Ritu Verma

Inspirational

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Ritu Verma

Inspirational

मार्बल

मार्बल

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नीलाक्षी अपनी बालकनी में बैठी हुई चाय का लुत्फ़ उठा रही थी। पूरे सात सालों के लंबे संघर्ष के बाद वो अपने आप को कुछ कुछ समझा पाई थी। उसके कारण उसकी छोटी बहनों के जीवन पर कोई प्रभाव ना पड़े, इस कारण नीलाक्षी ग्रेटर नोएडा के छोटे से फ्लैट में अकेले ही शिफ़्ट हो गई थी।

नीलाक्षी का परिवार पहले तो उसके इस फैसले से खुश नहीं था। परन्तु धीरे धीरे उन्होंने भी नीलाक्षी के फैसले को मान लिया था।

तभी दरवाजे की घँटी बजी, नीलाक्षी ने जैसे ही दरवाज़ा खोला तो सिद्धार्थ को समान से लदेफदे देखकर बरबस मुस्कुरा उठी। सिद्धार्थ मुस्कुराते हुए बोला "मैडम , आप शादी क्यों करेगी? जब एक नौकर आपकी सेवा में चौबीसों घन्टे हाज़िर ही हैं "

नीलाक्षी खिलखिलाकर कर हँस पड़ी और उसकी वो खिलखिलाहट सिद्धार्थ के दिल में फिर उतर गई। नीली आंखे, गोरा रंग, घुंघराले बाल, सामान्य से थोड़ा अधिक वजन जिसके कारण वो और भी अधिक मनमोहक लगती थी। सिद्धार्थ तो कब से नीलाक्षी से विवाह करना चाहता हैं परंतु नीलाक्षी के अनुसार वो शादी के लिये नहीं बनी हैं। परन्तु अब सिद्धार्थ ने भी नीलाक्षी को जैसी वो हैं ऐसे ही अपना लिया था।

नीलाक्षी ट्रे में चाय और नाश्ता सजा कर ले आयी। सिद्धार्थ मुस्कुराते हुए बोला " मार्बल कुछ इरादा बदला या नहीं"

"यार मैं तन का भूखा नहीं हूँ, मुझे तुमसे प्यार हैं "

नीलाक्षी बोली "जानती हूँ , पर सिद्धार्थ शरीर की अपनी जरूरतें होती हैं"

"आज तुम भावनाओं में बह कर कह रहे हो पर कल ये रिश्ता तुम्हें एक बोझ लगेगा"

सिद्धार्थ जानता था कि नीलाक्षी सही कह रही हैं पर एक अनोखा सा लगाव था उसे इस लड़की से, इसलिये वो अभी भी मित्रता की डोर से बंधा हुआ था।

सिद्धार्थ के जाने के बाद , घर से फोन आया और फ़ोन पर मम्मी बता रही थी कि कैसे नीलाक्षी के कारण फिर से सरगम के रिश्ते की बात होते होते रह गयी थी।

क्या बोले नीलाक्षी और क्या समझाए किसी को, उसका अपना शरीर ही अब तक उसके लिये एक पहेली हैं। और इसमें क्या उसकी गलती हैं। कैसे विवाह करके वो सिद्धार्थ की या किसी ओर की ज़िंदगी बर्बाद कर दे।

जब नीलाक्षी छोटी थी तो सब कुछ जिंदगी में ठीकठाक था। जब किशोरावस्था में पहुँची तो उसने महसूस किया कि जैसे उसकी और सहपाठी हीरो, क्रिकटर या अन्य लड़कों के लिये दीवानी रहती हैं, ऐसा कुछ उसके साथ क्यों नहीं होता हैं? हर लड़की का क्लास में या पास पड़ोस में कोई क्रश था पर नीलाक्षी उसे तो कुछ महसूस ही नहीं होता था।

नीलाक्षी के रूप सौंदर्य के कारण उसके पीछे दीवानों की एक लंबी कतार थी । ऐसा नहीं था उसे लड़के पसंद नहीं थे, एक साथी की तरह उसे लड़के पसंद थे परंतु नीलाक्षी की दिल की धड़कने किसी भी लड़के को देखकर तेज़ नहीं होती थी।

कॉलेज पहुँचते पहुँचते नीलाक्षी को घमंडी और ठंडी की उपाधि से नवाज दिया गया था। नीलाक्षी सब कुछ सुनकर अंदर ही अंदर घुटती रहती थी परंतु ऊपर से मुस्कुराती रहती थी।

फिर नीलाक्षी को लगा शायद उसमें झिझक हैं इसलियेअपनी सहेलियों की सलाह पर उसने टिंडर पर डेटिंग करने की सोची। नीलाक्षी डेटिंग पर जाती, पहली मुलाकात सही रहती, दूसरी मुलाकात पर ही लड़के शारीरिक नजदीकियाँ चाहने लगते थे। लड़को की इन हरकतों से नीलाक्षी असहज होने लगती थी और फिर वो उन लड़कों का नंबर ब्लॉक कर देती थी।

उसे समझ नहीं आ रहा था वो ऐसी क्यों हैं? क्या उसमें कोई शारीरिक विकार हैं?

जब नीलाक्षी ने इस बारे में अपनी चाची से बात करी तो चाची उसे डॉक्टर के पास ले कर चली गई। महिला डॉक्टर ने सारे चेकअप करके कहा "ऐसा शर्मीली लड़कियों के साथ होता हैं। ये शारीरिक रूप से बिल्कुल नार्मल हैं "

नीलाक्षी की जान में जान आयी और तभी नीलाक्षी के जीवन में सिद्धार्थ आया था। उसने ना तो अन्य लड़को की तरह नीलाक्षी को कभी प्रोपोज़ किया और ना ही कभी उसे गर्लफ्रैंड बनाना चाहा था। बस दोनो को एक दूसरे का साथ पसंद था।

नीलाक्षी और सिद्धार्थ के परिवार को भी दोनो की मित्रता से कोई समस्या नहीं थी। एक दिन नीलाक्षी और सिद्धार्थ लांग ड्राइव पर गये थे और वहीं पर सिद्धार्थ ने नीलाक्षी से कहा " नीलाक्षी , मैं इस रिश्ते को अब अगले मुकाम पर लेकर जाना चाहता हूँ, तुम्हे अपनी गर्लफ्रैंड बनाना चाहता हूँ "

नीलाक्षी फीकी हंसी हंसते हुये बोली ", सिद्धार्थ ये मेरे बस की बात नहीं है "

"तुम एक अच्छे दोस्त हो पर इससे ज़्यादा कुछ नही "

सिद्धार्थ तिलमिला कर बोला ", क्यों कोई और पसंद हैं क्या नीलाक्षी "

नीलाक्षी बोली "सिद्धार्थ तुम गलत समझ रहे हो, मुझे पुरुषों के लिये कोई आकर्षण महसूस नहीं होता हैं "

"मैं और लड़कियों जैसा महसूस नहीं करती हूँ, मेरे दिल की धड़कने किसी पुरुष को देखकर तेज़ नहीं होती हैं "

सिद्धार्थ ये बात सुनकर हक्का बक्का रह गया और बोला "क्या तुम समलैंगिक हो "

नीलाक्षी बोली "नहीं सिद्धार्थ मुझे किसी भी लिंग के प्रति भी कोई आकर्षण महसूस नहीं होता हैं "

सिद्धार्थ आश्चर्य से नीलाक्षी को देखते हुये बोला "तुम तो मार्बल हो नील, संगमरमर की तरह खूबसूरत परन्तु भावनाओं से कोसो दूर "

नीलाक्षी धीमे से बोली "ठंडी भी कह सकते हो सिद्धार्थ'

"सारे लड़के मुझे इसी नाम से पुकारते हैं, तुमने तो फिर भी बहुत सभ्य नाम दिया हैं मुझे "

सिद्धार्थ मार्बल को अपनी गर्लफ्रैंड तो नहीं बना पाया था परन्तु उस दिन से मार्बल उसकी आत्मिक साथी बन गयी थी।

नीलाक्षी के परिवार को ये लगता था कि सिद्धार्थ और नीलाक्षी जल्द ही विवाह के बंधन में बंध जाएँगे।

इसलिये एक दिन नीलाक्षी की मम्मी ने सिद्धार्थ से कह ही दिया "बेटा कब इस मार्बल की मूर्ति को अपने घर में स्थापित करोगे"

सिद्धार्थ ये बात सुनकर सकपका गया कि क्या जवाब दे?

तभी नीलाक्षी बोली "मम्मी मैं और सिद्धार्थ बस मित्र ही हैं और मेरा विवाह करने का कोई इरादा नहीं है "

नीलाक्षी की मम्मी व्यग्य से बोली "तो क्या लिव इन में रहने का इरादा हैं "

"तुम्हे पता हैं ना तुम्हारी छोटी बहने भी हैं, उनके ऊपर क्या असर पड़ेगा "

नीलाक्षी गुस्से में बोली "मम्मी आप फिक्र मत करो , मुझे लड़को के प्रति कोई आकर्षण नहीं हैं "

ये सुनते ही नीलाक्षी की मम्मी सकते में आ गई थी।

रात के खाने के समय सब खामोश थे और नीलाक्षी को ऐसा देख रहे थे जैसे वो कोई अजूबा हो।

खाने के बाद चाचा बड़े प्यार से बोले "नीला बेटा देखो सब लोग जरूरी नहीं एक जैसे हो और सब लोगो की चाहते भी अलग होती हैं, परन्तु बेटा हम लोग इतने आधुनिक नहीं हैं "

नीलाक्षी को समझ नहीं आ रहा था कि चाचा क्या कह रहे हैं।

चाची धीमे स्वर में बोली "बेटे समलैंगिक होना कोई पाप नहीं हैं पर हमारे परिवार में ये स्वीकार्य नहीं हैं "

नीलाक्षी का सिर घूम गया और वो उठते हुये बोली "मुझे समझ नहीं आ रहा हैं कि आप लोग क्या सोच और समझ रहे हो? "

नीलाक्षी के मम्मी पापा पूरी रात चिंता के कारण सो नहीं पाए थे। रह रहकर उन्हें नीलाक्षी के भविष्य की चिंता सता रही थी। अब नीलाक्षी के परिवार का एक ही मिशन बन गया था किसी भी तरह से नीलाक्षी को विवाह के लिये तैयार करने का।

हर रोज नीलाक्षी का परिवार उससे एक ही सवाल करता और नीलाक्षी का एक ही जवाब आता "उसे विवाह नहीं करना हैं "


नीलाक्षी अंदर ही अंदर घुट रही थी क्योंकि ना बस उसके रिश्तेदार , उसका परिवार भी उसे अजूबा समझ रहा था। जब ये घुटन हद से ज्यादा बढ़ जाती तो वो सिद्धार्थ के पास चली जाती थी। एक सिद्धार्थ ही तो था जो उसे समझता था। सिद्धार्थ भी नीलाक्षी की परेशानी से परेशान था और जब वो लोग सेक्स काउंसेलर के पास गए तो नीलाक्षी को अपने सब सवालों का जवाब मिल गया था। सेक्स काउंसेलर ही नीलाक्षी को ये समझ पाई थी कि वो एबनॉर्मल नहीं हैं। उसके जैसे लोग भी दुनिया मे हैं जो किसी भी लिंग के प्रति आकर्षित नहीं होते हैं और उन्हें असेक्सयूएल कहते हैं।

इस के पश्चात सिद्धार्थ और नीलाक्षी ने इस बारे में बहुत रिसर्च भी करी थीऔर सिद्धार्थ ने नीलाक्षी को इस तरह के कुछ ग्रुप्स से भी जुड़वा दिया था। अधिकतर ये ग्रुप बाहर के देशों में ही थे। इस देश मे ये सेक्सुअल ओरिएंटेशन अभी तक अनजानी हैं। बहुत सारे स्त्री और पुरुष घुट घुट कर असेक्सयूएल हो कर भी विवाह नामक संस्था में अब भी संघर्ष कर रहे हैं। सिद्धार्थ की मदद से नीलाक्षी अब काफी हद तक संभल गयी थी। उसे अपना व्यक्ततित्व कुछ कुछ समझ आने लगा था।

उसे ज़िन्दगी पहले से अधिक आसान लगने लगी थी। उसकी नौकरी लग गई थी। दफ़्तर में भी काम तक तो सब ठीक रहता था पर जब सोशल गैदरिंग या पार्टीज होती तो फिर से नीलाक्षी असहज हो उठती थी। उसे महसूस होता था कि क्यों भगवान ने उसे औरों से अलग बनाया हैं।

जिस प्रेमक्रीड़ा से नई सृष्टि का सृजन होता था क्यों उस क्रीड़ा के नाम से भी उसे एक अजीब सी गिलगिली सिरहन होती हैं। लड़कियां जब ऐसे जोक्स करती तो वो इच्छा ना होते हुए भी जबरदस्ती भाग लेती ताकि वो अलग ना लगे, वो उस भीड़ का हिस्सा बन कर एक सामान्य जीवन जी सके।

ऐसे ही एक दिन नीलाक्षी और सिद्धार्थ रेस्त्रां में बैठे हुये थे। तभी नीलाक्षी के दफ़्तर की कुछ फ्रेंड्स आ गयी। सिद्धार्थ को देखते ही बोली "इतना हैंडसम बॉयफ्रेंड हैं तेरा , तभी दफ़्तर में किसी को तू भाव नहीं देती "

सिद्धार्थ ने देखा, नीलाक्षी ने उनकी बात का कोई विरोध नहीं किया बल्कि मंद मंद मुस्कुरा रही थी। उनके जाने के बाद सिद्धार्थ ने नीलाक्षी को आड़े हाथों लिया और बोला "मार्बल जो हैं उसे स्वीकारो या फिर विवाह करके भेड़चाल का हिस्सा बनो"

अब धीरे धीरे नीलाक्षी के दफ्तर में भी ये बात फैल गयी थी कि नीलाक्षी को कुछ बीमारी हैं जिस कारण से वो बर्फ़ की सिल्ली जैसी ठंडी हैं।

एक दिन चाची बाजार से आई और नीलाक्षी से बोली "नीला तुम्हे शादी नहीं करनी तो मत करो पर हम बाहर क्या जवाब दे? "

"तुम्हारे कारण हम किस किस का मुँह बंद करते फिरेंगे? "

उस दिन के पश्चात नीलाक्षी ने कही और नौकरी ढूंढनी आरंभ कर दी थी। जल्द ही उसे ग्रेटर नोएडा की एक कंपनी में नौकरी भी मिल गयी थी और उसने कंपनी के पास ही एक छोटा सा फ्लैट किराये पर ले लिया था। जब नीलाक्षी घर से जा रही थी तो उसे लग रहा था कि उसकी छोटी बहने उसे जाने नहीं देगी परन्तु नीलाक्षी ने देखा कि सबके चेहरों पर राहत के भाव थे।

कुछ दिनों तक नीलाक्षी नई जगह मन नहीं लगा था परन्तु धीरे धीरे वो सामान्य होने लगी थी। उसे अपना दिनचर्या भाने लगा था। सिद्धार्थ भी कभी कभी आकर उसकी खोज खबर ले लेता था। जल्द ही सिद्धार्थ का विवाह होने वाला था और नीलाक्षी ये भलीभांति जानती थी कि विवाह के बाद वो सिद्धार्थ को इस तरह परेशान नहीं कर पायेगी।

जब सिद्धार्थ जाने लगा ना जाने क्या हुआ, नीलाक्षी दौड़ कर सिद्धार्थ के गले लग गई। सिद्धार्थ ने भी उसे दुगने वेग से गले लगाया। सिद्धार्थ के हाथ नीलाक्षी के ऊपरी भाग पर रेंगने लगे। नीलाक्षी असहज महसूस कर रही थी और उसने सिद्धार्थ को परे धकेल दिया।

सिद्धार्थ सोफे पर पसर गया, उसकी सांस धोकनी की तरह चल रही थी।

सिद्धार्थ बोला " मार्बल ई म सॉरी, मैं अपने को रोक नहीं पाया "

नीलाक्षी बोली "तुम्हारी कोई गलती नहीं हैं सिद्धार्थ पर मैं क्या करूँ, मैं सबसे अलग हूँ "

"मुझसे ये नहीं हो पाता पर सिद्धार्थ अकेलनपन लगता हैं "

सिद्धार्थ बोला "जानता हूँ मार्बल पर ये मेरा विश्वास हैं तुम्हें अपने अनुकूल साथी अवश्य मिलेगा "

"और मैं तो हूँ ना, शादी हो रही हैं पर इसका मतलब ये थोड़े ही हैं कि मैं अपने प्यारे दोस्त भूल जायुगा "

सिद्धार्थ के जाने के पश्चात , नीलाक्षी बहुत देर तक ऐसे ही बैठी रही और फिर सोसाइटी के बाहर ऐसे ही घूमने लगी। घूमते घूमते नीलाक्षी ने देखा कुछ ही दूरी पर एक घर के बाहर एक बोर्ड लगा हुआ हैं "घोंसला "। ना जाने क्या सोचते हुये वो उस घर के अंदर चली गई।

वहाँ जाकर उसे पता चला कि एक बुजुर्ग दंपति ने अनाथ बच्चों के लिये आश्रम खोल रखा हैं। नीलाक्षी ने महसूस किया कि उन मासूम बच्चो की आंखों में भी वो ही भूख हैं जो उसे अपने अंदर महसूस होती हैं। भूख बिना किसी शर्त के प्यार पाने की। प्यार जो बिना किसी टर्म और कंडीशन के साथ हो। आप जैसे हो ऐसे ही आपको बिना किसी प्रश्न के स्वीकार करे।

ना जाने क्या हुआ वहाँ जाकर नीलाक्षी को असीम शांति मिली। धीरे धीरे नीलाक्षी अपनी शामें उन बच्चों के साथ गुजारने लगी। नीलाक्षी को ऐसा प्रतीत होने लगा मानो उसके मरुस्थल मन पर मीठे झरने की फुहार पड़ रही हो। अब उसे अपने जीवन से कोई शिकायत नहीं रही थी।

आज सिद्धार्थ के विवाह का रिसेप्शन था। नीलाक्षी सफेद रंग की साड़ी में बहुत ही सुंदर लग रही थी। जब नीलाक्षी सिद्धार्थ और उसकी पत्नी को बधाई देने स्टेज पर पहुँची तो सिद्धार्थ ने नीलाक्षी का परिचय कराते हुये कहा "संजना ये मार्बल हैं , मेरी सबसे प्यारी दोस्त "

"जल्द ही इसका शाहजहाँ आएगा जो इस मार्बल के लिये ताजमहल बनवायेगा "

संजना बोली "तभी तो ये सफेद साड़ी में ताजमहल जैसी खूबसूरत लग रही हैं "

नीलाक्षी मुस्कुराते हुये बोली' सिद्धार्थ , मार्बल अब किसी शाहजहाँ का इंतजार नहीं कर रही हैं ताज़महल बनाने के लिये, उसने अपना ताज़महल खुद बना लिया हैं "

सिद्धार्थ मार्बल की ये बात सुनकर मंद मंद मुस्कुरा रहा था।


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