Swapnil Vaish

Romance

4.6  

Swapnil Vaish

Romance

दूरियां भी हैं ज़रूरी

दूरियां भी हैं ज़रूरी

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खनकती रंग-बिरंगी चूड़ियों और छमछमाती पायलों के साथ धरा ने अपने भरे पूरे संपन्न ससुराल में गृहप्रवेश किया। यूँ तो लक्ष्मी की कोई कमी नहीं थी उसकी ससुराल में पर फिर भी सासूमाँ ने उसकी हाथों के छाप लेकर देवी माँ से कृपा बनाये रखने की प्रार्थना की। धरा एक मध्यम वर्गीय परिवार की सुंदर सुशील और आत्म विश्वास से परिपूर्ण लड़की थी, उसने वकालत पढ़ी थी और प्रैक्टिस करना चाहती थी पर पापा की बीमारी के चलते उन्हें उसके हाथ पीले करने की आखिरी तमन्ना थी। जो उन्हें कुछ हो जाता तो न जाने बिन माँ की बेटी की शादी भाई भाभियाँ कैसे घर में करा देंगें सो उन्होंने धरा को शादी के बाद प्रैक्टिस करने की सलाह दी।

वैसे तो पुरोहित परिवार शहर के नामचीन परिवारों में से एक है और सब लोग सरल हृदय होने के साथ-साथ खुले विचारों के भी धनी हैं। धरा को परिवार तो बहुत अच्छा लगा लेकिन अविनाश उसके मन को न जीत पाया, एक तो वो आज कल के लड़कों की तरह स्मार्ट नहीं था, और कारोबार संभालने के चक्कर में पढ़ाई में भी हमेशा पीछे ही रहा और सिर्फ स्नातक ही रह गया। धरा को यही बात हज़म नहीं हो पा रही थी, कहाँ वो इतनी सुंदर और वकील और कहाँ उसका होने वाला पति जो अपना इंट्रोडक्शन भी देने में हिचकिचा रहा हो, ऐसे लड़के की वो क्या इज़्ज़त कर पाएगी, तो प्यार तो दूर की बात है। 

" पापा मैं इस लड़के से शादी नहीं करूंगी, धान की बोरी जैसा पेट है, चश्मा लगाता है, सांवला है, बात करने में कोई आत्म विश्वास नहीं ऐसा लगता है मानो इसने अपनी ज़िंदगी में कुछ स्वयं अर्जित ही न किया हो। मैं इस लड़के से सिर्फ इसलिए शादी करूँ क्योंकि इसका खानदान अमीर और फेमस है। पापा मैं इस लड़के से प्यार नहीं करती और इससे शादी नहीं करना चाहती," धरा ने पापा से कहा।

बात आई गयी हो गयी, अचानक एक दिन जब धरा सहेलियों के साथ मॉल में थी तभी उनकी भाभी का फ़ोन आया कि पापा को हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया है और वो उसी को याद कर रहे हैं। धरा घबराई हुई हॉस्पिटल पहुँची तो पापा के शरीर पर नलियों के जाल को देख जैसे उसकी सांसे भी थम सी गयीं। भाभियों ने बताया कि शुगर लेवल और बी पी अचानक बढ़ जाने से हार्ट अटैक आ गया सो जल्दी से हॉस्पिटल लाया गया पापाजी को। 1 महीने हॉस्पिटल में गुज़ारने के बाद धरा के पापा घर लौट आये और उन्होंने उसे समझाते हुए कहा

" बेटा रंग रूप तो बाहरी दिखावा है, भीतर की सुंदरता को पहचान। अविनाश बहुत सुलझा हुआ और शांत स्वभाव का लड़का है, वो तेरे जीवन की सरिता को नई दिशा देगा। रूप का क्या है, उम्र के साथ सब फीका हो जाता है पर मन हमेशा सुंदर बना रहता है। अगर तुझे कोई और पसंद है तो बात और है?"

" पापा, दो बड़े भाईओं के होते हुए क्या कोई लड़का मेरी तरफ देख भी सकता है जो मुझे कोई और पसंद होगा। पर पापा हर लड़की अपने जीवनसाथी के लिए कुछ कल्पनाएं करती है, कुछ ऐसी विशेषतायें चाहती है जो उसके जीवनसाथी को स्पेशल बना दें, क्या एक लड़की इतना भी नहीं चाह सकती। लड़के चाहें किसी भी लड़की से शादी कर सकते हैं, बिना खुद को जज करे हुए और यदि लड़की अपने मन पसन्द लड़के से शादी करना चाहे तो उसे जज किया जाता है। मैं इसके खिलाफ हूँ पापा, " धरा ने पूरे जोश में पापा से कहा। आखिर उस वकील से कौन जीत सकता था। बात आई गयी हो गई।

कुछ दिनों बाद धरा ने भी प्रैक्टिस शुरू कर दी, और अपनी नई काली सफेद ज़िन्दगी में उसने उम्मीदों के न जाने कितने रंग भर दिए। सुंदर तो वो थी ही और आत्मविश्वास उसके चेहरे को और अधिक कांतिमय बना देता था। एक दिन कारोबार के किसी केस के मामले में अविनाश भी कोर्ट पहुँचा हुआ था, उसने धरा को दूर से आते हुए देखा तो स्वयं को किसी पेड़ के पीछे छुपा लिया और छुप छुप कर धरा को निहारने लगा। अपने वकील से उसने धरा के बारे में पूछ ताछ करी तो पता चला कि वो फैमिली कोर्ट की बहु चर्चित वकील है, कई जटिल केसेज़ उसने अपनी वाक पटुता और कौशल से जीते हैं।

अविनाश मन ही मन बहुत खुश हुआ और उसने अपना चश्मा साफ करते हुए ये निश्चय किया कि वो धरा को ही अपना जीवन साथी बनायेगा। सो, अपने लाडले बेटे की अभिलाषा पूरी करने पहुँच गयीं उसकी माँ फिर से धरा के आंगन उसका हाथ मांगने।

" तिवारी जी, मेरे अविनाश को धरा बहुत भा गयी है, अरे जब से उसे देख कर गया है तब से न जाने कितनी लड़कियां दिखा दीं इसे पर इसे कोई पसन्द ही न आती है, धरा को जो दिल में कैद करके बैठा है बावला। अब तो आप सगाई का मुहूर्त निकलवाईये। हम भी धरा के घर आने की तैयारी करते हैं।" 

धरा के पापा पुरोहितों को ना न कह सके क्योंकि इतने बड़े घर से बार बार रिश्ता आने का मतलब परमात्मा ने धरा के लिए अविनाश को ही चुना है, इस बात पर अब पापा ने मोहर लगा दी। धरा को भी वकालत करने के बाद प्रैक्टिस करने की पर्मिशन देने के हवाले दिए गए, पर उसने तब भी अपनी ज़िद नहीं छोड़ी तो पापा ने उसे समझाया

" बेटा मैं उन्हें किस मुँह से मना करूँ, क्या उनसे ये कहना मुनासिब होगा कि आपका बेटा थोड़ा मोटा, थोड़ा काला है और चश्मा भी लगता है इसलिए हमारी धरा को पसंद नहीं है। देख तेरे भाइयों की तरफ इनमें कौन से सुरखाब के पर लगे हैं, और अब अपनी भाभियों की तरफ नज़र घुमा कर देख; क्या इन्हें ऐसे पति मिलने चाहिए थे?? बेटा जोड़ियां ऊपर वाला बनाता है, वो जनता है हमारे लिए क्या सही है। अविनाश अच्छा लड़का है, तुझे खुश रखेगा। मेरी बात मान जा, इतने बड़े घर के लोग हाथ जोड़कर तुझे मांग रहे हैं, तू बहुत भाग्यशाली है बेटा,"

धरा ने अब हाँ बोल दी पर उसका मन तो बिल्कुल नहीं था अविनाश को अपने जीवनसाथी के रूप में स्वीकारने का, पर पापा और भाइयों के आगे उसने इस बार हथियार डाल दिये। घर मे शादी की धूम थी, धरा की सहेलियां उसे अविनाश के नाम से जब भी चिड़ातींं तो वो गुस्से में आग बबूला हो कर उन्हें भाग देती। 

खैर शादी हो गयी और धरा अपनी ससुराल पहुंच गई। सारे रीति रिवाजों के चलते हर कोई नवयुगल को छेड़ रहा था। जहाँ अविनाश इन सबसे शर्मा रहा था वहीं धरा को गुस्सा आ रहा था, पर करती क्या चुप चाप होटों पर नकली हंसी ओढ़े सारी रीतियाँ निभाती गयी। 

दिन सब रिवाज़ों को निभाते निभाते बीत गया, अब रात हुई तो धरा की धड़कन तेज़ हो गयी। ठिठोली करती हुई नंदे उसे कमरे में ले गयीं जो फूलों से साराबोर था। वो नज़ारा देख कर धरा की हालत और पतली होने लगी, वो मन ही मन न जाने कितने संकल्प विकल्प करती जा रही थी कि तभी अविनाश भीतर आ गया और उसने धरा से कहा 

" धरा, तुम थक गई होगी...आई इंसिस्ट की तुम सो जाओ, कल भी आराम से उठना। किसी बात की कोई टेंशन मत लेना देर तक सोने के लिए हमारे घर मे कोई किसी को कुछ नहीं कहता", और अपना तकिया उठा कर दीवान पर लेट गया। धरा को थोड़ी हैरानी तो हुई पर नींद उसपर इतनी बेसब्र हो रही थी कि वो बस थैंक गॉड कह कर सो गई। 

सुबह अविनाश के मोबाइल की रिंग से धरा की पलकें खुलीं, नज़र घड़ी पर गयी तो 10:30 हुआ था, हड़बड़ा कर बिस्तर पर से उठी और रात के मकउप और हैवी कपड़ों में ही सो जाने के लिए खुद को कोसती जा रही थी। तभी अविनाश बाथरूम से बाहर आया और धरा को गुड मॉर्निंग बोलते हुए अपने फोन पर बात करने लगा। जब उसकी बात खत्म हुई तो धरा को दर्पण में निहारते हुए अविनाश ने उससे कहा

" धरा, मुझसे शादी करने के लिए धन्यवाद। देखो तो सूरज की किरणों ने तुम्हारे चेहरे पर कैसा तेज बिखेर दिया है, जो ये दर्पण भी बटोरने में सक्षम नहीं है। मैं बाहर ही हूँ, तुम्हारा सामान यहीं रखवा दिया था, किसी नौकर से कह कर जिस आलमारी में चाहो वहाँ रखवा लेना। ये कमरा उतना ही तुम्हारा है जितना मेरा बल्कि थोड़ा ज़्यादा ही समझो," और मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर चला गया।

धरा ने जल्दी से दरवाज़ा बंद किया और अविनाश की बातों पर हंसते हुए सोच रही थी कि बेचारा कितने जतन कर रहा है मुझे रिझाने के लिए। बहराल धरा फटाफट तैयार होकर नाश्ते की टेबल पर आ गयी और अविनाश से थोड़ी दूर पर बैठ गयी। उसने नाश्ता करते करते सासू माँ से कोर्ट जाते रहने की अनुमति मांगी जो उन्होंने सहर्ष दे दी, और देती क्यों न वो खुद भी तो एक डॉक्टर थीं और बेनागे हॉस्पिटल जाया करती थीं, फिर धरा को घर पर कैसे बैठा देख सकती थीं। 

अविनाश ने धरा को कोर्ट छोड़ने के लिए गाड़ी निकाली और सोचा कि गाड़ी में थोड़ी बात चीत हो जाएगी। दोनों गाड़ी में कोर्ट की तरफ बढ़ने लगे। धरा को चुप देख कर अविनाश बोला

" मुझे लगता था, वकील लोग बहुत बातें करते हैं, पर तुम तो कितनी शांत हो। कोई परेशानी है तो मुझसे शेयर कर सकती हो धरा।"

" अविनाश...गाड़ी वहाँ उस कॉफी शॉप पर रोकना, बेहतर होगा हम बात करलें," धरा ने कॉफी शॉप की तरफ इशारा करते हुए कहा। 

दोनों ने अपना ऑर्डर दिया तभी धरा ने अपने मन की गाढ़ें अविनाश के सामने खोलना शुरू करीं। 

" अविनाश मुझे अच्छा लगा जो तुमने कल रात को किया, मुझे समझने के लिए थैंक्स। पर मैं तुमसे प्यार नहीं करती...आई मीन कोई लड़की ऐसे किसी अजनबी से प्यार नहीं कर सकती। तुम जब पहली बार मेरे घर आये थे, मुझे बिल्कुल पसंद नहीं आये, मैने अपने जीवन साथी कि जो इमेज सोची थी तुम उससे बिल्कुल अलग हो। मैं शादी वाले दिन भी तुमसे शादी नहीं करना चाहती थी, पर पापा के लिए उनकी खुशी के लिए मैंने ये किया। पर पता नहीं मैं कब तक तुम्हें एक्सेप्ट कर पाउंगी...तुम्हारा मन नहीं दुखाना चाहती पर सैकडों झूटों के बोझ को उठाने से अच्छा है एक सच बोलना।"

" क्या तुम्हारी जन्दगी में कोई और है... धरा?" अविनाश ने पूछा

नहीं अविनाश मेरी ज़िंदगी में कोई भी नहीं है, तुम समझ रहे हो कि मैं क्या कहना चाह रही हूँ। मुझे तुमसे प्यार नहीं है, तो कोई उमीन्द मत रखना मुझसे प्लीज़," धरा ने कहा, " बस इतनी सी बात...अरेंज मैरिज में इश्क़ पहले नहीं बाद में ही होता है, मैं तुम्हें कभी किसी चीज़ के लिए फ़ोर्स नहीं करूंगा। जितना समय लेना चाहती हो ले लो...लेकिन देखना तुम एक दिन मुझसे बेहद प्यार करोगी। पता है मैंने शादी से पहले तुम्हें कितनींं बार कोर्ट में छुप छुप कर देखा है, और हर बार हर रोज़ ईश्वर से यही दुआ करता था कि तुम मेरी ज़िंदगी में अपना उजाला भर कर उसे रोशन कर दो। मैंने कभी किसी को इतना नहीं चाहा जितना तुम्हें चाहा है धरा, और तुम्हें खुश रखने के लिए मैं कोई बंधन नहीं बाँधूँगा, तुम्हें जब मन करे मेरे पास चली आना। तब तक इस अजनाबी से दोस्ती तो कर ही सकती हो...क्यों??," अविनाश ने अपना हाथ धरा की तरफ बढ़ाते हुए कहा।

" हाँ आज से मैं तुम्हारी फ्रेंड हुई," धरा ने झट से एक सेल्फी ले डाली और फेसबुक पर " माई न्यू फ्रेंड", कैप्शन के साथ पोस्ट कर दी। 

"धरा मुझे सोशल मीडिया में फोटोज़ अपलोड करना पसंद नहीं है"

" तो आदत डाल लो अविनाश बाबू... क्योंकि मुझे सोशल मीडिया पर फ़ोटो डालना बेहद पसंद है"। और दोनों हंसने लगे।

शादी को 1 महीना बीत गया, अविनाश के बड़े भाई ने हनीमून पर जाने को कहा तो अविनाश ने ये कह कर टाल दिया कि जब धरा का केस खत्म होगा तब सोचेंगें। धरा ने चैन की सांस ली और अविनाश ने उसे आंख मारते हुए एक और पॉइंट कमा लिया।

6 महीनों में धरा और अविनाश बहुत अच्छे दोस्त तो बन गए लेकिन फिर भी धरा अविनाश से वो जुड़ाव महसूस नहीं कर पा रही थी जो प्यार के लिए ज़रूरी होता है। अविनाश ने कभी उससे कारण नहीं पूछा और हमेशा सपोर्ट किया।

कुछ दिनों के लिए अविनाश को कनाडा जाना था, जब धरा को पता चला तो 

" तुम मुझे छोड़ के जा रहे हो, अकेली"

" अकेली... हा हा हा अरे अकेला तो मैं होंगा वहां, तुम तो सबके साथ ही होगी न।"

" मैं नहीं जानती तुमने वादा किया था मुझे कोई परेशानी नहीं होगी।"

"तो तुम परेशान हो क्या मेरे जाने से...लगता है वकील साहिबा को इश्क़ हो गया है।"

 " ज्यादा खुश मत हो, ये कभी नहीं होगा समझे। ठीक है जाओ," धरा चाह कर भी ये नहीं बोल पायी कि उसे अविनाश की याद आएगी। भारी मन से उसने अविनाश को एयरपोर्ट छोड़ा।

2 दिन तो किसी तरह धरा ने निकाल लिए लेकिन अविनाश के बिना उसे अधूरा अधूरा सा लगता था, वो अविनाश को मिस कर रही थी। इस दूरी ने उसे एहसास दिलाया कि वो अविनाश से प्रेम करने लगी थी। अब उसका घर पर रुकना और कठिन हो गया। धरा ने अपने जेठ से कनाडा के लिए टिकट बुक करने का आग्रह किया, तो उन्होंने हँसते हुए हांमी भर दी।

कनाडा पहुँच कर जब धरा अविनाश के होटल पहुँची और उसके रूम पर नॉक किया तब अविनाश के तो मानो पैरों में आसमान आ गया हो, धरा ने उसका हाथ पकड़ कर और अपने गुटनों पर बैठ कर कहा

" मिस्टर अविनाश...मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं तुमसे ये कहूंगी...कि मैं भी तुमसे इश्क़ करने लगी हूँ। क्या तुम अब भी मुझे चाहते हो ?" धरा को होटल लॉबी में आने जाने वाले लोग ये करते हुए देख कर हंस रहे थे पर आज उसे किसी की परवाह नहीं थी सिवाय अविनाश की।

अविनाश ने उसे गले लगाते हुए कहा 

" मैं तो हमेशा से ही तुमसे प्यार करता आया हूँ, लेकिन आज तुमने यहाँ आकर मुझे जो खुशी दी है धरा... मैं अपनी आखरी सांस तक नहीं भूलूँगा। मेरी ज़िंदगी को अपने प्यार से सराबोर करने के लिए शुक्रिया"।

दोस्तों कभी कभी कुछ रिश्तों को पनपने के लिए कुछ वक्त, कुछ स्पेस देनी पड़ती है, क्योंकि रिश्ते ज़ोर ज़बरदस्ती से टूट जाते हैं।


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