लेते।"

नंदिनी ऐसे बोलते हुए रसोई में चली गयी और बर्तनों को पटकने लगी थी.

शिवा यू ही बेवजह घूम रहा था, उसे होश तब आया जब उसकी कार घुर्र घुर्र करके एक मोड़ पर रुक गयी थी.शिवा ने देखा डीजल खत्म हो गया था. वो ऐसे ही कार में बैठा रहा.मन ही मन शिवा को लग रहा था कोई तो घर से फ़ोन करेगा.

मगर जब रात के 9 बजे तक कोई फ़ोन नही आया तो शिवा के किसी तरह से कार में डिजील भरवाया और घर की दिशा में कार मोड़ दी.

जब शिवा घर पहुंचा तो घर पर मौन पसरा हुआ था.शिवा को बहुत तेज़ भूख लग गयी थी. सुबह से उसने कुछ नही खाया था.रसोई में लाइट जला कर देखा तो कुछ नही मिला.मजबूरीवश शिवा ने बेडरूम की लाइट जलाई और नंदिनी से कहा"नंदिनी आज खाना नही बनाया क्या?"

नंदिनी अपनी सूजी हुई आंखे मलते हुए बोली"यहां पर हमारे ऊपर इतनी बड़ी मुसीबत आ गयी हैं और तुम्हे खाने की पड़ी हैं"

"किसी से कुछ डिस्कस किया तुमने कि आगे क्या करना हैं"

"कितने फ़ोन कर चुकी हूँ मगर तुम्हे तो कोई फ़र्क ही नही पड़ता हैं"

शिवा गुस्से में बोला"नौकरी से सस्पेंड हुआ हूँ, मरा नही हूँ"

"तुमने बच्चो को भी भूखा ही सुला दिया हैं"

"चलो जल्दी से पुलाव बना दो"

बिना इच्छा के नंदिनी रसोई की तरफ चल पड़ी.शिवा ने बच्चो के कमरे में लाइट जलाई तो देखा दोनो बच्चे कर्ण और सिया जगे हुए थे.सिया अपने पापा को देखकर बोली"पापा, मम्मी आज बहुत उदास थी इसलिए खाना नही बना पर बिस्कुट खाने के बाद भी बहुत भूख लगी हुई हैं"

रात के 10 बजे बच्चो और शिवा ने खाना खाया था.शिवा ने नंदिनी को कहा भी"तुम क्यों नही खा रही हो?"

नंदिनी बोली"मेरे गले से तो नही उतरेगा खाना, मुझे तो ये सोच सोच कर फ़िक्र हो रही हैं कि जब सबको पता चलेगा तो क्या होगा?"

शिवा बोला"तुम बस बच्चों की फ़िक्र करो"

"किस को क्या कहना हैं मैं खुद बोल दूंगा"

खाने के बाद शिवा जब बिस्तर पर लेट गया तो नंदिनी शिवा से बोली" भैया से कल बात कर लेना.उनकी पहचान में कुछ अच्छे वकील भी हैं"

"मुझे तो सपने में भी भान नही था कि तुम दूसरो का गला काट कर ये पैसे लाते हो"

शिवा सब कुछ सुनता रहा और उसका सिर जब दर्द से फटने लगा तो वो बाहर ड्राइंगरूम में बैठ गया.

करीब 2 बजे रात को जब वो अंदर गया तब तक नंदिनी सो चुकी थी.

सुबह अचानक नंदिनी की बड़बड़ से शिवा की आंखे खुली.

"बच्चे स्कूल चले गए हैं. तुम कब तक पड़े रहोगे?"

शिवा उबासी लेते हुए बोला"मैं कल पूरी रात ठीक से सो नही पाया था."

"एक कप चाय बना दो"

शिवा निरुउद्देश्य पहले इधर उधर घूमता रहा और फिर एक वक़ील से सलाह लेना पहुँच गया था.

वकील से शिवा को कोई आशा भरा जवाब नही मिला था.शिवा का बिल्कुल मन नही था कि वो नंदिनी के मायके वालों से मदद ले"

जब शिवा 3 बजे घर पहुंचा तो देखा नंदिनी के भाई भाभी और माता, पिता आये हुए हैं.शिवा ने नंदिनी की तरफ शिकायती नज़रों से देखा. पर नंदिनी नज़रे चुराते हुए रसोई में चली गई.नंदिनी के बड़े भाई शिवा से बोले" अब आगे क्या सोचा हैं?"

शिवा बोला"क्या सोचूंगा?"

"जब तक मामला कोर्ट में हैं , मैं कुछ नही कर सकता हूँ"

"आधा वेतन मिलता रहेगा ,अब बस उसमें ही काम चलाना पड़ेगा"

नंदिनी की माँ रुआंसी सी बोली"अरे मेरी बेटी कैसे काम चलाएगी?"

नंदिनी का बड़ा भाई बोला"शिवा थोड़ा स्मार्टली काम करा होता तो आज ये नौबत नही आती"

"कल मैं तुम्हे सुखदेव के पास ले चलूंगा.उन्होंने ऐसे बहुत से केस निबटाये हैं"

नंदिनी के पिता बोला"अरे भई मैं तो पहले से ही कहता हूँ कि ऊपर की कमाई हराम होती हैं"

"अब भुगतो, कोर्ट कचहरी के चक्कर अलग"

नंदिनी रोते हुए बोली"पापा, मैंने तो कभी शिवा से कुछ नही मांगा"

"मुझे तो पता ही नही था कि वो ये सब करता हैं"

शिवा नंदिनी को जलती आंखों से देख रहा था.

नंदिनी के घर वालो के जाने के बाद शिवा बोला"नंदिनी तुमने झूठ क्यों बोला?"

"क्या तुम्हें पता नही था , तुमने एक बार भी मुझे नही टोका"

"क्या तुम्हारे ये महंगे शौक मैं अपने वेतन में पूरा कर पाता, नही कभी नही"

"तुम्हे और तुम्हारे घर वालो को ये अच्छे से पता था मगर अब जब मेरे ऊपर इन्क्वारी बैठ गयी हैं तो तुम सब पल्ला झाड़ रहे हो"

नंदिनी भी रूखे स्वर में बोली"मर्द तो वो होता हैं जो बाहर की बाते, बाहर ही सुलटा ले "

"अब जब घर मे तुम ये समस्या लेकर आये हो तो मैं भी तो किसी से कहूंगी ना"

"इसमें तुम अपनी ईगो पर क्यों ले रहे हो"

"एक बार भैया से मदद ले लोगे तो कोई छोटे नही जाओगे"

शिवा को अच्छे से पता था नंदिनी से बहस करना बेकार हैं.वो कार लेकर बाहर निकल गया.

कार चलाते हुए वो मन ही मन सोच रहा था कि इतना तो अभी भी हैं उसके पास कि अगर एक साल तो वेतन ना भी मिले तो भी वो अपना और अपने परिवार का एक साल तो आराम से खर्च चला सकता हैं.

मगर हाँ ऐशो आराम पर थोड़ी कटौती करनी पड़ेगी.

ये सोचते सोचते उसने घर की दिशा में कार दौड़ाई तो देखा महक तेज़ तेज़ कदमो से चली जा रही थी.

शिवा ने कार रोकते हुए कहा"महक घर ही जा रही हो ना, कर्ण और सिया को पढ़ाने"

"मैं भी वहीं जा रहा हूँ, चलो कार में बैठ जाओ"

महक शिवा के दोनो बच्चो को ट्यूशन देती थी.महक के बारे में शिवा अधिक कुछ नही जानता था मगर महक के होठों पर सदा ही सदाबहार मुस्कान थिरकती रहती हैं जो शिवा को बेहद पसंद थी.

कार से उतरते हुए महक ने सौंधी मुस्कान के साथ शिवा को धन्यवाद दिया.

शिवा भी महक के पीछे पीछे चला गया.महक दोनो बच्चो को बड़ी लग्न और मेहनत से पढ़ाती थी.

महक जैसे ही पढ़ा कर जाने लगी, नंदिनी दनदनाती हुई आयी और बोली"महक अगले महीने से हम इतनी फ़ीस नही दे पाएंगे"

महक ने प्रश्नवाचक नज़रों से शिवा की तरफ देखा तो नंदिनी बोली"थोड़ी निजी बात हैं"

महक ने अपने घुंघराले बालों को कानो के पीछे करते हुए कहा, सौंधी हंसी के साथ कहा" कोई बात नही , अगर एक आध महीने की बात हैं तो मैं एडजस्ट कर लूंगी क्योंकि सिया और कर्ण पर मैंने बहुत मेहनत करी हैं"

नंदिनी कंधे उचकाते हुए बोली"ना जाने कितना समय लगेगा"

महक जाने लगी तो शिवा उसके पीछे पीछे जाते हुए बोला"आइए मैं आपको छोड़ देता हूँ"

महक बोली"अरे आप क्यों इतनी तकलीफ उठा रहे हैं"

शिवा बोला"क्योंकि मैं अपनी नौकरी से सस्पेंड हो चुका हूँ"

"खाली हूँ यू ही घूमता रहता हूँ, तुम्हे ही छोड़ देता हूँ कम से कम तुम जल्दी तो पहुंच जाओगी"

"जब तक केस चलेगा तब तक मैं समाज और अपने परिवार की नज़रों में अपराधी हूँ"

महक थोड़ा सा अचकचा गई मगर फिर सम्भलते हुए बोली"अरे तो क्या हुआ ये उतार चढ़ाव तो ज़िन्दगी में आते जाते रहेंगे"

शिवा उदास हंसी हंसते हुए बोला"हाँ मगर नंदिनी के हिसाब से मैं ही दोषी हूँ इन सब चीज़ों का"

महक बोली"एक बात पूछूं अगर आपको बुरा ना लगे?"

शिवा बोला"जरूर पूछो?"

महक झिझकते हुए बोली" क्या आप सच मे दोषी हैं"

शिवा बोला"हाँ हूँ, मगर इस बात के लिए क्या अब फांसी पर चढ़ जायूँ"

"मैं अपने परिवार को सब सुविधा देना चाहता था"

"मेरे परिवार में सबको पता था, मगर तब सब लोग मज़े कर रहे थे"

"आज हर कोई मुझे दोष दे रहा हैं"

महक धीमे स्वर में बोली"जो चीज़ गलत हैं वो सदैव गलत ही रहेगी चाहे पूरी दुनिया कर रही हो"

शिवा व्यग्य करते हुए बोला"अरे मैं तो भूल गया था कि मैं ही ग़लत हूँ"

महक बोली"गलत आप नही हैं, आपकी सोच हैं"

"समस्या आयी हैं तो स्वीकार करे और उस पर काम करे, खुद को या दूसरों को दोषी मानने से इसका समाधान नही हो पाएगा"

"और हाँ जब तक मुझे नया ट्यूशन नही मिल जाता तब तक मैं सिया और कर्ण को 50 प्रतिशत फ़ीस में भी पढ़ा दूंगी"

शिवा पूरी रात महक के बारे में सोचता रहा और ना जाने रात के किस पहर में उसकी आंख लग गयी थी.

अब शिवा का ये रोज़ का नियम हो गया था कि वो सुबह उठकर बच्चों को तैयार करता, फिर नहा धो कर वकीलों के चक्कर काटता मगर कोई नतीजा नही निकल रहा था.हर रोज शाम को शिवा बड़ी बेसब्री से महक का इंतजार करता था.ना जाने क्यों शिवा को महक की मीठी मुस्कान बेहद सुकून देती थी.

रात दिन नंदिनी के तानों से शिवा अजीज आ चुका था. नंदिनी को लगता था जब से शिवा का कोर्ट में केस चल रहा था तब से शिवा ने खुद को सबसे दूर कर रखा था.

अगर शिवा रात में नंदिनी के करीब भी आने की कोशिश करता तो नंदिनी उसे झिड़क देती"बस मेरी जगह इतनी ही हैं तुम्हारे जीवन मे"

"बस हमारा रिश्ता बस शारीरक जरूरतों पर ही टिका हुआ हैं"

शिवा को अपने ऊपर ही बेहद गुस्सा आता मगर वो क्या करे, अनजाने में ही वो महक की तरफ खींचा जा रहा था.

आज भी महक के निकलने के बाद शिवा कार उठा कर चल पड़ा और महक से बोला"महक तुम्हे घर पर ड्राप कर देता हूँ"

महक मुस्कुराते हुए बैठ गयी और शिवा से उसके कोर्ट केस के बारे में बात करने लगी. कार से उतरते हुए महक ने शिवा से कहा"आज आप मेरे घर चलिए, एक कप चाय पी कर जाइए"

शिवा बिना नानुकुर के महक के साथ उसके घर चला गया.दरवाज़ा 55 वर्ष की एक महिला ने खोला था.शिवा ने अंदर जाकर देखा, जितना बड़ा शिवा के घर का ड्राइंगरूम हैं ,उतने में ही महक का घर सिमट गया था.वो ही महिला बड़े सलीके से चाय और नाश्ता ले आयी थी.

महक ने ही परिचय कराया "शिवा जी ये मेरी सास हैं"

तभी अंदर से व्हील चेयर पर एक युवक आया और महक से बोला"कौन आया हैं महक?"

महक बोली"ये मेरे पति संकल्प हैं"

फिर शिवा को महक की सास ने वहीं रात के खाने पर रोक लिया था. खाने बेहद स्वादिष्ठ और प्यार से परोसा गया था.

शिवा को महक पर बहुत दुख हो रहा था.उम्र ही क्या थी महक की, हद से हद 27-28 वर्ष.कैसे काटेगी अपनी आने वाली ज़िन्दगी एक अपाहिज़ पति के साथ.शिवा को महक में एक ऐसा साथी नज़र आने लगा जो उसी की तरह अकेला हैं.

अब अकसर महक को शिवा उसके घर छोड़ने जाता था.एक दिन शिवा महक से बोला"महक क्या तुम्हें भगवान से शिकायत नही होती कि तुम्हे इतना संघर्ष करना पड़ रहा हैं"

महक बोली"मुझे तब ये शिकायत होती अगर मेरे अंदर हिम्मत और साहस का अभाव होता"

"बुझदिल लोग ही अपनी परिस्थिति की ज़िम्मेदारी दूसरों पर डाल देते हैं"

"मैं बहुत खुश हूँ, जो भी हैं जैसा भी हैं मैं डटी हुई हूँ"

शिवा लालसा भरी नज़रों से देखते हुए महक से बोला"क्या कभी अकेलापन नही लगता तुम्हे?"

महक बोली"शिवा मेरा अकेलापन किसी का मोहताज़ नही है

"मैं इतनी मजबूर ना पहले थी और ना अब हूँ कि एक छोटा सा तूफान मुझे तिनके की तरह उड़ा कर किसी के भी घर के आंगन में पटक दे"

"मेरे घर की नींव और छत बेहद मजबूत हैं क्योंकि मैं अपनी परिस्थिति को स्वीकार करके उस पर काम करना शुरू कर देती हूँ"

"क्यों हुआ, कौन जिम्मेदार हैं या इधर उधर अपनी समस्या को गाना व्यर्थ हैं"

"अगर कोई समस्या हैं तो उसे स्वीकार करे और उस पर कार्य करना आरंभ कर दे"

"आज नही तो कल संकल्प ठीक हो जाएंगे और अगर नही भी होते हैं, उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होना मैं सीखा दूंगी"

शिवा बोला"शायद तुम ने ठीक ही कहा था, गलत मेरी सोच ही हैं"

"समस्या के आते ही मैंने खुद को विक्टिम समझना शुरू कर दिया और इधर उधर सहानुभूति ढूंढने लगा"

"थैंक यू महक मुझे सही रास्ता दिखाने के लिए"

महक फिर से सौंधी मुस्कान बिखरते हुए बोली"इस बात पर चाय तो बनती हैं"

शिवा बोला" बाद में, आज मुझे भी अपने घर की नींव और छत को अपनी हिम्मत, साहस और विश्वास से मजबूत बनाना हैं"

मन ही मन शिवा मनन कर रहा था" एक छोटा सा सोच में बदलाव उसे कितनी ऊर्जा प्रदान कर रहा हैं"

"कल से वो सकारात्मक ऊर्जा के साथ इस समस्या को सुलझाएगा और एक बार उसकी नौकरी बहाल हो जाएगी तो फिर ऊपर की कमाई से दो गज दूरी बना कर रखेगा"

"हाँ ग़लती तो उसकी ही हैं और वो ही इस गलती को ठीक करेगा"

"सबसे पहले नंदिनी से सलाह लेकर कल दूसरे वकील के पास जाता हूँ"

ये सोचते हुए शिवा ने कार अपने घर के सामने रोक दी थी.



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