Durga Thakre

Children Stories Drama Inspirational

4.2  

Durga Thakre

Children Stories Drama Inspirational

बेटियां

बेटियां

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राधिका 04 वर्ष , मनीषा 08 वर्ष , ज्योति 12 वर्ष - यशोदा की बेटियाँ

यशोदा -माँ

आत्माराम - पिता

रामभूषण -दादा

विमला - दादी

रामवती - विमला की रिश्तेदार पड़ोसी

कमला - विमला की बचपन की सहेली

डॉ अनिता - कमला की डॉ बेटी

सुरेश - अनिता का भाई

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प्रथम दृश्य

(एक साधारण सा परिवार का घर के आंगन का दृश्य )

विमला - अरी निकम्मियों ! कहा मर गई सब की सब ? ये धूप में अचार नही रखा।

ज्योति कहा है ? आवाज लगा लगाकर थक जाओ पर इन महारानियों के कान में जूं तक नही रेंगती।

( ज्योति दौड़कर आती है।)

ज्योति - जी दादी जी , मैं छत पर कपड़े सुखाने में अम्मा की मदद कर रही थी।

विमला - अच्छा तो तेरी अम्मा से अकेले कपड़े नही डाले जाते क्या ?कब से आवाज लगा लगाकर थक गई हूं। जा ये बर्नियो को धूप में रखकर आ। नही तो सारा अचार खराब हो जाएगा।

( ज्योति एक एक करके अचार की सारी बर्निया धूप में रखने चली जाती हैं। )

विमला - मनीषा , ओ मनीषा जरा एक लोटा ठंडा पानी तो पिला।

( मनीषा मटके से लोटा भरकर लाती है।)

मनीषा - लो ,दादी जी।

विमला - हाथ धोकर लाई थी कि खेलती आई और डुबो दिए हाथ मटके में।

मनीषा - नहीं दादी जी , हाथ धोकर पानी लाई हूँ।

विमला - अच्छा ,अच्छा ठीक है जा देख जरा तेरी अम्मा के कपड़े डल गए हैं कि नहीं। शाम तक एक वही काम करेगी क्या ?

मनीषा - जी दादीजी।

(मनीषा छत पर जाती है।)

मनीषा - अम्मा ,दादी बुला रही हैं।

यशोदा - हा आती हूँ। तुम छत पर नँगे पैर क्यो आ गई ,देख छत की गर्म है ,पैर जल रहे हैं। चल अब जल्दी।

(दोनों साथ -साथ नीचे आ जाती हैं। मनीषा खेलने चली जाती है ,और यशोदा विमला के सम्मुख खड़ी है।)

यशोदा - जी माँजी।

विमला - सुख गए कपड़े ,इतनी देर एक काम मे लगाएगी ,तो इतने काम पड़े हैं उनके लिए रात कर देगी। जा मसालों को पीस ले , और ध्यान से बारीक पीसना।पिछली बार आधा मसाला मुझे पीसना पड़ा था।

यशोदा - अम्मा अभी मिर्ची , धनिया , में नमी हैं ,तो उनको धूप में डाल दिये थे , थोड़ी धूप लग जायेगी ,तो बारीक पीस जाएगा।

विमला - हम्म ! ठीक है।

( अचानक आंगन के दरवाजे पर विमला की पड़ोसन रामवती की दस्तक हुई।)

रामवती - अरे विमला बहन कहा गई , अंदर आ जाये क्या ?

विमला - अरे आओ , आओ बहन।( कुर्सी की ओर इशारा करते हुए ) बैठो ,बैठो बड़े दिनों बाद दर्शन दिए आज। कैसी हो।

रामवती - अरे मैं तो अच्छी हूँ , जरा बेटे के घर शहर तक पहुँच गई थी। तुम अपनी सुनाओ।

(यशोदा को सम्बोधित करते हुए) लो बहु ये मिठाई सबको बाँट देना।

( यशोदा मिठाई का डिब्बा लेती हुई रसोईघर में चली जाती है।)

विमला - अरे ! किस ख़ुशीहाली में मिठाई बाँट रही हो भला।

रामवती - अरे रवि के घर बेटा हुआ है , इसी बात की खुशहाली है बहन।

विमला - अरे वाह ! बधाई हो बहन ,बधाई हो  , भगवान ने तुम्हारी सुन ली ,एक मैं हूँ कि लगता है पोते का मुंह देखे बिना ही जग से चली जाऊँगी। एक मेरी बहु है जिसने तीन -तीन बेटियां पैदा करके मेरे छाती पर बोझ पटक दिया है।

रामवती - हा , बहन भगवान की दया से रवि को पहला बच्चा बेटा ही हुआ। चिंता से मुक्त हो गई मैं तो। कही लड़की हो जाती तो तुम्हारे जैसी हालत हो जाती मेरी भी।

( यशोदा का नाश्ता और चाय लेकर प्रवेश)

यशोदा -ज्योति ,जा दादा जी को बुला के ले आ।

ज्योति - जी अम्मा।

विमला -हा , बहन सब अपने ही कर्मों का फल है ,जो भुगत रहे हैं। लो चाय नाश्ता लो।

(बरामदे में रामभूषण का प्रवेश , बड़ी बड़ी मूछें उनकी अवस्था अभी 55 के आसपास की होगी।)

रामभूषण - अरे नमस्ते , बहन जी नमस्ते।(कुर्सी पर बैठते हुए)

रामवती - नमस्ते भाई साहब।

रामभूषण - और सुनाइये , सब कुशल मंगल , बड़े दिनों बाद पधारे।

रामवती - हा भाई साहब , अपने रवि के यहाँ लड़का हुआ ,तो उसी की देखभाल के लिए शहर चली गई थी।

रामभूषण - अच्छा ,अच्छा।

विमला - हमारे तो नसीब ही फूटे हैं। क्या करे बहन जी।

( यशोदा उनकी बात सुन मायूस सी खड़ी रहती है।)

रामवती - अरी विमला बहन , इस बार देखना ,यशोदा भी आपकी गोद मे पोता ही देगी। विश्वास रखो ऊपर वाला सब ठीक करेगा। अच्छा अब मैं चलती हूँ ,घर पर कोई नही है।फिर आना होगा बहन।

विमला - अच्छा बहन , आती रहना।

(रामवती का प्रस्थान , यशोदा अपने काम मे लग जाती है , दोनों ही पति -पत्नी में वार्तालाप हो रहा है।)

विमला -देखो , रामवती को भी पोते का सुख मिल गया , और हम है कि छोरियों की सेवा चाकरी कर रहे हैं। एक बेटा नही जन सकती ,किस घड़ी में ये मेरे घर की लक्ष्मी बनकर आई थी। करम फुट गए मेरे तो छोरियोँ के मुंह देख देख कर।

रामभूषण - अरी भाग्यवान ! क्यों कोसती हो उन बेचारियों को ,क्या बिगाड़ा है उन्होंने तुम्हारा। जब भी आवाज लगाती हो ,सब दौड़कर तुम्हारा हाथ बंटाने आ जाती हैं।

विमला - बस ,बस इतनी तरफ़दारी भी न करो छोरियों की। सिर चढ़ गई तो हो गई बात। अब तो पोते का मुंह देखे बिना ही मर जाऊँगी ( आंखों के आंसू पोछते हुए) सोचा था पोते को जी भर कर खिलाऊँगी , पर इस निक्कमी ने पैदा की तो वो तीन -तीन बेटियां।

रामभूषण - अरे क्यों परेशान होती हो , बेटियां भी तो घर की लाज है ,उनको दो बोल प्रेम भरे बोल दिया कर कभी , हमेशा खरी -खोटी सुनाती रहती है।

विमला- बस करो जी , बहुत हुआ मेरी छाती का बोझ है ये तीनों।

द्वितीय दृश्य

(रात्रि का समय भोजन करने के उपरांत बैठक में आत्माराम का प्रवेश , तीनों बच्चियां बैठक में पढ़ रही है। )

आत्माराम - माँ कौन आया था ? मिठाई आई हैं जो।

विमला - अरे बेटा , तेरी रामवती काकी आई थी , रवि के घर बेटा हुआ ,उसी की खुशी में मिठाई बांटने आई थी।

आत्मराम - अच्छा माँ , बहुत खुशी की बात है।

विमला - हा , सब खुशियां मना रही हैं ,एक मैं हूँ कि ....... तेरी औरत से एक बेटा नही पैदा किया जाता क्या ? इस बार अगर एक और बेटी हुई भला तो इसको अपने मायके भेज देना। यहाँ कोई जगह नही है निकम्मों के लिए।

आत्माराम - जी माँ , मुझे भी अब यही इलाज दिख रहा है।

मनीषा - पापा , क्या हमें भी नाना जी के घर छोड़ आओगे ?

राधिका - ज्योति दीदी , हम नाना जी घर जाएंगे ।

रामभूषण - अरे ,तुम माँ बेटे फिर शुरू हो गए। कुछ तो सोच कर बोला करो। ( बच्चियों की तरफ इशारा करते हुए)

 ज्योति ,जाओ बेटा अपनी माँ का काम मे हाथ बटाओ , और मनीषा , राधिका को भी ले जाओ।

ज्योति - जी ,दादा जी।

( तीनों का बैठक से प्रस्थान)

विमला- क्या करें तो , बेटियों की लाइन लगा रखे , वंश कैसे चलेगा ? सोचा है कभी , अपनी ही धुन मे लगे रहते हो।

रामभूषण - अरे ,तो बच्चियों के सामने ऐसी बातें क्यो करते हो तुम दोनों माँ -बेटा।

विमला- इस बार जो लड़की हुई ना ,तो आत्मराम का दूजा व्याह की तैयारी कर रख लेना जी। अब मुझसे नही सहन होता ये सब।

आत्माराम - माँ ठीक कह रही हैं पिताजी ,आखिर एक बेटा न होगा ,तो वंश कैसे चलेगा। कौन मुँह से जात बिरादरी में बैठूँगा।

रामभूषण - और भला यशोदा का क्या होगा ? सोचा है।

आत्माराम - उसके मायके भिजवा दूँगा।

रामभूषण - और बेचारी बच्चियों का ?

आत्माराम - मनीषा और राधिका ले जाएगी उसके साथ।

रामभूषण - कितने निर्दयी हो गए हो बेटा ,तुम ईश्वर तुमको सद्बुद्धि दे। राम !राम! राम! (बैठक से बाहर जाते हुए)

विमला - सही कह रहे हो बेटा , इस मुसीबत से पीछा तो छूटेगा। जा अब आराम कर दिनभर का थका हारा है।

(आत्माराम का प्रस्थान)

( तीनों बच्चियां एक साथ कमरे में बैठ खेल रही है।)

आत्माराम- क्या कर रही हो तीनों की तीनों?

तुम्हारी अम्मा कहा हैं ?

मनीषा - दीदी ,पापा !(भय से)

ज्योति - अच्छा ,चलो अब बाद में खेलेंगे।

राधिका - पापा ,अम्मा रसोई में काम कर रही हैं। पापा, जब आप अम्मा को नाना जी के घर छोड़ आओगे ,तो मैं आपके साथ रहूंगी।

आत्माराम - अच्छा , क्यों ?

राधिका - मैं आपकी रानी बेटी हूँ ना।

आत्माराम - हा ,बेटी पर तू मेरा राजा बेटा होता तो अच्छा होता।

(कमरे में यशोदा का प्रवेश)

यशोदा - आपकी बेटियां ,आपके लिए भी बोझ हो गई क्या ?

आत्माराम - बोझ ही तो है ,बेटा होता तो मेरे कामों में हाथ बटाया करता। इस बार बेटा ही होना चाहिए। वरना माँ की बात मानने में जरा भी देरी न होगी।

यशोदा- बेटा होना या न होना ,क्या मेरे हाथ मे है ? माँ जी भी सबके सामने खरी -खोटी सुना देती हैं। क्या सबकी दोषी मैं ही हूँ ?

आत्माराम - ये अपनी रामदुहाई अब यहाँ कोई नही सुनेगा।

तृतीय दृश्य

( यशोदा को प्रसव पीड़ा होने पर नजदीकी शासकीय अस्पताल लाया गया है ,उसके साथ विमला ,आत्माराम है। यशोदा को प्रसव वार्ड में भर्ती कर लिया गया है ,उसकी हालत बहुत नाजुक है।वह चौथी बार बच्चे को जन्म देने वाली है।)

विमला - हमारे जमाने मे प्रसव दाईमाँ घर पर ही बिना किसी परेशानी के करा दिया करती थी। आज के जमाने के ढोंग ही अलग है।

आत्माराम - पता नही माँ , डॉ मैडम क्या कहे , बड़े ही गुस्से में लग रहीं हैं।

(प्रसव कक्ष से डॉ अनिता बाहर आती है।)

डॉ अनिता - यशोदा के साथ कौन है ?

आत्माराम - जी डॉ मैडम ,हम हैं।

डॉ अनिता - अच्छा ,आप लोग हो। आपने उनकी हालत देखी , कितनी कमजोर है ,शरीर मे खून ही नही है और ऐसे में डिलेवरी। बिल्कुल भी ध्यान नही रखा आप लोगो ने।

आत्माराम - जी डॉ साहिबा।

डॉ अनिता - इन्हें खून चढ़ाना पड़ेगा , जाइये व्यवस्था करिये।

( डॉ अनिता प्रसव कक्ष में चली जाती है।)

विमला - लो , ये एक और नई मुसीबत गले पड़ गई।

आत्माराम - अब क्या करे माँ।

विमला - खून चढ़ाना पड़ेगा , अब हम कहा से लाये।

(आत्माराम खून की व्यवस्था करने चला जाता है1 कमला का आगमन )

कमला - अरे विमला ! मुझे पहचाना।

विमला - (गौर करते हुए) अरे ! कमला है ना तू , कितने सालों बाद देखा तुझे। कैसी है तू ।

कमला - अच्छा पहचान लिया (हँसते हुए ) मैं तो अच्छी हूँ।तू सुना यहाँ कैसा आना हुआ ? सब कुशल मंगल तो है ना !

विमला - अरे क्या बताऊँ ! बहु को डिलेवरी के लिये भर्ती किया है। पर तू यहाँ कैसी ,तुम तो अपने बेटे सुरेश के साथ शहर में रहने चली गई थी ना।

कमला - क्या बताऊँ अब ... चली तो गई थी पर बेटे और बहू को मेरा वहाँ रहना सुहाता नही था । आये दिन दोनों में मुझे लेकर झगड़ा होता रहता था। थक हार कर मैं अपनी बेटी के पास आ गई।

विमला - अच्छा , बेटी के साथ , कहा रहती है ? बहुत छोटी सी तेरी गुड़िया बेटी तब देखा था उसे , अब तो उसका व्याह कर दिया होगा तूने। फिर उसके साथ रहने में परेशानी नही होती क्या ?

( प्रसव कक्ष से डॉ अनिता का आगमन )

डॉ अनिता - अम्मा जी खून चढ़ाना बहुत आवश्यक है पेसेंट को , आप लोगो ने व्यवस्था कर ली।

(डॉ अनिता अपनी माँ कमला को देखते हुए)

 अरे माँ ,आप आ गई।

कमला - अरे कमला तू जिस गुड़िया की बात कर रही थी , ये वही है ,मेरी बेटी अनिता।

विमला-(आश्चर्य से ) अरे ,ये गुड़िया है क्या ! 

कमला - अनिता , ये मेरी बचपन की सहेली और तेरी विमला मौसी है। मैं बताती थी न कभी -कभी ये वही विमला मौसी है।

डॉ अनिता - नमस्ते ,विमला मौसी।

विमला - नमस्ते , मेरी गुड़िया ,कितनी बड़ी हो गई हैं कि पहचान भी न पाई। ( डॉ अनिता के सिर पर हाथ फेरते हुए )

छोटी सी देखा तुझे।

कमला - हा ,विमला अब मैं अनिता के साथ ही रहती हूँ।

डॉ अनिता - मौसी , आप ने अपनी बहू का ध्यान नही रखा ,कितनी कमजोर हो गई है।

विमला - अरे बेटी , क्या कमजोरी उनके हाथ का बनाना खाना रहता है। कौन रोकता है भला।

डॉ अनिता - कितने बच्चे हैं इनके।

विमला - तीन छोरियां हैं। एक लड़के की आस कब से लगाये बैठी हूं।एक बेटा हो जाता तो सुखी हो जाती।

कमला - अरे विमला , तू भी वही पुराने जमाने की सोच में पड़ी है अभी तक।

विमला - अरे तो बेटा ही न वंश चलाएगा। आगे चलकर सहारा बनेगा।

डॉ अनिता - मौसी बेटे की लालसा में आज आपकी बहु की जान पर बन पड़ी हैं।

विमला - अरे बेटी ,तू अभी नादान है , भला छोरियां क्या उद्धार करेंगी मेरा और फिर बेटे का छोरियों से क्या मुकाबला भला।

कमला -  विमला , आज मुझको देख मेरी बेटी डॉक्टर हैं। अपने पैरों पर खड़ी है। मुझे सम्भालती है। आज मेरी बेटी ही तो मेरा सहारा है।

विमला - और सुरेश ?

कमला - सुरेश ,उसको पढ़ाया लिखाया ,लेकिन मेरा नाम डूबा दिया। माँ उसके लिए आज कुछ नही है। अपना परिवार ही सबकुछ है उसके लिए।वो तो अच्छा हुआ ,मैंने उसके साथ अपनी बेटी को भी पढ़ाया , आज डॉक्टर बन कर मेरा नाम ऊँचा कर दिया।

विमला - अच्छा।

डॉ अनिता - मौसी ,आज बेटा और बेटी एक समान है। लड़कियां किसी भी क्षेत्र में लड़कों से पीछे नही हैं। डॉक्टर , इंजीनियर ,वकील ,शिक्षक ,नर्स बनकर अपना और अपने परिवार का नाम रोशन कर रही हैं। यहाँ तक कि अब तो लड़कियां आसमान छू रही हैं। पायलेट तक बन रही हैं। अंतरिक्ष वैज्ञानिक भी हैं।

विमला - अच्छा बेटी , तू कहती है तो सच ही पर .....

कमला - पर ,पर कुछ नही विमला , देख आज अनिता ही कितनी बड़ी डॉक्टर है , कल में तेरी पोतियां भी डॉक्टर , वकील ,शिक्षक बनकर तेरा नाम रोशन करेंगी। ये बेटा बेटी में भेदभाव करना छोड़ दे , और खूब पढ़ा लिखा अपनी पोतियों को।

डॉ अनिता - माँ सही कह रही हैं मौसी , आपने बेटे की चाह में अपनी बहू के स्वास्थ्य पर भी ध्यान न दिया।

कमला - मैं तो कहती हूँ विमला अब बेटा हो या बेटी बहु को बेटे के लिए परेशान न करना , अपने स्वार्थ के लिए उसकी क्यों बलि चढ़ाई जाए।

विमला - तुम सही कह रही हो कमला , मैंने पोते की लालसा में अपनी बहू पर बड़ा जुल्म किया है। आज उसकी इस हालात की जिम्मेदार मैं ही हूँ। बेटी अनिता अब मैं समझ गई हूँ बेटे बेटी में भेदभाव करना गलत हैं।

कमला - सही है विमला।

विमला - अब मैं भी अपनी पोतियों को खूब पढ़ाऊंगी और उनको तुम्हारी तरह अपने पैरों पर खड़ा करुँगी।

(आत्माराम का आगमन )

आत्माराम - डॉ मैडम , मैंने खून की व्यवस्था कर ली हैं।

विमला -अरे बेटा ,इसको पहचाना ये गुड़िया है , तेरी कमला मौसी की बेटी अनिता ।

आत्माराम - अच्छा , अरे गुड़िया बहन हैं क्या। (कमला की ओर देखकर ) प्रणाम मौसी।

कमला -खुश रहो बेटा।

(डॉ अनिता आत्माराम से खून की बॉटल लेकर प्रसव कक्ष में चली जाती है।)

कमला - आत्माराम अब बहु पर अत्याचार मत करना। जैसे बेटे घर का नाम रोशन करते हैं ,वैसी ही बेटियाँ भी पूरे परिवार का नाम रोशन करती हैं।

आत्माराम - जी मौसी।

विमला - अच्छा हुआ कमला तूने और गुड़िया(डॉ अनिता) ने मेरी आँखें खोल दी।

(लगभग 1 घण्टे बाद डॉ अनिता प्रसव कक्ष बाहर से बाहर आती हैं।)

डॉ अनिता - मुबारक हो मौसी आपके घर लक्ष्मी आई हैं।

विमला - (प्रसन्न होकर ) अच्छा बेटी बहुत खुशी की बात हैं। और मेरी बहु तो ठीक है न उसकी जान को कोई खतरा तो नही है न ?

डॉ अनिता - हा , वह भी ठीक है। कमजोर है ,पर आप उनका ध्यान रखेंगी तो बहुत जल्दी अच्छी हो जाएगी।

विमला- हाँ ,बेटी मैं पूरा ध्यान रखूंगी।

( नर्स बच्चे को लाकर विमला के हाथ मे दे देती हैं।)

विमला-(बच्चे को हाथ मे लेकर) आजा मेरी रानी बेटी , अपनी दादी की गोद में। पढ़ -लिखकर मेरी रानी बिटिया डॉक्टर बनेगी।

आत्माराम- हा माँ ,मैं भी अपनी बेटी को डॉक्टर बनाऊंगा।

विमला- हा बेटा।

( विमला और आत्माराम की बात पर डॉ अनिता और कमला मुस्कुरा देती हैं। )

(पर्दा गिरता है)


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