विस्थापन
विस्थापन


सीवन के समीप बांध बनकर तैयार था , उसके नजदीक ही झाड़ियां और छोटे पौधों के साथ पेड़ो की कतारें लहरा रही थीं , मुनमुन इन्हीं में से एक पेड़ पर कठिन परिश्रम से तिनका-तिनका चुन -चुनकर अपना नीड़ बना रही थीं । इस छोटे से जंगल मे अन्य पशु -पक्षियों का भी बसेरा था । मुनमुन बड़ी प्रसन्न थी ,आज उसका परिश्र्म पूर्ण रूप से एक सुंदर आकार ले चुका था। इसी नीड़ में बैठ कर कई दिनों की अथक कार्य से मुक्त होकर कुछ पल विश्राम करते हुए भविष्य के सुनहरे सपनों में खो गई । वह इस नीड़ में अंडे देगी ,फिर उनसे छोटे -छोटे बच्चों का जन्म होगा । वह अभी से ही माँ के उस वत्सल भाव को महसूस कर रही थीं ।जिसे इस धरती की हर माँ में निहित थी । क्या मानव , क्या पशु -पक्षी , जीव -जंतुओं में माँ का स्वरूप ममता के महासागर सा होता है।
मुनमुन जब नींद से जागी तो सुबह का भोर पक्षियों के कलरव के साथ अपनी किरणें बिखरने को आतुर था । मुनमुन भोजन की व्यवस्था करने के लिए अपने पंख फैलाकर उड़ गई । इसी प्रकार कुछ दिन बीत जाने के बाद मुनमुन ने अपने नीड़ में चार अंडे दिए , वह अब भोजन की तलाश में कम ही बाहर जाती ,अपने अंडों पर पंख फैलाये उनकी देखभाल करती ।
अचानक उसने देखा बांध का जल स्तर बढ़ रहा है ,सारे पशु वहाँ से पलायन कर रहे हैं ।उन सब में एक प्रकार का भय व्याप्त था , वे अपने बच्चों और साथी सदस्यों के साथ ऊपर वाले मैदान की और जाने लगे ।मुनमुन अपने नीड़ में बैठ यह दृश्य देख रही थी ।मुनमुन के पेड़ की उभरी हुई जड़ो को बांध का जल छूने लगा था । मुनमुन पेड़ की ऊंची शाखा पर अपने नीड़ में सुरक्षित थी , साथ ही उसके अंडे भी सुरक्षित थे ।
एक पहर बीत जाने पर बांध का जलस्तर अब पेड़ के मोटे तने को घेरे हुए था , पानी पेड़ की टहनियों से टकराता हुआ हिलोरें ले रहा था । जहाँ सारे पशु -पक्षी ऊँचे मैदान पर इकठ्ठे खड़े थे ,उसके चारों और जल ही जल भर गया था । वहाँ मैदान के जगह पर एक टापू बन गया था । बाघ ,शेर जैसे हिंसक पशुओं के साथ हाथी ,सियार ,हिरण ,नीलगाय ,भालू , जंगली भैंसा और मोर ,कोयल ,बटेर ,कौआ ,गिद्ध ,बुलबुल जैसे पक्षी सभी उस छोटे टापू पर अपनी जान बचाने के लिए खड़े थे । उस टापू की ओर बांध का जल तेजी से बढ़ रहा था।
मुनमुन अपने पेड़ पर बैठी थी ,अब उसे अपने आस पास अथाह जल ही जल नजर आ रहा था ।वह तेजी से पेड़ को डुबोने के लिए बढ़ रहा था । मुनमुन अब तेज आवाज में चीं ..चीं....चीं... कर चीख रहीं थी । लेकिन उसकी इस करुण आवाज की सुनने वाला वह पेड़ भी अब डूब रहा था । पेड़ की शाखाओं तक बांध की जल राशि बढ़ चुकी थीं ,मुनमुन अगर थोड़ी भी देर करती तो वह डूब जाती । उस अथाह जलराशि ने तेजी से पेड़ को डुबो दिया । उसके साथ ही मुनमुन के सारे अंडे , सारे सपने भी जलमग्न हो गए थे । मुनमुन चीख़ती हुई उस अथाह जलराशि के ऊपर से उड़ती हुई टापू पर पहुँचती है । सभी पशु -पक्षी अपनी मौत को सामने देख भयाक्रांत हैं ।जान बचाने के लिए टापू पर उनकी चीखें गूंज रही हैं और बांध का अथाह जल उन्हें डुबोने को उनकी ओर तेजी बढ़ रहा हैं।