Anil Makariya

Children Stories

4.5  

Anil Makariya

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प्रथम ग्रासे मूषक पातः

प्रथम ग्रासे मूषक पातः

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पिछले लगभग दो साल से यह एकमात्र कमरा ही मेरी दुनिया है ।

अब अगर आप किसी पिछड़े हुए गांव के निवासी हो तो आपको जरूर बेहतर काम की तलाश में किसी पास के बड़े शहर में जाना पड़ता है , बिल्कुल वैसे ही मैं भी दो साल पहले इस महलनुमा शहर के चूहेदानी नुमा कमरे में काम की तलाश में आया था।

काम तो दो साल में कई किये और छोड़ भी दिये या छूट गए लेकिन यह कमरा मेरा आशियाना बना रहा ।

हो सकता है की घर का मालिक जरूरतमंद है या मैं उसके लिए सहृदय लेकिन कुल जमा यह कि आगे भी 2-3 साल मुझे यहां से हिलने या हिलाने की कोई कवायद होती नही दिखती ।

देखने से याद आया पिछले कुछ दिनों से रोज इस रूम में मुझे कोई दिख रहा है ।

मेरे अलावा भी इस रूम में अब कोई रहने लगा है ।

मुझे उसके वजूद का अंदेशा तब हुआ जब एक रात मैं खाना खाकर सोने की तैयारी कर रहा था और वह चुपके से मेरे खाने में से नीचे गिरे हुए अवशेष चुराने की कोशिश करने लगा ।

बड़ा अजीब-सा लगता है जब आप दो साल से किसी जगह पर अकेले हो और अचानक से कोई आपके इलाके पर हक जताने आ जाये ।

यह आपके वर्चस्व पर आघात की तरह लगता है, मुझे भी लगा इसलिए मैंने उसे ठिकाने लगाने की ठान ली ।

एक शाम काम से लौटते वक्त मुझे अपने रूममेट की याद आई । मैंने एक जहर की बोतल और चूहेदानी खरीद ली क्योंकि मैं कोई कसर नही छोड़ना चाहता था ।

घर पंहुचते ही मुझे लगा कि शायद मुझे वह छिपकर देख रहा है। मैंने तुरंत चूहेदानी पीठ के पीछे छिपा ली और जेब पर हाथ लगाकर जहर की बोतल होने की तस्दीक कर ली फिर मुझे खुद पर ही हंसी आई कि वह कोई इंसान तो नही है जो मेरे दिमाग में चल रही उसके क़त्ल या कैद करने की साजिश चूहेदानी देखकर समझ जाएगा ।

लेकिन वहां दो आंखे तो थी! जो मुझे देख रही थी और बाकायदा कमरे में फैली रोशनी का परावर्तन भी कर रही थी इन्हीं आंखों की ओर से आवाज आई "म्याऊं"

मेरी नजरें उस निवेदन की ओर उठी ।

सहसा ही मेरे चेहरे पर शातिर मुस्कान तैर गई एकबारगी मुझे लगा कि पहले ही इस दस बाय दस के कमरे में एक हिस्सेदार बना बैठा है और अब यह दूसरा हिस्सेदार बनने का निवेदन लगा रहा है कि "मैं आऊं?" ।

मेरे पास अब तीन जबरदस्त प्लान थे । सबसे पहले मैंने पिंजरे में पनीर लगाकर उसके आवागमन की जगह पर रख दिया फिर जहरबुझे पनीर को उसके बिल के पास रख दिया । शेर की मौसी मेरे सारे इंतजाम देखकर जम्हाई ले रही थी मानो कह रही हो "बेटा तेरा तुरुप का इक्का तो मैं ही हूं और मैं ही टिपुंगी उसे तो" अब मैं सावधानी से पलंग पर लेटकर देखने लगा कि मेरा कौनसा प्लान उसे उसके आखिरी अंजाम तक पहुंचाता है?

बहुत देर हो गई मुझे नींद आने लगी इस ख्याल से की शायद इस बिल्ली मौसी ने मेरे आज के गृहप्रवेश से पहले ही उसका काम तमाम कर दिया है और मैं मुफ्त में अपनी नींद खराब रह रहा हूँ । बिल्ली फर्श पर सोई थी और मेरी उनींदी-सी आंखे हसीन सपने देखने को बेकरार थी ।

सुबह उत्कंठा की वजह से मेरी नींद जल्दी खुल गई । मेरे कमरे का नजारा कुछ अजीब-सा था ।

जहर बुझा पनीर गायब था। मौसीजी चूहेदानी के अंदर आराम फरमा रही थी और मूसाजी मेरे पलंग के नीचे रात के खाने से गिरे अवशेषों की तलाश कर रहे थे।

अचानक मुझे कुछ अंदेशा हुआ, मैं एक झटके से उठा और चूहेदानी के पास पहुंचकर चूहेदानी उठाकर हिलाई , बिल्ली में जीवन के कोई चिन्ह नमूदार नही हुए ।

"हे भगवान! मैंने बिल्ली को मार दिया।" अनायास ही यह शब्द मेरे होंठो पर आए ।

बड़ी मुश्किल से किसी स्थायी नौकरी की आस बंधी थी और तिसपर यह अपशकुन!

मेरी दादी कहती थी कि अगर गलती से कोई बिल्ली मार दी जाए, तो हरिद्वार में जाकर गंगास्नान करना पड़ता है और इस पाप के प्रायश्चित के लिए ब्राह्मण को एक तोले सोने से बनी बिल्ली की मूर्ति दान करनी पड़ती है अन्यथा जीवनभर विपत्तियों का सामना करने के लिए तैयार रहना पड़ता है ।

अब मेरी नजर फिर इधर-उधर फिरते हुए मूषक की ओर उठी, मैंने खीज के मारे पास ही पड़ा हुआ जूता उठाकर उसे दे मारा । 12 साल पहले गल्ली क्रिकेट में बॉल डायरेक्ट हिट थ्रो करके किसी को आउट करने के बाद यह मेरा दूसरा थ्रो था, जोकी सीधा जाकर लगा टेबल रूपी विकेट को और आउट हुआ उसपर रखा मेरा दिमाग ठंडा रखने का एकमात्र साधन...'टेबल फैन'।

महाराज मुझे देख थोडे चिंचियाये और फिर अपनी मूंछे फड़काकर मुझे चिढ़ाते हुए अपने बिल की ओर प्रस्थान कर गए । मैं टेबल फैन के खंडित-अखंडित भाग समेटता दादी वाली चेतावनी की आकाशवाणी सुनने लगा ।

मैं परसों अपनी स्थायी नौकरी के लिए दिए जाने वाले अंतिम साक्षत्कार का सामना करने से पहले बिल्ली वाले पाप से मुक्त होना चाहता था इसलिए दो साल से पेट काट-काटकर इकट्ठा की हुई अपनी जमापूंजी से शहीद बिल्ली मौसी की मूर्ति सुनार से बनवाई और सीधा हरि के द्वार का टिकट कटवाया ।

हरिद्वार से यह कसम लेकर आया कि जिस वजह से बिल्ली मौसी की शहादत हुई है उस वजह को जबतक शहर के सबसे गंदे नाले को अर्पण नही करूँगा तब तक मैं अपने लिए नया टेबल फैन नही खरीदूंगा , वैसे भी बिल्ली की मूर्ति ने जहर खाने लायक पैसे भी मेरी जेब में नही छोड़े थे तो नए टेबल फैन के लिए पैसे कहां से आते?

आधी रात को घर पहुंचते ही मैं सीधा सो गया बिना यह विचार किये की आज दिन भर मैं घर में नही था तो उस मूषक ने अपने खाने का इंतजाम कहां से किया होगा ?

क्योंकि अब तक तो वह मेरे खाने में से गिरे हुए टुकड़ों पर जिंदा था ।

रात को भूखा सोने की वजह से सुबह उठते ही मुझे भूख लगने लगी । मैं तुरंत पास की दुकान से अंडे और ब्रेड उधार लेकर कमरे में वापस आया ।

अंडे और ब्रेड की सुगंध शायद मेरे रूममेट तक पहुंच गई इसलिए वह थूथन ऊपर की ओर उठाये और अपनी मूंछे फड़काते हुए हवा को सूंघता पलंग के नीचे, मेरे पहले निवाले के मुंह तक पंहुचने के पहले ही आ धमका ।

उसे देखते ही मैंने निवाला वापस थाली में रख दिया और चुहेमार जहर की बोतल उठा लाया जिसमें बचा हुआ जहर मैं ब्रेड पर डालकर ...... अगर फिर से मैंने इस जहर का इस्तेमाल किया तो ?

मेरे आंखों में दिवा स्वप्न तैर गया जिसमें मैं मुंह खोले सोया हुआ था और मूषक मेरे मुंह में वही जहर बुझा ब्रेड का टुकड़ा गिरा रहा था ।

"न..हीहीही" ... मैं दिवास्वप्न देखते ही चीख पड़ा ।

"मैं उस बिल्ली की तरह अभी मरना नही चाहता ...मैं खुद को अपनी पहली स्थायी नौकरी करते हुए देखना चाहता हूं" मैं अब खुद को ही समझा रहा था ।

मैंने तत्काल प्रभाव से जहर वाला आईडिया दिमाग से मिटा दिया ।

मैंने चूहे की ओर नजर दौड़ाई वह मेरी प्लेट से, वही मेरा छोड़ा हुआ पहला निवाला मुंह में दबाए बिल की ओर दौड़ा जा रहा था ।

साथ ही गुस्से के मारे मेरे शरीर का खून भी उसी रफ्तार से दौड़ रहा था।

एक बात बेहद हैरान कर देने वाली थी, इस प्राणी ने कभी भी मेरे कपड़े,कागजात या कोई वस्तु कुतरकर मुझे नुकसान पहुंचाने की कोशिश नही की थी ।

तब भी नही जब वह पूरा दिन भूखा था। यह ऐसी बात थी जो उसे बुद्धि और प्रचंड जिजीविषा का धनी बनाती थी । लेकिन फिलहाल उसके इन गुणधर्मों को जानने के बावजूद भी मैं उसे जिंदा या आजाद छोड़ने के मूड में कतई नही था ।

मैं उसे घुसपैठिया और मेरे जमा किये हुए धन का कातिल मानता था । अब मैं ऐसी योजना के बारे में सोचने लगा जो इस नामुराद चूहे को यमलोक भी पहुंचा दे और इसके किये से मेरे लिए आत्मघाती भी सिध्द न हो ।

काफी सोचने के बाद मुझे यह महसूस होने लगा कि शायद इतनी फुलप्रूफ योजना का इस फानी दुनिया में कोई वजूद ही नही है।

फिर भी मैंने एक योजना पर काम करना शुरू कर दिया ।

उस योजना को चुनने का सबसे बड़ा कारण मेरे लिए यह था कि मेरी ठनठन गोपाल परिस्थिति पर यह योजना कोई अलग से बोझ नही डालने वाली थी और मेरी सुरक्षा के लिहाज से कुछ हद तक सुरक्षित थी क्योंकि इस योजना में मूषक अपनी ओर से पूरा जोर लगाकर भी मुझे हताहत नही कर पाता ।

मैंने उस योजना के क्रियान्वयन के लिए आज की रात ही चुनी क्योंकि कल सुबह मुझे स्थायी नौकरी हेतु फाइनल इंटरव्यू के लिए जाना था और मैं दो खुशख़बरियाँ एक साथ चाहता था ।

मेरे इस 'दिल मांगे मोर' वाले एटीट्यूड ने मेरे अंदर एक आत्मविश्वास का संचार किया जिसे अब तक इस चूहे ने कुतर रखा था।

मूषक के छोटे से बिल के दोनों ओर मैंने दो बिजली की वायर के नंगे सिरे चिपका दिए और उन तारों के दूसरे सिरे मैंने इलेक्ट्रिक सॉकेट में डालकर उनमें करंट प्रवाहित कर दिया ।

अब खुद होकर तो चूहा बिजली की वायर उठाकर मुझे चिपकाने से रहा और खुदा न खास्ता ऐसी कोई कोशिश की भी तो पहले उसके ही चिपकने के अवसर ज्यादा थे।

कुछ अच्छे पल याद करता मैं जल्द ही नींद के हवाले हो गया ।

सुबह उठा तो सीधी नजर उस चूहे की ओर उठ गई जो बिल से अंदर बाहर बेफिक्री से मॉर्निंग वॉक कर रहा था और नंगे तार उसके बित्तेभर शरीर को झटका देने की जगह केवल सहला रहे थे । शायद बिजली चली गई थी साथ ही मेरी सुबह की पहली खुशखबरी भी अपने साथ ले गई थी ।

मैंने घड़ी की ओर नजर घुमाई और चूहे को दिमाग से बाहर कर साक्षात्कार की तैयारी में जुट गया । साक्षात्कार उम्मीद से बेहतर गया, अब मुझे शाम का इंतजार था जब मेरी स्थायी नौकरी का रिजल्ट लगने वाला था ।

पैसे बचाने की कवायद के चलते मैं पैदल ही अपने कमरे की ओर चल दिया था। मेरी चाल में एक मस्ती थी ,एक आत्मविश्वास था। आज मैं अपने उस रूममेट के लिए जारी की हुई मौत की सजा पर भी पुनः विचार करने के मूड में था ।

अपने मुहल्ले की गली तक पँहुचते ही मुझे किसी अनिष्ट की आशंका सताने लगी।

कुछ तो ऐसा था जो मुझे आज इस गली में विचित्र लग रहा था ।

अचानक एक शरीर भागता हुआ आया और मुझसे टकरा गया ।

जरा-सा खुद को संभालकर चहेरे की ओर देखा तो मेरे मकान मालिक शंभु दयाल त्रिपाठी जी का अक्स नमूदार हुआ ।

मैं कुछ बोलूं उससे पहले वह चीख पड़े ।

"अरे ..भाग जल्दी रूम में आग लग गई है"

यह सुनते ही अपने आप मेरे पैर रूम की ओर दौड़ पड़े ही थे की फिर एक आवाज शम्भू दयाल जी की आई ।

"पानी मत डालना ...आग शार्ट सर्किट से लगी है।"

मेरी आंखों के सामने अपनी ही की हुई करतूत की फ़िल्म घूम गई ।

धूं-धूं करके जलता मेरा आशियाना उस गलीच जानवर की कुर्बानी के साथ ही अपने चहेरे पर कालिख मलता प्रतीत हो रहा था ।

शम्भू दयाल त्रिपाठी जी ....न न अब काहे के 'जी' ।

शम्भू ने मेरे कमरे का डिपॉजिट उर्फ पगड़ी की रकम जप्त कर ली और जिसमें रहने के लिए केवल दीवारें और छत बची थी उस रूम की चाबी भी मुझसे छीन ली वैसे भी वह चाबी अब किसी काम की नही रह गई थी क्योंकि ताला लगा पूरा दरवाजा ही आग में स्वाह हो चुका था।

एक अदने से जीव ने मेरा सारा जीवनोपयोगी समान और बसेरा एक झटके में स्वाह कर दिया और मुझे एक जोड़ी पहने हुए कपड़ों के साथ सड़क पर उतार दिया । मुझे अपना एक-एक कदम मन भर भारी लग रहा था ।

आज अपने घोंसलों की ओर लौटते हुए पंछियों का कलरव मुझे विलाप की तरह लग रहा था आखिरकार अब मेरे पास भी वापस अपने गाँव लौटने के सिवाय कोई चारा नही बचा था ।

लेकिन मेरे पास तो गांव लौटने के लिए गाड़ी किराया भी बाकी न बचा था और मुहल्ले में अगर मैं फिर कर्जा मांगने जाता तो पिछले कर्जे की अदायगी के तौर पर मुहल्ले वाले मेरे यह आखिरी जोड़ी कपड़े भी उतरवा लेते ।

अभी शाम को एक रेलगाड़ी मेरे गांव की ओर जाती है ।

क्या कहा मैंने ? शाम!

मेरे दिए साक्षात्कार का रिजल्ट भी तो अभी ही है । मैं बिना कुछ और सोचे लगभग दौड़ पड़ा संबंधित सरकारी महकमे की ओर ।

कहते हैं कि कुकनूस पक्षी गाना गाता है और अपने ही गायन की ज्वालाओं से जलकर राख हो जाता है फिर अपनी ही राख से खुद को पुनर्जीवित करता है।

आज कुकनूस पक्षी मैं साबित हुआ था, जिसने पहले खुद को राख किया और अब एक स्थायी नौकरी और रहने के लिए सरकारी क्वार्टर का आदेशपत्र लेकर सीना तानकर अपना क्वार्टर देखने जा रहा था ।

खूबसूरत तो नही कह सकते लेकिन दड़बेनुमा उस शहीद कमरे से काफी बेहतर था सरकारी क्वार्टर, जिसमें अलमारी और बिस्तर की व्यवस्था पहले से की हुई थी ।

छत पर लगा हुआ था पंखा और उसके ऐन नीचे लगा हुआ था गद्दा बिछा हुआ लकड़ी का पलंग और पलंग के नीचे हंसता-खेलता एक ....चूहा! ।

"चु.....हा ? मुझे...मुझे नफरत है इस चूहे से ...मैं जिंदा नही छोडूंगा इसे...मैं जिंदा नही छोडूंगा।"

मेरी यह चीख मुझपर अट्टहास लगाते हुए वातावरण में गुम हो गई ।

-ईति



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