एक आकस्मिक निर्णय
एक आकस्मिक निर्णय
गायत्री देवी में चाहे जो भी ऐब हो, एक विषय में उनकी किस्मत बड़ी अच्छी थी। उन्होंने बहू बड़ी कमाल की पाई थी! अनामिका इंसान नहीं साक्षात् देवी थी! जो दिनरात उनकी किसी भी निंदा की तनिक भी परवाह न किए बिला नागा हर रोज उनकी देखभाल किया करती थी। कितने वर्ष हो गए इधर वह तो मायके तक नहीं जा पाई थी।
मुहल्ले की सारी औरते अनामिका की प्रशंसा करते नहीं थकती थीं और मन ही मन गायत्री देवी के बहू भाग्य पर जला भी करती थी।कल भोर भोर खबर मिली कि चौधरी भिला वाली गायत्री देवी का स्वर्गवास हो गया। यह दुःखद समाचार तुरंत आग की तरह मुहल्ले भर में फैल गई। इलाके के लोग भी तब आनन फानन में उनके घर सांत्वना देने के लिए पहुंच गए। चौधरी भिला में एक अच्छी खासी भीड़ इकट्ठी हो गई थी।
काफी वर्षों से विस्तर पर पड़ी रहनेवाली गायत्री देवी की निर्बल और अपाहिज काया को अंततः मुक्ति मिल गई। यह समाचार दुखद होते हुए भी थोड़ा संतोषजनक अवश्य था। परंतु उससे भी बड़ी बात यह थी कि उनकी कड़वी जबान , जो मुहल्ले में किसी को भी न बख्शती थी, जिससे हर कोई इंसान परेशान था, उससे छुटकारा मिल गया। गायत्री देवी ऐसी शख़्सियत थी जिनकी कि हर किसी के बारे में राय सदा खराब ही हुआ करती थी। मान लीजिए कि मुहल्ले में कोई नई दुल्हन ने कदम रखा। गायत्री देवी उसको जानती तक नहीं, इसलिए उससे उनकी दुश्मनी होने की तनिक भी संभावना नहीं , फिर भी वे उसकी निंदा जरूर करेंगी।
आजतक कभी भी , किसी के प्रति अच्छा कहते हुए उनको किसी ने न सुना था। इसलिए उनकी मृत्यु पर मुहल्ले वालों ने एक तरह से चैन की बंसी बजाई थी।
यूं तो मृत्यु ऐसी दुःखद स्थिति होती है कि लोग दुशमनी भूलकर भी सगे संबंधियों को सांत्वना देने बहुधा पहुंच जाया करते हैं। इसलिए मुहल्लेवालों ने कल से चौधरी भिला के सामने बड़ी तादाद में मेला सा जमावड़ा डाल दिया था।राकेश और अनामिका सुबह से ही मेहमानों की देखभाल में जुटे हुए थे। राकेश तो मर्द था, इसलिए खुलकर मातृशोक प्रकट नहीं कर पा रहा था। परंतु अनामिका को थोड़ी -थोड़ी देर में गंगा- यमुना बहाते देख पड़ोसिनें आपस में यह चर्चा करने लगीं--
"देखो , अनामिका कैसे फूटफूटकर रो रही है।" एक पड़ोसिन बोली।
"ऐसी सास के लिए भी इतना शोक! सचमुच अनामिका देवी है।" दूसरी ने कहा।
" गायत्री जी ने जरूर पिछले जन्म में कोई पुण्य किया था, जो उन्हें ऐसा बहू मिला।और एक मेरी बहू है, वह तो इस इंतजार में बैठी है कि मैं कब अपनी आंखें बंद करूं। उसका तब जो जी में आएगा वह कर पाएगी। कोई रोक-टोक करने वाली न होगी।" तीसरी ने कहा।
इन सब कानाफूसियों से दूर अनामिका का हाल कुछ अलग ही था। वह अपने आपसे नजरें नहीं मिला पा रही थी। अपने एक आकस्मिक निर्णय पर उसे बड़ा रंज हो रहा था। सोच रही थी कि उसे उसदिन अकस्मात् इतना क्रोध क्यों आ गया था कि वह अपना संतुलन ही खो बैठी थी और तकिए से सास का मुंह दबा दिया था। बरसों से जिस कड़वी जबान के साथ उसका उठना-बैठना था, उसे उसदिन क्षणभर के लिए झेलना इतना दूभर क्यों हो गया था ??
इधर सास का इल्जाम भी तो अत्यंत कुत्सित था।पड़ोस के हेमंत के साथ उसके नाजायज संबंध की बात उसकी सास चीख-चीखकर मुहल्ले में फैलाना चाहती थी।क्या वह ऐसा होने दे सकती थी?!!