एक अनजाना मुसाफिर...
एक अनजाना मुसाफिर...


यह कहानी है अरविंद शर्मा के दो बेटों के परिवार की। अरविंद शर्मा की उम्र 65 साल हो चुकी थी, उनके पास मान, सम्मान, इज्जत, रुतबा सब कुछ था लेकिन उनके जीवन में सिर्फ एक चीज की कमी थी कि उनके दो बेटे रजत शर्मा और मयंक शर्मा दोनों कुछ अनबन के कारण बरसों से एक दूसरे से बात नहीं करते थे। वह जब आमने-सामने होते थे तो कट्टर दुश्मन की तरह एक दूसरे से लड़ाई करते थे रजत शर्मा के परिवार में उनकी एक बीवी और दो बेटियां थी और मयंक शर्मा के परिवार में उनकी बीवी और एक 15 साल का बेटा था। अरविंद शर्मा जी मरने से पहले अपने परिवार को साथ देखना चाहते थे। उनके दोनों बेटों के कारण उनका बड़ा सा घर दो हिस्सों में बट चुका था, और एक परिवार में रहते हुए भी दोनों परिवार के लोग एक दूसरे से बात नहीं कर सकते थे। अब बात करें अरविंद जी की तो वह गांव के सबसे प्रतिष्ठित व्यक्ति थे वह हमेशा से लोगों के प्रिय थे, गांव का हर फैसला उन्हें पूछ कर किया जाता था।
आज सुबह अरविंद जी जल्दी उठ गए क्योंकि उन्हें गांव में कुछ काम से जाना था वैसे उनका गांव बहुत बड़ा था लेकिन बिना उनसे पूछे गांव में कोई अच्छा या बुरा कार्य नहीं होता था। उन्होंने गांव में जाकर अपना काम पूरा किया, अब वे घर वापस लौट रहे थे। वह चले जा रहे थे पीछे से किसी गाड़ी की जोर से होर्न सुनाई दी उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो एक गाड़ी बहुत तेजी से आ रही थी शायद उस गाड़ी के ब्रेक फेल हो चुकी थी, उनकी इतनी उम्र के कारण इतनी जल्दी अपनी जगह से वे हिल भी नहीं सकते थे डर से उन्होंने अपनी आंखें भीच ली लेकिन तभी किसी ने उन्हें खींचकर साइड में कर लिया जब अरविंद जी ने आंखें खोली तो उन्होंने देखा कि किसी ने उन्हें बचा लिया था उन्होंने उस लड़के के सामने देखा तो लड़का गोरा उसकी काली आंखें और लंबा था वह बहुत ही हैंडसम था अरविंद जी ने उसे शुक्रिया किया, और उन्होंने उससे पूछा बेटा मुझे लगता है तुम इस गांव में नए हो, मैंने तुम्हें पहले कभी देखा नहीं इस गांव में?? वैसे तुम कहां से हो, उस लड़के ने कहा अंकल जी मेरा नाम अर्जुन है और मैं भोपाल से हूं। अरविंद जी ने कहा बेटा तो तुम यहां कैसे ??अर्जुन ने कहा वैसे मैं एक मुसाफिर हूं मुझे अलग-अलग जगह पर जाना अच्छा लगता है मैंने इस गांव के बारे में बहुत सुना था तो मैं इस गांव की खूबसूरती को निहारने और इस कैमरे में यहां की सुंदरता कैद करना चाहता हूं। मैं यहां की तस्वीरें खींच रहा था और मैंने देखा भी आपको गाड़ी से टक्कर लगने वाली थी इसीलिए मैं दौड़ा चला आया। अरविंद जी अर्जुन को अपने घर ले गए और एक नौकर को उसके लिए चाय नाश्ता की व्यवस्था करने के लिए कहा, अरविंद जी और अर्जुन ने बहुत सारी बातें कि वह लगभग चार-पांच घंटे तक उनके साथ उस घर में रहा और तब तक उस घर के हालात भी वो अच्छी तरह से समझ चुका था। अरविंद जी ने कहा बेटा जब तक तुम इस गांव में हो तब तक तुम यहां हमारे घर में हमारे साथ रह सकते हो। और अर्जुन भी आखिर में उनकी बात मान गया। बाद में अरविंद जी ने अर्जुन को अपने पूरे परिवार से मिलवाया। मुझसे मिलने के बाद अर्जुन अब अच्छी तरह से दो भाइयों के बीच के मतभेद समझ चुका था। अर्जुन को अब उनके घर में 5 दिन हो चुके थे।
शाम को अर्जुन तीनों बच्चों यानी रजत शर्मा की दो बेटियां मीनल, पिंकी और मयंक शर्मा का बेटा मोंटू के साथ बैठकर बातें कर रहा था। तीनों बच्चों की बातें सुनकर ऐसा लग रहा था कि जैसे वह घर के हालात से बहुत परेशान हैं। अर्जुन ने कुछ सोचा फिर कहा घर में बाकी सब लोग कहां गए, बच्चों ने कहा हमारी मम्मी मंदिर गई है और दादा जी गांव के कुछ काम से गए हुए हैं। अर्जुन ने यह बात सुनकर शैतानी मुस्कुराहट के साथ बच्चों को अपने पास बुला कर उनके कान में कुछ कहा।
15 मिनट बाद मोंटू रजत जी के कमरे की तरफ हांफते हुए भाग रहा था ,और दूसरी तरफ पिंकी भी उसी तरह हांफती हुई मयंक जी के कमरे की तरफ भाग रही थी मोंटू कमरे में गया और उससे हांफते हुए कहा ब ड़े पा..पा, बड़े पापा... वो पापा.. इतना कहकर वह रुक गया, रजत जी ने कहा क्या हुआ मेरे भाई को। मोंटू ने कहा, वह सीढ़ियों से गिर गए और उनका बहुत सारा खून बह रहा है और यह कह कर वह रोने लगा।दूसरी तरफ पिंकी ने भी अपने मयंक चाचा से कुछ ऐसा ही कहा दोनों भाई डर से भागने लगे घर के बीचो-बीच लोगों ने एक दूसरे को देखा और चिंता से दोनों एक दूसरे के गले लग गए। रजत जी ने कहा, मेरे भाई तुम्हें क्या हुआ है तुम ठीक हो। उसी तरह मयंग ने कहा भैया आप ठीक हो , आपको कहां लगी है तब तक सब लोग घर में आ चुके थे , और अरविंद जी यह नजारा देखकर शॉक और खुश दोनों ही थे अब दो भाई मिल चुके थे। दो परिवार बहुत ही खुश थे। तीनों बच्चों ने सारी बातें सब को बताई। दादा जी ने अर्जुन को गले से लगा लिया। और उन्होंने कहा आज से तुम मेरे पोते हो तुम जब चाहो यहां आ सकते हो अब यह तुम्हारा भी घर है और अर्जुन का अब घर से जाने का समय हो गया और यह मुसाफिर निकल चुका था अब अपनी किसी और राह पर।
दादाजी ने सोचा कि एक अनजान मुसाफिर बनकर अर्जुन के रूप में ईश्वर ने मेरे परिवार को मिला दिया।