प्रेम की डोर
प्रेम की डोर
इस सत्य से तो कोई भी अनभिज्ञ नहीं कि बड़े शहरों में रहने वाले लोग अपने लाइफस्टाइल को बरकरार रखने के लिए जी तोड़ मेहनत करते हैं, चाहे पति हो या पत्नी। जीवन की इसी जद्दोजहद में जो सबसे अकेले होते हैं वो और कोई नहीं इन्हीं लोगों के मासूम बच्चे होते हैं।
परी बहुत बड़े और महँगे स्कूल में के जी क्लास की 5 वर्ष की बेहद मासूम बच्ची थी। उसके माता पिता एक बड़ी कंपनी में अच्छे ओहदे पर कार्यरत थे। घर में सी.सी. टी वी लगवा रखा था जिससे मेड पर नज़र रखी जा सके। परी के माता पिता दफ्तर से ही उसपर नज़र रखते थे और उसकी सुरक्षा सुनिश्चित हो जाती थी।
स्कूल में भी परी को सब बहुत चाहते थे, उसकी पसंदीदा टीचर थीं नीता मैडम। कुछ दिनों से उन्होंने नोटिस किया कि हर पल खिलखिलाने और चहकने वाली परी कुछ गुमसुम सी रहती है और उनका होमवर्क भी पूरा नहीं होता। नीता मैडम ने परी से इसका कारण पूछा तो उस मासूम ने कहा
" मैंम...मुझे घर जाने का मन नहीं करता। मम्मी पापा बहुत लड़ते हैं, गुस्से में पापा समान फेंकते हैं और मम्मी घर से बाहर चली जाती हैं। मुझे बहुत डर लगता है और इसलिए होमवर्क नहीं कर पाती"।
परी की बातें सुनकर नीता मैडम की आँखें भर आईं और उन्होंने परी के कोमल हृदय की वेदना स्वयं महसूस करी।
" परी बेटा... मम्मी पापा से कहना मैंने बुलाया है ठीक है", नीता मैडम ने प्यार से परी से कहा।
नीता उस रात ठीक से सो नहीं पाई और यही सोचती रही कि न जाने ऐसा क्या हुआ होगा परी के घर में जिसने उसके चेहरे की मुस्कान तक छीन ली। कैसे माता पिता हैं, जिनको ईश्वर ने संतान सुख तो दिया पर उन्हें उसे सहेजना नहीं सिखाया। सोचते सोचते न जाने कब उसकी आंख लग गई।
अगले दिन परी के मम्मी पापा नीता मैडम से मिलने आये तो नीता ने स्पष्ट शब्दों में उनसे बात करी
" परी बहुत चंचल बच्ची है और होनहार भी, पर बीते दिनों से उसके स्वभाव में कुछ परिवर्तन आया है, जिसकी वजह आप दोनों हैं। मुझे परी ने बताया कि आप दोनों घर में लड़ाई करते हैं, जिससे परी बेहद हताश और डरी हुई है। देखिए मैं आपके निजी मामलों में नहीं पड़ना चाहती पर अपने विद्यार्थी की मुझे बहुत फिक्र है नहीं तो परी के मासूम हृदय में जो भी स्मृतियां रह जाएंगी वो उनका भविष्य निर्धारित करेंगी। अब ये आपको सोचना है कि अपनी बेटी को आप कैसी यादें देना चाहते हैं।"
परी के माता पिता आत्मग्लानि से ग्रस्त हो सर झुकाए खड़े थे। परी के पिता ने हिम्मत बटोर कर कहा
" मैडम हम बहुत शर्मिंदा हैं कि हमने अपने आवेश में परी के बारे में सोचा ही नहीं। दफ्तर के तनावों के चलते हम दोनों इतने परेशान थे कि उसकी झुंझलाहट एक दूसरे पर निकालते। परी जैसे कोमल बच्ची पर इसका क्या असर होगा ये सोचा ही नहीं। कृपया माफ कर दीजिए"।
" मैडम मैं भी बहुत शर्मिंदा हूँ, एक औरत होते हुए भी मैं ये भूल गई कि मुझे अपने बच्चे का ख्याल रखने से ज़्यादा और कुछ मायने नहीं रखता। हम वादा करते हैं आगे से कोई शिकायत का मौका नहीं देंगे। माफ करिये", परी की माँ ने भी अपनी गलती मान कर माफी मांगी।
" मैडम यूँ तो आप हमारी परी की टीचर हैं, पर आज हमें जो शिक्षा आपने दी है उसके चलते अब आप हमारी भी गुरु हो गईं। जो व्यक्ति हमें प्रेरित कर उचित मार्ग पर अग्रसर करे वही तो गुरु होता है। आपको हमारा नमन", परी के माता पिता ने नीता मैडम से कहा।
" परी अब तो आप खुश हो न बेटा, मैंने आपके मम्मी पापा को समझा दिया है, अब वो कभी नहीं लड़ेंगे... ठीक है न?", नीता मैडम ने परी से कहा।
इस बात को 12 साल बीत गए और नन्ही परी अब 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर मेडिकल की पढ़ाई करने दूसरे शहर जा रही है। स्कूल के आखरी दिन वो नीता मैडम से मिलने स्टाफ रूम में पहुंची और एक खूबसूरत सा कार्ड देते हुए बोली
" नीता मैंम...शायद आपको पता नहीं लेकिन इतने वर्षों में मैंने आपको मात्र अपनी टीचर नहीं अपितु एक और माँ समझा है जो मुझे और मेरी क्षमताओं को मुझसे ज़्यादा जानती हैं। मुझे आज भी वो दिन याद है जब आपने मेरे मम्मी पापा को सही सुझाव देकर मेरे मासूम बचपन की हिफाज़त कर सुंदर यादें देने को कहा था। मैं कुछ नहीं भूली और न भूलना चाहती हूँ मैंम। बस यही कहना चाहती हूँ कि आप मेरी आदर्श हैं मैं आपसे हमेशा एक प्रेम की डोर से बंधी रहूँगी और यदि कुछ हासिल कर पाई तो उसकी वजह आप ही होंगी। दूर ज़रूर जा रही हूँ पर आप सदैव मेरी प्रेरणा का स्तोत्र बन मेरे हृदय में वास करेंगी।"
नीता भावविभोर हो गईं और अपनी कुर्सी से उठ कर उन्होंने परी को गले लगाते हुए कहा
" किस्मत वाली तो मैं हूं जो तुम जैसे छात्रा मैंने पाई। बेटा मैं तुम्हारी सफलता की कामना करूँगी, अपना ध्यान रखना और मिलने आना"।
मित्रों याद करिये वो लम्हे जब हमारे गुरुओं ने हमें उचित मार्गदर्शन दे हमारी ज़िंदगी में वो मुकाम हासिल कराया जिसपर आज हम हैं।
मेरी आज की ये पोस्ट मेरी हिंदी टीचर श्रीमती नीलम मैंम को समर्पित करना चाहूंगी। ईश्वर उन्हें स्वस्थ रखे जिन्होंने मेरी रुचि हिंदी साहित्य में जगाई और मुझे सदैव प्रोत्साहित किया।