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Ritu Verma

Drama

4  

Ritu Verma

Drama

जीना सीख लिया

जीना सीख लिया

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सुशीला जी कर्कश आवाज में चिल्ला रही थी"जैसी माँ, वैसी बेटी"

"बेटी माँ की परछाई तो होती हैं ना"

शिवानी चुपचाप अपने अंगूठे से जमीन को कुरेद रही थी। उसे पता था ये नाटक तो होना ही था। कितना मना किया था उसने मयंक को कि उससे मिलने ना आए।

तीन महीने तक मयंक ने बात भी मानी पर आज अचानक से वो तब आ गया जब सारा परिवार कबीर के बाल उतरवाने,आगरा से 50 किलोमीटर दूर कुलदेवी के गया हुआ था।

शिवानी को हल्का बुखार था इसलिये वो घर पर ही रुक गई थी। दोपहर के खाने के बाद शिवानी आराम कर रही थी कि मयंक आ गया था।

मयंक को देखकर शिवानी सकपका गई और बोली"तुम क्यों आये हो यहाँ पर ?"

मयंक बोला"क्या करूँ, तुम्हे देखने का,तुमसे बात करने का बहुत मन था"

"पिछले महीने मम्मी से पता चला कि तुम्हारे पापा जेल में हैं,तब से ही मन तुम्हारे में अटका हुआ था"

"मैं कोई दुश्मन नही हूँ शिवानी और ये भी जानता हूँ कि तुम मुझे क्यों रोकती हो"

"पर क्या करूँ, तुम्हे दुखी देखकर ,खुद को कंट्रोल नही कर सकता हूँ "

शिवानी की शरबती आँखों से टपटप आँसू बहने लगे। उसके रेशमी बाल जो पोनीटेल में बंधे हुए थे,उसमे से कुछ बाल माथे पर झूल रहे थे जो उसके चेहरे को बहुत कामनीय बना रहे थे। मयंक ने प्यार से शिवानी के सिर पर हाथ फेरा तो वो उसकी बाँहो में फूट फूट कर रोने लगी। दस मिनेट तक शिवानी रोती ही रही।

तभी बाहर दरवाज़े पर आवाज़ हुई। शिवानी डर कर पत्ते की तरह कांपने लगी। इससे पहले कुछ समझ आता, पूरा परिवार आँगन में प्रवेश कर चुका था।

मयंक को देखते ही शिवानी के ताई,ताऊजी,चाचा ,चाची और भैया ,भाभी की त्योरियां चढ़ गई।

बबल भैया ने मयंक को गुस्से से देखा और कहा"बाज नही आओगे तुम अपनी हरकतों से"

"ठहरो जरा, मैं तुम्हारे घर वालो को तो बता दूं तुम्हारा कारनामा"

मयंक इससे पहले कुछ बोलता, शिवानी के ताऊजी ने एक जोरदार तमाचा मयंक के चेहरे पर जड़ दिया।

चारु भाभी शिवानी का हाथ पकड़ कर अंदर कमरे में ले गई।

ताईजी और चाचीजी ने शिवानी की मम्मी को कोसना शुरू कर दिया।

"खुद तो भाग गई और ये आफ़त हमारे गले छोड़ गई"

चाची बोली"भाभी, मैंने आपको पहले भी बोला था कि आप शिवानी की शादी कर दो"

"इसे बहुत अकेलापन लगता हैं ना, अपने घर परिवार की हो जाएगी तो हमारी भी जिम्मेदारी ख़त्म"

शिवानी के तो मुँह पर ताला लग गया था। क्या किसी के साथ अपने मन की बात बाँटना अपराध हैं।

शिवानी ने जब से होश संभाला था। उसने अपने परिवार को औरो से अलग पाया था। कहने को तो शिवानी का संयुक्त परिवार था पर सब लोग अलग अलग अपने अपने पोर्शन में रहते थे।

शिवानी के पिता शुरू से ही निकम्मे की श्रेणी में आते थे। शिवानी की मम्मी ,अपने पति की हरकतों से अजीज आ चुकी थी और जब शिवानी 8 वर्ष की थी,वो तब घर छोड़ कर चली गई थी।

शिवानी को अच्छे से याद हैं, उसकी मम्मी की घटना के बाद घर का कोई भी बच्चा उसके साथ नही खेलता था। पिता उसे जब भी देखते थे,दुत्कार देते थे,कारण क्योंकि वो हूबहू अपनी मम्मी जैसी दिखती थी।

ऐसे में मयंक ही था जो उसके साथ खेलता था,उसे घर बाहर लोगो के ताने और व्यगबाण से बचाता था। मयंक शिवानी की छोटी बुआ कमलेश का बेटा था। कमलेश बुआ भी आगरा में राजा मंडी में परिवार के साथ रहती थी।

शिवानी को पता भी नही चल पाया कि कब और कैसे वो मयंक पर निर्भर होने लगी थी। दोनो स्कूल में भी साथ साथ रहते थे। दोनो के बीच पारिवारिक रिश्ता था इसलिये परिवार में किसी ने पहले अधिक ध्यान नही दिया था। शिवानी नही जानती थी कि जैसे वो मयंक के लिये महसूस करती हैं, वो गलत हैं क्या ?बस उसे मयंक के साथ सुरक्षित महसूस होता था। उधर मयंक को भी,शिवानी को दुलारने में ,उसकी ज़िद्द पूरी करने में बहुत मज़ा आता था।

शिवानी और मयंक एकदूसरे के साथ सहज थे । बस इतनी सी बात थी। शिवानी के ताऊजी की बड़ी बेटी चांदनी की शादी की बात थी। घर पर हंसी खुशी का माहौल था। शिवानी भी बहुत खुश नजर आ रही थी। शिवानी ने महिला संगीत के दिन बैगनी रंग का लहँगा और नारंगी कुर्ती पहनी थी। हर किसी की निगाह शिवानी पर ही अटकी हुई थी। वहीं चांदनी ,शिवानी के आगे फीकी लग रही थी।

तभी मयंक आया और खटाखट शिवानी की तस्वीरे लेने लगा, चांदनी ने गुस्से में कहा"दुल्हन कौन हैं मयंक ?"

मयंक हंसते हुये बोला"दीदी, आप तो मेकअप में भी बन्दरिया लग रही हो"

चांदनी फट पड़ी "हाँ भई जब तुम्हारा दिल तो शिवानी पर आ गया है तो दीदी तो बन्दरिया ही लगेगी। अंधी नही हूँ, सुबह से बस शिवानी जी के ही फ़ोटो खींच रहे हो" चांदनी ने इस बात का इतना बतंगड़ बना दिया था कि सबको लगने लगा शिवानी व मयंक में जरूर कुछ चल रहा है।

इस घटना के बाद पूरी शादी में शिवानी मयंक से कटी कटी घूमती रही थी। बिना किसी अपराध के भी ,शिवानी का अपना परिवार उसे अपराधिनी की तरह देख रहा था। इधर उधर घूमते हुये भी शिवानी के कानों में ये बात पड़ जाती थी"एकदम माँ पर गई हैं और अब तो लक्षण भी माँ जैसे ही लग रहे हैं"

"उस दिन देखा था ना संगीत में ,कैसे मयंक आगे पीछे घूम रहा था"

शिवानी बचपन से प्यार के लिए तरसती रही थी। एक गैरजिम्मेदार माँ और नाकामयाब पिता की कड़वाहटों का बोझ उठाते उठाते शिवानी थक गई थी। उसे नही पता था कि मयंक और उसका अनाम रिश्ता अवैध संबंधो की परिधि में आता हैं। उसे बस ये पता था कि मयंक ही अकेला एक ऐसा शख्श हैं उसकी जिंदगी में जो उसे दया या नफ़रत की नज़रों से नही देखता हैं। मयंक ही एक ऐसा लड़का हैं जो उसे समझता हैं ,वो जैसी हैं उसे उसके इतिहास के साथ स्वीकार करता हैं।

चांदनी के विवाह में शिवानी और मयंक के रिश्ते पर एक प्रश्नचिह्न लग गया था। शिवानी को उसके पिता हिराकत की नज़रों से देखने लगे थे। उसके परिवार के बाकी सदस्य भी ,शिवानी को समझाने के बजाए ,उसे ताने देने लगे थे। अपने परिवार का ऐसा रवैया देखकर शिवानी का मन बगावत पर उतारू हो गया था। शिवानी के प्रति घर वालो का व्यवहार देखकर मयंक को लगने लगा था कि वो ही शिवानी को इस नरक से बाहर निकाल सकता हैं।

मयंक की पढ़ाई खत्म होते ही उसकी नौकरी दिल्ली लग गयी थी। मयंक ने शिवानी से विवाह करने का निश्चय कर लिया था। मयंक और शिवानी एकदूसरे के साथ फ़ोन से जुड़े हुये थे। आज मयंक को पता था कि पूरा घर कुलदेवी के पास गया हुआ हैं तो वो दिल्ली से आगरा शिवानी के पास आ गया था। दोनो एक दूसरे का हाल भी नही जान पाए थे कि ये सब हो गया।

चारु भाभी शिवानी के ताऊजी के बेटे बबल भैया की बीबी थी। पूरी रात क्या खिचड़ी पकी, शिवानी को मालूम नही था। सुबह बस ये पता चला कि शिवानी का सामान बंध गया था। चारु भाभी बोली" शिवानी तुम्हारे एग्जाम को अभी चार माह हैं, तब तक तुम मेरे साथ फरीदाबाद चलो"

शिवानी बिना किसी ना नकुर के मान गई थी। चार दिन के बाद मयंक का फ़ोन आया था । चारु और बबल कबीर को डॉक्टर के पास दिखाने गए थे। मयंक बोला"शिवानी, इससे अच्छा मौका नही मिलेगा"

"मैंने सब तय कर लिया हैं ,परसों तुम तैयार रहना, हम लोग शादी कर रहे हैं"

शिवानी झिझकते हुये बोली"मयंक ये सही रहेगा क्या ?"

मयंक बोला" शिवानी ये ही आख़री मौका हैं। तुम्हारे लिये आगरा में रिश्ते ढूढ़े जा रहे हैं। फरवरी तक तुम्हारी शादी कर दी जाएगी"

सोमवार की शाम को मयंक के कहे अनुसार शिवानी नीचे आ गई। मयंक पहले से ही कार में उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। शिवानी और मयंक ने कार में बैठेते ही अपने अपने फ़ोन बन्द कर दिये थे।

रात के करीब आठ बजे , मयंक ने एक घर के सामने कार रोकी। उतरते हुये बोला"ये मेरे दोस्त गौरव का घर है और उसके पिता वकील हैं"

"फिक्र करने की बिल्कुल भी जरूरत नही हैं"

गौरव की मम्मी शिवानी को देखकर बोली"अरे, ये तो बिल्कुल तेरी छोटी बहन जैसी लग रही हैं । "

शिवानी ये बात सुनकर सकपका गई थी। पर मयंक हँसते हुये बोला"आप सही बोल रही हो"

गौरव की मम्मी, मयंक की बात सुनकर हक्कीबक्की रह गई ।

तभी मयंक बोला"अरे आंटी , इस्लाम में भी तो लोग अपनी ताया और ममेरी बहनों से शादी करते है"

आंटी बोली"बेटा उनका धर्म तो अलग हैं पर हमारे यहाँ तो ये जायज़ नही हैं"

शिवानी को समझ आ गया था कि मयंक ने गौरव के परिवार से अब तक ये बात छिपा रखी थी कि वो उसकी मामा की बेटी हैं।

रात में गौरव के पिता दीनानाथ को जब ये बात पता चली तो वो बोले "मयंक ये विवाह तो हिन्दू अधिनियम के तहत अवैध हैं। इसकी कानूनन कोई मान्यता नही हैं"

मयंक बोला"अंकल आप तो वकील हैं कोई तो हल होगा"

दीनानाथ बोले"वकील हूँ इसलिये गलत सलाह नही दूँगा"

"क्यों अपनी और इस लड़की की ज़िंदगी बर्बाद करने पर तुले हो"

"सारे परिवार से रिश्ता तोड़कर खुश रह पयोगे तुम दोनों ?"

"बेटा ऐसी विवाह से पैदा हुई संतानो को विरासत में कितनी अनुवांशिक बीमारियां सौगात के रूप में मिल जाती हैं"

"क्या जवाब दोगे ,तुम अपने बच्चो को जब वो तुम लोगो से अपने नाना, नानी या दादा दादी के बारे में पूछेगे ?"

मयंक और शिवानी बिना कुछ सोचे समझे यहाँ तक तो आ गए थे। पर उन्होंने कभी इस बारे मे नही सोचा था।

वकील दीनानाथ बोले, "मयंक बेटा अगर तुम्हें शिवानी से लगाव हैं तो ये शादी का ख़याल अपने दिमाग़ से निकाल दो, इस रिश्ते को समाज मे कभी भी मान्यता नही मिलेगी"

शिवानी को समझ नही आ रहा था कि अब किस मुँह से घर जाए । उधर मयंक अपने को शिवानी का अपराधी महसूस कर रहा था। पर दीनानाथ जी ने समझदारी का परिचय देते हुए ,खुद उनकी समस्या का समाधन कर दिया था।

अगली रोज़ सुबह चारु और बबल वहीं गौरव के घर आ गए थे। चारु और बबल को देखकर शिवानी डर के कारण रोने लगी। चारु बोली"शिवानी घबराने की जरूरत नही हैं। हम तो आगरा में फोन ही करने वाले थे पर उससे पहले ही वकील साहब का फ़ोन आ गया था"

दीनानाथ जी ने चारु और बबल से मुताबिक होते हुए कहा" बेटा दोनो बच्चे भटक गए हैं। उन्हें सही राह दिखाने के लिये प्यार और समझदारी की रोशनी की जरूरत हैं। उन दोनों को तो ये भी मालूम नही था कि क्यों ऐसे विवाह को कानून में जायज नही मानते हैं"

दीनानाथ जी ने ही फिर बबल और चारु को सलाह दी कि शिवानी का किसी प्रोफेशनल कोर्स में फरीदाबाद ही दाखिला करवा दे। शिवानी को इस रिश्ते से उबरने के लिये काम की जरूरत हैं, विवाह की नही।

"अगर तुम्हारा परिवार अब शिवानी की शादी करवाएगा तो ये शिवानी के साथ साथ उस लड़के के साथ भी ज्यादती होगी"

"अगर बच्चो से गलती हो गई हैं तो उन्हें सुधारने का मौका दो "

"शिवानी को प्यार और अपनेपन की जरूरत हैं और मयंक इसी कारण खुद को शिवानी से अलग नही कर पा रहा हैं"

"तुम दोनों भाई भाभी हो, एक बार कोशिश तो करके देखो, मुझे पूरी आशा हैं ये दोनो बच्चे तुम्हे निराश नही करेंगे"

चारु और बबल ने शिवानी को फिर वापिस आगरा नही जाने दिया था। धीरे धीरे ही सही, शिवानी ने ज़िन्दगी की नई शुरुआत कर ली थी। उधर मयंक ने भी दिल पर पत्थर रखकर अपना तबादला दिल्ली से मुंबई करा लिया था।

देखते ही देखते तीन वर्ष बीत गए थे। आज शिवानी का नौकरी पर पहला दिन था और वो बेहद खुश थी। अब शिवानी बीती बातों को बिसरा कर आगे बढ़ चुकी थी। उधर मयंक ने भी अपनी ज़िन्दगी के दरवाजे खुशियों के लिये खोल दिये थे। जल्द ही वो एक मराठी लड़की से विवाह करने वाला था।

देर जरूर लगी थी पर मयंक और शिवानी ने जीना सीख लिया था।


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