दूसरा प्रतिशोध : वंशबेल

दूसरा प्रतिशोध : वंशबेल

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रुक्मणी देवी अपने जवान पोतो आदित्य और जयोतिर्मय को देखकर आश्चर्यचकित थी की कितनी जल्दी वो जवान हो गए थे। ऐसा लगता है की कल ही वो पैदा हुए थे और उसके देखते-देखते ही जवान हो गए थे। उनके अच्छे भविष्य के लिए उसे कितनी बड़ी क़ुर्बानी देनी पड़ी थी। बीस साल पहले जब उसका बड़ा बेटा विजय उस छोटी जात की लड़की वंदना को ब्याह कर उसकी हवेली में लाया था, वो दिन उसकी जिंदगी का सबसे मनहूस दिन था। उसने विजय को बहुत समझाया था की मजा मस्ती कर के उस लड़की से छुटकारा पा ले, लेकिन विजय ने उसकी बात नहीं मानी और उस लड़की के साथ उसकी हवेली, उसे छोड़ कर चला गया। उसी दौरान उसके छोटे बेटे रंजीत ने विजय को फर्जी बलात्कार के केस में फंसा कर जेल भिजवा दिया, बलात्कार का आरोप उनके पुराने नौकर हरिया की बीवी नैना ने लगाया था और अदालत में बयान भी दिया था। अदालत ने विजय को आठ साल की सजा सुनाकर जेल भेज दिया। रुक्मणी देवी को पता था की विजय की बीवी को उसके जेल जाने के बाद एक लड़की भी पैदा हुई थी, जिसके बारे में रुक्मणी देवी कहती-कौन जाने किस का पाप है l

वो अपने बड़े बेटे के जेल में जाने से परेशान तो थी परन्तु उस छोटी जात की चुड़ैल से पीछा छूट जाने से खुश भी बहुत थी। उसे वो दिन भी याद है जिस दिन उसे खबर मिली थी की विजय को जेल के एक खूंखार कैदी न मार डाला है, उस दिन वो टूट गयी थी परन्तु अपने छोटे बेटे और उसके जुड़वाँ बेटों को देख कर उसे कुछ ढांढस बांध था। सत्यानाश हो उस चुड़ैल और उसकी बेटी का जिनकी वजह से उसका विजय मारा गया।

कार तेजी से उनके काली घाटी स्थित उनके फार्म हाउस की तरफ दौड़ी जा रही थी। कार आदित्य ड्राइव कर रहा था और ज्योतिर्मय उसके बगल की सीट पर बैठा था। रंजीत जो उसके पास बैठा था बोला, "माँ विजय बिज़नेस के पैसे से सोना खरीद कर जमा करता रहा लेकिन आप को पता भी नहीं चला?"

"चोरी तो वो मुझसे करता था लेकिन इस सोने की बात मुझे पता नहीं लग सकी।" रुक्मणी गम्भीरता से बोली। 

"शायद उस चुड़ैल और उसकी बेटी के लिए छुपा कर रखा था?"

"ऐसा ही रहा होगा।"

कल हवेली के स्टोर से एक पुरानी डायरी मिली थी जो शायद विजय ने लिखी थी। जिसमे फार्म हाउस के तहखाने में रखे बक्सो में से एक में उसके छिपाये सोने की दस ईंटो का जिक्र था। खबर से रंजीत और उसके बेटे बहुत खुश थे, कल रात तीनों ने शराब पीकर जश्न मनाया था। 

रुक्मणी एक चालाक औरत थी, उसे विश्वास नहीं था की ऐसा कोई खजाना फार्महाउस के तहखाने में था। उसे किसी षडयंत्र की बू आ रही थी, लेकिन मरा हुआ आदमी क्या षड्यंत्र करेगा, यही सोच कर वो भी अपने बेटे और पोतो के साथ फार्महाउस जा रही थी।

काली नदी का पुल पार करते ही काली घाटी का मनहूस नज़ारा उनके सामने था, उजाड़ और रेतीली, कोई पैदावार नहीं, बस टीले ही टीले और उनमें छिपे डकैत। भला हो उस बेवकूफ़ जैक का जो इन डकैतों से अकेला भीड़ गया था और इस घाटी से डकैतों का नामो निशान मिटा दिया था। अब भी इक्के दुक्के डकैत लूटमार करते रहते थे, लेकिन जैक के डर से जल्दी ही घाटी से भाग भी जाते थे। कर्नल दर्रा शुरू हो गया था, कौन जाने किस कर्नल के नाम से इस दर्रे का नाम कर्नल दर्रा पड़ा था।

करीब एक घंटे में कार ने कर्नल दर्रे का उबड़ खाबड़ रास्ता तय किया। रुक्मणी देवी ने कनखियों से रंजीत को देखा, कितना शातिर था वो, भाई को झूठे केस में फंसा कर जेल भिजवा दिया। उसे पूरा विश्वास था के जेल में विजय के मारे जाने में भी उसका ही हाथ था। अच्छा हुआ ऐसे कुल कलंक का तो मर जाना ही बेहतर था। पता नहीं वो चुड़ैल उसकी बेटी कहाँ है? मर खप गयी होंगी।

कर्नल दर्रा पार हुआ अब कुछ कुछ दूरी पर विल सिटी के रईसों के फार्म हाउस शुरू हो गए थे। ये सब रईसों की अय्याशी के अड्डे थे, उसके पति संग्राम सिंह ने भी ये फार्म हाउस अपनी ऐश परस्ती के लिए ही बनवाया था और जवानी के दिनों में यहाँ शराब और शबाब के मजे लेता था। लेकिन देवा गैंग ने फिरौती के लिए उसे उठा लिया था, फिरौती का दस करोड़ भी दिया गया था लेकिन गैंग ने संग्राम सिंह को कभी वापस नहीं किया था। कहते है उन्होंने उसे मार कर यही घाटी में दफ़न कर दिया था। 

फार्म हाउस आ गया था, रंजीत ने आगे बढ़कर गेट का ताला खोला और कार मुख्य इमारत की और बढ़ गयी। रंजीत अपना ज्यादा वक़्त अपने बाप की तरह शराब और शबाब में ही गुजरता था। पुश्तैनी दौलत लगभग ख़तम हो गयी थी, विजय ने रियल एस्टेट के कारोबार में अच्छा पैसा कमाया था लेकिन सत्यानाश हो उस चुड़ैल का जिसकी वजह से उसका कमाऊ बेटा मारा गया। रंजीत के बेटों के मुँह शराब तो लग ही चुकी है और आजकल लड़कियों के पीछे घूमते रहते है। आज इस छिपे सोने का मिलना बहुत जरूरी था नहीं तो बची खुची ज़मीन बेचने की नौबत आ पहुँची है।

फार्महाउस की इमारत काफी बड़ी थी जो देख रेख न होने की वजह से खंडहर में तब्दील होती जा रही थी। तहखाने के रास्ता इमारत के पिछवाड़े से था। वो चारों धूल भरे गलियारे पार कर पिछवाड़े पहुंचे और सीढ़ियों से तहखाने में उतरे, चारों तरफ धूल ही धूल थी। पुराने कबाड़ में सात आठ बक्से भी रखे थे, ज्यादातर में ताले नहीं लगे थे। पहले उन्हें ही खोल कर देखा गया, उनमें कबाड़ के अतिरिक्त कुछ न निकला।

ताले वाला बक्सा भारी था। दोनों लड़के बक्से को खींच कर तहखाने के बीच में ले आये और रंजीत की तरफ देखने लगे। 

"ताला तोड़ दो लड़को l" रंजीत बोला l

दोनों लड़कों ने एक लोहे की छड़ से चोट मारकर ताला तोड़ डाला। तीनों बाप बेटे बक्से के पास आ गए और उत्सुकता से उसे देखने लगे। रुक्मणी देवी थोड़ा दूर से ये सब देख रही थी। रंजीत ने कुंडा पकड़ कर बक्से का ढक्कन खोला, अंदर का नज़ारा मनमोहक था। बक्से में चाँदी के बर्तन भरे हुए थे, सोना शायद नीचे होगा। सोने के लालच से ललचाई आँखों से तीनों बाप बेटों ने चाँदी के बर्तनों को हटाना शुरू किया। लेकिन तभी एक अजीब सी फुफकार तहखाने में गूंजी और चाँदी के बर्तनों से पतले और लंबे अनगिनत सांप उछले और तीनों बाप बेटों के चेहरे और शरीर के अन्य हिस्सों को डसने लगे, घबराये बाप बेटों ने सांपों को अपने शरीर से उतार फेका और तहखाने के दरवाज़े की तरफ दौड़े। परंतु वो ज्यादा दूर न जा सके और वही तहखाने के फर्श पर गिरकर तड़पने लगे। रुक्मणी देवी ये खौफनाक नज़ारा देख कर तहखाने से भाग निकली और बाहर जाकर मदद के लिए चिल्लाने लगी। लेकिन मदद के लिए मीलों दूर तक कोई नहीं था। वो रोती बिलखती दोबारा तहखाने में पहुंची, सांप कबाड़ में जा छिपे थे और उसका बेटा और पोते फर्श पर पड़े तड़प रहे थे। वो डरती डरती उनके पास पहुंची, परन्तु वो तीनों होश में नहीं थे। सांप के जहर से उन्हें लकवा मार गया था। रुक्मणी देवी के आँसू थम नहीं रहे थे, उसका वंश उसकी आँखों के सामने दम तोड़ रहा था।


होटल कैसल, विल सिटी 


रश्मि ने अपने लैपटॉप पर मौत का यह भयानक मंजर देखा और उसके चेहरे पर एक खोखली सी मुस्कान आ गयी। उसके पिता के हत्यारे और उसके बेटों को उसने उनके अंजाम तक पहुंचा दिया था, रुक्मणी देवी की सजा की शुरुआत हो चुकी थी l

उस फर्जी डायरी को रंजीत सिंह तक पहुँचाना मुश्किल नहीं था, ये काम उसके वफ़ादार नौकर हरिया ने केवल बीस हजार में कर दिया था। माम्बा सांपों का इंतज़ाम थोड़ा मुश्किल था लेकिन जानवरों के स्मगलर टेरी मैक्स ने सिर्फ १० लाख में कर दिया था। उन्हें चाँदी के बर्तनों के साथ बक्से में भरने का इंतज़ाम भी टेरि ने किया, बाकी सब आसान था, सांप भरे बक्से को फार्म हाउस के तहखाने में रखना, वहां एक वेब कैम लगाना और होटल के कमरे से बैठ कर मौत का नज़ारा देखना।

पुलिस जल्द ही इस गुत्थी को सूझ लेगी, लेकिन हरिया को डायरी देने वाले ग़ायब हो चुके थे, टेरी साउथ अफ्रीका जा चुका था। और उसे भी वापस अमेरिका जाकर अपनी आर्किटेक्चर फर्म को संभालना था। आई आई टी दिल्ली से बी आर्क करने के बाद उसने आई आई ऍम अहमदाबाद से ऍम बी ऐ किया था और कोई नौकरी न कर अपनी आर्किटेक्चर फर्म खोली और आज अपना कारोबार अमेरिका तक फैला लिया था। सब उसके माँ की त्याग और मेहनत का फल था, जिसने छोटी छोटी नौकरियाँ कर उसे पाला और पढ़ाया था।


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