Mrugtrushna Tarang

Children Stories

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Mrugtrushna Tarang

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यूनिक हिस्टोरियन्स

यूनिक हिस्टोरियन्स

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सातवीं और आठवीं कक्षा के सोलह छात्रों को लेकर हिस्टोरिकल टूर पर अकेले निकलना ख़तरे से खाली न रहता। इसी ख़याल को शर्मा जी ने भी कोई भी पुख़्ता सबूत माँगे बगैर ही हाई स्कूल कमिटी से पर्मिशन दिलवा ही दी। और फिर तय हुआ कि, पैंतीस छात्र - छात्राओं के संघ को दो टीचर्स, एक सर और एक प्यून के साथ टूर मुक़म्मल की जायें।हिस्ट्री टीचर की कमी बेमन से सबको खल रहीं थीं। लेकिन, उनकी एब्सन्स को पूरा कर रहे ड्रॉईंग टीचर को सताने का बच्चों का प्लान कुछ कुछ समझ आ गया था।

शैतानों की टोली के उन तीन नमूनों को रंगे हाथों पकड़ने की तरक़ीब हिंदी टीचर ने भी स्पोर्ट्स सर से मिलकर जो कर ली थी।सुखदा पटवर्धन, ड्रॉईंग टीचर अपने डेढ़ साल के बेटे शुभम के साथ हिस्टोरिकल टूर पर आयीं हुई थीं।अनुपम शुक्ला, स्पोर्ट्स सर, अपनी जवानी के जोश को बरक़रार रखने के गुमान में ही मदमस्त रहते थे।हिंदी टीचर, तमन्ना जोशी, छोटे - बड़े सभी बच्चों की चहिती थीं। जो अपनी आठ साल की बेटी साहिबा के साथ आ रही थीं।

और, गुल्लन चचा, ओरिएंटल स्कूल के सबसे पुराने साथी, प्यून अंकल।बाक़ी शेष बचे थे सातवीं और आठवीं कक्षा के अल्लड़ बच्चें।

दिवाली के पहलेपहल कुल पच्चीस लोगों की घुमक्कड़ टोली इगतपुरी से आग्रा तक लंबी होने जो जा रही थी।ये वाक़्या वारदात में बदलने के लिए मानों धूप के हर दूसरे तीसरे कोने को समेटे हुए आगे बढ़ने को बेताब था।राजधानी एक्सप्रेस में B7 की आधी बोगी तो ओरियंटल स्कूल के बीस नगीनों से ही भरी पड़ी रहेंगीं। इसी उधेड़बुन में तीन टीचर्स अपने अपने हिस्से के बच्चों की बार बार गिनती करके तसल्ली कर लेते की सब आसपास ही मौजूद हैं। वक्त गुज़रता चला जा रहा था, और ट्रेन थी कि, इंतज़ार करवा रही थी।

चौदवीं के चाँद की भाँति ट्रेन भी खिलती हुई इगतपुरी स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर तीन पर आने के सिग्नल को एकटुक निहार रही थी।

अनाउंसमेंट जोरशोर से हो रहा था -

'नई दिल्ली जाने वाली राजधानी एक्सप्रेस, गाड़ी क्रमांक 'तीन दो शून्य पाँच सात' इगतपुरी स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर दो पर आ रही हैं। कृपया यात्रियों को निवेदन हैं कि, रेलवे ट्रैक से आवागमन न करें। और ट्रेन से उतरने वाले यात्रियों को उतरने का मौका पहले दें। धक्कामुक्की से बचें और छोटे बच्चों तथा बुज़ुर्गों का ख़याल रखें। एवं अपने माल सामान का भी ध्यान रखें। धन्यवाद।'

 "ये अनाउंसमेंट करने वाले कभी थकते नहीं क्या! कितना बड़बड़ाते रहते हैं दिनभर!" ओएसिस ने अपने दोस्त अल्तमश से रूखे स्वर में पूछा।

"अरे, छोड़ना यार उसे। ट्रेन में धमाल मचाने के बारे में सोचते हैं ना!"

"अरे! हाँ यार, बड़ा मज़ा आएगा।"

"ए तौफीक, तुमनें लिस्ट में लिखा सब सामान लाया है ना! कुछ भूला तो नहीं, देख ले यार!" प्रणव ने गौरांग की पीठ थपथपाते हुए पूछा।सेक बैग को टटोलते हुए सब चेक किया। और दायें हाथ को बैग में घुसाने पर हल्की सी मुस्कान चहेरे पर चिपकाते हुए 'गोलाकार' में गर्दन हिलाई। हर्षने उसका मतलब कुछ और ही सोच लिया। और झुँझलाते हुए वह गौरांग की ओर आगे बढ़ा। दूसरे हाथ का इस्तेमाल घुसा मारने के लिए करने ही वाला था कि, राधिका के पापा वहाँ पर आ पहुँचे। और बच्चों ने मामला रफा दफा कर लिया गया।ट्रेन प्लेटफार्म नंबर दो पर आकर चिखती हुई रुकी। लोगों की भीड़ बढ़ने लगीं।अफरातफरी में कोई छूट न जायें, उसकी जिम्मेदारी गुल्लन चचा और अनुपम शुक्ला सर ने बख़ूबी निभाई।

सारे बच्चें लगैज समेत बोगी नंबर B 7 में अपने अपने दोस्तों की सीट रोककर सेटल होने लगें।ट्रेन स्टेशन से छूटने के लिए सीटी बजाती चली जा रही थी। गार्ड ने ग्रीन सिग्नल दे दिया, और ट्रेन इगतपुरी स्टेशन छोड़कर नई दिल्ली की ओर आगे बढ़ने लगी।B7 की आधी बोगी किलकारियों से उभरने लगीं।

बाकी सारे लोगों को आधी रात के पहलेपहल हमारें बंदरों की चहल पहल से नींद टूटने का दर्द जो हो रहा था। गिर भी उस मीठे मीठे दर्द को सहलाते हुए लोलुप नैनों से घूरे जा रहें थे। 10 छोटी बड़ी गर्ल्स को अपने आँचल में छुपाती तमन्ना जोशी जी ने उन सभी बुज़ुर्ग पैसेंजर्स को नाटकीय ढंग से 'सॉरी' कहा। और अपने स्टुडेन्ट्स को अपने साथ ही लेकर कैबिन में चली गई।और वे सारे अठखेलियाँ करने की मुराद लियें उन्हें बस देखते ही रह गए।

तब 'मि टू' वाला मामला ज़ोर नहीं पकड़ा था। फिर भी मर्दों की वो लोलुपता से तरबतर हो रहीं निगाहों को तमन्ना जोशी जी अनुभवों की चादर के कोनों को खींचते हुए बर्बस गुज़र गई वहाँ से, बिना कुछ किये।ओरिएंटल स्कूल के सारे बच्चें अपनीं अपनीं सीट्स पर सेटल हो गए। एक घंटा सिर्फ स्टूडंट्स को सेटल करने में ही गया। अगले दिन की प्लानिंग कर सब अपने अपने बेड पर उबासियाँ लेते हुए सो गए।दो टीचर्स और प्यून भी अपनी अपनी केबिनेट में जाकर मोटी सी रजाई में दुबककर सोने की तैयारी में लग गए।प्यास से गला चटक रहा था, तो बोतल का ढक्कन खोल दो बूँद पानी गटक लिया।

    

दूसरी ओर एक टीचर की नींद हो चुकी थी हराम। मरते क्या न करतें! B7 की बोगी में चक्कर लगाने की क्या सूझी, अपनीं बिटिया के बगल वाली सीट पर तकिया डाल दिया। और उस पर बिछा दी रजाई। देखने वाले को पहली नज़र में यही लगें कि, टीचर घोड़े बेचकर सो रहे हैं।नन्हीं बिटिया साहिबा की ओर नज़रभर देख एक बार फिर तसल्ली कर ली, कि वो गहरी नींद में है। और अपने कैबिनेट की उन पाँचों लड़कियों को भी रजाई उठा उठा कर चेक कर लिया कि, सारे सो ही रहें हैं।टीचर जी हर एक केबिनेट में झाँकने लगीं। आखरी वाले केबिनेट के अतरंगी बच्चें प्यून गुल्लन चचा से उनकें ज़माने की कहानियाँ सुनते आधे लेटे हुए सुस्ता रहे थे। केबिनेट का दरवाज़ा खुलते ही नाटक मंडली के धुरंधरों ने गहरी नींद में सोने की एक्टिंग बखूबी से निभाई।

"क्या चचा, सब ठीक है ना! कोई परेशानी तो नहीं!" चचा के बगल में खड़े तमन्ना टीचर ने पूछा।

"हं, हां, क्या, कौन है?" कहतें हुए अपनी बंदूक तान के हड़बड़ाकर चचा खड़े हो गए।

 "बस क्या चचा! आप तो बच्चों के भी बाप निकलें एक्टिंग में!

भई वाह, मान गए आपकी हुनर का लोहा!अब तो एन्युअल गेदरिंग में आपकी ओर से एक परफॉर्मेंस तो बनता ही बनता है।

 क्यों बच्चों ठीक कहा ना मैंने!"

हर्षोल्लास के चलते बच्चें अपनीं गहरी नींद में सोने वाली एक्टिंग भूल गए। और, एक साथ हामी भरते हुए बोल पड़े -

"यस, एब्सोल्यूटली।"

"एकदम मेम! चक्नी आँखों से घूर रहे अल्तमश ने झट से कहा।"

हर कोई उसे ही घूर रहा था। और फिर सबकी हँसी फूट पड़ी।

टीचर को जगह देते हुए सारे बारी बारी से नीचे उतर आयें।

"टीचर, आपको भी नींद नहीं आ रहीं है ना!

मैं कब से इन सभी से कह रहा था कि चलो बोगी में घूमकर आते हैं। आधी से ज़्यादा सीट्स तो अपनीं ही है।पर किसीने मेरी एक न सुनी।" एक ही घूँट में सारा समंदर गटक जाने की हिम्मत रखता हो, वैसे एक ही साँस में सब उगल गया हार्दिक।

"सोते तो बुज़ुर्ग हैं। हम तो अभी जवानी की दहलीज़ पर क़दम दर क़दम आगे बढ़ने वालों में से हैं।

क्यों, ठीक बोला ना भाई लोग!!" निर्मित उत्साहित होकर गुल्लन चचा की सीट पर उछलकूद करते हुए बुदबुदाने लगा।

"निर्मित बाबा, चारपाई टूट जाएगी तो जुर्माना भरना पड़ेगा सो तो अलग। उल्टा कुछ घंटों के लिए जेल की सलाखों के पीछे क़दमताल भी करना पड़ जाएँ।"

निर्मित को हल्के हाथों से थामते हुए चचा ने उसे सीट से नीचे उतारा।

"बहसबाजी में बहुताहैत टाइम बर्बाद हो गया है।अब अपनी अपनी टूथपेस्ट लों और चलों मेरे साथ!"एक आवाज़ कौंधती हुई तेज़ हो गई। ऑर्डर मिलने पर पाँचों नगीने तैयार हो गए, युद्ध पर जाने के लिये।

पहली बोगी में अनुपम सर के साथ सो रहे बच्चों के चहेरे पर बारी बारी से चित्रकारी का नमूना पेश किया गया। किसीके हिटलर की मूँछे बनाई गई। तो किसीके अब्राहम लिंकन सी दाढ़ी।तभी एक छोटा सा हाथ ऊपर की ओर बढ़ा और हौले हौले बुदबुदाया -

"भैया, ये लो कलर पेंसिल्स। कार्टून ड्रॉ करने में काम आएगी।"

रजत ने झट से कलर पेंसिल्स का बॉक्स जैकेट में सरका दिया। और फिर ड्रॉइंग टीचर और अनुपम सर के भी चहेरे को उत्तम चित्रकारी से रंग दिया।

अब बारी आई गर्ल्स की।

कलर पेंसिल्स से उमेद ने और अल्तमश ने मिलकर निन्जा हथौड़ी, टॉम एन्ड जैरी, शिन चेन, छोटा भीम और न जाने क्या क्या कार्टून कैरेक्टर्स की रंगकारी की।सबकुछ निपटाने में घंटे भर का वक्त यूँही धींगामुश्ती में बीत गया। धीरे धीरे सब वहाँ से खिसकने लगें।और अपनीं कैबिनेट में आकर ठहाकेदार हँसने लगें।

"मैडम जी, आप इतने मज़ाक़िया होंगें, ये हमनें कभी न सोचा था।"चचा ने हल्की सी मुस्कान अपने मुँह पर पोतते हुए संजीदगी से कहा।और बाकी सारे स्टूडेंट्स टीचर की प्रतिक्रिया देखने के लिए उतावले हो उठे।

"मम्मा, यू आर सो एंजोयेबल! आई ऑल्सो डिडन्ट नॉ यॉर धिस टैलेंट!" हिंदी टीचर की गुड़िया ने झपाक से अपनीं मम्मा को गले लगाते हुए कहा।

उसको देख बाकी सारे झेंप से गए।

 "साहिबा तुम! और यहाँ! कैसे? सोई नहीं अब तक!"

"गुड गर्ल्स जल्दी सोते हैं और जल्दी उठते हैं। क्यों ओएसिस!" अल्तमश ने गुड़िया की पीठ थपथपाते हुए कहा।

 "ताहा को देखों। वो भी तो सो गया है।

चलों, मैं तुम्हें तुम्हारी सीट पर थपकियाँ लगातें हुए सुला देता हूँ।"बड़े बुजुर्गों की भाँति प्रणव ने गुड़िया को गोद में उठाया। और आख़री कैबिनेट की ओर चल पड़ा।

"प्रणव भैया, नींद नहीं आ रहीं है। मम्मा को यही बतलाने के लिए उठे थे। उनकीं सीट खाली देखी तो समझ गए कि, वे दौरे पर निकले होंगें। तो मैं यहाँ चली आयीं।"

"अच्छा... तो, वो, कलर पेंसिल्स तुमनें ही दिए थे रजत को, क्यों!

शैतान की नानी तो इधर है। हम खामखाँ ख़ुदको तीसमारखाँ समझ रहे थे।"कहतें हुए एक और ठहाकेदार हँसी की आवाज़ गूँजने लगीं।

"टीचर, आप जाइये और थोड़ा आराम कर लीजिए। कल से भागादौड़ी कर रहे हैं आप। कहीं बीमार पड़ गए तो अन्जान शहर में मुश्किलें औऱ बढ़ जायेंगी।"

चचा ने रिक्वेस्ट करते हुए कहा। बाकियों ने भी 'हॉं' में सिर हिलाते हुए उबासियाँ ली।हिंदी टीचर और उनकीं शैतान गुड़िया अपनीं सीट पर आ गई। रजाई डालकर गुड़िया को सुलाते हुए खुद भी सो गए।

रातभर की मस्ती में भी आँख देर से न खुली। बाथरूम में लगे मिरर में खुदको देख एक एक कर सब चीखने चिल्लाने लगे।उन सबकी निगाहें उस मस्तीखोर को ढूँढ़ रहीं थीं। जिसनें उनकी शक्लों को 'तारें ज़मीं पर' फ़िल्म में दिखलाए गए ड्रॉइंग बोर्ड जैसा बना दिया था। जद्दोजहद के बाद भी उन्हें सिक्रेट पैंटर नहीं मिला।

कुछ और प्लैनिंग करती उसके पूर्व आग्रा स्टेशन आने की अनाउंसमेंट कानों में आग्रे के पेठे की मिठास घोलने लगीं।सब अपने अपने कैबिनेट में पैकिंग करने में जुट गए।स्टेशन आने पर चढ़ने वालों की भीड़ देख लड़कियों के साथ लड़के भी भीतर से हिल से गए थे। लेकिन, दिखावा ऐसे कर रहे थे मानों सालों से यहाँ आनाजाना लगा रहता हो उनका।

प्यून अंकल और अनुपम सर ने भीड़ को कंट्रोल में करते हुए सारे स्टूडंट्स को एक एक कर लगैज समेत नीचे उतारा। और टीचर्स को भी हेल्प की।

हॉटल की बुकिंग्स स्कूल मैनेजमेंट की ओर से पहले से ही हो जाने के कारण एक मिनी बस का इंतज़ाम उनके लिए तैयार था।

ट्रेन की ठंडी फुहारें स्टूडंट्स समेत टीचर्स को भी बेसब्री से याद आने लगीं। ऑक्टोबर हीट मानों उन्हीं इगतपुरी निवासियों के सिर पर मंडरा रही हों। वैसे सभी के मुँह से एक ही सूर में आवाज़े तिलमिलाकर बाहर का रुख़ करने लगी थीं - "कितनी गर्मी है यार यहाँ तो। हिस्टोरिकल टूर क्या ख़ाक एंजोयेबल रहेगा!!"

"ना बाबा ना! मैंने तो AC कमरें से बाहर ही नहीं निकलना!"

"टीचर, ये टूर सर्दियों में नहीं रख सकते थे हम..! अब क्या ताजमहल और क्या कुतुबमीनार! कुछ भी तो नहीं पल्ले पड़ेगा हमारें गर्मी से सने सिरदर्द में!!"

"हाँ ना यार! अपने इगतपुरी शहर की ही हिस्ट्री समझ लेते। इतना लंबा होने की क्या आवश्यकता पड़ गई जैकब सर को?"

रिपोर्ट राइटिंग के लिए इन स्टूडेंट्स के पॉइंट दर्ज करने का काम हिंदी टीचर ने अपने सिरे ले लिया हो। बर्बस मिनी बस में सबको बिठाकर अनुपम सर और हिंदी टीचर मिस तमन्ना हॉटल पहुँचने वाले रास्ते का मुआयना करने लगें।

क़रीब क़रीब 11 बज चूके थे हॉटल ब्ल्यू मून पहुँचने में।

डिलक्स रूम्स में एक्स्ट्रा बेड्स लगवाकर गर्ल्स एन्ड बॉयज को सैटल करने के बाद टीचर्स और सर के रूम्स को भी फाइनल किया गया।

"स्टूडेंट्स! इट्स 11 पास्ट 28 मिनट, राइट। बी रेडी विधिन 27 मिनिट्स। एन्ड गेधर हियर एट रिसेप्शन काउंटर शार्प एट 12 नून।"

"हिंदी टीचर तमन्ना मिस का हुक्म सर आँखों पर।" कहतें हुए सारे बच्चे अपने अपने रूम्स की ओर अग्रसर हुए।

अनुपम सर और ड्रॉइंग टीचर सुखदा और उनका नन्हा बेटा बंटी कॉरिडॉर में चहलकदमी कर रहे थे। भूख से सबकी अंतड़ियाँ कुस्तियाँ लड़ने को उतावली हुए जा रहीं थीं शायद।इसीलिये 11:55 से पहलेपहल ही सारे स्टूडेंट्स रिस्पेशन काउंटर पर जंग लड़ने वाले सिपाहियों से तैनात खड़ें पायें गए।

मिनी बस में किसीने कोई बहसमारी नहीं की। सब रेस्टोरेंट में क्या क्या मंगवाएँगे और कौन किसके साथ क्या क्या शेर करेगा; उसीकी चर्चाएँ होने लगीं। रेस्टोरेंट में तीन टेबल्स जमा करके ओरिएंटल स्कूल के नगीनों के साथ उनकें टीचर्सगण भी जमे रहे।मसाला पापड़, चीज़ खाखरा, पास्ता और न जानें क्या क्या मंगवाया स्टूडेंट्स ने।सबसे दूर बैठे गुल्लन चचा किसी और ही उधेड़बुन में व्यस्त नज़र आयें।तमन्ना जोशी ने अनुपम सर को इशारे से गुल्लन चचा की ख़बर रखने का काम सौंपा।

"गुल्लन मियां, यहाँ की मक्के दी रोटी और सरसों दा साग नहीं चखा होगा आपने। चलों मिलकर खाते हैं।"कहतें हुए अनुपम ने चचा को सहजता से अपना बना लिया।और, चचा भी अनुपम सर को अपने बेटे का औदा देते हुए सहेजने की कोशिश में लगे रहे।डेज़र्ट के लिए आइसक्रीम विथ हॉट गुलाब जामुन मंगवाए गए।पहलीबार ऐसा अनोखा कॉम्बिनेशन चखा तो वो स्वाद टूर ख़त्म होने तक मुँह में मिठास को यादगार बना रहा था।

लंच से पेट और मन दोनों ही तृप्त हो चुके थे। अब नींद सबकी आँखों पर हावी हो रही थी। ट्रैवलिंग वाली रात की थकान भी तो मिटानी थी।बस, फिर क्या! सबने खर्राटों से पूरे ब्ल्यू मून को कराओके हाउस में तब्दील कर दिया।शाम ढलते ढलते फिर सबके पेट में चूहों ने हुतुतुतू की मैच शुरू कर दी।

 "सर, नॉन वेज खाने का मन कर रहा है। आप चलेंगें ना हमारे साथ। प्लिज़।"

बारह बच्चों को लेकर अनुपम सर, सुखदा टीचर और गुल्लन चचा दिल्ली दरबार में नॉन वेज खाने की लहेज़त उड़ाने गए।इधर 8 लड़कियों के साथ साहिबा को लेकर तमन्ना जोशी टीचर क्नॉट पैलेस में दिल्ली चाट का लुत्फ़ उठाने पैदल ही निकल पड़े।गोलगप्पे, दही भल्ले और पराठा गली के पराठे चटखारे ले लेकर गर्ल्स ने खूब मज़े किये। साहिबा भी दबाकर सब कुछ अपने छोटे से पेट में उड़ेलती गई। किसीको पित्ज़ा, बर्गर या सैंडविच जैसा फ़ास्ट फूड याद न आया।आखिर में पंजाबी लस्सी भी ठुसी गई। वो भी मलाई मारके।अब चलने की ताक़त नहीं बची थी किसी में भी। तो, मिनी बस ड्राइवर को पालिका बाजार पर बुलवाया गया। दस मिनट के बदले ड्राइवर अंकल को आने में बीस से पच्चीस मिनट लग गई।

चहलकदमी करते करतें नाज़ुक कलियाँ सी लड़कियाँ वहीं निढ़ाल होने लगीं। जैसे तैसे करके उन्हें जगाए रखा। और बस में सारे के सारे बेधुन्ध से सो गए।

हॉटल आने पर उन्हें जगाने की कोशिशों ने नाकों चने चबाने जैसी हालत कर दी थीं।

रात के क़रीब साढ़े दस बजे अनुपम सर की टीम हॉटल पहुँची। तब तक तमन्ना जोशी मैडम की जान भी हलक़ में अटकी पड़ी थी।ट्रेन में मस्ती कराने वाले हिंदी टीचर और अभी रात के साढ़े दस बजे आर्मी ऑफिसर की भाँति डिसिप्लिन सिखाने वाले जोशी मैडम में ज़मीन और आसमान का फ़र्क नज़र आ रहा था।

 "सॉरी मेम, कल सुबह सात बजे हम सब तैयार मिलेंगें आपको। यहीं, इसी रिसेप्शन काउंटर के पास।"

कहतें हुए स्टूडेंट्स के साथ सुखदा टीचर और अनुपम सर ने भी 'हाँ' में सिर हिलाया।बारी बारी से सबकों उनकें रूम्स में पहुँचाने के बाद अनुपम सर ने भी तसल्लीबख्श बनकर गहरी साँस ली। और दूसरे दिन की तैयारियों का लिस्ट गुल्लन मियां के साथ हॉटल मैनेजर को भी तभी दे दिया।दिनभर की थकान ने पलकों पर भारीपन का एहसास पुख़्ता कर दिया था। अगले दिन ताजमहल और कुतुबमीनार की हिस्ट्री को खँगालने का मुख्य काम फतेह करना आवश्यक था। और वो भी स्मूदली।

डायरी में सबकुछ नॉट डाउन करने के पश्चात तमन्ना जोशी टीचर ने अपनीं गुड़िया साहिबा की ओर नज़र डाली। जो खुद से ही रजाई ओढ़े सो चुकी थी।

ब्रह्म मुहूर्त में साहिबा की रोने की आवाज़ें ज़ोर पकड़ने लगीं।

"पेट में दर्द उमड़ा है। करवटें भी नहीं बदल पा रही हूँ।

कुछ करो। आँ... दुःखता है, बहोत दुःखता है। नहीं सहा जा रहा मुझसे।"

साहिबा का रो रोकर बुरा हाल था। अन्जान शहर में सुबह के पौने चार बजे डॉ. कहाँ से ढूँढ़के लाऊँ? और किसे उठाऊँ? - इसी उधेड़बुन में जोशी मैडम कोरिडोर में टहलने लगी।

पास वाले कमरे से सुखदा मिस ने साहिबा के कराहने की आवाज़ें सुनी। तो वे अनुपम सर को उठाने उनके रूम की ओर आगे बढ़ी।अनुपम के बगल वाले बेड पर सो रहे गुल्लन चचा भी उठ गए। नाइट ड्यूटी निभा रहे रिसेप्शनिस्ट से क़रीबी डॉ. का फोन नंबर और पता लेकर प्यून गुल्लन अंकल और अनुपम शुक्ला भी भगदौड़ मचाने लगें।प्रातःकाल डॉ. तिवारी इमरजेंसी पहचानकर साहिबा को देखने हॉटल आ पहुँचे।

साहिबा अब तक कराह ही रही थी। उसके आँसू भी गोर गोर गालों पर लीपापोती करके सूख गए थे। उसके गुलाबी ओठों की नैचरल लाली भी फीकी पड़ रही थी।डॉ. ने जोशी मैडम से इशारे से इंजेक्शन की एहमियत समझाई। और साहिबा को बातों में उलझाते हुए इंजेक्शन दे ही दिया।

इंजेक्शन का असर होते ही साहिबा की गहराने लगीं। और वो सो गई।कमरे से बाहर आकर डॉ. ने पहलेपहल तो वहाँ खड़ें सभीको डाँट फटकार लगाई। फिर, फ़ास्ट फूड के साथ टैप वॉटर से आगाह किया।फूड पॉइज़निंग और वॉटर इंफेक्शन के नतीजों को साहिबा की लोएस्ट इम्यूनिटी का एक्ज़ाम्पल देकर वॉर्निंग भी दी।तीन घंटे में फ़र्क महसूस न होने पर उन्हें फिर से बुलवाने की हिदायतें देकर वे चले गए।

चुलबुली साहिबा के बीमार पड़ने की बात जानकर स्टूडेंट्स ने हिस्टोरिकल टूर पोस्टपोंड करने का निर्णय अपने से ही ले लिया था।साहिबा को सहलाते हुए जोशी मैडम ने बाकी लोगों को तैयार होने और टूर कम्प्लीट करने का ऑर्डर दिया। तो, सभीने रुआँसे मन से हिंदी टीचर और साहिबा की एब्सन्स एक्सेप्ट किया।लेकिन, जानबूझकर सात के नौ बजा दिए।

साहिबा भी इंजेक्शन के ज़ोर पर थिरकने लगीं थी। उसे नॉर्मल देख सभीके चहेरे की मुस्कान लौट आयीं।डॉ. से फ़ोन पर बातें करके दवाइयाँ साथ मे रखने और बाहर का कुछ भी खाने पीने न देने का प्रॉमिस देकर साहिबा को टूर कन्टीन्यू करनें की पर्मिशन मिली।ताजमहल देखने का जो वक्त ओरिएंटल स्कूल की टीम को अलॉट किया था, वो तो कब का गुज़र चुका था।'अब सबके साथ कतार में खड़े होकर इन्तज़ार करना पड़ेगा' ऐसा मैसेज पास ऑन किया गया।

इतनी बुरी ख़बर सुनने पर किसीने भी मुँह बिगाड़ने या अफ़सोस व्यक्त नहीं किया। हर कोई साहिबा की देखभाल में जुटा हुआ था।तभी आधे घंटे बाद का स्लॉट अनाउंस हुआ - 'टीम ऑफ ओरिएंटल स्कूल ऑफ इगतपुरी कम नियर ध एंट्रेन्स डॉर' तीन से चार बार ओरिएंटल स्कूल के बारे में अनाउंसमेंट सुनकर सब चौंक गए।

कौन मेहरबाँ हो गया? और किसने ये जादू बिखेरा? किसके कहें पर ये स्लॉट ओरिएंटल स्कूल के ग्रुप को मिला? - ऐसे और भी क्वेश्चन्स सभीके दिलोदिमाग में लकीरें पिट रहे थे। पर कोई जवाब नहीं मिला।ताजमहल को भीतर से देखने और उसकी सच्ची कहानी जानने के लिए लोकल गाइड को हायर किया था। जो अपनीं तरफ से कुछ ज़्यादा ही तवज्जो दी रहा था ओरिएंटल स्कूल के ग्रुप को।

ताजमहल के पिछवाड़े बह रही यमुना नदी की बेहाली हालत देखकर बॉयज ने अपने से ही एक रिपोर्ट तैयार की। और गर्ल्स ने इंटरव्यू के लिए क्वेश्चन्स प्रिपेर किये। आपसी तालमेल बिठाने का इतना अच्छा तरीका उन स्टूडेंट्स ने कैसे अपनाया ! इस बात पर जोशी मैडम भी हैरान हो गई थी।

ताजमहल देखने के बाद कुतुबमीनार देखने के दरम्यान दो - ढाई घंटे का इंटरवल था। स्टूडेंट्स ने स्ट्रीट फूड न खाने की बात छेड़ करके डॉ. तिवारी जी की हिदायतों को स्ट्रिक्टली फॉलो किया।और, खुदके पैसों को खर्च करने की ज़िद पर डटे रहे। थ्री स्टार रेस्टोरेंट में लाइट लंच लेकर कुतुबमीनार चढ़ने का मन बनाने वाले उन बच्चों ने इंसानियत का एक नया ही पाठ सिखलाया।

कड़ी धूप का वो टुकड़ा सभीके गले को रेगिस्तान से प्यासे गले को बर्फ़ के गोलों से उकसाने में कामयाब होने ही वाला था, कि, साहिबा की ओर देख बच्चों ने बिसलरी बोतलें ही खरीदीं।और मिल-बाँटकर साधे पानी को भी फ्रेश ज्यूस जैसा फील देते हुए एंजोयेबल बना रहे थे।कुतुबमीनार से निकलकर मीना बाजार में टहलने और शॉपिंग का प्लान कैंसल करके आगरे के पेठे की खरीदारियों में सब जुट गए।फ्लेवर्ड पेठे की पैकिंग और स्टूडेंट्स के हाथों में की बैग्स देख हॉटल वाले भी सभी दंग रह गए।हॉटल ब्ल्यू मून आकर डिनर बाहर करने की इच्छा किसीने भी नहीं जताई। हॉटल में ही दाल खिचड़ी बनवाने की माँग रखी गई।तगड़ी टिप मिलनें की चाह में हॉटल स्टाफ ने भी स्टूडेंट्स की डिमांड को दिल से पूरा किया।

सभीने मिलकर घर से लाये हुए नाश्ते के डिब्बों को खोलकर दाल खिचड़ी का लुत्फ़ उठाया। और हॉटल स्टाफ को भी अपने अपने घरों की लिज्जतदार डीशिस खिलाई।हिस्टोरिकल टूर ख़त्म होने की कगार पर थी। दूसरे दिन की उनकीं इगतपुरी लौटने की ट्रेन थी।डिनर के बाद टहलने जाने के बजाये पैकिंग करके सब टेरेस पर इकट्ठा हुए। केम्प फायर करके डान्स, म्यूज़िक और डम शेरॉड्स, म्यूज़िकल चेयर जैसी कई गेम्स खेलकर सभी का मनोरंजन किया जाने लगा।

रात के ग्यारह बजे तक नाच गाना चलता रहा। धीरे धीरे करके सभी अपने अपने कमरे में बिस्तर पर लुढ़कने लगें। बारह बजे से पहले तो सपनों की दुनिया में हर कोई खो चुका था।दूसरे दिन हॉटल वालों को अलार्म बजाकर सबको उठाना पड़ा। आनन फानन में कुछ पीछे छूट न जायें इसलिए ब्रेकफास्ट पैक करवा लिया गया।और, सारे रूम्स एक बार नहीं चार चार बार तीनों टीचर्स और गल्लन चचा के जरिये चैक किये गए।

हॉटल स्टाफ को टिप देने के लिए बच्चें ही आगे आये।खुशी खुशी ओरिएंटल ग्रुप दिल्ली और आग्रा की टूर से अपने अपने घर लौटे।किसीने भी फतेहपुर सीकरी, लाल किला, जंतर मंतर और जामा मस्जिद न जा पाने का ग़म ज़ाहिर नहीं किया। और ना ही उसका कम्पनशेसन माँगा।चुलबुली साहिबा की शैतानियों को सबने सराहा और अगली सभी ट्रिप्स एन्ड टूर्स में उनकीं ओर से आने का न्यौता भी मिला।

               


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