Ritu Verma

Others

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Ritu Verma

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फांस

फांस

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कृतिका, वंशिका और आरोही तीनों ही आज चाह कर भी अपने चेहरे की खुशी को छिपा नहीं पा रही थी। कारण था उनके विद्यालय में आज प्रिंस नाम के एक नए अध्यापक ने जॉइन किया हैं। कृतिका, वंशिका और आरोही तीनों ही इस स्कूल में पिछले पांच वर्ष से पढ़ा रही थी। तीनों ही तीस की लपेट में थी वो अलग बात हैं पिछले पांच वर्ष से ही उनकी उम्र 25 वर्ष पर ही आकर अटक गई थी।

कृतिका अंग्रेजी विषय पढ़ाती थी। सेंट्रल स्कूल की ये नौकरी उसके लिए बेहद जरूरी थी। उसके पापा का कानपुर में छोटा मोटा बिज़नेस था। कृतिका हर माह अपने वेतन का बड़ा हिस्सा कानपुर ही भेजती थी। कृतिका के परिवार को उसके विवाह की कोई जल्दी नहीं थी पर कृतिका का मन था कि उसका भी परिवार हो ,एक जीवनसाथी हो। लखनऊ में स्थित जब उसने ये सेंट्रल स्कूल जॉइन किया तो कृतिका को ये ग़लतफ़हमी थी कि अब वो पूरी तरह से आज़ाद हैं परन्तु इस स्कूल में आकर उसकी ग़लतफ़हमी जल्द ही दूर हो गई थी। महीनों तक वो स्कूल के कैंपस से बाहर नहीं निकल पाती थी। कृतिका चाह कर भी अपने लिए कुछ नहीं कर पा रही थी। कृतिका का साँवला रंग पिछले पांच वर्षों में और अधिक गहरा हो गया था और लखनऊ की आबोहवा ने उसके केशों को और अधिक रूखा बना दिया था।

आरोही पतली दुबली तन्वी सी लगती थी। चाय जैसी रंगत औऱ लंबे सीधे बाल, चेहरे पर एक भोली सी मुस्कान । अभी भी ऐसा लगता था कि वो पढ़ ही रही हो। आरोही के घर मे पिता कैंसर से लड़ रहे थे। भाईयों को उसके लिए वर तलाशने की फ़ुर्सत नहीं थी। छुट्टियों में भी उसका अपने घर गोरखपुर जाने का मन नहीं करता था। स्वभाव से बेहद सीधी थी इसलिये पहले भी दिल पर चोट खा चुकी थी।

वंशिका का घर वाराणसी में था और अगर कहे तो वंशिका ही तीनों में सबसे अधिक सुंदर और स्टाइलिश थी। भगवान की कृपा से उसके घर में कोई समस्या भी नहीं थी पर उसके लिए कोई वर नहीं तलाश रहा था क्योंकि उसके परिवार में लव मैरिज करने का चलन था। वंशिका के ऊपर लव मैरिज करने का इतना प्रेशर था कि वो बहुत बार सोशल मीडिया साइट्स के जरिये उल्टे सीधे लड़को से मिल चुकी थी।

वंशिका, कृतिका और आरोही स्कूल में त्रिमूर्ति के नाम से मशहूर थी। तीनों ही एक दूसरे को बहुत अच्छे से समझती थी। तीनो के क्वार्टर भी कैंपस में एक दूसरे से लगे हुए थे। तीनों के ही मन में अपने परिवार के प्रति एक आक्रोश छुपा हुआ था। अक्सर तीनो छुट्टियों में भी यहीं बनी रहती थी या फिर एक साथ ही घूमने निकल जाती थी। ज़िन्दगी यूं ही नीरस सी चल रही थी कि तभी प्रिंस का पदार्पण हुआ और तीनों की आंखों में सपने पलने लगे। जब इन तीनों की नौकरी लगी थी तो उनके सपने अपने विवाह को लेकर बहुत ऊंचे थे। परन्तु घर वालों की लापरवाही, स्कूल की किच किच, हाथ से सरकती हुई उम्र और आस पास अपने से कम उम्र की लड़कियों की शादी होता देखकर बस ये त्रिमूर्ति अब विवाह करना चाहती थी ।

आज जब तीनों कृतिका के घर पर चाय पी रही थी तो वंशिका बोली "क्यों ना इस रविवार को प्रिंस को डिनर पर बुला ले "

कृतिका बोली "अरे अच्छा आईडिया हैं पर उसे ऐसा ना लगे कि हम उससे दोस्ती करने के लिए मरे जा रहे हैं "

आरोही बिस्कुट को चाय में डुबोते हुए बोली "लगता भी हैं तो लगे, इतने वर्षों बाद कुछ ऑय टॉनिक मिला हैं "

"यहाँ तो सब शादीशुदा पुरुष ही हैं या फिर महिलाएं "

"देखना वो भी हमसे दोस्ती का इच्छुक होगा "

कृतिका कुछ सोचते हुए बोली "काश वो अंग्रेजी विभाग में होता पर वो तो आरोही के गणित विभाग में हैं "

वंशिका बोली "आरोही तुम्हारी ज़िम्मेदारी हैं अब उसे इनवाइट करने की "

अगले दिन प्रिंस जैसे ही स्टाफरूम में आया, स्कूल की स्टाफ सेक्रेटरी ने उसका परिचय सबसे कराया था। नेविब्लू पैंट और ग्रे रंग की शर्ट में उसका गोरा रंग बेहद खिल रहा था। प्रिंस का लंबा कद, घने बाल और आजकल के फ़ैशन के अनुसार उसके चेहरे पर दाढ़ी थी जो उसे बेहद सूट करती थी। तभी कपूर मैडम ने पूछा "प्रिंस आप शादीशुदा हो या बैचलर "

प्रिंस हंसते हुए बोला "अभी तो बैचलर ही हूँ "

कपूर मैडम बोली "फिर तो हमारी त्रिमूर्ति में से किसी एक मूर्ति के साथ इस विद्यालय के प्रांगण में सदैव के लिए स्थपित हो जाओ "

प्रिंस ने गहरी नज़रों से उस तरफ देखा जहाँ पर त्रिमूर्तियाँ झेंपी हुई सी समोसा कुतर रही थी।

कृतिका,आरोही से होते हुए प्रिंस की नज़र वंशिका पर अटक गई थी। ये बात कृतिका और आरोही ने भी महसूस करी और उनका सर्वाग जल उठा। वंशिका मन ही मन इतरा रही थी और उसे लग रहा था अब तो उसकी विजय निश्चित हैं।

प्रिंस का वर्कस्टेशन आरोही से लगता हुआ था क्योंकि दोनों का सब्जेक्ट मैथ्स ही था। लास्ट पीरियड में आरोही ने प्रिंस को स्कूल के नियम कायदों से अवगत कराया।

प्रिंस आरोही की आंखों में झांकता हुआ बोला "तुम तो मेरी मेंटर हो आरोही , वेरी क्यूट मेंटर जो अभी भी बच्ची ही लगती हैं "

आरोही प्रिंस की बात सुनकर पुलकित सी हो उठी और उसने छुट्टी की घण्टी बजते बजते प्रिंस को डिनर पर इनवाइट कर दिया था।

शाम को चाय पीते हुए आरोही ने विजय भाव से ये बात अपनी सहेलियों को बताई तो सब बेहद खुश हो गई थी। उनके शुष्क और मरुस्थल जीवन मे प्रिंस एक ठंडी हवा का झोंका बन कर आया था। नहीं तो इस स्कूल में कोई भी अविवाहित टीचर आता ही नहीं था।

घर जाकर कृतिका ने चेहरे पर बेसन का लेप लगाया और रूखे बालों में नारियल का तेल। कॉलेज में वो मृगनयनी के नाम से मशहूर थी क्योंकि तब वो अपनी आंखों को काजल और लाइनर की मदद से एक ड्रामेटिक लुक देती थी परन्तु अब तो उसका कुछ मन नहीं करता था स्कूल ने और जीवन की परिस्थितियों ने उसके जीवन का रस सोख लिया था।

उधर आरोही ने सोचा कि कल से वो जूड़ा बना कर जाएगी और साड़ी पहनेगी ताकि वो प्रिंस को क्यूट के साथ साथ सेक्सी भी लगे। वंशिका को अपनी ख़ूबसूरती पर पूरा भरोसा था बस उसे थोड़ा सा कपड़े पर और अधिक ध्यान देना होगा।

तीनो ने ही जब अगले दिन स्टाफरूम में प्रवेश किया तो मिसेज कपूर ने बोला "क्या बात हैं प्रिंस के आते ही स्टाफरूम का मिज़ाज ही बदल गया "

तीनों झेंप गयी और तभी प्रिंस ने स्टाफरूम में प्रवेश किया और आज उसकी नज़रों को तीनों ही बांध रही थी। आज धीरे धीरे प्रिंस की बात वंशिका और कृतिका से भी हुई।

रविवार की रात तीनो सहेलियों खूब ढंग से तैयार हुई थी। वंशिका की पिंक कलर की साड़ी उसकी ही रंगत में मिलजुल गई हैं वहीं कृतिका मेहरून रंग के पैंट सूट में बेहद मोहक लग रही थी। उसने अपने बालों को ऐसे ही खोल दिया था और आंखों को काजल से बाँध कर एकदम कमनीय बना दिया था,वहीं आरोही ने गाउन पहना हुआ था। प्रिंस टाइम से आ गया था और तीनों के लिए छोटे छोटे गिफ्ट लाया था। प्रिंस जब डिनर करके वापिस गया तो तीनों का दिल अपनी मुट्ठी में बंद करके चला गया था।

अब चारों जने एक साथ लंच करते थे। तीनों सहेलियों में प्रिंस को इम्प्रेस करने का कम्पटीशन चल रहा था और जिस कारण तीनों आजकल एक दूसरे से कटी कटी रहने लगी थी। तीनों सहेलियां जो पहले रसोई से दूर भागती थी ,अब प्रिंस के लिए नित नए डिश बना कर लाती थी। प्रिंस को भला क्या आपत्ति हो सकती थी, उसे तो इतनी इम्पोर्टेंस कभी भी नहीं मिली थी। प्रिंस की गर्लफ्रेंड ने इंजीनियर का रिश्ता मिलते ही उसे टाटा कर दिया था। प्रिंस प्रशासनिक सेवा की तैयारी ही कर रहा था। पर जब दो प्रयासों के बाद भी प्रिंस सफल नहीं हो पाया तो केंद्रीय स्कूल में चयन होते ही वो यहाँ चला आया था।

आज प्रिंस लेसन प्लान बनाने का प्रयास कर रहा था कि तभी आरोही आई और बोली "ये मैं कर दूंगी, तुम परेशान मत हो "

प्रिंस बोला "तुम सच मे बहुत प्यारी हो, आज मेरी तरफ से तुम्हे ट्रीट मिलेगी,कहीं बाहर चलोगी? "

आरोही बेहद खुश हो गई थी। आरोही ने जानबूझकर कर ये बात कृतिका और वंशिका से छुपा ली थी क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि आज की मुलाकात फिर से कोई फ्रेंड्स का गेट टूगेदर बन जाए। अगर प्रिंस को सबको ले चलना होता तो वो अवश्य बोलता। शाम को आरोही जैसे ही तैयार होकर निकल रही थी कि कृतिका और वंशिका सामने से आती हुई दिखाई दी। दोनों को देखकर आरोही सकपका गयी। जब दोनों ने प्रश्नात्मक मुद्रा में उसे देखा तो आरोही बोली "अरे मम्मी की कोई दूर की रिश्तेदार के यहाँ रहती हैं, आज उन्होंने बुलाया था "

दोनों को आरोही का व्यवहार कुछ अजीब लगा पर वो चुप लगा गई। आरोही और प्रिंस ने उस शाम खूब सारी बाते करी, एक बार भी प्रिंस ने कृतिका या वंशिका का ज़िक्र भी नहीं किया।

चलते हुए आरोही बोली "मैंने कृतिका और वंशिका को इस ट्रीट के बारे में कुछ नहीं बताया हैं "

प्रिंस बोला "अच्छा किया तुमने "

"ज़रूरी नहीं हर बात सबको बताई जाए "

आरोही का मन आज सपनो के घोड़े पर बैठ कर अपने शादी के मंडप पर पहुंच गया था। उसे अच्छे से पता था कि घर पर किसी को कोई एतराज नहीं होगा।

वो मन ही मन प्रिंस के क्वार्टर या फिर अपने घर को कैसे सजायेगी, इसकी भी तैयारी कर ली थी।

अब आरोही ना जाने क्यों कृतिका और वंशिका से खींची खींची रहती थी। वो नहीं चाहती थी कि कृतिका और वंशिका उसके और प्रिंस के बारे में कुछ जाने। अब वो उसकी फ़्रेंड्स नहीं कंपटीटर बन गयी थी। प्रिंस तीनो लड़कियों के लिए एक मेडल था ,जिसके गले मे भी ये मेडल पड़ेगा उसी की जीत होगी।

अब जब चारों जन लंच करने बैठते तो माहौल में एक अलग सा तनाव बना रहता था। प्रिंस को अच्छे अच्छे पकवान बना कर खिलाने के लिए तीनो फ्रेंड्स में होड़ लगी रहती थी। प्रिंस तीनो के साथ एक समान ही व्यवहार करता था और प्रिंस के मन मे क्या चल रहा हैं तीनो को ही नहीं पता था।

आज कृतिका का जन्मदिन था। हरे रंग की साड़ी में आज वो सच मे बेहद खूबसूरत लग रही थी। जैसे ही वो स्टाफरूम में घुसी प्रिंस ने बोला "कृतिका तुम्हे देखकर मुझे सदैव बिपाशा बसु याद आ जाती हैं पर आज तो तुमने उसे भी पीछे छोड़ दिया हैं "

कृतिका खिलखिलाकर हंसते हुए अपने बाल झटकने लगी। वंशिका और आरोही ये बात सुनकर जल भुन गई थी ।

प्रिंस फ़्लर्ट करते हुए बोला "शाम को क्या चारों डिनर के लिए कहीं मिले "

वंशिका बोली "अरे मेरी तो एक्स्ट्रा क्लास है "

आरोही बोली "मुझे तोआज एक वर्कशॉप के लिए जाना हैं, आते आते देर हो जाएगी "

प्रिंस आगे बोला "शाम को क्या कर रही हो कृतिका? "

कृतिका बोली "कुछ नही "

"तो फिर आज शाम को मेरे घर डिनर पर आ जाना "

आरोही और वंशिका ने झूठ ही बोला था कि उनकी एक्स्ट्रा क्लास हैं या वर्कशॉप हैं पर अब वो कुछ कह नहीं सकती थी।

उस रोज़ शाम को कृतिका ने वाकई विपाशा बसु की तरह श्रृंगार किया था। प्रिंस कृतिका को देखकर पलके झपकाना भूल गया था। उस दिन शाम को कृतिका और प्रिंस के बीच बहुत कुछ घटित हो गया था। कृतिका को लगा जैसे आज 31 वर्ष में वो लड़की से औरत बन गयी थी।

अगले दिन स्टाफरूम में कृतिका प्रिंस को प्यार भरी नजरों से देख रही थी। कृतिका को लग रहा था कि उसकी ज़िन्दगी में एक बहुत खूबसूरत मोड़ आ गया हैं। प्रिंस पर कृतिका के साथ बेहद नॉर्मल ही था।

कृतिका को लगा शायद प्रिंस ये सबके सामने जाहिर नहीं करना चाहता हैं, इसलिये उसने भी ये बात अपने तक ही सीमित रखी।

लंच के बाद बस वंशिका और प्रिंस ही स्टाफरूम में रह गए थे। वंशिका कॉपी चेक करने में व्यस्त थी। प्रिंस बहुत देर से कोशिश कर रहा था पर उससे लैपटॉप पर परीक्षा का पेपर टाइप नहीं हो रहा था। उसे इन सब कामो की आदत नहीं थी। प्रिंस को पता था वंशिका इन सब कामो में अच्छी हैं।

अचानक से प्रिंस बोल उठा "वंशिका तुम इतनी खूबसूरत हो, तुम इस स्कूल में क्या कर रही हो? "

वंशिका बोली "जो तुम कर रहे हो "

प्रिंस बोला "तुम्हारी मदद के बिना तो मैं वो भी नहीं कर पाऊंगा "

वंशिका ना चाहते हुए भी प्रिंस की मदद करने के लिए उठ गई। प्रिंस बात बढ़ाते हुए बोला "वंशिका तुम्हारे कितने बॉयफ्रेंडस हैं? "

वंशिका बोली "क्यों? "

प्रिंस बोला "मुझे भी अर्जी लगानी हैं "

वंशिका थोड़ा खीजते हुए बोली "तुम हो तो मेरे फ्रेंड "

प्रिंस बोला "मुझे तुम्हारा बॉयफ्रेंड बनना हैं "

वंशिका कुछ ना बोली। प्रिंस आगे बोला "कृतिका और आरोही बहुत अच्छी हैं पर बस मेरी दोस्त हैं "

"तुमसे कभी खुल कर बात करने की हिम्मत ही नहीं हुई "

वंशिका ना चाहते हुए भी अपनी तारीफ़ सुनकर बर्फ़ की तरह पिघल गयी और प्रिंस के पूरे काम की ज़िम्मेदारी स्वयं ले ली थी।

प्रिंस आगे बोला "वंशिका तुम सोच रही होगी, मैं कामचोर हूँ पर दरअसल ये स्कूल की नौकरी मेरी मंजिल नहीं हैं, मुझे एडमिनिस्ट्रेशन में जाना हैं इसलिए मेरा सारा ध्यान उसकी परीक्षा की तैयारी में ही रहता हैं "

वंशिका ने भोलेपन से कहा "तुम्हारा सारा टाइपिंग का काम अब मैं कर दिया करूँगी। तुम अपना सारा समय एग्जाम की तैयारी में लगाओ "

वंशिका ने अपनी और प्रिंस के मध्य हुई बात किसी को भी नहीं बताई थी।

प्रिंस के जो भी स्कूल के अतिरिक्त कार्य होते थे वो अब त्रिमूर्तियाँ कर देती थी। मज़े की बात ये थी कि तीनों ही ये बात एक दूसरे को भी नहीं बताती थी। प्रिंस को लग रहा था, घर से अच्छी तैयारी तो वो यहाँ कर पा रहा है। घर पर पापा के ताने सुनो और मम्मी के काम भी करो। अच्छा किया उसने ये स्कूल की नौकरी जॉइन कर ली हैं। स्कूल में बस प्रिंस पढ़ाता था बाकी काम वंशिका और आरोही कर देती थी। खाना भी अधिकतर कृतिका उसके लिए बना देती थी। आठ महीने आठ दिन की तरह बीत गए थे। प्रिंस का एग्जाम बहुत अच्छा गया था। उसे पूरी उम्मीद थी कि इस बार जरूर वो सफल होगा।

प्रिंस से ज्यादा आरोही, वंशिका और कृतिका को प्रिंस के रिजल्ट की चिंता थी। तीनो ने ही अपने भविष्य के सपने प्रिंस के नाम कर रखे थे। जैसी प्रिंस को आशा थी वैसा ही हुआ था, प्रिंस का चयन हो गया था। प्रिंस बेहद खुश था । उस रात प्रिंस ने आरोही, वंशिका और कृतिका को शानदार दावत दी थी। तीनों ही डिनर के समय ये ही सोच रही थी कि प्रिंस जाने से पहले क्या कुछ वादा करके जाएगा।

कृतिका को लगता था कि प्रिंस उसके अलावा और किसी के भी इतना करीब नहीं होगा। स्कूल का काम तो कोई भी कर सकता हैं पर देखभाल हर किसी के बस की बात नहीं हैं। उधर वंशिका को अपनी खूबसूरती पर पूरा विश्वास था तो आरोही को अपने टैलेंट और अल्हड़पन पर भरोसा था।

प्रिंस दो दिन बाद सारी कागज़ी कार्यवाही करके अपने शहर चला गया था। तीनों ही प्रिंस के मैसेज और फोनकॉल की प्रतीक्षा करती पर प्रिंस हमेशा कॉन्फ्रेंस कॉल या ग्रुप वीडियो कॉल करता था, जिसमे सब ही बेहद फॉर्मल रहते थे।

फ़ोन के बाद तीनों ही अपने अपने नंबर से प्रिंस को मैसेज करती थी पर अधिकतर वो रीड करके मैसेज नहीं करता था। उसका एक ही मैसेज होता था कि वो अभी बहुत बिजी हैं।

प्रिंस अपनी नई ज़िन्दगी में और नई नौकरी में व्यसत हो गया था। उसे त्रिमूर्तियों की याद आती थी पर समस्या ये थी कि उसे तीनों ही पसन्द थी वो किसी एक का भी दिल नहीं तोड़ सकता था। इसी डर से वो वापिस उनसे मिलने नहीं जा रहा था। प्रिंस को पता था कि तीनों ही उससे उम्मीद लगाए बैठी हैं।

धीरे धीरे प्रिंस के कॉल आने कम हो गए थे पर आरोही, कृतिका और वंशिका के रिश्ते में प्रिंस नाम की फांस इतनी गहरी थी कि अब वो चाह कर भी नहीं निकल पा रही थी। 5 माह बीत गए थे पर उस फांस की टीस बरकरार थी। तीनो ही अपने को ठगा हुआ महसूस करती थी।

स्कूल में एनुअल फंक्शन की तैयारी जोरों से चल रही थी। तभी बाहर से शोर सुनाई दिया, कृतिका ने देखा कि प्रिंस खड़ा हुआ हैं, इससे पहले वो कुछ बोलती साथ खड़ी हुई लड़की देखकर वो रुक गई।

प्रिंस बोला "जाह्नवी ये त्रिमूर्तियों की एक मूर्ति कृतिका हैं, जिसने मेरा बहुत ध्यान रखा "

"और ये मेरी पत्नी जाह्नवी "

तब तक आरोही और वंशिका भी आ गई थी। तीनों की ही आंखों में ढेर सारे प्रश्न थे।

प्रिंस ने कहा "आज रात तुम सबका डिनर हमारे साथ हैं "

तीनो का मन नहीं था पर फिर भी ना जाने क्या सोच कर वो लोग डिनर पर चली गई थी। आखिर प्रिंस ने ऐसा क्यों किया? क्यों झूठे सपने दिखाए, क्यों तारीफ करी? और सबसे महत्वपूर्ण बात क्यों उन्होंने एक दूसरे को ये बात नहीं बताई थी।

रात में डिनर के समय प्रिंस अपनी पत्नी की तरफ देखते हुए बोला "देखो तीनो ही इतनी सुंदर और अच्छी हैं । तीनों ही मेरी दोस्त, इसलिये मैं किसी का भी दिल नहीं तोड़ सकता था "

"इस त्रिमूर्ति को खंडित करने का पाप मैं नहीं कर पाया, इसलिए दोस्ती को दोस्ती तक ही सीमित रखा "

तीनो मन ही मन सोच रही थी कि मतलब उनका शक सही था दोस्ती की आड़ में प्रिंस तीनो को बेवकूफ बनाता गया ।

प्रिंस तो अपने हिस्से का गिलट बड़ी आसानी से क्लियर करके चला गया पर जो फ़ांस आरोही, वंशिका और कृतिका के मन में थी तो वो अब और गहरी हो गई थी। कृतिका सोच रही थी कि अगर वो तीन ना होकर एक होती तो आज वो प्रिंस के साथ जरूर होती। आरोही सोच रही थी कि क्यों वंशिका और कृतिका ने प्रिंस से अपनी नज़दीकी के बारे में नहीं बताया। वहीं वंशिका को लग रहा था कि अगर वो दोनों वास्तव में उसकी सच्ची दोस्त होती तो उसे यू अंधेरे में नहीं रखती।



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