छोटू की वापसी
छोटू की वापसी


"छोटू !दे खो तुम यहाँ नदी से बाहर मत निकलना !" जैसे ही माँ की आवाज कान में पड़ी छोटू ने झट से पूछा -"क्यों अम्माँ ?"
"अरे बेटा, यहाँ नदी के किनारे पर बहुत सारे लोग आते हैं। किसी ने तुमको घूमते -फिरते देख लिया, तो पकड़ कर ले जायेंगे।"
अम्मा ने समझाते हुए कहा।
छोटू को घूमने -फिरने, हर नई चीज को जानने का शौक था। नदी के जीव -जंतु हो या किनारे के पेड़ -पौधे, जानवर या इंसान वह सबके बारे में जानना चाहता था। इसलिए वह अपनी अम्मा से खूब सवाल पूछता था। उसकी अम्मा भी उसके हर सवाल का जवाब भी देती और बाहर के खतरों के बारे में उसे सावधान करती रहती थी। इसलिए जब आज तैरते हुए आज उनका परिवार नदी के किनारे, गाँव के पास पहुँचा तो उसने छोटू को नदी से बाहर जाने से मना कर दिया। पर छोटू कहाँ मानने वाला था। उसे लगता था, अब वह बड़ा हो गया हैं, और अम्मा उसे अभी भी बच्चा समझकर डराती हैं। उसने मन ही मन सोचा कोई इंसान भला उसे क्यों पकड़ेगा ?
तो मौका पाते ही वह चुपके से नदी के बाहर निकल पड़ा। सुबह की सुहानी हवा में, ठंडी -ठंडी रेत पर घूमते -घूमते छोटू किनारे से कितनी दूर निकल गया उसे पता ही नही चला। नदी से कुछ दूर निकलकर उसे पेड़ पर पीले -पीले फूल लटकते दिखे। उन्हें पास से देखने और कहीं मिल जाये तो अम्माँ के लिए ले जाने के विचार से वह आगे बढ़ता गया। अचानक उसके कानों में बच्चों की आवाजें सुनाई दी, तब उसने ध्यान दिया कि बच्चे तो उसके पास ही रेत पर उछल -कूद कर रहे हैं।अम्माँ की सीख याद करते हुए छोटू अपने आप को खोल में छुपा लिया, जिससे उसे कोई देख न पाए मगर तब तक जमुना की नजर उस पड़ चुकी थीं 1"अरे वाह, कछुआ !"जमुना खुशी से उछल पड़ी। फिर क्या था,कुछ ही देर में चारों और से बच्चों ने उसको घेर कर खड़े हो गए थे। कोई उससे डर रहा था तो कोई उसके खोल पर हाथ फिराकर अपनी बहादुरी दिखा रहा था। " ये तो मर हुआ है इससे क्या डरना "हरनाथ बोल पड़ा। "देख नहीं रही इसके हाथ -पैर भी नहीं दिख रहे हैं और ये हिल -डुल भी नही रहा 1"
"अरे नही, जिंदा है। मैंने इसको चलते देखा था1"जमुना ने कहा। "अरे ये तो कभी मेरी बात ही नही मानती 1"हरनाथ झल्ला उठा। "अरे -अरे, रुको ! जमुना सच बोल रही हैं। खतरा होने पर कछुए अपने हाथ -पैर और गर्दन को अपने खोल में छुपा लेते हैं। जानते हो इनकी खोल पड़ी मजबूत होती हैं ऐसा मैंने पढ़ा है। "करीना ने बीच -बचाव करते हुये कहा। "पर दीदी ये कितना छोटा है ! हमने उस दिन टीवी पर देखा था कितने बड़े-बड़े कछुए थें। " समीर ने कहा।
"ये भी तो तुम्हारी तरह बच्चा हैं इसलिए छोटा है। " मुस्कुराते हुए करीना ने जवाब दिया 1 "मैं तो इसको अपने घर ले जाऊंगा। "अचानक रमेश बोल उठा।
"नही ! तू क्यों ले जाएगा ? इसको तो मैं ले जाऊँगी 1" जमुना ने कहा। "नही पहले मैंने कहा तो मैं ही ले जाऊँगा।" रमेश ने कहा।
"पर इसको देखा तो सबसे पहले मैंने ही 1" जमुना ने कहा 1"तो क्या हुआ ? फिर तू इसको रखेगी कहाँ?" रमेश ने पूछा।
"पता नही, ये पानी रहता हैं। मैं इसको बाल्टी में रखूंगी। " जमुना ने तुरंत जवाब दिया। "देख, मेरे घर तो बड़ी टँकी है मैं उसमें इसको छोड़ दूँगा।" रमेश ने समझाते हुए कहा। और फिर तू इसको देखने घर तो आ सकती हैं ना। " छोटू चुपचाप पड़े इन बच्चों की बातें सुन रहा था। अब उसे समझ मे आया कि अम्माँ क्यो उसे बाहर निकलने को मना कर रही थीं। अगर ये उसको पकड़ कर ले जाएंगे तो ? उसे समझ नही आ रहा था कि वह क्या करें।
"पर तुम लोग इसे घर क्यों ले जाना चाहते हो ? "जमुना और रमेश की बहस को बीच मे रोकते हुए अनिता ने पूछा 1"बस ऐसे ही "दोनों बोल उठे। "मतलब, ऐसे ही तुम इसे इसके घर से दूर कर दोगे ?ये तो ठीक नहीं हैं। " अनिता ने कहा। "हाँ अनिता ठीक कह रही हैं, ये अच्छा नहीं होगा। ये घर वापस नहीं गया तो इसके माँ पिताजी कितने परेशान होंगे?"रतन ने कहा। "और इसको खाने को क्या देँगे, कुछ पता हैं? भाई मेरे को तो पता नहीं। अगर ये भूख से मर गया तो ? मेरी माँ कहती हैं कि किसी भी जीव को सताना नहीं चाहिए और अगर ये अपने घर से दूर हुआ तो, इसे भी दुख होगा। " भीमा ने कहा। जमुना और रमेश अब कुछ बोल नही पाएं।"अरे पानी में रहता हैं तो पानी के जीव -जंतु ही खाता होगा। और जो कुछ हमकों पता न हो उसे हम किसी से पूछ भी सकते हैं। लेकिन अभी मेरी बात मानो तो जल्दी से इसको नदी में छोड़ देते हैं। कहीं बड़े लोगों ने देख लिया तो इसको बचाना मुश्किल होगा। "करीना ने कहा।
" पर कैसे ले जाये इसको नदी तक ? अगर हाथ में उठाएंगे तो कहीं काट न खायें। "रतन बोल उठा। "कोई कड़क चीज मिले तो उस पर रखकर नदी में छोड़ देते। " हरनाथ बोला। "ठहर जा ! "कहती हुई जमुना गई और एक लकड़ी का पटिया लेकर वापस आई 1 सब दोस्तों ने मिलकर कछुए को लकड़ी से खिसका कर पटिये पर रखा और नदी के किनारे ले आयें । "हम इसे पानी में नही छोड़ेंगे। हम किनारे पर रखकर देखते हैं ये पानी मे कैसे जाता हैं ?" भीमा ने कहा।
"हाँ-हाँ, ऐसा ही करते हैं। " सभी ने भीमा की बात मान ली। अनिता और भीमा ने मिलकर कछुए को नदी के किनारे ऐसे रखा कि उसका आधा हिस्सा पानी में और आधा पानी से बाहर रहा। अब सब उत्सुकता से देख रहे थें की वो पानी में जाता हैं या नहीं। और छोटू, वो तो अपने हाथ -पांव हिलाने में डर रहा था कि कहीं जिंदा देखकर कोई उसे फिर से ना पकड़ ले 1 बच्चों की ख़ुसूर-फुसुर अभी भी उसके कानों में पड़ रही थीं। सब उसके बारे में ही बात कर रहे थें। तभी करीना ने उसको थोड़ा पीछे खींचा और सबको चुप रहने का इशारा किया। सब चुपचाप दम साधकर खड़े हो गए। शांति महसूस होते ही छोटू ने चुपके से गर्दन निकली और पीछे मुड़कर देखा। अगले ही पल उसने पानी में दौड़ लगा दी। सारे बच्चे उसको जाते देख खुशी से तालियां बजाने लगे। "अब तो वह अपने घर चला जायेगा।"रतन ने राहत की सांस लेते हुए कहा।
"छोटू ! कहाँ चला जाता है रे तू ! कितनी देर से तुझे बुला रही हूँ और तू हैं कि बोलता ही नही। " अम्मां ने छोटू को देखते ही कहा।
अब छोटू को समझ नहीं आ रहा था कि वो अम्माँ को क्या बताये कि उसके साथ क्या हुआ। मन ही मन उसने उन बच्चों को धन्यवाद दिया, जिनके कारण वो अपने परिवार के पास वापस आ सका।
("बेजुबान पशु -पक्षियों की सुरक्षा, देखभाल एवं उपचार को अपने जीवन में शामिल करें, तथा उनके प्रति संवेदनशीलता, दयालु भाव रखना बच्चों से सीखे। ")