Anil Makariya

Drama Tragedy Inspirational

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Anil Makariya

Drama Tragedy Inspirational

जिंदगी की शाम का रॉबिनहुड

जिंदगी की शाम का रॉबिनहुड

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मेरे बचपन वाले दौर में आस-पास के अमीरों के बारे में कई रहस्यमयी और दिलचस्प कहानियाँ फैली होती थी जिसे चटखारे लेकर सुना और सुनाया जाता था।

अब क्योंकि उस समय मनोरंजन के नाम पर सिर्फ रेडिओ मौजूद था और कमाई खर्चने के लिए मूलभूत जरूरतें केवल रोटी, कपड़ा और मकान ही थी तो लोगों के पास किस्सागोई करने के लिए माहौल और समय अपने आप ही बन जाता था।

परमोचंद की कमसिन रखैल से लेकर सट्टा किंग संतोमल के घर में बने रहस्यमयी तहखाने में रखी नोटों की गड्डियों तक सैकड़ों किस्से और हजारों किरदार, मेरी और बुजुर्गों की शामें रोमांच से भर देते।

यह किस्से कई बार वयस्क हो उठते लेकिन सुनाने वाले कि रौ और सुनने वाले कि एकाग्रता का यह आलम था कि उन्हें भान ही न रह पाता कि उनके बीच कोई नाबालिग भी मौजूद है।

जिन जगहों पर यह किस्से सुनाए जाते वहाँ तक मेरी पहुंच मेरे दादा और उनकी ताश के साथीदारों की वजह से थी। मेरे दादा के मुखिया होने के रौब की वजह से इन जगहों पर मेरी आमद बिना रोक-टोक होती थी।

उन दिनों सट्टा किंग संतोमल के घर पर पड़े आयकर छापे वाले किस्से शाम की महफिलें लूट रहे थे जिसका निचोड़ कुछ यूं था कि जैसे ही संतोमल के यहाँ छापा पड़ा संतोमल ने कोई सरकारी जुगाड़ लगाकर चुपके-से अपने रोकड़ और गहनों से भरे बोरे पड़ोसी विधवा सुमि के घर पर डलवा दिए ताकि आयकर टीम को खाली हाथ लौटना पड़े और हुआ भी वैसा ही लेकिन 45 साल की अनपढ़ सुमि यह बेहतर जानती थी कि काले धन का न तो कोई हिसाब होता है और ना ही कोई क़ानूनन दावेदार।

जब तक संतोमल के घर पर छापा चलता रहा तब तक विधवा सुमि नोटों की नदियों से अपने हिस्से के घड़े भरती रही। अब बाद में चाहे संतोमल को अपने काले धन में से सुमि के डल्ले मारने खबर लगी हो और चाहे वह लाख तिलमिलाया हो लेकिन कर कुछ नहीं पाया। इधर चंद महीनों में ही सुमि ने इस पैसे के दम पर न केवल अपनी दोनों जवान बेटियों की शादियाँ धूमधाम से कि बल्कि अपने मिट्टी-खपरैल वाले घर को सीमेंट की मजबूती से दोमंजिला बनवा लिया।

संतोमल यह सब होते सिर्फ देखता ही रहा ऐसा भी नहीं था। उसने सुमि को अकेला देख खूब धमकाया और उसके दोमंजिला मकान को हड़पने की भी बहुत कोशिशें कि लेकिन सुमि के जलाल के आगे एक न चली।

यहाँ तक के किस्से कई चटपटी अफवाहों की चटनी के साथ उन शाम की महफिलों में बदस्तूर परोसे गए लेकिन इस कहानी में आगे जो कुछ हुआ उसका चश्मदीद मैं खुद हूँ।

हुआ यह कि मरहूम सास-ससुर की इकलौती बहु सुमि का पति उसे दो औलादें और कच्चा-पक्का मकान देकर किसी महामारी की भेंट चढ़ गया। मायके में भी सुमि का कोई होता-सोता था नहीं जो उसकी जिंदगी को आसान करता इसलिए सुमि ने ससुराल के ढहते मकान और अर्थव्यवस्था में ही खुद को अपने बच्चों की परवरिश के खातिर खपा लेने की ठान ली।

कहते हैं कि ईश्वर 'बाबा गरागर सबको देगा बराबर' की तर्ज पर सभी का कल्याण करते हैं तो सुमि के बच्चों की शादी लायक उम्र और संतोमल के घर पर आयकर के छापे वाले काल संतुलन में कहीं तो ईश्वर की सबका कल्याण वाली संकल्पना का भी रोल था।

अब समय पहुँच चुका था दो मंजिला मकान में अकेली रह रही सुमि और उसकी ढलती हुई उम्र तक। सुमि यह भलीभांति जानती थी की अब उसे कमोबेश किसी न किसी के सहारे की जरूरत पड़ने वाली है इसलिए उसने एक नौजवान स्कूल मास्तर को अपने घर की दो कमरों वाली उपरली मंजिल किराए पर दे दी।

यह नौजवान किसी अनाथालय की कोख से निकला खुदमुख्तार जीव निकला जिसका इस फ़ानी दुनिया में कोई रिश्तेदार नहीं था।

कालांतर में सुमि और उस नौजवान की आशिकी के भी कई किस्से गढ़े गए जिसके फलस्वरूप सुमि की बेटियों और उनके पतियों ने अपने सारे सम्बंध सुमि से तोड़ लिए।

अपने बुढ़ापे की सनक में सुमि को लगने लगा कि वह जवान उसका दोमंजिला मकान हड़पना चाहता है और इसी वजह से वह दिन भर उसके खिलाफ बड़बड़ाती रहती या उसे कोसती रहती लेकिन मौत के करीब इस जिंदगी का असली पेच अटका हुआ था पंचायत के पास जिसका खुलासा सुमि की मौत के बाद हुआ।

हुआ यह था कि सुमि ने अपना दो मंजिला मकान जोकि काफी समय से सुमि के ससुराल वालों के नाम पर था, उस युवा किरायेदार के अथक प्रयासों से न केवल सुमि के नाम पर हुआ बल्कि सुमि के देहावसान से पहले वसीयत के जरिये गाँव की पंचायत द्वारा संचालित वृद्धाश्रम को दान भी कर दिया गया।

एक धार्मिक मान्यता के मुताबिक इस कायनात की सारी घटनाएँ एक-दूसरे से जुड़ी हुई होती हैं, जैसे अगर घायल तितली दर्द के मारे यहाँ पंख फड़फड़ाती है तो इसके फलस्वरूप किसी सुदूर द्वीप पर सुनामी आती है। अब न वे किस्से गढ़ने वाले बुजुर्ग रहे ना ही वे शामें लेकिन उन घटनाओं की गूंज अब भी कायनात में कायम है।


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