मुझे पिघल कर बहना मंजूर नहीं
मुझे पिघल कर बहना मंजूर नहीं
" तुम एक अच्छी माँ नहीं हो अपर्णा... अपने दुध मुहे बच्चे को कोई छोड़ कर ऑफिस जाता है क्या? शर्म आनी चाहिए तुम्हें ", अपर्णा की सास सुबह सुबह फिर शुरू हो गईं।
" माँ, वो काम नहीं करेगी तो इतने बड़े शहर में जो तुम ठाठ से रह रही हो ना, रह नहीं पाओगी। जाना पड़ेगा गाँव पिताजी और बुआजी के पास उनके ताने सुनने। अब बाताओ जाना है? तुम्हें सिर्फ गोलू को संभालना ही तो है बाकी सब कामों के लिए सविता है ना, और अब ये रोज़ रोज़ का ड्रामा खत्म करो। " वरुण ने अपनी माँ से कहा।
"शांत हो जाओ वरुण, प्लीज़ मम्मी जी से ऐसे बात मत करो, कहीं ना कहीं उनकी बात भी सही है।"
" मम्मी जी मैं आपकी बात समझती हूँ, लेकिन वरुण भी ग़लत नहीं हैं। गोलू मेरा दूध नहीं पीता इसलिए ज्यादा बड़ा इशू नहीं है, आप चिंता ना करें।" अपर्णा ने अपनी सास का हाथ थामते हुए कहा।
उसने सास की परेशानी तो हल कर दी, लेकिन पूरे दिन वो यही सोचती रही कि वो कितनी मतलबी माँ है।
पर असल में वो मतलबी माँ नहीं थी, वो तो बस सबको एक खुशहाल जिंदगी देने की कोशिश कर रही थी।
रात को खाना खाने के बाद जब लेटी तब भी उसका मन शांत नहीं हुआ, वो आत्मग्लानि के भँवर में डूबती जा रही थी कि तभी अचानक रात को कुछ गीला गीला लगा, उठी
तो पास सो रहे बेटे के नीचे छू कर देखा...लेकिन ये क्या वो तो आराम से सूखा ही सो रहा था...फिर ये क्या है जो उसे भिगो रहा था...तभी अचानक आंख से वो तरल बाहर आ ही गया जो भीतर रिस रहा था। उसी क्षण अपर्णा ने निश्चय किया कि...नहीं....नहीं मैं रोऊँगी नहीं, मुझे मज़बूत बनना होगा। यूँ तो कोई भी कुछ भी कहता है तो क्या मैं यूँ ही भीगती रहूँगी? नहीं मुझे मज़बूत बनना है...अपने लिए...अपने परिवार के लिये।मुझे पिघल कर बहना मंज़ूर नहीं...।
मैं एक अच्छी माँ हूँ जो अपने बच्चे के सुनहरे भविष्य के लिए अपना आज स्वाहा कर रही है, पर मैं कमज़ोर नहीं पड़ सकती।