दुविधा
दुविधा
आधे घंटे की झमाझम पानी का बरसना शहर की निचली बस्तियों की जिंदगी को त्राहि-त्राहि कर रहा है।
सभी के घरों में घुटनों से ऊपर तक पानी भर गया, कहीं से भी निकलने का नाम नहीं ले रहा था। सभी चीजों को कहाँ तक उपर सुरक्षित रख सकते हैं ?
सड़क से लेकर घरों तक पानी ही पानी !
बाहर बच्चे मस्ती से पानी में छप-छपाई खेल रहे थे, अंदर बेबस माँ- बाप बेबसी में भगवान और नगर-निगम को कोस रहे थे।
एक ढंग का नाला भी नहीं खोद पाते हैं कि पानी की निकासी हो सके ?
और हम आदमी की तरह जी तो सकें...
हे भगवान, जब तक एक अच्छा सा मकान नहीं दे देते हो, तब तक नहीं बरसना।
चूल्हा तक नहीं जला सकते कि तवा को लाल गर्म करके बरसते पानी में फेंक सकें ।
दूर कहीं किसान भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि हे भगवान बस इसी तरह मौसम भर बरसना, ताकि इस बार तो फसल अच्छी हो और मेरे आत्महत्या की नौबत न आएँ।
आसमान के पार भगवान दुविधा में पड़े हैं कि आखिर किसकी सुनें ?
(मान्यता है कि बहुत बारिश हो रही हो तो तवा को गर्म लाल कर बरसते पानी में पटक देने से बारिश रूक जाती है )
