Arunima Thakur

Romance

4  

Arunima Thakur

Romance

एक छोटी सी प्रेम कहानी

एक छोटी सी प्रेम कहानी

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वैसे तो मैं रहने वाली कोल्हापुर के एक गाँव की हूँ। मेरे माँ पापा वहीं रहते हैं । पापा किसान हैं और माँ मसालों का व्यवसाय घर से ही करती है। हाँ तो बात उन दिनों की है जब मैं मुंबई में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी कर रही थी। मैं हॉस्टल में रहती थी । चार दिन की छुट्टियों पर सबने कार्यक्रम बनाया कि चार दिन हॉस्टल में रहने से अच्छा है कि आसपास कहीं घूम कर आए I महाबलेश्वर, माथेरान, खंडाला कहां जाया जाए ? हमारा एक दोस्त वंश जिसके कुछ परिचित दहाणू में रहते हैं उसने बोला दहाणू चलते हैं । वह पहले ही वहां जा चुका था । उसने बोला, " महाराष्ट्र गुजरात बार्डर पर स्थित सबसे ज्यादा चीकू उत्पादन के लिए प्रसिद्ध दहाणू का बीच (समुद्री किनारा) लगभग बीस किलोमीटर लंबा और बहुत खूबसूरत है। दहाणू में पहाड़ पर ट्रैकिंग वगैरह भी कर सकते हैं I मुंबई में रहने के कारण बीच का आकर्षण तो कुछ खास था नहीं। पर वंश का कहना था कि इन्हीं तीन दिनों में दहानू में चीकू फेस्टिवल भी होने वाला है । इस तरह से उसने हमें दहाणू जाने के लिए तैयार कर लिया । हॉस्टल से हम दो लड़कियां , दो लड़कियां और चार लड़के वहीं मुंबई के थे और वंश हम सब नौ लोग तीन दिन के कपड़े वगैरह लेकर निकल पड़े I सुबह-सुबह चर्चगेट से लोकल पकड़ ली थी। जिसका अंतिम स्टेशन दहाणू था । हंसते गाते, गप्पे मारते, भेलपुरी, वडा पाव खाते पीते हम दहाणू स्टेशन पर उतर गए ।

 स्टेशन से बाहर निकलते ही हमें लगा हमें रिक्शे करने पड़ेंगे । पर वंश का एक मित्र कुशल अपनी बड़ी गाड़ी टवेरा लेकर हमारा इंतजार कर रहा था । हम उसी में बैठकर वंश के परिचित के घर पहुंचे । उनका घर बिल्कुल समुद्र के किनारे था । बस एक सड़क का अंतर था । मुंबई में तो हमें लगता था कि बहुत अमीर लोगों के घर ही इस तरह से समुद्र के किनारे होते होंगे । अमीर तो वह परिवार भी था शायद । हम उनके घर के ऊपर के दो कमरों में व्यवस्थित हो गए । उन्होंने ज्यादा कुछ तकल्लुफ नहीं किया था। कमरे में गद्दे व चादरे रख दी थी। फरवरी का महीना था इसलिए ज्यादा ठंड भी नहीं थी । मेरे साथ की लड़कियां जमीन पर सोना पड़ेगा यह सोचकर थोड़ा मुंह बनाने लगी। "चिल गाईस, क्या यार हम यहाँ घूमने आए हैं और तुम्हें इतनी परेशानी है तो जाकर फिर होटल में ठहरों। इस तरह से मुंह बनाना उनके आथित्य का अपमान होगा" यह कहते हुए जब मेरी नजर दरवाजे पर पड़ी तो कुशल मुझे बड़े प्यार से देखते हुए मुस्कुरा रहा था । वह हमें खाने के लिए नीचे बुलाने आया था। उन्होंने हमें उनके घर में ही खाना खाने के लिए कहा। पर हमने उन पर बोझ ना बनते हुए खाना होटल में ही खाने का निश्चय किया । पर उस दिन तो उनके कहने पर हमें उनके घर पर ही खाना खाना पड़ा। हम दस लोगों के लिए भी उन्होंने इतना अच्छा इतना सारा खाना बनाया था थेपला, खांडवी, कढ़ी चावल, जलेबी फाफड़ा, ढोकला और छाछ तो वह लोग पानी की तरह पीने को दे रहे थे। 

खाना खाकर हम सब समुद्र की ओर निकल गए। पानी बहुत पीछे था । पर बच्चों की तरह हमने वहां घोड़े की सवारी, तांगा की सवारी और बाइक चलाई I सच में दहाणू बीच बहुत साफ सुथरा था । सरू के पेड़ के बीच लगे बच्चों के झूले देखकर तो हम सभी बच्चे बन गए। हम वहां पर बीच पर टहलते रहे I हम मक्का, बुढ्ढी का बाल , अगड़म बगड़म खाते-पीते सूर्यास्त देखने के लिए एक जगह बैठ गए ।क्षितिज पर हल्के हल्के बादल थे । तो सूर्यास्त हमें देखने को नहीं मिला I हम काफी शाम गये तक वहां बीच पर टहलते रहे फिर सामने ही दिख रहे होटल में घुस गए । वहां पहले तो सूप मंगा कर पिया फिर खाना खाया और घर वापस आ गए । दूसरे दिन सुबह सुबह हमें ट्रैकिंग पर जाना था । दहाणू शहर से कुछ दस किलोमीटर की दूरी पर महालक्ष्मी माता का गढ् हैं। हम सब सुबह नहा धोकर तैयार हो गए थे। कुशल गाड़ी लेकर आ गया था । वही हम सब को लेकर पहाड़ के नीचे तक गया । पहाड़ की ऊंचाई देखकर तो हम लड़कियों ने रास्ते से ही जाने का निर्णय लिया । लड़कों ने कुछ देर तो ट्रैकिंग की फिर वह भी हमारे साथ रास्ते पर ही चलने लगे । एकदम अलग तरह नुकीली चोटी वाला पहाड़ देखने में ऐसा लगता था मानो कोई औरत (देवी माँ ) बाल खोल कर बैठी हो। कुशल बताने लगा कि शरदीय नवरात्रि की पूर्णिमा को दहाणू और दूर दूर के इलाकों से सब चलते यहां आते हैं और पहाड़ चढ़कर ऊपर माँ के दर्शन कर पहाड़ के उस तरफ से उतरकर महालक्ष्मी माता के प्रसिद्ध मंदिर में दर्शन करते हैं। ( बाद में हमने देखा भगवान ! उस तरफ से तो उतरने का रास्ता ही नहीं है । फिर रात में या भोर के उजाले में यह लोग कैसे उतरते होंगे ) हां तो कुशल बता रहा था कि ऊपर गढ़ी के मंदिर से पुजारी झंडा लेकर दौड़ता हुआ जाता है और ऊपर चोटी पर झंडा लगा कर आता है । हमारी तो रूह ही कॉप गई ना कोई रास्ता ना कुछ पकड़ने की जगह एक हाथ में मां का झंडा पुजारी कैसे उस नुकीली चोटी पर चढ़ता होगा। बातें करते करते हम ऊपर पहुंच गए हमने मां के मंदिर में जाकर दर्शन किए | कुशल ने अपना बैग खोलते हुए उसमें से खाने का सामान निकाला जो वह हम सबके लिए लाया था। हम सब उस पर इतने कृतज्ञ महसूस कर रहे थे क्योंकि हमें तो खाने का कुछ सामान रखने का ध्यान ही नहीं था और पागल वंश उसने भी हमें नहीं बताया था । खाते-खाते कुशल हमने दूर-दूर तक फैले जंगलों को दिखा कर बताता रहा यहां तेंदुआ, बाघ, चीता भी घूमते हैं । अक्सर रात को उनकी दहाड़ सुनाई पड़ती है l तीन बजे तक हम नीचे उतर आए । यह तय नहीं हो पा रहा था कि महालक्ष्मी मां के दर्शन के लिए आगे 14 किलोमीटर चला जाए या फिर आज चीकू फेस्टिवल का आखरी दिन है वहां चला जाए । खैर हम चीकू फेस्टिवल के लिए वापस लौट पड़े । वापसी में कुशल हमें रास्ते में पड़ने वाली संतोषी मां के मंदिर का दर्शन भी करवाता आया । हम एकदम थक गए थे हमारी हिम्मत नहीं हो रही थी। पर चीकू फेस्टिवल का लालच, हम फटाफट गर्म पानी से नहा कर तैयार होकर पाँच बजे निकल पड़े ।

चीकू फेस्टिवल दहानू शहर के थोड़ा बाहर घोलवड़ के समुद्री किनारे पर मनाया जाता है। वहाँ पहुँचकर देखा तो इतनी भीड़ इतनी गाड़ियाँ कि पार्किंग की जगह नहीं । कुशल ने मुख्य द्वार पर हमें उतार कर कहा तुम लोग चलो मैं गाड़ी पार्क करके आता हूँ। मैंने कहा इतनी भीड़ में आप हमें ढूंढोगे कैसे ? आप अपना नंबर दे दो मैं उस नंबर पर कॉल करती हूं तो आपको हमें ढूंढने में आसानी रहेगी। मुख्य द्वार बांस, नारियल, खजूर के पत्तों से बहुत ही कल्पनात्मकता से बना था । हम मंत्रमुग्ध होकर उस कलाकारी को देख रहे थे। अंदर पूरा प्रांगण वारली चित्रकला से सजा था I दहानू विश्व प्रसिद्ध वारली पेंटिंग का जन्म स्थान है । अंदर बड़े-बड़े स्टॉल पर हस्तशिल्प की वस्तुएं ,लोकल दुकानों के कपड़े, गहने, साड़ियां सब कुछ मिल रहे थे । हमने नारियल के पत्तों के बने शोपीस लिए I जिंदगी में पहली बार हमने चीकू के इतने रूप देखे , चीकू कैंडी, चीकू अचार , चीकू बर्फी , चीकू मुख्वास चीकू आइसक्रीम और ना जाने क्या क्या। सच में हमारा आना सार्थक हो गया था । हमने वहाँ काली मुर्गी कड़कनाथ के चूजों को भी देखा और उनके अंडों का आमलेट भी खाया। आगे जाकर एक बहुत बड़ा प्रांगण था जो पूरा खाने के दुकानों से भरा था । हमने आदिवासी ढंग से बने मुर्गे, मछली इन सब का स्वाद भी चखा । हमारे दोस्त जो शाकाहारी थे वह अन्य दूकानों पर जाकर सैंडविच डोसा और अन्य खाना खाने लगे। बगल से कहीं संगीत की आवाज आ रही थी। हम सब खाना खाने के बाद उस और बढ़े I एक और प्रांगण में बहुत सारी कुर्सियां रखी थी I स्टेज बना था । वहां लोक नृत्य और लोक कलाएं प्रस्तुत की जा रही थी। वही कुर्सियों पर बैठ कर हमने तारपा नृत्य देखा । एक लोक कलाकारा एक गीत गायी , जिसके बोल तो हमें समझ में नहीं आए पर सुनना अच्छा लगा। हमने वंश को धन्यवाद दिया कि उसने हम सबको यहाँ आने के लिए तैयार किया ।

दस बजे के आसपास हम वहाँ से निकले । तारों भरे आकाश चांदनी रात, सुनसान सड़क सरू के पेड़ के बीच से गुजरती हमारी कार और बगल में ही उफनती समुद्र की लहरों का शोर । अचानक से कुशल ने गाड़ी दाएं हाथ पर रोक दी। हम डर गए क्या हो गया ? गाड़ी खराब हो गई क्या ? वह बोला नहीं पानी बहुत पास है । चांदनी रात में समुद्र देखना अच्छा लगेगा। यहां ? हाँ हम लोग इसे चिखला बीच या लॉग बीच भी कहते हैं । मैं पूछना चाहती थी लॉग बीच क्यों कहते हैं ? पर प्रश्न का उत्तर वहां पड़े एक विशालकाय लॉग को देखकर हो गया I कुशल बोला कुछ सालों पहले यह लॉग (पेड़ का तना) लगभग 4 मीटर लंबा और डेढ़ मीटर गोलाई का टुकड़ा बहते हुए यहां आकर अटक गया था । तब से इसे यहीं पड़ा रहने दिया गया । मैं सोच रही थी कितने अच्छे लोग हैं । चाहते तो उस लकड़ी के टुकड़े को बेच सकते थे । मैं दोनों हाथ फैलाकर गोल चक्कर काट कर नाचते हुए बोली, "हाय कितना अच्छा शहर है । मन कर रहा है यही बस जाऊं" I

 हम जाकर लॉग पर बैठ गए। चाँदनी रात में सुनसान बीच पर लहरों के शोर के साथ लहरें मानो आकर लॉग को चुमना चाहती थी । पानी धीरे-धीरे बढ़ रहा था । मैंने पूछा यहाँ किसी का डर नहीं है। कुशल बोला हमारा दहाणू रात को बारह बजे भी सुरक्षित है । अब लहरें हमारे पैरों को भिगोने लगी थी । काफी देर तक बैठे रहने के बाद हम सब वापस लौट आए ।

तीसरे दिन कुशल हमें अपनी वाड़ी में घुमाने ले गया । वाङी मतलब बगीचा । चीकू के पेड़ एक समान दूरी पर लगे व्यवस्थित क्यारियाँ बनी हुई । आम का बगीचा भी था। वहाँ हमने सुपारी का पेड़ भी देखा I सुपारी छोटे कच्चे नारियल जैसे दिखने वाले एक फल का बीज होती है । काजू के पेड़ भी देखें उन पर छोटे-छोटे फल आए हुए थे l हमने काली मिर्च की वेल भी देखी और हरी काली मिर्च खाकर भी देखी। कुशल ने हम सबके लिए तुरंत पेड़ से तुड़वा कर नारियल पानी पीने को दिया। हम तो उस लड़के को देखते ही रह गए जो सिर्फ एक रस्सी की मदद से कैसे फुर्ती से नारियल के पेड़ पर चढ़कर नारियल तोड़ रहा था । वहां ताड़ खजूर के पेड़ भी थे । जिनसे छोटे-छोटे मटके बंधे थे हमने पूछा तो बोला तने से रस निकलता है वह मटके में एकत्र कर लेते हैं इसे नीरा कहते हैं । सूर्योदय से पहले नीरा पीना स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा माना जाता है । मैंने भी पीने की इच्छा जताई तो कुशल मेरी ओर देख कर हंस पड़ा । मुझे थोड़ा बुरा लगा । तो वह बोला सूर्योदय के बाद नीरा ताड़ी बन जाता है । उस से नशा चढ़ता है । मैं झेंप गई । फिर वह हमें लेकर पास के गांव में गया जहां आदिवासी लोग वारली चित्रकला बनाते है। हमने वहां देखा चावल के आटे और गेरू के प्रयोग से वारली चित्रकला कैसे बनाई जाती है । वापस लौटते समय हमने देखा पानी बहुत पास था तो हम सब बीच पर पहुंच गए और पानी में उतर कर खेलने लगे । काफी देर बाद जब हम थक गए तो होटल से खाना खाकर वापस आ गए ।

कल सुबह हमें वापस मुंबई के लिए निकलना था तो यह तय हुआ आज की रात समुद्र के किनारे ही बिताएंगे I हमें सूर्यास्त भी देखना था । तो शाम को लगभग 5:30 बजे के आसपास हम चटाई वगैरह लेकर , कुछ चटाई कुशल भी लेकर आया था बीच पर पहुंच गए I शाम का समय था तो बीच पर बहुत चहल-पहल थी । आज पानी भी पास था और आकाश में बादल भी नहीं थे। सूरज एकदम लाल आग के गोले जैसा दिख रहा था । हम एकदम सही समय पर पहुंचे थे । वह क्षितिज को छूने ही वाला था । जैसा कि हम अक्सर बचपन में सीनरी में बनाते थे एक सूरज आकाश में एक पानी में वैसा कुछ नहीं था । सूरज क्षितिज को छूकर थोड़ा सा फैल गया था लग रहा था पानी के ऊपर किसी ने मटका उल्टा करके रख दिया है । पूरा आकाश गहरा नीला और नारंगी रंग से भर गया था। पानी भी नारंगी हो गया था । अभूतपूर्व दृश्य हम सब तो अपलक यह दृश्य देखते ही रह गए। अभी रात होने में समय था और हमें पूरा समय बीच पर ही बिताना था तो कुशल ने बोला चलो तुम लोगों को दहानू के साईं बाबा का दर्शन करवा कर लाता हूँ। हम सब कार में भरकर निकल पड़े । साईं बाबा के मंदिर में जाकर बाबा के दर्शन किए । पता नहीं क्यों मुझे बाबा की यह मूर्ति, यह प्रतिमा शिर्डी वाली प्रतिमा से भी ज्यादा जीवंत लगी । लौटते वक्त रास्ते में कुशल ने एक जगह कार रोककर हमें दहानू के प्रसिद्ध वडापाव भी खिलाएं |

फिर रात आठ बजे के आसपास हम सब चटाई बिछाकर दरिया पर बैठे अंताक्षरी, ताश , ट्रुथ एंड डेयर यह सब खेल खेल रहे थे । भूख लगने पर सामने होटल से पार्सल लेकर आए। सच में इतना मजा तो हमें कभी जुहू बीच पर भी नहीं आया था। एक राजा वाली भावना आ रही थी। इतने बड़े दरिया के साम्राज्य के मानो हम एकमात्र मालिक हो । खाना खाते समय वह सब पार्सल के प्लास्टिक और ढक्कन इधर-उधर रखते जा रहे थे । मैं कुशल का मुंह देख रही थी जैसे उसे बहुत बुरा लग रहा था । आखिर खाना खाने के बाद मैं उठी और मैंने वह सब समेटना शुरू कर दिया तो बाकी के लोग बोले पड़े रहने दो ना पानी सब बहा ले जाएगा । तो कुशल थोड़ा गुस्से से बोला समुद्र एक भी चीज अपने पास नहीं रखता है यह सब कचरा तुम्हें बीच पर ही पड़ा दिखाई देगा । यह हमारा बीच है और इसे साफ रखना हमारा फर्ज है । मैंने और कुशल ने जाकर सारा कचरा कचरा पेटी में डाला। वहाँ उसने मुझे गहरी निगाहों से देखते हुए पूछा तुम कल्पना हो ना ? मैं उसे आश्चर्य से देख रही थी दो दिन से हम साथ घूम रहे हैं । आज यह मेरा नाम क्यों पूछ रहा है ? वह फिर बोला तुम कोल्हापुर की हो ? मैंने प्रश्नवाचक निगाह से उसे देखा । क्यों आपको कैसे मालूम ? वह मुस्कुराते हुए बोला, "आपको शायद नहीं मालूम पर आपकी फोटो और बायोडाटा मेरे घर पर शादी के लिए आया हुआ है। आप बुरा मत मानना पर मेरी माँ ने मुझे आज ही दिखाया । आप चाहोगे तो आपकी यहाँ बसने की इच्छा पूरी हो जाएगी । मेरा फोन नंबर तुम्हारे पास है ही । मैं और मेरा दहानू अच्छा लगा हो तो जा कर कॉल करना । तुम्हारी ह या ना के बाद ही मैं घर वालों को हाँ बोलूंगा । 

मैं वह से चली आई । अब मुझे पापा पर बहुत गुस्सा आ रहा था। ना जाने कहां-कहां मेरी फोटो बाट रखी है । कम से कम मुझे बताना तो चाहिए था । उस रात मुझे लगता रहा जैसे वह मुझे ही देख रहा है। उसके अंताक्षरी के सारे गाने मेरे लिए ही है । रात को जब पानी बढ़ना शुरू हुआ तो हमने चटाई समेटकर ऊपर सीढ़ी पर रख दी । और बैठे-बैठे उन लहरों में भीगते रहे और मैं एहसासों में भीगती रही । जब वंश के कहने पर सब ने उससे गाने की फरमाइश की तो उसने गाना गाया, "चांद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था हा तुम बिलकुल वैसी हो जैसा मैंने सोचा था" । कितनी प्यारी आवाज थी, सब उसकी आवाज की तारीफ कर रहे थे और मैं शर्म से लाल हुई जा रही थी । छी : कितना बेशर्म है । कहीं मेरे दोस्तों को पता चल गया तो ? यह सब मेरा जीना मुश्किल कर देंगे । फिर जब पूरी तरह से भीगकर हम सब चटाई लेकर घर वापस जा रहे थे । मेरे हाथ से चटाई लेने के बहाने आकर उसने बोला, "तुम सच में मुझे बहुत अच्छी लगी । बोलो ना मैं तुम्हें पसंद हूं या नहीं" । इस तरह से चांदनी रात में समुद्र किनारे शुरू हुई हमारी इस छोटी बहुत छोटी सी कहानी की परिणीति कुछ इस तरह हुई कि आज समुद्र किनारे मेरा रोज का आना जाना है। 


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