astha singhal

Drama Romance

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Drama Romance

एक ऐतिहासिक प्रेम कहानी

एक ऐतिहासिक प्रेम कहानी

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हुबा बानो की एतिहासिक प्रेम कथा 


 Disclaimer:- यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है। इसके पात्र, घटनाएं, समय, सब काल्पनिक है। यह केवल मनोरंजन की दृष्टि से लिखी गई है। किसी व्यक्ति विशेष से इसका संबंध केवल एक संजोग मात्र होगा। 


18 वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत में अंग्रेजी शासन अपने पैर पसार चुका था। भारत के हर प्रांत का राजा, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ लड़ रहा था। ऐसे में उत्तर प्रदेश जिसे उस समय पश्चिमोत्तर प्रांत के रुप में जाना जाता था, वहां भी सभी प्रांतों के राजा मिलकर ब्रिटिश के खिलाफ लड़ रहे थे। 

वहां के एक छोटे से राज्य के राजा रतन सिंह एक बहुत ही बढ़िया शासक थे। 1857 के रिवोल्ट में उन्होंने भी सभी प्रांतों के राजाओं के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। उनका छोटा सा राज्य धन-धान्य से संपूर्ण था। शांति और अमन का प्रतीक था। 


राजा रतन सिंह को अन्य राजाओं की भांति नाच- गाने सुनने का बहुत शौक था। उनके महल में एक से एक नृतकाएं थीं। उन दिनों एक नर्तकी हुबा बानो का बहुत नाम था। उनका नाम और नृत्य कला में पारंगत होने की चर्चाएं राजा रतन सिंह के कानों तक भी पहुंच गयीं। उन्होंने तुरंत हुबा बानो को न्योता भिजवा दिया। 


हुबा बानो ने राजा रतन सिंह का न्योता स्वीकार कर लिया और उनके महल में अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन करने हाज़िर हो गईं। 


हुबा बानो ने नृत्य प्रारंभ किया और राजा रतन सिंह उसके हुस्न और नृत्य दोनों के कायल हो गए। हुबा बानो की खूबसूरती ने उनको मोहित कर दिया। नृत्य पेश करने के उपरांत जब हुबा बानो अतिथि कक्ष में आराम कर रहीं थीं तब राजा रतन सिंह ने अपने वहां आने का संदेशा भिजवाया। हुबा बानो थोड़ा चौंक गयीं। क्योंकि आज तक कोई हिन्दू राजा उनके पास ऐसे मिलने नहीं आया था। 


"हुज़ूर, आपने तकलीफ़ क्यों उठाई। हमें बुला लिया होता। कनीज़ आपकी खिदमत में हाज़िर हो जाती।" हुबा बानो ने आदाब अर्ज़ करते हुए कहा। 


हुबा बानो की इस अदा और मनमोहक आवाज़ के राजा रतन सिंह कायल हो गए। वह कुछ पल हुबा बानो को मदहोश हो सुनते रहे फिर बोले, "आप हमारी मेहमान हैं और हमारे यहां मेहमानों की बहुत इज़्ज़त की जाती है। मैं बस यह जानने आया था कि आपको आपके इस कक्ष में किसी भी चीज़ की आवश्यकता लगे तो अवश्य कहें।" 


हुबा बानो ने इतराते हुए अपनी जुल्फों को झटका और बोली, "वैसे तो सब सही है, पर एक गुज़ारिश है आपसे। कमरे में मेहक की कमी है…." 


हुबा बानो आगे बोल ही रहीं थीं कि राजा रतन सिंह ने एक ताली बजाई और एक खिदमतगार उनके सामने उपस्थित हो‌ गयी। 


"हमारी खास मेहमान के कमरे को खास इत्र की खुशबू से महका दो। ताकि जब ये नींद के आगोश में सोएं तो इन्हें सुंदर और खूबसूरत स्वप्न ही दिखाई दें।" राजा रतन सिंह ने यह कह कर हुबा बानो की तरफ देखा और मुस्कुराते हुए वहां से चल दिए। 


***********

अब राजा रतन सिंह की हर शाम हुबा बानो का नृत्य देखने में निकलती थी। वह उनके नृत्य में खो से जाते। उनका ध्यान राज्य के कार्यों से हटने लगा था और हुबा बानो की खूबसूरती की तरफ बढ़ने लगा था। 


एक दिन हुबा बानो राज्य के बागीचे में सैर कर रहीं थीं कि तभी राजा रतन सिंह वहां आ गये। 

"हुज़ूर आदाब! आप यहां? कोई…विशेष बात?" हुबा बानो ने अचरज भरी निगाहों से पूछा। 


राजा रतन सिंह कुछ पल उनकी आंखों को देखते रहे फिर सहसा बोल उठे, "आपकी आंखें बहुत खूबसूरत हैं। ये बात आपको बहुत लोगों ने बोली होगी। पर क्या आप जानती हैं कि इनकी खूबसूरती का राज़ क्या है?" 


"तारीफ के लिए शुक्रिया। पर राज़ क्या है ये मैं सच में नहीं जानती। आप ही बता दीजिए।" हुबा बानो ने अपनी सुंदर कजरारी आंखों को राजा रतन सिंह के चेहरे पर टिकाते हुए कहा। 


"उसके लिए आपको हमारे साथ कहीं चलना पड़ेगा। क्या आप चलेंगी?" राजा रतन सिंह बोले। 


हुबा बानो बिना सवाल किए उनके साथ चल पड़ीं। राजा रतन सिंह उन्हें एक सुंदर से उपवन में ले आए। वहां चारों तरफ खूबसूरत फूल, पानी के फव्वारे और चारों तरफ खूबसूरत फूलों से लदी बेलें थीं। राजा रतन सिंह के कहने पर हुबा बानो वहां बनी संगमरमर की छतरी के नीचे बैठ गयीं। 


"अब बताएं हुज़ूर, क्या राज़ है?" 


राजा रतन सिंह हुबा बानो के करीब बैठ गए और बोले, "राज़ ये है कि आज तक इन खूबसूरत आंखों में किसी ने अपना बसेरा नहीं बनाया। इसलिए ये आज भी इतनी स्वच्छ, निर्मल, और पवित्र हैं। सच ..कह रहा हूँ ना मैं?" 


हुबा बानो थोड़ा शर्मा गयी। वह राजा रतन सिंह से नज़रें नहीं मिला पा रही थीं। तभी राजा रतन सिंह ने उसके झुके चेहरे को अपने हाथों से उठाया और उसकी आंखों में देखते हुए बोले, "क्या वो पहले शख्स हम बन सकते हैं?" 


हुबा बानो घबरा गईं। वह समझ नहीं पाईं कि राजा रतन सिंह कहना क्या चाहते हैं। क्या वो उन्हें अपनी रानियों में स्थान देना चाहते हैं या फिर केवल अपने मनोरंजन का साधन बनाना चाहते हैं। राजा रतन सिंह हुबा बानो के उत्तर का इंतज़ार कर रहे थे। 


"हुज़ूर, गुस्ताखी माफ, पर ….आप इस राज्य के राजा हैं। और मैं…एक नर्तकी । यह …कैसे संभव है?" 


"हुबा बानो, आपकी खूबसूरती ने मेरे दिल को अंदर तक छू लिया है। और इस खूबसूरती के बिना मेरा जीवन अधूरा रह जाएगा। समाज की परवाह रतन सिंह नहीं करता। आप अपनी इच्छा बताएं। आप राज़ी हैं कि नहीं?" 


"हुज़ूर, हुबा आपकी हर अदा की बहुत कायल है। आप मेरे सपनों के शहज़ादे हैं। यूँ तो मुझे बहुत से राज्यों से नृत्य प्रस्तुत करने के लिए निमंत्रण आते हैं। मैं हर निमंत्रण स्वीकार नहीं करती। पर जब आपका निमंत्रण मिला तो ऐसा लगा जैसे सदियों की तलाश खत्म हो गई। आपकी बहादुरी के इतने किस्से सुने कि मैं आपसे मन ही मन…. प्रेम कर बैठी। ये पल भी मुझे किसी स्वप्न से कम नहीं लग रहा।" हुबा बानो ने राजा रतन सिंह की आंखों में डूबते हुए कहा। 


सूर्य की लालिमा कम हो रही थी और चंद्रमा की रौशनी बढ़ती जा रही थी। दो प्यार भरे दिल मिल रहे थे और चंद्रमा उसकी गवाही दे रहा था। 


*************

महल में अपने कमरे में पद्मा देवी, राजा रतन सिंह की सबसे बड़ी रानी, उनके इंतज़ार में चहलकदमी कर रहीं थीं। "आज भी राजन नहीं आएंगे शायद" वह अपने आप से बड़बड़ाते हुए बोली। तभी द्वारपाल ने सूचना दी कि राज माता उनके कक्ष में आ रही हैं। 


राज माता के पैर छू वह एक तरफ खड़ी हो गयीं। रात के इस पहर में उनके आने का मकसद समझ नहीं पा रही थीं।


"रानी पद्मा, रात्रि के इस पहर में आपके कक्ष में आने की क्षमा चाहते हैं।" राज माता बोलीं।


"राज माँ, ये कह आप मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं। बेटी के कक्ष में आने के लिए आपको क्षमा मांगने की आवश्यकता ही नहीं है।" रानी पद्मा ने हाथ जोड़ नमन करते हुए कहा। 


"रतन, अभी तक नहीं आए? कहां हैं वह? कोई संदेश आया उनका? यूँ रात्रि में आपको जगा छोड़कर वह कहां हैं?" राज माता ने प्रश्नों की बौछार कर दी। पर इनमें से किसी भी प्रश्न का सही उत्तर रानी पद्मा के पास नहीं था। वह सिर झुकाए खड़ी रहीं। और उनकी आंखों से नीर बह निकले। 


राज माता बखूबी उनकी चुप्पी को समझ गयीं थीं। 

"पद्मा, क्या ये सब उस मुस्लिम के आने के बाद शुरू हुआ है?" 


रानी पद्मा ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा, "शायद राजन को वह नर्तकी भा गई है। हमेशा उसी के पास खोए रहते हैं। ना राजपाठ की चिंता है और ना ही हमारी। शायद हम अब उन्हें पसंद नहीं।" 


"पद्मा, हमारा समाज राजा को एक से अधिक विवाह की अनुमति देता है, किन्तु अपने कुल और वंश की मर्यादा को ध्यान में रख कर विवाह होता है। एक नर्तकी और वो भी मुस्लिम, हमारे राज्य की रानी कभी नहीं बन सकती।" राज माता ने कड़क स्वर में ऐलान किया, "आप चिंता ना करें, हम ऐसा अनर्थ नहीं होने देंगे।" 

ये कह राज माता वहाँ से चलीं गईं।


***************

"माँ, आपने मुझे याद किया।" राजा रतन सिंह ने राज माता के कक्ष में प्रवेश करते हुए कहा। 


"आओ पुत्र, बहुत दिनों से आपके दर्शन नहीं हुए थे इसलिए सोचा कि आपको कक्ष में ही बुला लिया जाए।" 


"जी, कहिए, क्या बात है?" 


"राज्य का कामकाज कैसा चल रहा है?" राज माता ने कड़क स्वर में पूछा।


राजा रतन सिंह ने अनमने ढंग से कहा, "ठीक चल रहा है माँ।" 


"आपको याद है, आपने हमसे एक वचन मांगने को कहा था। पर हमने उस वक्त वचन यह कह कर नहीं लिया कि सही वक्त आने पर माँगेगे।" राज माता बोलीं। 


"जी, माँ बिल्कुल याद है। आप जो माँगना चाहते हैं आप हमसे नि: संकोच कह सकती हैं।" 


"सोच लीजिए पुत्र, आप निभा पाएंगे?" 


"ये कैसी बातें कर रही हैं आप माँ? एक राजा की ज़ुबान कभी खाली नहीं जाती। हम सूर्यवंशी हैं। एक बार वचन दे दिया तो हम उससे पीछे कभी नहीं हटते। और आप हमारी माता हैं। आपका हुक्म तो यूँ भी सिर आंखों पर है। बोलिए माँ, क्या वचन चाहिए हमसे?" राजा रतन सिंह ने एक सूर्यवंशी राजा की भांति पूछा।


राज माता अपने कक्ष की खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गयीं और कुछ पल के मौन के बाद बोलीं, "हुबा बानो को इसी समय इस राज्य की सीमा से बाहर कर दिया जाए और इस वादे के साथ कि वह दोबारा कभी इस महल तो क्या इस प्रांत में भी दिखाई नहीं देंगी। और, उनके शोक में आप अपना बहुमूल्य समय व्यतीत नहीं करेंगे। अपितु अन्य राज्यों की भांति स्वतंत्रता संग्राम में अपनी अहम भूमिका निभाएंगे।" 


राजा रतन सिंह को बहुत गहरा आघात लगा। हुबा से उनके दिल के तार कुछ इस कदर जुड़ चुके थे कि उन्हें खुद से अलग करना बेहद मुश्किल था। पर वचन दिया था उन्होंने, उससे पीछे नहीं हट सकते थे। 


राजा रतन सिंह के हुक्म पर हुबा बानो को राजा रतन सिंह का संदेश पहुंचाया गया।


"आप एक सशक्त नृत्यांगना हैं। आपने हमारा अपने नृत्य से भरपूर मनोरंजन किया है। पर अब राज्य ने यह फैसला लिया है कि देश की स्वतंत्रता संग्राम में हमारा राज्य भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेगा। लक्ष्य से कोई भटके नहीं इसलिए नृत्य का आयोजन अब राजमहल में नहीं किया जाएगा। इसलिए आपकी सेवाएं अब हमें नहीं चाहिए। जब तक दोबारा आने के लिए निमंत्रण ना दिया जाए तब तक आप इस राज्य की सीमा में प्रवेश नहीं कर सकते। आपके कीमती समय के लिए बहुत बहुत आभार।

राजा रतन सिंह।" 

संदेश पढ़ हुबा की आंखों में नमी आ गई। पर उसने अपने आंसू पोंछे और हुक्म की तामील करते हुए वहां से रुखसत हो गईं। राजा रतन सिंह अपने महल के कक्ष की खिड़की से उन्हें जाते हुए देख रहे थे। कहीं ना कहीं वह अंदर तक टूट चुके थे क्योंकि राज माता को दिए वचन को निभाने के लिए उन्होंने हुबा बानो को दिया वचन तोड़ दिया था। यह आघात वह सहन नहीं कर पा रहे थे। 


***************

एक साल पश्चात, सन् 1857 के विद्रोह के बाद पश्चिमोत्तर प्रांतों में एक विद्रोह की लहर छिड़ गई। बहुत से छोटे प्रांतों ने एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ दी। ऐसी ही एक जंग में राजा रतन सिंह बहुत बहादुरी के साथ लड़े। लड़ते - लड़ते वह और उनका घोड़ा घायल हो गए। अंग्रेजों के वार से बचने के लिए वह एक जंगल की तरफ बढ़े। वह कैसे भी करके मराठा साम्राज्य तक पहुंच उन्हें एक विशेष सूचना देना चाहते थे। पर घायल होने के कारण वह उस घने जंगल में मूर्छित हो गये। 


जब उन्हें होश आया तो वह एक छोटी सी कुटिया में एक खाट पर लेटे थे। उनके घावों पर मरहम लगी थी। उन्होंने तुरंत उठने का प्रयास किया पर पैर की चोट के कारण खड़े नहीं हो पा रहे थे। तभी एक मीठी, जानी पहचानी ध्वनि उनके कानों में पड़ी,


"हुज़ूर, आप लेटे रहें। अभी ज़ख्म ताज़ा हैं।" 


उन्होंने पलट कर देखा तो सामने सादे कपड़ों में हुबा बानो हाथों में लेप का कटोरा लिए खड़ी थीं। राजा रतन सिंह आश्चर्य से उनकी तरफ देखा रहे थे। तभी वह उनके समक्ष आ कर बैठ गयीं और उनके ज़ख्मों पर लेप लगाने लगीं। सादगी में भी उनकी खूबसूरती देखते ही बनती थी। राजा रतन सिंह बस उन्हें एकटक देखते जा रहे थे। 


"अब आप आराम करें हुज़ूर। जितना आराम मिलेगा उतनी जल्द आप ठीक‌ हो पाएंगे।" 


"आप…. यहाँ कैसे? अपने राज्य वापस नहीं लौटीं आप?" राजा रतन सिंह ने पूछा। 


"हुज़ूर, लम्बी कहानी है जिसका अब कोई अस्तित्व नहीं है। आप इसमें ना उलझें। अंग्रेजों के खिलाफ जो जंग छेड़ी है आप उसपर अपना ध्यान लगाएं।" 


"मेरी जान बचाने के लिए शुक्रिया।" राजा रतन सिंह बोले। 


"आपकी जान बचाकर एक तरह से हमने अपनी जान बचाई है हुज़ूर।" हुबा बानो ने पलट कर जवाब दिया। तभी एक बच्चे की रोने की आवाज़ आने लगी। हुबा बानो उस तरफ दौड़ पड़ीं। 


राजा रतन सिंह से रहा ना गया। वह भी धीरे - धीरे उठ वहां तक पहुंचे तो देखा एक पांच माह का बच्चा हुबा बानो की गोद में खेल रहा था। 


"ये ….ये पुत्र….किसका है?" राजा रतन सिंह की आंखों में अनेकों प्रश्न थे। 


हुबा बानो ने नज़रें उठाकर उन्हें देखा। उसकी नम आंखें सारी दास्तान बयां कर रही थीं। 


"हुबा ये हमारा…..हमारा पुत्र ….ओह मेरे मालिक कितना बड़ा अनर्थ हो गया मुझसे। आपने सब अकेले कैसे…?" 


"हुज़ूर आप इस वक्त ये सब ना सोचें। केवल देश के बारे में सोचें। इस वक्त देश सर्वोपरि है।" यह कह हुबा बानो ने बच्चे को वापस कपड़े से बने पालने में लेटा दिया। 


दो हफ्ते तक हुबा बानो ने राजा रतन सिंह की बहुत सेवा की। पर रतन सिंह को उनके बेटे के नज़दीक आने और उसे उठाने की इजाज़त कभी नहीं दी। 


"ये हमारा खून है हुबा बानो। आप इस तरह इसे हमसे दूर नहीं रख सकतीं।" 


"हुज़ूर, ये आपका खून ज़रूर है पर एक मुस्लिम माँ की संतान है। आपका राज्य आप पर उंगली उठाएगा। आपको हमारी वजह से सबके सामने इसे पुत्र के रुप में स्वीकार करने के लिए गिड़गिड़ाना पड़ेगा। ये मुझे मंज़ूर नहीं। आपकी मान मर्यादा, प्रतिष्ठा पर मेरी वजह से ज़रा सी भी आंच आए ये मैं नहीं बर्दाश्त कर सकती। इसलिए आपको इसके मोह से दूर रख रही हूँ।" हुबा बानो ने अपना मत रखते हुए कहा जिसे स्वीकार करने के अलावा राजा के पास दूसरा विकल्प नहीं था। 


************


"हुज़ूर, जल्दी से उठें। आपको अभी इसी वक्त नदी पार कर निकलना होगा। मैंने आपके लिए एक नाव तैयार करवाई है। नाव वाला आप ही के राज्य का है। वह आपको उस पार ले जाएगा।" हुबा बानो ने हड़बड़ी में कहा। 


"पर अचानक क्या हुआ?" 


"हुज़ूर, अंग्रेजों के सैनिक यहां आने वाले हैं। इसलिए आप तुरंत निकल जाएं। आपकी जान बहुत कीमती है देश के लिए।" हुबा बानो बोलीं। 


"और आप और हमारा…पुत्र?" राजा रतन सिंह ने पूछा तो हुबा बानो ने कोई जवाब नहीं दिया। बस राजा को नदी के छोर पर ले गयी। 


"आप जाएं हुज़ूर। हमारी चिंता ना करें।" 


तभी हुबा बानो के आंचल से चिपका उनका पुत्र रोने लगा। हुबा के अंदर का ममत्व जाग उठा। राजा रतन सिंह भी उसे अपनी गोद में लेने को उत्सुक हो उठे। तभी हुबा बानो ने अपने पुत्र को उनकी गोद में देते हुए कहा, "हुज़ूर, मैं ये उम्मीद बिल्कुल नहीं करती कि आप मेरे पुत्र को अपना नाम दें….पर…एक गुज़ारिश है आपसे….मेरे पुत्र को किसी महफूज़ हाथों में सौंप दीजिए। मेरी ममता का इतना मान तो रख ही सकते हैं आप!" हुबा बानो की आंखों में ममत्व की झलक साफ दिखाई दे रही थी। 


राजा रतन सिंह ने अपने पुत्र को सीने से लगा लिया। वह चाहते हुए भी हुबा बानो को अपने साथ अपने राज्य में नहीं ले जा सकते थे। क्योंकि वह वचनबद्ध थे। नाविक ने नाव को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया। हुबा बानो का हाथ धीरे - धीरे छूटता गया। दोनों की आंखों में विरह की वेदना स्पष्ट झलक रही थी। 


कुछ समय पश्चात जब नाव बीच नदी में थी तो राजा रतन सिंह और नाविक ने एक ज़ोर का धमाका सुना। नावक की आंखों में आंसू थे। 


"ये क्या धमाका था नाविक? तुम इस बारे में क्या जानते हो?" राजा रतन सिंह ने चौंक कर पूछा। 


"राजन, हुबा बानो को आज जंगल से लकड़ी लाते समय अंग्रेजों की फौज अंदर जंगल में प्रवेश करती दिखाई दी। निश्चिंत ही उन्हें आपके ठिकाने का पता चल गया था। हुबा बानो ने तुरंत मुझे संदेश दिया और बताया कि फौज उस कुटिया पर बम्ब गिराने वाली है। इसलिए आपके प्राणों की रक्षा और देशहित के लिए आपका यहां से तुरंत निकलना आवश्यक है। निस्संदेह, यह धमाका उन्होंने ही उस कुटिया पर किया है।" नाविक ने सब बताते हुए कहा।


राजा रतन सिंह की आंखों से आंसू बह निकले। वह हुबा बानो की देशभक्ति के जज़्बे से भावविभोर हो उठे। 


"समाज की नज़र में आप एक नर्तकी हैं, जिसका स्वयं का कोई वजूद नहीं है। राज्य की नज़र में आप एक मुस्लिम हैं इसलिए आपको अपनाना मतलब अपने धर्म से दगा करना था। परंतु हमारी नज़र में आप ना केवल हमारे पुत्र की माँ हैं अपितु एक सच्ची देशभक्त हैं। देशभक्ति का ना कोई रंग होता है और ना धर्म। देशभक्ति केवल उसी इंसान के हृदय में पनप सकती है जो अपने स्वार्थ से ऊपर उठ केवल अपने देश के हित के बारे में सोचे। आपको शत-शत नमन।" यह कह राजा रतन सिंह ने कुटिया की जलती लपटों की तरफ देखते हुए हाथ जोड़े और अपने पुत्र के भी नन्हे हाथों से नमन कराया।



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